भगवान गणेश के कितने नाम हैं?

  • राहु केतु का संयुक्त रूप भगवान श्री गणेश के भी एक हजार नाम है। इसे श्री गणपति सहस्त्रनाम स्तोत्रम् कहा जाता है।
  • श्री गणेश की पूजा में वे सब वस्तु अर्पित की जाती हैं, जो राहु केतु की शांति में उपयोगी हैं। जैसे – दुर्वा, कुशा, छुआरे, मखाने, इलायची, लोग की माला आदि।
  • दैत्यगुरु शुक्राचार्य गणेशजी के गुरु हैं और इन्हें ।।ह्लीं ॐ नमः शिवाय ह्लीं।। मंत्र की दीक्षा देकर शिष्य बनाया था।
  • अमृतम पत्रिका, ग्वालियर श्री गणेशान्क सितम्बर 2003 से साभार संक्षिप्त जानकारी। विस्तार से जानकारी के लिए 295 पृष्ठ का श्री गणेश विशेषांक का अध्ययन करें। ये लेख करीब 35 पृष्ठों का है।
  • सभी मेडिकल स्टोर्स पर सन 2003 में 25000 प्रतियां निशुल्क भेजी गई थी। इस आर्टिकल में श्री गणपति सहस्त्र नाम की जानकारी प्रस्तुत है।

ऋषि मुनियों ने की सहस्त्र नाम की रचना

  • मन्त्रों और पुराणों में वर्णित सहस्रनामों द्वारा इष्ट देवता की स्तुति करने की पावन रम्परा अनादि काल से चली आ रही है।
  • सहस्रनाम का एक बार पाठ करने से इष्ट देवता के नाम मन्त्रों की दस माला का जप पूर्ण हो जाता है।
  • ऋषियों द्वारा उपदिष्ट न सहस्रनामों का (जो कि देवता के गुणों और लीला चरित्रों को लेकर रचे गये हैं। पाठ से नाम जप, लीला-चिन्तन एवं ध्यान आदि सब एक ही साथ सध जाते हैं
  • अतः सहस्रनामों के पाठ का एवं श्रवण करने का बड़ा भारी महत्त्व है गणेश पुराण में दिये श्री गणपति सहस्रनाम का अपना एक अलग महत्त्व है।
  • जब भगवान् शिव त्रिपुरासुर का वध करने में असफल रहे थे, तो उन्होंने विघ्ननाशक गणपति की पूजा-अर्चना करके उन्हें प्रसन्न किया था और उन्होंने प्रसन्न होकर आशुतोष शिव को इस सहस्रनाम का उपदेश किया था।
  • गणेश स्तोत्र का पाठ करने विघ्न-बाधाओं पर तो साधक विजय प्राप्त करता ही है, साथ-ही-साथ वह अपनी समस्त कामनाओं को भी पूर्ण कर लेता है।
  • गणेश सहस्त्र नाम फलश्रुति के अनुसार कोई भी ऐसा लौकिक एवं पारलौकिक मनोरथ नहीं है, जो इसके पाठ से सम्पूर्ण न होता हो। अनेक उपासकों का यह अनुभूत है। इसके पाठ से असम्भव भी सम्भव हो जाता और मन नहीं घबराता है।
  • Raahukey oil के दीपक जलाकर जिस दिन बुधवार को आद्रा नक्षत्र हो उस दिन से प्रातः 5 बजे से 7 बजे के बीच अथवा रात्रि को 10 बजे से 12 बजे के मध्य ये पाठ प्रारंभ करना चाहिए।

सीधे हाथ में जल लेकर विनियोगः

  • अस्य श्री महागणपति सहस्रनाम स्तोत्र मन्त्रस्य महा गणपति ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, महागणपति देवता, गं बीजम्, हुम् शक्तिः, स्वाहा कीलकम्, चतुर्विधा पुरुषार्थ सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
  • अर्थात गणपति सहस्रनाम के श्री महागणपति ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, महागणपति देवता हैं, गं बीज है, हुम् शक्ति है, स्वाहा कीलक है, धर्म-अर्थ-काम एवं मोक्ष इन पुरुषार्थों की सिद्धि के लिए जपादि में इसका विनियोग है।

भीमः प्रमोद आमोदः सुरानन्दो मदोत्कटः।

हेरम्बः शम्बरः शम्भुर्लम्बकणो महाबलः।।

नन्दनो ऽलम्पटोऽभीरुमेघनादो गणञ्जयः।

विनायको विरूपाक्षो धीर धीर शूरो वरप्रदः।।

महागलपतिर्बुद्धि प्रियः क्षिप्रप्रसादनः।

रुद्रप्रियो गणाध्यक्षः उमापुत्रो ऽघनाशनः।।

कुमार गुरुरीशान पुत्रो मूषकवाहनः।

सिद्धिप्रियः सिद्धिपतिः सिद्धः सिद्धिविनायकः।।

अविघ्नस्तुम्बुरः सिंहवाहनो मोहिनीप्रियः।

कंकटो राजपुत्रः शालकः सम्मितोऽमितः।।

कूष्माण्डसामसम्भूतिर्दुर्जयो धुर्जयो जय:।

भूपतिर्भुवनपतिर्भूतानां पतिरव्ययः।।

विश्वकर्ता विश्वमुखो विश्वरूपो निधिर्घृणिः।

कविः कवीनामृषभो ब्रह्मण्यो ब्रह्मणस्पतिः।।

ज्येष्ठराजो निधिपति निधिप्रियपति प्रियः।

हिरण्मय पुरान्तः स्थः सूर्यमण्डल मध्यमः।।

कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलः पूषदन्तभित्।

उमांककेलिकुतुकी मुक्तिदः कुलपालनः।।

किरीटी कुण्डलीहारी वनमाली मनोमयः।

वैमुख्यहतदैत्यश्रीः पादाहतजितक्षितिः।।

सद्योजातस्वर्णमुञ्जमेखली दुर्निमित्तहृत्।

दुःस्वप्नहृत प्रसहनो गुणी नादप्रतिष्ठितः।।

सुरूपः सर्वनेत्राधिवासी वीरासनाश्रयः।

पीताम्बरः खण्डरदः खण्डेन्दुकृतशेखरः।।

चित्रांकश्यामदशनो भालचन्द्रश्चतुर्भुजः।

योगाधिपस्तारकस्थ: पुरुषो गजकर्णकः।।

गणाधिराजो विजयस्थिरो गजपतिध्वजी।

देवदेवः स्मरप्राणदीपको वायुकीलकः।।

विपश्चिद्वरदो नादोनादभिन्नबलाहक:।

वराहरदनो मृत्युंजयो व्याघ्राजिनाम्बर।।

  • उपरोक्त श्री गणपति स्तोत्रम का अर्थ भी बहुत बड़ा है। जिसका संक्षिप्त अर्थ दे रहे हैं।
  1. अर्थात ॐ–सच्चिदानन्दस्वरूप गणेश्वर – आकाशादि प्रपञ्च के समूह को ‘गण’ कहते हैं, वह गण उनका स्वरूप है और वे उस गण के ईश्वर हैं, इसलिए जिन्हें ‘गणेश्वर’ कहा गया।
  2. गणक्रीड नामक गुरुस्वरूप अथवा आकाशादि गण के भीतर प्रवेश करके क्रीड़ा करने के कारण ‘गणक्रीड’ नाम से प्रसिद्ध हैं।
  3. गणनाथ—जिनका गणन-गुणों की गणना करना अतः—मंगलमय है, वे भगवान् गणपति हैं।
  4. गणाधिप–आदित्यादि गणदेवताओं के अधिपति;
  5. एकदंष्ट्र भूमिका उद्धार अथवा जगत् का नाश करने के निमित्त जिनकी एक ही दंष्ट्रा (दाढ़) है।
  6. वक्रतुण्ड–वक्र – टेढ़े, तुण्ड-शुण्डदण्ड से युक्त;
  7. गजवक्त्र — गंज अर्थात् हाथी के समान मुखवाले;
  8. महोदर – अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड को अपने भीतर रखने के कारण महान् उदरवाले।
  9. लम्बोदर–ब्रह्माण्ड के आलम्बनरूप उदरवाले; 10. धूम्रवर्ण – धूम्र के समान –
  • 986 दशसहस्त्रफणभृत्फलित अर्थात 10 हजार फण धारण करने वाले नागराज के ऊपर आसीन।
  • 987. अष्टाशीतिसहस्राद्यमहर्षिस्तोत्रयन्त्रित – अट्ठासी हजार की संख्या वाले आदि महर्षियों के द्वारा किये गये स्तोत्र के द्वारा वशीभूत;
  • 988. लक्षाधीशप्रियाधार – लक्षपतियों के प्रिय आधार;
  • 989. लक्षाधारमनोमय-लक्ष (लक्ष्य) पर एकाग्र किये गये चित्त वाले, अथवा एकाग्रचित्त सत्पुरुष स्वरूप।
  • 990. चतुर्लक्षजप्रीत – चार लाख मन्त्र के जप से प्रसन्न होने वाले,
  • 991. चतुर्लक्षप्रकाशित – अठारह पुराणों के चार लाख श्लोकों द्वारा प्रकाशित रूप वालेः
  • 992. चतुरशीतिलक्षाणां जीवानां देहसंस्थित–चौरासी लाख जीवों के शरीर में विराजमान।
  • 993 कोटिसूर्य प्रतीकाश-करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी;
  • 994. कोटिचन्द्रांशुनिर्मल – करोड़ों चन्द्रमाओं की किरणों के समान निर्मल,
  • 995. शिवाभवाध्युष्टकोटिविनायक – धुरन्धर-पार्वती और शिव के अधीनस्थ करोड़ों विनायकों के संचालन का भार ढोने वाले।
  • 996. सप्तकोटिमहामन्त्रमन्त्रितावयवधुति – सात करोड़ महामन्त्रों से मन्त्रित अवयवों की कान्ति से प्रकाशमान;
  • त्रयस्त्रिंशत्कोटिसुरश्रेणीप्रणतपादुक—जिनकी चरण पादुकाओं में तैंतीस करोड़ देवताओं की पंक्ति प्रणाम करती है।
  • 998.अनन्तनामा–अनन्त नाम वाले;
  • 999. अनन्त श्री – अनन्तविद्या, सम्पत्ति और कीर्तिवाले;
  • 1000. अनन्तानन्तसौख्यद– अनन्तानन्त सौख्य प्रदान करने वाले। इस प्रकार गणेश जी के ये सहस्रनाम बतायें गये।

श्री गणपति सहस्त्र नाम का पाठ करने से फायदे

  • जो मनुष्य प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में इन नामों का पाठ करता है, उसके हाथ में लौकिक और पारलौकिक सारे सुख आ जाते हैं।
    • गणेश सहस्त्र नाम के एक बार जप करने से आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धैर्य, शौर्य, बल, यश, धारणावती बुद्धि, प्रज्ञा, धृति, कान्ति, सौभाग्य, अतिशय रूप-सौन्दर्य, सत्य, दया, क्षमा, शान्ति, उदारता, धर्मशीलता, जगत्- वशीकरण, सबकी अनुकूलता, शास्त्रार्थ में पटुता आती है।
    • सभा-पाण्डित्य, उदारता, गम्भीरता, ब्रह्मतेज, उन्नति, उत्तम कुल, शील, प्रताप, वीर्य, आर्यत्व, ज्ञान, विज्ञान, आस्तिक्य, स्थिरता, विश्व में उत्कर्ष और धन धान्य की वृद्धि– ये सभी उत्तम फल प्राप्त होते हैं।
  • इस मन्त्र के जप से मनुष्यों के लिए चार प्रकार का वशीकरण सिद्ध होता है— राजा का, राजा के अन्तःपुर का, राजकुमार का तथा राज्यमन्त्री का । जिसको वश में करने के लिए इस सहस्र नाम का जप किया जाता है, वह उस प्रयोग करने वाले का दास हो जाता है। इस सहस्र नाम के द्वारा बिना किसी आयास के धर्म, अर्थ और मोक्ष की सिद्धि होती है।
  • श्री गणेश सहस्त्र नाम स्तोत्र शाकिनी, डाकिनी, राक्षस, यक्ष और सर्प के भय का नाश करने वाला है।
  • साम्राज्य का सुख देने वाला तथा समस्त शत्रुओं का मर्दन करने वाला है।
  • इस सहस्र नाम से सब प्रकार के कलह क्लेश का नाश होता है, इससे जले बीज में अंकुर निकल आते हैं। यह बुरे स्वप्नों के स्वप्नों के कुफल को मिटाता है और रोष में भरे हुए स्वामी के चित्त को प्रसन्न करने वाला है।
  • यह सहस्र नाम मोहन आकर्षण आदि छः कर्म, आठ महासिद्धि तथा त्रिकाल ज्ञान का साधन करने वाला है। शत्रुओं द्वारा अपने ऊपर प्रेरित कृत्या को शान्त करने वाला तथा शत्रु मण्डल का मर्दन करने वाला है।
  • संग्राम की रंगभूमि में यह अकेला ही सबको विजय दिलाने वाला है। वन्ध्यापन सम्बन्धी सम्पूर्ण दोषों का नाशक और गर्भ की रक्षा का मुख्य साधन है।
  • जहां प्रतिदिन गणपति के इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है, उस देश में दुर्भिक्ष, इंतिमय और दुराचार नहीं होता।
  • जहां इस स्तोत्र का पाठ होता है, उस घर को लक्ष्मी कभी नहीं छोड़ती है। क्षय, कोढ़, प्रमेह, बवासीर, भगंदर, विषूचिका (हैजा), गुल्म, प्लीहा, पथरी, अतिसार, उदर वृद्धि, खांसी, दमा, ऊपर की डकार उठना आदि विकार नष्ट होते हैं।
    • शूल, शोथ आदि, शिरोरोग, वमन, हिचकी, गण्डमाला (गलसूआ), अरुचि, वात-पित्त कफजनित द्वन्द्व, त्रिदोषजनित ज्वर, आगन्तुक ज्वर, विषमज्वर, शीतज्वर, उष्णज्वर, एकाहिक आदि ज्वर, यहां कथित या अकथित दोषादि-सम्भव रोग – इन सबका इस स्तोत्र के एक बार पाठ से शीघ्र शमन हो जाता है।
    • यह सहस्र नाम एक बार के पाठ से ही सिद्ध हो जाता है । स्त्री, शूद्र और पतितों को भी शुभ की प्राप्ति के लिए इस सहस्र नाम-स्तोत्र का जप (पाठ) करना चाहिए।
  • महागणपति के इस स्तोत्र का सकामभाव से जप करने वाला पुरुष इहलोक में पृथ्वी पर सुलभ समस्त मनोवाञ्छित भोगों को भोगकर मनोरथ-फलों की प्राप्तिपूर्वक दिव्य एवं मनोरम व्योम-विमानों पर बैठकर चन्द्र, इन्द्र, सूर्य, विष्णु, ब्रह्मा और शिव आदि के लोकों में इच्छानुसार रूप धारण करके विचरता है। जहां-जहां इच्छा होती है, वहां-वहां पहुंचता है।
  • अपने बन्धुजनों के साथ अभीष्ट भोगों को भोगता है, महागणपति का प्रिय अनुचर होता है और नन्दीश्वर आदि के साथ आनन्दित हो सकल शिव गणों द्वारा अभिनन्दित होता है।
  • पार्वती और शिव – ये दोनों पुत्र की भांति उसका लाड़-प्यार करते हैं। यह शिवभक्त तथा पूर्ण काम होता है। फिर गणेश जी के वरदान से इहलोक में धर्मपरायण सार्वभौम सम्राटू होता है और उसे पूर्व जन्म की बातें स्मरण रहती हैं।
  • गणेश स्तोत्र का भक्तिभाव से गणेश के भजन में तत्पर हो निष्काम भाव से इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, वह योगजनित परम सिद्धि को पा लेता है और ज्ञान वैराग्यनिष्ट हो जहां निरन्तर आनन्द का उदय होता है, जो परमानन्द संवित्स्वरूप, लोकातीत, पुनरावृत्तिरहित तथा परम पाररूप है, उस गणपति धाम में नित्यलीन एवं परमानन्द-निमग्न हो रमता रहता है।
  • जो मनुष्य इन सहस्र नामों द्वारा हवन, अर्चन और पूजन करता है, राजा लोग उसके वश में होते और शत्रु दासवत् हो जाते हैं। उसके सारे मन्त्र सिद्ध होते हैं और उसे सम्पूर्ण सिद्धियां सुलभ होती हैं।
  • भगवान गणेश ने स्कंध पुराण के एक श्लोक में कहा है कि मूलमन्त्र की अपेक्षा भी यह स्तोत्र मुझे अधिक प्रिय है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मेरे जन्म-दिवस पर इन सहस्र नामों द्वारा दूर्वार्पण करते हुए विधिवत् मेरा पूजन एवं तर्पण करें।
  • विशेषतः– अष्टगन्ध-द्रव्यों द्वारा भक्तिपूर्वक हवन करें। जो ऐसा करता है, इसमें संशय नहीं है। इसके जप, पठन-पाठन, सुनना – सुनाना, व्याख्यान, चर्चा, ध्यान, विचार और अभिनन्दन–ये इहलोक और परलोक में सबके लिए सम्पूर्ण ऐश्वर्य को देने वाले हैं। 200-20311 –
  • जो इस स्तोत्र को धारण करता है, वह स्वच्छन्दतापूर्वक कहीं भी क्यों न विचरता रहे, भगवान् शिव के करोड़ों गण उसकी रक्षा करते रहते हैं।
  • जिस घर में इस स्तोत्र को पुस्तकरूप में लिखकर कोई इसका पूजन करता है, वहां सर्वोत्कृष्ट लक्ष्मी निरन्तर निवास करता है।
  • श्री गणेश सहस्र नाम का स्मरण (जप) करके मनुष्य जिस फल को तत्काल प्राप्त कर लेता है, उसे सब प्रकार के दान, व्रत, तीर्थ सेवन और यशों के अनुष्ठान द्वारा भी नहीं पा सकता।
  • जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्योदय के समय, मध्याह्नकाल में या सायंकाल में अथवा तीनों समय या सदा ही इन सहस्र नामों का पाठ करता है, वह सत्पुरुषों में ऐश्वर्यशाली होता है, अपनी कीर्ति का अतिशय विस्तार करता है, विघ्नों को नष्ट कर देता है, संसार को वश में कर लेता है तथा वह पुत्र-पौत्रों के साथ सुदीर्घकाल तक निरन्तर बृद्धिशील होता है।
  • जिसके पास कुछ नहीं है, जो दरिद्र है, वह मेरी प्राप्ति के उद्देश्य से नियमित : आहार करके मुझ गणेश पूजन में तत्पर रहकर, चार मास तक इस स्तोत्र का जप करे।
  • ऐसा करने से वह सात जन्मों से चली आने वाली दरिद्रता का भी उन्मूलन करके महती लक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है, यह मुझ परमेश्वर की आशा है। आरोग्य, निर्मल कुल, पीड़ितों को दी जा सकने वाली सम्पत्ति, नित्य उज् कीर्ति सब मिलती है।
  • अमृतम गणेश विशेषांक 295 पेज का है। अगर मिल जाए, तो एक बार अवश्य अध्ययन करें।

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