प्रार्थना में है-रोग मिटाने की क्षमता

सर्वरोगहारी संजीवनी-  प्रार्थना शक्ति
इस लेख में 20 से अधिक परमहँस,
साधु-सन्तों, चिकित्सकों के अनुभव
जानिए।
प्रार्थना क्यों जरूरी है? 
जाने ८ कारण
■  स्वप्रेरणा है प्रार्थना-
■  प्रार्थना महाशक्ति है-
■  प्रार्थना महाप्रसाद है-
■  श्रेष्ठता का अभेद्य द्वार है प्रार्थना-
■  प्रार्थना में महान ऊर्जा है-
■  प्रार्थना के समक्ष दुरजयी, दुराग्रही
वैसे ही तिरोहित हो जाते हैं-
 
अपनी शक्ति को पहचाने
आइएप्रार्थना को अपनी महाशक्ति
समझिये। आत्मविश्वास रखिये।
प्रार्थना की शक्ति के सामने
कैसा भी, कोई भी मस्तिष्क हो,
मेरुदण्ड-सा सीधा खड़ा नहीं
रह सकता।
जब चिकित्सक सकते में आ गए—
घातक कैंसर और वह भी तीसरी स्टेज तक
जा पहुंचा—– चिकित्सक हैरान थे।
रॉयल इंफरमेरी हॉस्पिटल के विश्व प्रसिद्ध
डॉ आर्चीबाल्ड, डॉ जीन एवं सर्जन
डेविड मिल ने कैंसर से पीड़ित एक महिला
श्रीमती मेरी फगान को सलाह दी, कि
तुम अब, कुछ दिनों की मेहमान हो,
यदि हो सके, तो रोज प्रार्थना किया करो,
ताकि अंतिम समय कष्टरहित गुजरे।
फिर, एक साल बाद क्या हुआ-
लगभग एक वर्ष बाद वही महिला
चिकित्सकों के सामने मुस्करा रही थी,
मानो कह रही हो, “डॉक्टर” !
कुछ दिनों की मेहमान हो, ऐसा
कहने का अधिकार, तो मात्र
ईश्वर को होना चाहिए।
चिकित्सकों के आत्मानुभव
मिरेकल” एक ऐसी अदभुत किताब है,
जिसमें दुनिया के जाने-माने चिकित्सकों
ने अपने अनुभवों का संकलन किया है।
मिरेकल नामक किताब में डेसहिकी और
गुसस्मिथ सरीखे ख्यातिप्राप्त चिकित्सकोंं
ने प्रार्थना शक्ति के इसी तरह की अनेक
घटनाओं का उल्लेख किया है।
प्रार्थना कभी अनसुनी नहीं जाती
डॉ रॉबर्ट एंथोनी ने अपनी पुस्तक
‘द अल्टीमेट सीक्रेट ऑफ 
टोटल सेल्फ कॉन्फिडेंस”
में लिखा है कि मनुष्य के अन्तराल,
अन्तर्मन में अदभुत और अपरिमित
शक्तियां प्रसुप्तावस्था में सोई हुई
पड़ी हैं। निरन्तर प्रार्थना करने से
जब ये जाग जाती हैं, तो आत्मिक
उरेज के द्वार खुल जाते हैं।
प्रार्थना का फलसफा
प्रार्थना की शक्ति से ऊर्जा, आरोग्य,
उत्साह और आनंद के प्रकाश से
व्यक्ति के जीवन को जगमगा देती हैं।
प्रार्थना की क्षमता अभूतपूर्व है-
यह अंतरात्मा की वयः सच्ची पुकार है,
जो परमात्मा को अभीष्ट प्रयोजन की
पूर्ति के लिए अपने वरदान बरसाने के लिए
विवश कर देती है।
प्रार्थना-आत्मा की खुराक है:
जैसे उदर की खुराक भोजन है,
वैसे ही आत्मा का भोजन प्रार्थना है।
प्रार्थना मनुष्य को ईश्वर से जोड़कर
उसमें शारीरिक दृढ़ता, मनोगत उत्साह
और नैतिक बल का संचार करती है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि
संसार में प्रार्थना ही ऐसी शक्ति है,
जिसके सहारे कठिन से कठिन
संकटों को टाला जा सकता है।
प्रार्थना की दिव्य शक्ति यही है कि
राणाजी द्वारा भेजे गये जहर को
मीरा के हाथ में पहुंचते ही अमृत
बना देती है।
मनोविज्ञानी पील के अनुसार
प्रार्थना मानव चेतना से निकली
ऐसी जीवंत ऊर्जा है, जो बड़े से बड़े
भूकम्प, आंधी-तूफान को अपने एक
इशारे से रोक सकती है। काल को
काटने की क्षमता प्रार्थना में है।
ऋषि मार्केंडेय धर्मग्रंथों को साक्षात
उदाहरण है।
वेदों में प्रार्थना के स्वर गूंजते हैं-
ॐ तच्चक्षुर्वेवहितं पुरच्छातुकरमुच्चरत।
पश्यम शरदः शतं जीवेमशरः शतं।
श्रुणुयामशरदः शतं।।
प्रब्रवाम शरदः शतमदिना: श्याम।
शरदः शतंभुयश्च शरदः शतात।।
अर्थात-
हे परमपिता परमेश्वर।
आपकी कृपा से हम सौ वर्ष तक
स्वस्थ्य रहें।
हम सौ वर्षों तक देख सकें।
हमारी आंखों में इतना तेज हो।
हम सौ वर्षों तक सुनते रहें।
हम सौ साल तक बिना किसी
परेशानी के बोलते रह सकें।
हे जगत्पिता-
हम आपकी अनुकम्पा से आत्मनिर्भर
रहते हुए रोग रहित होकर
सौ वर्षों तक जीवित रह सकें।
वेद-पुराणों में ऋषि-महर्षियों का कथन
है कि भगवान पुकार सुनता है
और निश्चित ही सुनता है।
शुद्ध ह्रदय से की गई प्रार्थना कभी
निष्फल या अनसुनी नहीं जातीं।
स्कन्द पुराण में वेदचक्षु ऋषियों
का कथन है कि ईंधन का मूल्य
कुछ भी हो, पर जब वह अग्नि से
जुड़ जाता है, तो अग्नि के सारे गुण
उसमें आ जाते हैं।
आग कभी ईंधन नहीं बनती,
बल्कि ईंधन को आग बनना
पड़ता है।
जल की बूंद समुद्र में मिलकर
समुद्र बनती है।
गन्दे नाले के पानी को सुरसरि
में मिलने के बाद पतित पावनि
गंगा के नाम से पुकारा जाता है।
यही स्थिति भक्त और भगवान की
होती है, जब वह अपने अहंकार
का विसर्जन कर ईश्वर के साथ
एकाकार हो जाता है।
सूर्य वैज्ञानिक परमहंस स्वामी विशुद्धनंद जी
लिखते हैं कि मानव जीवन किसी
महान उद्देश्य के लिए है।
प्रत्येक प्राणी को कम से कम रोज
एक से दो घण्टे प्रार्थना अवश्य करना चाहिए।
हृदय के द्वार खुल रहें
विवेकानंद के सदगुरू रामकृष्णपरमहंस
 साइकिल हीलिंग यानि
आध्यात्मिक चिकित्सा की विशेषता
बताते हैं कि हमारी सारी मुसीबतों
का कारण यही है कि हमने देव कृपा
एवं दैवी-शक्ति के लिए अपने कपाट
बन्द कर रखे हैं। हम यदि नियमित
प्रार्थना के द्वारा दैवीय शक्ति का आव्हान
करें, तो हमारे चारों तरफ, सब ओर
शिवत्व ही दृष्टिगोचर होगा और
हमारे ऊपर शिव की कृपा, शिव सहायता
उपलब्ध हुए बिना न रहेगी।
महर्षि अरविन्द का कहना है कि
प्रार्थना का प्रचंड चुम्बकत्व अदृश्य
शक्तियों की सहायता को अपनी और
खींच लाने की सामर्थ्य रखता है।
नागा साधु शांतानंद जी बताते हैं कि
प्रार्थना शारीरिक ओजस, मानसिक
तेजस और आत्मिक वर्चस्व प्राप्त
करानेवाली महाशक्ति का नाम है।
रेडियम की तरह होती हैं प्रार्थना की शक्ति
प्रार्थना की ऊर्जा को जिधर भी नियोजित
किया जाता है, वहीं दिव्य सफलताएं
मिलने लगती है।
प्रार्थना का प्रभाव
 
ना गिनकर देता है,
ना तोलकर देता हैं।
ईश्वर जब भी देता है,
दिल खोलकर देता हैं।।
 शैव साधु श्री श्री विश्वनाथ यति
के शब्दों में प्रार्थना अनसुनी न रहे,
इसके लिए आवश्यक है कि उसमें 
आत्मा की कसक हो। ऐसी सामर्थ्यवान
प्रार्थना भगवान को भक्त तक पास
बुला लाने में समर्थ होती हैं।
इसके लिए ह्रदय के द्वार खुले रहने चाहिए।
प्रार्थना क्यों जरूरी है? ८ कारण
【१】हमारी पांचों कर्मेन्द्रियों और
पांचों ज्ञानेंद्रियों यानि दसों इंद्रियों
की शुद्धि के लिए प्रार्थना करना
अत्यंत आवश्यक है।
【२】हमारे कर्म, मन-वचन पवित्र हों
इसके लिए प्रार्थना प्रतिदिन करना चाहिए।
【३】हमारे तीन शूलों का नाश हो।
【४】वात-पित्त-कफ ये तीनों यानि त्रिदोष
सम हों। हम रोग रहित रहें इस
हेतु प्रार्थना एक सरल जरिया है।
【५】हमारा विचारधाराओं का पक्ष,
भावनाओं, प्राणशक्ति का पक्ष,
विश्वास, आत्मविश्वास, आत्मबल
वृद्धि के लिए प्रार्थना अचूक हथियार है।
【६】प्रार्थना मनुष्य के विचारों को
शिवत्व की और ले जाती है।
【७】अशुभ विचार ही विनाश की जड़ है।
【८】अरबों-खरबों वर्ष पूर्व वेदों में
सदियों पहले हमारे ऋषियों ने
उदघोष किया था कि-
तन्मे मनः शिव संकल्प मस्तु
(यजुर्वेद ३४/१-२)
अर्थात हमारा मन कल्याणकारी
विचारों वाला हो। 
गुरु गोरखनाथ जी ने संकल्प शक्ति
को ही शिव माना है। दृढ निश्चयी
व्यक्ति शिव रूप ही होता है।
 
चित्रकुट धाम के समाधिस्थ
सन्तभेश्वर श्री श्री शंकरानंद जी
के वचन थे कि विचारों का
कल्याणकारी दिशा में मुड़ना
एक ऐसा शुभ लक्षण है, जो
अंततः उसे सभी प्रकार के
कुविचारों तथा गन्दी, धुंधली,
द्वेषपूर्ण दुर्भावना से मुक्ति दिला देता है।
 
जिन लोगो के कर्म अच्छे होते है,
वो एक दिलचस्प किस्सा बन जाते हैं।
अगर प्रार्थना दिल से की जाए, तो 
शिव जिन्दगी का हिस्सा बन जाते हैं।।
शिव के प्रति सत्य निष्ठा
ईश्वर के प्रति अटूट आस्था और
विश्वास ही प्रार्थना को जन्म देता है।
प्रार्थना विश्वास की धार को ओर पैना
बना देती है।
शिव के प्रति सच्ची आस्था एवं इसप्रकार
का विश्वास शक्ति के ऐसे स्फुलिंग
छोड़ता है कि रोग-शोक को दूर होते
देर नहीं लगती।
एक अदभुत पुस्तक
कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर
अलेकिक्स केरेल ने अपनी कृति
द मैन अननोन में लिखा कि
मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा,
जब एक मरणासन्न कैंसर रोगी
प्रार्थना चिकित्सा के द्वारा पूरी
तरह स्वस्थ्य हो गया। जबकि
उस रोगी को उन्होंने खुद ही
असाध्य घोषित किया था।
दुर्गा शप्तशती के रचयिता
और महामृत्युंजय मन्त्र के
अविष्कारक ऋषि मार्केंडेय ने
शिव पुराण में उल्लेख किया है कि
प्रार्थना सृष्टि की सबसे शक्तिदात्री
ऊर्जा है, जो मनुष्य के संपूर्ण शरीर
तन्त्र को इच्छित दिशा में क्रियाशील होने के लिए विवश कर देती है।
रोग नाशक होती हैं प्रार्थना
प्रार्थना की शक्ति से अंदर ही अंदर
रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास
होने लगता है, जो स्वस्थ्य शरीर के
लिए महत्वपूर्ण तत्व है।
प्रार्थना की सहायता से प्रतिरक्षा
प्रक्रियाएं सक्रिय हो उठती हैं।
प्रार्थना से लाभ
प्रार्थना से न केवल भौतिक स्वास्थ्य
के रूप में मिलता है, अपितु बौद्धिक
प्रखरता, मानसिक प्रसन्नता और
आत्मिक आनंद के रूप में प्राप्त होता है।
मनीषी की लोकयात्रा
नामक पुस्तक में लिखा है कि
प्रार्थना मनुष्य में सोयी पड़ी दिव्य
साधन है। जब ये शक्तियां जाग
जाती हैं, तो सारे 
रोग-विकार, दुःख-दुर्भाग्य,
कालसर्प-पितृदोष, टोना-टोटका,
जादू-मन्त्रर, भय-भ्रम, अवसाद,
डिप्रेशन, चिन्ता, डर, हाय-नजर
आदि अनेक नकरात्मक निगेटिव
ऊर्जा या विचार क्षण मात्र भी
नहीं ठहरते।
अधिकांश शिवभक्त साधुसन्तों का
मानना है कि सच्चे हृदय से ईश्वर
को पुकारने पर उत्तर अवश्य मिलता है।
अंतःकरण की पुकार पर ईश्वरीय सत्ता
द्रवित हुए बिना नहीं रहती है।
भारत में ऐसे अनेकों चमत्कार हुए हैं,
जब मरा हुआ व्यक्ति प्रार्थना के बलबूते
पुनः जीवित हो गया। इस तरह के हजारों किस्से आज भी ग्रामीणों के मुख से
सुनने को मिल जाते हैं।
मामेकं शरणं ब्रज
सनातन धर्म के वैज्ञानिक ग्रन्थ
गीता सार का सुझाव है कि
!!मामेकं शरणं ब्रज!!
कहकर ईश्वर की शरण में आने
को कहा है।
जब कोई बालक अपनी रक्षा के लिए
या भय से बचने के लिए माँ की गोद
में छिपता है, तो जैसा उसका भाव होता है,
वैसा ही भाव भगवान की शरण में जाने के लिए चाहिए।
आदि शंकराचार्य ने  प्रार्थना के लिए
तीन शर्ते बताई हैं —
पहला– एक ही ईश्वर पर अटूट विश्वास
अपनी आस्था हमेशा एक ही इष्ट के प्रति रखें।
यदि आपने सदगुरू बना रखे हैं, तो केवल
अपने गुरु के प्रति पूरी निष्ठा रखें।
दूसरा– शुद्ध सरल भाव से अपने गुरु या ईश्वर
से याचना, निवेदन, प्रार्थना करना।
तीसरा है- मन में शिव संकल्प
ये तीन शर्ते पूरी कर लेने से मृत्यु
के मुख में जाता हुआ रोगी भी निराश नहीं होता।
कैसे करें प्रार्थना
प्रतिदिन नियमित रूप से उपासना
यानि उप का अर्थ है- ईश्वर के निकट
और आसन का मतलब है बैठना
अर्थात स्वयं को पूरी श्रद्धा, निष्ठा
के साथ समर्पण भाव से ईश्वर
को अर्पित कर देना।
इस प्रकार की लगातार प्रार्थना करने से
व्यक्ति की प्रसुप्त शक्तियां जग जाती हैं।
वह सृष्टि के कण-कण में महादेव
के दर्शन करने लगता है।
बोले सो निहाल
सिख धर्म के अनुसार संसार
में ऐसा कोई प्राणी नहीं हुआ,
जिसने गुरुग्रंथ साहिब की बात
मानी हो, गुरु से प्रार्थना की हो और
 निहाल नहीं हुआ हो। प्रार्थना के सहारे
सारा जीव-,जगत निहाल हो रहा है।
कबीरदास जी और
सन्त रविदास जी
कहते हैं-
मनुष्य की यह सबसे बड़ी भूल है कि
जीवनदाता परमेश्वर को भूलकर वयः
सहायता के लिए जहां-तहां मारा-मारा
फिर रहा है। यदि वह एक जगह
शान्त मन से बैठकर भोलेनाथ,
महादेव को सच्चे अंतःकरण से 
पुकारे, तो कोई कारण नहीं कि
उसकी अन्तर्मन की पुकार पर
परमात्मा की सहायता उपलब्ध न हो।
समुद्र में शिंवलिंग
गुजरात भावनगर के पास
निष्कलंक महादेव के नाम से समुद्र
के अंदर पांच शिंवलिंग है,
जो हमेशा समुद्र जल में डूबे रहते हैं।
कुछ समय के लिए वहां से जल हट जाता है
और शिंवलिंग ऊपर आ जाते हैं।
निष्कलंक महादेव मन्दिर के
 दर्शन के समय एक परम शिव भक्त
ऐसा कुछ गुना गुना रहे थे-
तू शिव को अगर बिसरा देगा,
बिसरा देगा, तो शक्ति कैसे पायेगा।
शिव नाम का अमृत पाए बिना,
तू मुक्ति कैसे पायेगा।
 
प्रार्थना के तरीके जगत में
सबके अलग-अलग हैं
 
यही पास में 10 से 15 किलोमीटर की
दूरी पर सन्तभेश्वर शिंवलिंग भी
समुद्र के अंदर स्थित हैं।
भगवान कार्तिकेय ने यहां तप किया था।
मङ्गल दोष से पीड़ितों को एक बार
यहां के दर्शन अवश्य जाना चाहिए।
और अंत में —–
 
‘शिव’ के पास, 
तो देने के हजार तरीके हैं।
माँगने वाले तू देख, 
तुझमे कितने सलीके हैं।।
 

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