- पेट खराबी, कब्ज, गैस की समस्या से होते हैं- 25 तरह के खतरनाक रोग….
- आयुर्वेद की कभी भी कोई भी जड़ीबूटी, देशी दवा या घरेलू उपायों से हो सकता है-शहर्रिर को भारी नुकसान।
- अतः बिना जाने-समझे, सन्दर्भ ग्रन्थ पढ़े बिना कतई भरोसा न करें।
- आजकल गूगल पर अनेको भ्रमित करने वाली जानकारियों का भंडारण हो चुका है।
- अगर स्वस्थ्य रहने की घरेलू चिकित्सा के बारे में सही ज्ञान चाहते हैं,
- तो अपने घर में कुछ आयुर्वेद के ग्रन्थ मंगवाकर रखें!
¶~भावप्रकाशनिघण्टु ¶~ द्रव्यगुण विज्ञान, ¶~आयुर्वेद चंद्रोदय ¶~ आयुर्वेद सार संग्रह।
निरोगी होना सबसे बड़ी सम्पदा है…
पेट की तकलीफ की वजह से दुनिया में 70 फीसदी व्यक्ति के हालात कुछ इस प्रकार हैं कि….
कोई गुमसुम सा बैठा है,
कोई पेटदर्द का मारा है!
तबियत मत पूछिए किसी से,
हर कोई कब्जियत से हारा है!!
- इस दवा का नाम है-जमालघोटा। लेकिन इसे सीधे नहीं लिया जा सकता।
- जमालघोट को जयपाल भी कहते है।
- यह शुद्ध होने के बाद शुद्ध जयपाल के नाम से दवाओं में उपयोग किया जाता है।
- जाने एक प्राचीन ग्रन्थ में क्या लिखा है-जयपाल के बारे में…
- अगर इसे नियमित लिया जावें, तो यह आँतों का सर्वनाश कर देती है।
- भारत की सभी दस्तावर दवाएं, कायम चूर्ण, टेबलेट आदि में जमालघोटा, सनाय, अमलताश मिलाकर बेचा जक रहा है,
- इससे लोगों का कुछ दिनों के लिये, तो पेट साफ हो जाता है। परन्तु उदर का पूरा सिस्टम बिगड़ जाता है।
- आजकल लिवर की खराबी, लिवर में सूजन, आँतों में छाले, अल्सर, गैस विकार, एसिडिटी, भूख की कमी,
- कमजोर मेटाबोलिज्म, किडनी के दोष अनेकों असाध्य बीमारियों की वजह जमालघोटा या शुद्ध जयपाल युक्त ये सब शरीर को भारी नुकसान पहुंचा रहीं है।
- अमृतम टेबलेट आप 1 महीने लगातार रात को सोते समय 1 से 2 गोली सादे जल से लेवें।
- इसमें बहुत ही अल्प मात्रा में शुद्ध जयपाल का मिश्रण है, जो आँतों की गंदगी को धीरे-धीरे मल विसर्जन द्वारा बाहर निकालने में सक्षम है।
यदि आपको लिवर में कोई दिक्कत हो, तो अमृतम कीलिव माल्ट (Keyliv malt) 1 महीने जल या गुनगुने दूध से लेवें।
आयुर्वेद के अष्टाङ्ग ह्रदय ग्रन्थ के मुताबिक शरीर को स्वस्थ्य रखने हेतु वात-पित्त-कफ का संतुलन आवश्यक है।
इसे समझने के लिए आयुर्वेदा लाइफ स्टाइल किताब ऑनलाईन मंगवाकर अध्ययन व अमल करें।
- भेषजयरत्नावली ग्रन्थ के अनुसार महीने में एक बार ही दस्तावर औषधियों का सेवन उचित बताया है।
- महीने में 4 बार लंघन, व्रत-उपवास की सलाह दी गई है।
- आयुर्वेद से ताल्लुक रखो,
तबियत ठीक रहेगी।
अमृतम वो हकीम है,
जो अल्फाजों से इलाज करता है।। - पेट को कब्जरहित बनाने और पेट की गन्दगी बाहर निकालकर सफाई रखने हेतु हमेशा लिवर की दवाएं सर्वश्रेष्ठ रहती है।
- इसके लिए हरड़, आँवला, पपीता मुरब्बा, पुर्ननवा, कालमेघ तथा गुलकन्द युक्त कीलिव माल्ट एक बहुत ही कारगर ओषधि है।
स्वस्थ्य रहने के लिए कुछ खास बातें….
आयुर्वेदिक शास्त्रों में विशेष निर्देश दिया गया है कि-
सौ काम छोड़कर खाना,हजार काम त्यागकर नहाना
और लाखों कार्य छोड़कर पाखाना। क्योंकि पेट सफा,
तो सब रोग दफा यानी पाखाना साफ होने से सारी बीमारी मिट जाती है और पुनः कभी होती ही नहीं है।
- कब्ज ने कब्जा कर रखा है-उदर में…
शरीर में कब्ज का कब्जा होने से सारा जज्बा, आत्मविश्वास नेस्तनाबूद हो जाता है।
आयुर्वेद के ऋषि-मुनि कहते हैं कि यदि जीवन से राग है, - परिवार से प्रेम है, तो तन-मन को रोग-रहित बनाओ।
- रसेन्द्र सारः सहिंता के अनुसार कब्ज के कारण २५ प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं….
हरेक बीमारी की शुरुआत कब्ज से ही होती है। - पेट की लगातार खराबी से तन-मन, जीवन बर्बाद हो जाता है।
गेस बनी, तो रिलेक्स खत्म…
आयुर्वेद का नियम है…उदर वायु से आयु
क्षीण हो जाती है। गेस विकार शरीर में हाहाकार मचा देते हैं।
पेट की खराबी से होती हैं 25 बीमारियां….
【१】हृदय कमजोर होने लगता है।
【२】सिर में लगातार दर्द बना रहता है
【३】गुदा और गुर्दे के रोग होने लगते हैं।
【४】लिवर, किडनी, आंते और पाचनतंत्र विकृत हो जाते हैं।
【५】पेट में दर्द बना रहता है।
【६】बीपी हाई रहता है
【७】चक्कर आते रहते हैं।
【८】सिर व शरीर भारी रहता है।
【९】हाथ-पैरों में कम्पन्न रहता है
【१०】बुढ़ापा जल्दी आता है।
【११】आंखें कमजोर होने लगती है।
【१२】कब्ज के कारण ही वातरोग पैदा होते हैं
【१३】कफ की शिकायत रहती है।
【१४】खून की कमी होने लगती है।
【१५】भूख लगने बन्द हो जाती है।
【१६】किसी काम में मन नहीं लगता।
【१७】याददाश्त कमजोर होने लगती है।
【१८】मोटापा तेजी से बढ़ने लगता है।
【१९】स्वभाव चिढ़ चिढ़ा हो जाता है।
【२०】रात को नींद नहीं आती।
【२१】 हमेशा चिन्ता बनी रहती है।
【२२】शुक्राणु क्षीण होने लगते हैं।
【२३】महिलाओं को भयानक स्त्रीरोग
घेर लेते हैं। उनकी सुन्दरता कम होने लगती है।
चेहरे की चमक मिट जाती है।
【२४】बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता
【२५】केन्सर, मधुमेह, अल्सर, बबासीर,
थायरॉइड आदि ऐसी बहुत सी बीमारियों
का कारण कब्ज है।
- आयुर्वेद ग्रंथों में कब्जियत के बारे में विस्तार से बताया है।
- कब्ज या कॉन्स्टिपेशन से मुक्ति के लिए- करें ये उपाय…
- मॉर्निंग वॉक एव व्यायाम नियमित करें।
प्राणायाम की आदत बनाये। - रात का खाना भरपेट न लें।
- रात्रि में दही का सेवन कतई न करें।
- रात्रि में सोते समय और सुबह उठते ही अधिक से अधिक सादा पानी ग्रहण करें। गर्म नहीं,
ताकि आँतों में खुश्की उत्पन्न न हो। - सप्ताह में दो बार मूंग की दाल का पानी जरूर पिएं।
- हो सके, तो मूंग की दाल में रोटी गलाकर खावें।
- पेट के रोगों में यह बहुत मुफीद है।
- अमरूद, गुलकन्द, मुनक्का, किसमिस, अनारदाना और अमलताश गूदा आदि
कब्जनाशक तथा पेट को ठीक रखने वाली प्राकृतिक ओषधियाँ हैं। - जिनका ज्यादा से ज्यादा सेवन करने की आदत डालें।
- रात को फल, जूस, सलाद के सेवन से बचें।
अरहर की दाल सबसे ज्यादा कब्ज
पैदा करती है। - पेट की बहुत सी बीमारी इसी की वजह से होती है। इसका उपयोग कम से कम करें।
- यदि खाने का बहुत मन हो तो अधिक से अधिक जल जरूर पियें।
- एसिडिटी रहती हो, तो खाने के बाद
एक पान गुलकन्द युक्त चबा-चबाकर खाएं। - सुबह बिना नहाए कुुुछ भी
अन्न न लेवें। अधिकांश लोगों ने यह
आदत बना ली है कि…सुबह चाय के
साथ बिस्किट आदि बिना स्नान के ही
लेते हैं, जो शरीर के लिए बेहद हानिकारक है। - दरअसल हमारे शरीर में 70 फीसदी
पानी का हिस्सा है, इसलिए शरीर की पहली
जरूरत पानी है। - पानी जवानी बनाये रखता है। पानी से ही
वाणी शुद्ध होती है। बिना नहाए, खाया गया अन्न शरीर में अनेकों दोष एवं रोग उत्पन्न करता है। - पेट साफ करने वाले चूर्ण सनाय तथा शुद्ध जयपाल जैसी नुकसानदेह ओषधियों से निर्मित होते हैं,
- जो तत्काल तो लाभ देते हैं, किन्तु बाद में रोगों का कारण बनते हैं। इनसे बचे।
- ~ आयुर्वेद औषधियों की सेवन विधि…
आयुर्वेद में अनुपान का विशेष महत्व है। कौन सी ओषधि कब, कितनी मात्रा में कैसे खानी है इस बात का ध्यान रखें, तो आयुर्वेद अमृत समान है।
【!】जैसे-इच्छाभेदी रस का मूल घटक शुद्ध जयपाल है। यह औषधि बेहतरीन दस्तावर है।
इसे ठंडे पानी से लेने पर 4 से 5 बार दस्त लगते हैं और गर्म पानी से लेने में दस्त बन्द कर देती है।
【!!】अमृतम टेबलेट भी शुद्ध जयपाल युक्त है।
【!!!】भैषज्य कल्पना विज्ञान ग्रन्थ के अनुसार…
【!v】हल्दी की मात्रा 25 से 50 mg तक निर्धारित है। इससे अधिक लेने पर गर्मी, खुश्की करती है।
【v】नीम इतना ही खाना चाहिए, जिससे कंठ कड़वा हो जाये। ज्यादा लेने पर यह पित्त की वृद्धि करता है।
कौनसा जूस या रस कितनी मात्रा में लेना चाहिए…
आयुर्वेद चंद्रोदय, द्रव्यगुण विज्ञान, आयुर्वेदिक निघण्टु, भावप्रकाश शास्त्रों के अनुसार शरीर की गन्दगी दूर करने का तरीका-
【१】लोंकी का जूस 20 ml लेना लाभकारी है।
【२】करेले का रस 10 ml पर्याप्त है।
【३】नीम, बेल के पत्तों की 2 से 3 नई कोपल ही लाभदायक है।
【४】आयुर्वेद के अनुसार कोई भी चीज जितनी कम मात्रा में लेंगे, उतना कारगर होगी।
【५】अनेक लोग एक से दो चम्मच तक हल्दी का उपभोग करते हैं, यह हानिकारक है।
【६】रात में ठंडा दूध कफ बढ़ाता है और सुबह ठंडा दूध पियें, तो पित्त सन्तुलित होता है।
ऐसे बहुत से अनुपान आयुर्वेद में बताएं है।
【७】शहद और देशी घी बराबर लेने पर विष हो जाता है।
【८】दिन भर में एक से अधिक नीबू का रस लेने से नपुंसकता आने लगती है।
【९】अरहर की दाल खाएं, तो उस दिन पानी 4 गुना पियें।
【१०】उड़द की दाल की तासीर देशी घी से बेहतरीन होती है।
【११】दिन भर इन समुद्री या सादा नमक 60 फीसदी और सेंधा, काल नमक 40 फीसदी लेना चाहिए।
【१२】कुछ लोग केवल सेंधा नमक का ही इस्तेमाल करते हैं, जिससे रक्त नाड़ियाँ दूषित होने लगती हैं।
अमृतमपत्रिका से जुड़कर आयुर्वेद की सत्य और सच्ची जानकारी का अध्ययन तथा अमृतम की १०० फीसदी आयुर्वेदिक ओषधियों का सेवन करें।
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