सफलता, समृद्धि-सम्पदा, धन बढ़ाने के लिए शुक्र को कैसे प्रसन्न करें?…

■ जन्मपत्रिका का शुक्र की स्थिति….

■ दीपावली की रात दीपदान का क्या रहस्य है?…

चांदी के छल्ले या अंगूठी के बारे में भय-भ्रम मिटाने वाली 73 रोचक और अदभुत जानकारी पढ़ें…

■ क्यों दीपावली उत्सव के कारक हैं-शुक्राचार्य?…

■ क्या चांदी पहनने से समृद्धि आती है?

■ क्या शुक्र ग्रह बिना रत्न के भी बलवान हो सकता है।

■ शुक्र का रत्न हीरा/डायमंड सभी को लाभकारी है?.

■ सोना पहनने से धन क्यों बढ़ता है…

■ शुक्राचार्य की एक आंख क्यों फूटी है?…

■ दीपावली का रहस्य क्या है?…

■ !!ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै बिच्चे!! का महत्व

■ महादेव ने अपने परम शिष्य शुक्राचार्य को ही क्यों दिया? -मृतसंजीवनीमन्त्र…

■ दैत्यगुरु शुक्राचार्य की जन्म राहु के स्वाति नक्षत्र में ही क्यों हुआ था।

■ शुक्राचार्य के सदगुरू महादेव ही क्यों बने?…

जाने-अनेकों रोचक रहस्य…

【१】स्कंदपुराण के ज्योतिष खण्ड के ग्रह शांति अध्याय में लिखा है

कि- भक्त प्रह्लाद के पिता दैत्य हिरण्यकश्यप ने अपने गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर स्वर्ण की खोज की थी।

ग्रह में शुक्र अग्नि हैं।

【२】यह वीर्य या शूक्राणु के स्वामी है।

शुक्र (वीर्य) की कमी या कमजोरी से सन्तान पैदा नहीं होती।

मान्यता है कि निर्माण का कारक आग ही है।

【३】क्योंकि शुक्रदेव को स्वर्ण धातु से बहुत लगाव है।

चांदी केवल चंद्रमा की धातु है।

जिनका चंद्रमा दूषित हो, नीच राशि यानि वृश्चिक में, केमद्रुम दोष हो, उन्हें ही चांदी का छल्ला पहनने की सलाह दी गई है।

महिलाओं की ठोकर में है-मन…

【४】स्त्रियों को पैरों में चांदी पहनने की सलाह इसलिए दी है

क्योंकि मन का कारक चन्द्रमा उनके चरणों की ठोकर में रहता है, इसीलिए नारी कभी जल्दी भटकती नहीं है।

इनका मन व मनोबल, आत्मविश्वास बहुत मजबूत रहता है।

महिलाएं बुरे वक्त में भी शक्त रहकर परेशानियों से पार हो जाती हैं।

【५】यह जानबूझकर भ्रम फैलाया जा रहा है कि चांदी की अंगूठी धारण करने से अचानक धन आएगा या कोई चमत्कार होगा।

चांदी का छल्ला पहनने से अवसाद या डिप्रेशन में वृद्धि होगी।

【६】 अतः मात्र सोना पहने। चांदी जल का प्रतिनिधित्व करती है और शरीर को जीने के लिए अग्नि की जरूरत है।

ऊर्जा, शक्ति, उमंग आदि सब सोने से मिलता है।

किसी विशेष परिस्थितियों में चांदी का छल्ला केवल अविवाहित बच्चों को पहनाने की सलाह शास्त्रों में बताई है।

【७】विभिन्न शास्त्रों का गहराई से अध्ययन करके इस बारे में संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है और आप भी सुनी-सुनाई बातों में आकर अपने बहुमुल्य जीवन को तबाह न करें।

अनेक शोकों में एक शौक प्राचीन पुराण पढ़ने का भी बना लें।

【८】शुक्र की धातु चांदी नहीं प्लेटिनम एवं स्वर्ण है और हीरा, जरकिन शुक्र की शुभता, शक्ति बढ़ाने के लिए पहना जाता है।

अकेले चांदी का छल्ला अभिमंत्रित कराकर पहनने से शुक्र की कृपा नहीं मिलती।

【९】शुक्रवार के दिन किसी देवी माँ के मन्दिर में एक दीपक देशी घी का औऱ एक दीपक अमृतम राहु की तेल का जलाकर…. 3 सफेद फूल एवं मख्खन-मिश्री का नैवेद्य अर्पित करें।

!!ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै बिच्चे!!

【१०】 नवाक्षर मन्त्र की 6 माला जाप कर अपनी नाभि को सुनाएं।

【११】घर के मन्दिर में स्वर्ण 1 ग्राम , चांदी100 ग्राम , प्लेटीनम 2 ग्राम तीनों मिलाकर एक शिवलिंग बनाकर घर में रखें और रोज 5 ml कच्चा दूध, 3 साफ3द पुष्प अर्पित कर-

【१२】!!ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं!!

【१३】मन्त्र की एक माला रोज जपें। चाहें तो इस मन्त्र को चलते-फिरते भी जप सकते हैं।

कुबेर की प्रसन्नता ओर श्रीगणेश की कृपा हेतु यह चमत्कारी है।

【१४】सफेद वस्तुओं जैसे चीनी, दूध, पोहा, पारा, चावल, चांदी, इत्र आदि का दान करें।

【१५】दीपावली का महत्व…

इस दिन घर की सभी महिलाएं स्वर्ण आभूषण ग्रहण कर गणेश-महालक्षमी की पूजा करती हैं।

इस विषय पर आगे कभी विस्तार से बताया जाएगा।

【१६】शुक्र का एक नाम अग्निश्वर है। इनके मन्दिर की चर्चा नीचे करेंगे।

दीपावली की रात में स्वाति नक्षत्र होता है, जिसके स्वामी राहु हैं।

इस उत्सव की रात दीपदान करने से शुक्र प्रसन्न होते हैं।

आगे पूरी जानकारी है।

【१७】अगर सुख-समृद्धि चाहिए, तो हरेक शुक्रवार को अपनी उम्र के अनुसार अमृतम राहु की तेल के दीपक जलाएं।

【१८】दैत्यों के गुरु होने की वजह से शुक्रदेव दैत्याचार्य कहलाते हैं…

राहु शुक्र के परम शिष्य हैं। ब्रह्मांड की सम्पूर्ण शक्ति, ऊर्जा, सम्पदा मानव को राहु ही उन्हें देते हैं,

जो राहु के गुरु शुक्राचार्य को दीप अर्पित करते हैं। उनके यहां सुख और स्वास्थ्य पर्याप्त होता है।

शुक्रवार दीपदान किसी शिवालय या घर में भी जला सकते हैं।

【१९】शुक्र मुसलमानों के आराध्य गुरु हैं…

शुक्र के सबसे बड़े साधक मुसलमान है, जो हरेक शुक्रवार को निश्चित रूप से नमाज पढ़ते हैं।

यह नमाज सबके लिए जरूरी है।

मुस्लिमों का शुक्र के प्रति समर्पण भाव होने से दुनिया के 65 से अधिक देशों में कब्जा है तथा लगभग 10 से अधिक में जबरदस्त समृद्धि है।

【२०】स्कंदपुराण सहित ज्योतिष शास्त्रों में मान्यता है

की शुक्राचार्य शिवजी की पूजा, शिवलिंग पर देशी घी से रुद्राभिषेक और ध्यान से भारी प्रसन्न होते हैं।

【२१】शुक्र क्या देते हैं….

ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह रोमांस, कामुकता, कलात्मक कार्य, चलचित्र अभिनेता, प्रतिभा,

शरीर और भौतिक जीवन की गुणवत्ता, अटूट धन, विपरीत लिंग, खुशी और प्रजनन, स्त्रैण गुण और ललित कला, संगीत, नृत्य, चित्रकला और मूर्तिकला का प्रतीक है।

【२२】नवग्रहों में शुक्र अकेला एक 3सा ग्रह है,

जो कुंडली में जिस स्थान पर बैठते हैं और जहां उनकी दृष्टि होती है, उन भाव को यपयोगी, लाभकारी बना देते हैं। यह शुभ ग्रहों में गिने जाते हैं।

【२३】जबकि गुरु ग्रह जिस जगह बैठते हैं, उसे तबाह कर देते हैं तथा उनकी तीनों दृष्टियां शुभ होती हैं।

लेकिन यदि गुरु वक्री हैं, तो दॄष्टि भी खराब डालते हैं। यह ज्योतिष का विषय बहुत लम्बा होने से केवल भ्रम दूर करने हेतु बताया है।

【२४】शुक्राचार्य की एक आंख का रहस्य…

कहते हैं कि शुक्र की एक आंख फूटी है, इसके पीछे किस्सा है कि शुक्र के केवल भौतिकता वाले नेत्र खुले हैं।

धर्म आध्यात्म वाला नयन खराब है अर्थात ज्यादा सांसारिक सुख आने पर ईश्वर का स्मरण नहीं करता ।

इस कारण धनशाली पुरुष केवल एक निगाह से दुनिया को देखता है। वह स्वयं को स्वयंभू मानने लगता है।

【२५】शुक्रचार्य की एक नेत्र न होने की कहानी-

श्रीमद भागवत, ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक भगवान श्रीहरि वामन अवतार लेकर विष्णु ने प्रह्लाद के…

पौत्र राजा बलि से छद्म रूप में दान स्वरूप त्रैलोक्य ले लेने का प्रयास किया।

विष्णुजी को वामन रूप में शुक्राचार्य ने उन्हें पहचान कर राजा बलि को दान हेतु मना किया।

हालांकि राजा बलि अपने वचन का पक्का होने से वामन देवता को मुंहमांगा दान दिया।

【२६】शुक्राचार्य ने बलि के इस दान से दुःखी,अप्रसन्न हो, स्वयं को सूक्ष्म बनाकर वामन विष्णु के कमण्डल की चोंच में जाकर छिप गये।

इसी कमण्डलु से जल लेकर बलि को दान का संकल्प पूर्ण करना था।

तब विष्णु जी ने उन्हें पहचान कर भूमि से कुशा का एक तिनका उठाया और उसकी नोक से कमण्डलु की चोंच को खोल दिया।

【२७】इस नोक से शुक्राचार्य की बायीं आंख फ़ूट गयी।

तब से शुक्राचार्य काणे यानि एक आंख वाले ही कहलाते हैं।

इनकी यही आंख धर्म का प्रतीक थी।

【२८】दीपावली की शुरुआत….

अगर लोग फालतू कथावाचकों की मनगढ़ंत बकवास पर ध्यान न देकर ग्रन्थों का अध्ययन करें,

तो अनेकों भ्रमित ज्ञान से बचकर अपना कल्याण कर सकते हैं।

【२९】वामन अवतार रूप में विष्णुजी से जब राजा बलि से सब कुछ छीन लिया,

तो बलि ने विष्णुजी का शाप दिया था कि आपने धोखे से मेरा राज्य-पाठ छीना है….

【३०】मैं महान शिवभक्त हिरण्यकश्यप का वंशज राजा बलि शाप देता हूँ

कि- जो भी व्यक्ति सूर्य के नीच राशिगत होने पर अर्थात कार्तिक मास की धन तेरस, चौदस (काल शिवरात्रि),

दीपावली, एवं पड़वा-दोज को जो भी व्यक्ति

【३१】मेरे गुरु अग्निश्वर (शुक्र) का स्मरण कर दीप+अवली (दीपावली) को रात्रि में दीपों की श्रृंखला अर्पित करेगा,

वहां विष्णु पत्नी लक्ष्मी निवास करेगी औऱ मेरे गुरु भाई राहु की कृपा बनी रहेगी। उसके यहां कभी धन-सम्पदा की कमी नहीं आएगी।

यह किस्सा बिना किसी मन्त्र के संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है।

【३२】शुक्राचार्य के सदगुरू महादेव…

शुक्र का एक नाम अग्नि है। इन्हें दैत्य गुरु शुक्राचार्य कहते हैं।

रावण, परशुराम के अलावा शुक्र देव ने भी भोलेनाथ से ज्ञान, दीक्षा ली थी।

【३३】शुक्र सन्सार के सभी भौतिक सुखों का दाता हैं। श्रीगणेश के शुक्राचार्य गुरु हैं।

शुक्रदेव से ही गणपतिजी को !!ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं!! गुरुमन्त्र मिला था।

【३४】शुक्रदेव ने यहां पाया था-संजीवनी मन्त्र…

तमिलनाडु के कुम्भकोणम से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक एकान्त गांव कंजनूर में अग्निश्वर के नाम से शुक्र देव का मंदिर है।

यहीं पर शुक्राचार्य जी ने महादेव की घनघोर तपस्या के फलस्वरूप मृत संजीवनी मन्त्र वरदान के रूप में पाया था।

यह गायत्री एवं महामृत्यंजय मन्त्र का सामंजस्य है।

【३५】भगवान कृष्ण बने त्रिलोक के स्वामी….

यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने शुक्र अग्निश्वर महादेव की साधनाओं, तपस्या से ऐश्वर्य होने का वरदान पाया था।

इस मंदिर में अग्निश्वर के रूप में भगवान शिव की मुख्य रूप से पूजा की जाती है।

【३६】ऐसा कहा जाता है की इस जगह पर खुद अग्नि देव ने भगवान शिव की पूजा की थी।

शुक्र देव के अलावा भी इस मंदिर में अन्य देवताओ की पूजा की जाती है।

विजयनगर और चोल वंश के समय के बहुत ही सुन्दर शिलालेख यहापर देखने को मिलते है साथ ही शिवकामी और नटराज की पत्थर से बनी सुन्दर मुर्तिया भी यहां देखने को मिलती है।

【३७】एक विशेषता है कि दुनिया के सभी शिवालय में नन्दी शिवलिंग के सामने है,

लेकिन कंजनूर के इस शिवमंदिर में नन्दी शिवलिंग के सामने नहीं हैं।

【३८】बताते हैं कि नन्दी किसी किसी में मन्दिर में आने से रोकते थे, तभी महादेव ने इसे अपने सामने से हटा दिया।

【३९】कंजंनूर के इस शुक्र मन्दिर में प्रसाद के रूप में केवल अपनी उम्र के दीपक जलाते हैं।

यहां धन-वैभव पाने हेतु शुक्रवार को 108 दीपक जलाने का विधान है।

यह मंदिर कुछ जीर्ण-शीर्ण औऱ प्रसहिं है।

कहते हैं कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां से शिवलिंग ले जाने का प्रयास किया था,

लेकिन इतना भारी हो गया गया कि, उन्हें वहीं छोड़ कर जाना पड़ा।

【४०】मोहब्ब्त का शुक्र ग्रह ही कारक हैं..

प्रेम, विवाह, आनंद और सुन्दरता के लिए शुक्र देव की पूजा की जाती है

और अच्छी पत्नी पाने के लिए सभी पुरुष शुक्र देव की पूजा करते है।

【४१】शुक्र को ब्राह्मणों पर कृपा करने वाला ग्रह बताया है। ये खुद भी ब्राह्मण जाति के हैं।

【४२】संस्कृत शब्दकोश में शुक्र को सबसे शुद्ध, स्वच्छ श्वेत वर्णी, मध्यवयः,

सहमति वाली मुखाकृति तथा ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। शुक्र कुछ-कुछ स्त्रीत्व स्वभाव वाला है।

【४३】शुक्र नाम उच्चारण में शुक्ल से मिलता हुआ है जिसका अर्थ है श्वेत या उजला।

यह ग्रह भी श्वेत वर्ण का उज्ज्वल प्रकृति का ही है।

【४४】यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी है।

दैत्यगुरू शुक्र हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं।

【३५】श्रीमद देवी भागवत के अनुसार इनकी माँ काव्यमाता थीं।

शुक्र अपनी पत्नी दैत्यदुरु माँ द्वारजस्विनी के संग सदैव रहते हैं।

【४६】शुक्राचार्य चार पुत्र हुए: चंड, अमर्क, त्वस्त्र, धारात्र तथा देवयानी नामक एक पुत्री है

【४७】दैत्यगुरु शुक्राचार्य की जन्म तिथि..

शुक्रचार्य का जन्म पार्थिव नामक सम्वत्सर वर्ष के सावन माह में यानि श्रावण मास शुद्ध अष्टमी को स्वाति नक्षत्र के उदय के समय हुआ था।

【४८】दौलत की चाहत हो, तो सावन मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शिवलिंग पर देशी घी द्वारा रुद्राभिषेक कराये।

【४९】वृहद ज्योतिष सहिंता में शुक्र का असर…

शुक्र सर्वाधिक लाभदाता, विदेश यात्रा का कारक ग्रह माना गया है।

शुक्र 12 राशियों में दूसरे वृषभ राशि एवं सातवी राशि तुला राशियों का स्वामी है।

यह बारहवीं राशि मीन में उच्च भाव में रहता है तथा कन्या राशि में नीच भाव में रहता है।

राहु शुक्राचार्य के परम शिष्य हैं। बुध-शनि से अभिन्नता है।

रवि-सोम शत्रु ग्रह हैं तथा गुरु तटस्थ ग्रह माना जाता है।

【५०】कुण्डली में शुक्र मीन राशि में उच्च भाव में रहता है,

उन्हें वास्तविक मूल्यों के बजाय भौतिक, सांसारिक सुख में बहुत ज्यादा लिप्त होने की संभावना रहती है।

【५१】मन्त्रमहोदधि के अनुसार शुक्र यदि जन्मपत्रिका में मीन एवं धनु राशि में होने से वह गुरु की तरह प्रभावी होता है

अर्थात 9-12 वी राशि में शुक्र होने से वह गुरु जैसी दृष्टि 5, 7, 9 रूप से देखते हैं।

【५२】शुक्र तीन राशि – नक्षत्रों का स्वामी है- भरणी {मेष राशि}, पूर्वाफाल्गुनी (सिंह राशि) तथा पूर्वाषाढा (धनु राशि)।

इन तीनों नक्षत्रों की एक खाशियत यह भी है कि ये धनदायक, लक्ष्मी रूप हैं।

अनेक ज्योतिष शास्त्रों एवं आदि शंकराचार्य द्वारा रचित सौन्दर्य लहरी आदि ग्रन्थों के अनुसार शुक्र के इन नक्षत्र-वारों में समृद्धि हेतु बहुत सी श्री पूजा की जाती हैं।

【५३】स्थिर धन एवं स्थाई सम्पत्ति के दाता हैं- शुक्रचार्य…

कुंडली में अगर शुक्रदेव स्थिर राशि जैसे- वृषभ, सिंह और कुंभ राशि में हों, तो ऐसा जातक घोर गरीबी परिवार में जन्म लेकर भी अंत में अथाह सम्पदा का मालिक बन जाता है।

तीसरे भाव में बैठे शुक्र 5 से 7 भाई-बहिन देते हैं।

【५४】शुक्र का महत्त्व क्या है?…

पृथ्वी के ऊपर के सभी लोकों में शुक्र मंडल की स्थिति

शुक्र जीवनसंगी, प्रेम, विवाह, विलासिता, समृद्धि, सुख, सभी वाहनों, कला, नृत्य, संगीत, अभिनय, जुनून और काम का प्रतीक है।

शुक्रा के संयोग से ही लोगों को इंद्रियों पर संयम मिलता है और नाम व ख्याति पाने के योग्य बनते हैं।

【५५】शुक्र के दुष्प्रभाव क्यों जानना जरूरी है?….

शुक्र के दुष्प्रभाव से सुंदरता नष्ट नहीं होती है। त्वचा पर अनेक निशान होते हैं।

नेत्र रोग, यौन समस्याएं, अपच, कील-मुहासे, नपुंसकता, क्षुधा की हानि और त्वचा पर चकत्ते हो सकते हैं।

【५६】वैदिक ज्योतिष के अनुसार जातक का जिस नक्षत्र में जन्म होता है, उसी के स्वामी की महादशा होती है।

भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा नक्षत्र में जिनका जन्म होता है, उन्हें शुक्र की महादशा मिलती है। यह २० वर्षों के लिये सबसे लंबी सक्रिय होती है।

【५७】पत्रिका में शुक्र शुभ होने से खासकर दूसरे, छठे, आठवें, बारहवें भाव में होने से उसे कहीं अधिक धन, सौभाग्य और विलासिता सुलभ हो जाती है।

【५८】शुक्र को गुरु जैसा ही शुभ ग्रह है। केन्द्र में स्वग्रही या उच्च के शुक्र मालव्य योग बनाते हैं, जो मुख्य पंच महायोगों में से एक है।

【५९】इसके अलावा कुण्डली में शुक्र अधिकतर लाभदायी ग्रह माना जाता है।

शुक्र हिन्दू कैलेण्डर के माह ज्येष्ठ का स्वामी भी माना गया है।

【६०】शुक्र को कुबेर के खजाने का रक्षक माना गया है। शुक्र के प्रिय वस्तुओं में श्वेत वर्ण, धातुओं में श्वेत स्वर्ण यानि प्लेटिनम एवं रत्नों में हीरा है।

【६१】शुक्र की प्रिय दशा दक्षिण-पूर्व तथा ऋतुओं में वसंत ऋतु तत्व अग्नि है।

【६२】चंद्र मंडल से २ लाख योजन ऊपर कुछ तारे हैं। इन तारों के ऊपर ही शुक्र मंडल स्थित है, जहां शुक्र का निवास है।

इनका प्रभाव पूरे ब्रह्मांड के निवासियों के लिये शुभदायी होता है। तारों के समूह के १६ लाख मील ऊपर शुक्र रहते हैं।

【६३】यहां शुक्र लगभग सूर्य के समान गति से ही चलते हैं। कभी शुक्र सूर्य के साथ 2 घर आगे या पीछे तक रहते हैं।

शुक्र के गले में आप के शिष्य राहु का निवास है। पूरे शरीर भर में पुच्छल तारे तथा रोमछिद्रों में अनेक तारों का निवास है।

【६४】बनारस में बाबा विश्वनाथ की गली के अंतिम छोर में शुक्रेश्वर महादेव का स्वयंभु शिवलिंग लाखों वर्ष पुराना है।

【६५】अपनी पूजा-पाठ, साधना का बखान न करें….

बहुत से लोग दिखावे की पूजा करते हैं, इससे शुक्र पीड़ित होते हैं। शुजर कि प्रसन्नता के लिए कभी भी खुलेआम माला जाप न करें।

【६६】शुक्रनीति के अनुसार जो मनुष्य अपनी पूजा-पाठ और मंत्र को गुप्त रखता है, उसे ही अपने पुण्य कर्मों का फल मिलता है।

लेकिन कई लोग अपने जप-तप, पूजा-पाठ आदि का बखान करते रहते हैं ऐसे में उन पर न तो भगवान की कृपा होती है और न ही मंत्र फलित होता है।

【६७】अपने फायदे के लिए किसी की झूठी तारीफ न करें, इससे शुक्र बहुत हानि करते हैं।

【६८】शुक्र की जन्मतिथि तथा नक्षत्र…

ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिससे धाता,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ।

भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए!

【६९】अटाटूट बैभव चाहिए, तो केवल शुक्राचार्य के परम गुरु महादेव की पूजा कर दीपक जलाएं औऱ शिवलिंग पर जलयुक्त दूध चढ़ाएं। यह प्रक्रिया 20 महीने की है।

【७०】शुक्र के बारे में विस्तार से दुर्लभ जानकारी 2 से 4 दिन में दी जाएगी।

सूर्य और शुक्र की शक्ति के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

【७१】दुनिया के सारे ज्योतिषी कालसर्प के धंधे में लगे हैं। कुछ शनि को पुजवा रहे हैं।

कुछेक पितृदोष की शांति में लगे हैं। अगर जिसने भी शुक्र सूर्य को साध लिया, तो जीवन चमत्कारी हो सकता है।

हम इसे मुद्रित कर रहे हैं। कुछ समय लगेगा।

【७२】अल्प लोगों को ही ज्ञात होगा कि दीपावली का सीधा कनेक्शन शुक्राचार्य से ही है।

दीपावली अर्थ है दीप+अवली। अवली का अर्थ है श्रंखला अर्थात दीपावली के दिन घर तथा निवास के नजदीक शिवालय में दीपों की अवली/श्रंखला बनाकर प्रज्ज्वलित करना।

लक्ष्मी गणेश की पूजा का विधान नहीं है। केवल दीपदान का महत्व है।

【७३】भक्तगण 500 रुपये के दीपक जलाने में हाथ खींचते हैं और अथाह धन-सम्पदा की कामना रखते हैं।

वे सपने करोड़ों के देखते हैं।

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