थायराइड से कैसे रहें सुरक्षित | How to stay fight Thyroid naturally?

सर्दी के दिनों में रहें सावधान
अन्यथा हो सकता है “थायराइड”

थायराइड जिसे आयुर्वेद में ग्रंथिशोथ कहा गया है।
ग्रंथिशोथ यानि शरीर की ग्रन्थियों, नाडियों में सूजन (शोथ) होना।
सर्दियों में रक्त का संचार अवरुद्ध होने या कम होने से वात व्याधियां अन्य मौसम की अपेक्षा ज्यादा तकलीफ देती हैं।

इसीलिए

सर्दी के दिनों में  टेम्परेचर को मेन्टेन करने के लिए गर्म चीजों का सेवन करना हितकारी होता है।

आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथो में
में उल्लेख है कि सर्दी के दिनों में दर्द की शिकायत में वृद्धि हो जाती है। इस कारण जोड़ों एवं घुटनों में दर्द , जोड़ों में व शरीर में सूजन , चलने में परेशानी , थायराइड आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
क्या है थायराइड (ग्रंथिशोथ)
थायराइड (ग्रंथिशोथ) एक वात रोग है , जो शरीर में रक्त संचार  (ब्लड सर्कुलेशन)
के सुचारू न हो पाने के कारण पनपने लगता है।
इसके अतिरिक्त आलस्य , सुस्ती ,
मेहनत कम करने से , ज्यादा चिन्ता , तनाव ,
अवसाद (डिप्रेशन) तथा मानसिक अशान्ति
के कारण शरीर की नाड़ियों ,कोशिकाओं , अवयवों
में रक्त का अवरोध कम होने या रक्त का संचार न होने

से धीरे-धीरे के जोड़ों (संधियों/JOINTS) में , घुटनों में ,कमर में ,  गले में अकड़न-जकड़न होने लगती है।

● शरीर में सूजन आने लगती है।
● यूरिक एसिड असामान्य हो जाता है।
● सम्पूर्ण शरीर में सूजन आने लगती है।
● कोई काम करने का मन नहीं होता।
● पुरुषार्थ शक्ति क्षीण यानि कमजोर हो जाती है।
● घुटनों में लचीलापन कम होने लगता है।
● हड्डियां कमजोर होने लगती है।
इस प्रकार जरा सी चूक के कारण हमारा शरीर
88 प्रकार के वातरोगों ,

ऑर्थराइटिस प्रॉब्लम ,
आदि समस्याओं से परेशान हो जाता है।
आयुर्वेद के अति प्राचीन ग्रंथों में थायराइड (ग्रंथिशोथ) , जॉइन्ट पैन (संधिवात) ,
जोड़ों में सूजन (संधिशोथ) तथा विभिन्न
तरीके के वात-व्याधियों की चिकित्सा के बारे में विस्तार से बताया गया है।
■ अश्वगंधा , ■ शतावर , ■ मुलेठी ,

■ निशोथ ,■ एरण्डमूल , ■ निर्गुन्डी ,
आदि  88 बूटियाँ
और
★ वातचिन्तामणि रस स्वर्णयुक्त ,

★ योगेंद्र रस स्वर्णयुक्त ,
★ रसराज रस स्वर्णयुक्त ,

★ शिलाजीत , ★ शुद्ध गुग्गुल
जैसी दवाएं
थायराइड जैसी खतरनाक

 बीमारी को दूर करने में लाभकारी हैं।
थायराइड के विषय में और अधिक जानने के लिए
www.amrutam.co.in
लॉगिन करें।

थायराइड – एक वात रोग | Thyroid- a Vaat Diseases

थॉयराइड  से होने वाले 88 प्रकार के

वातरोगों ” अर्थराइटिस (Arthritis)
और MUSCULOSKELETAL DISORDER

से सावधान रहें,

अन्यथा खड़ी हो सकती हैं कई परेशानियां

क्या है थायराइड या ग्रंथिशोथ

थायराइड को आयुर्वेद ग्रंथो में

ग्रंथिशोथ” कहा गया है।

यह

ग्रंथिंयों एवं रक्त की नाड़ियों में सूजन

उत्पन्न कर खून के संचार को

अवरुद्ध कर देता है,जिससे

व्यक्ति शरीर दर्द से बहुत

पीड़ित ,

 चिंतामग्न और परेशान हो जाता है।

अनेक प्रकार के तनाव , मानसिक विकार  एवं

वात बीमारियां अर्थराइटिस प्रॉब्लम घेर लेती हैं।

शरीर का नुकसान

थायराइड जैसा वातरोग

तन की तंदरुस्ती तबाह

कर देता है।

थायराइड की बीमारी से

88 प्रकार के वात-रोग (अर्थराइटिस पैन)

पैदा हो जाते हैं।

जोड़ों में सूजन आने लगती है।

■ घुटनो में , गले में , जोड़ों , हाथ-पैर , कमर व पीठ में , उंगलियों में  और शरीर के अंग-अंग में बहुत ज्यादा दर्द बना रहता है।
■ चुस्ती-फुर्ती कम हो जाती है।

■ संधिवात , संधिशोथ , साइटिका की समस्या होना
■ घुटनों के जोड़ों में सूजन

■ घबराहट , सिरदर्द , बेचैनी रहना।
■ शारीरिक शिथिलता , आलस्य ,सुस्ती रहना।

■ नसों में दर्द एवं माँस की तकलीफ

■ यूरिक एसिड में वृद्धि
■ थायराइड (ग्रंथिशोथ)
आदि वात-व्याधियों

से व्यक्ति की हिम्मत

जवाब दे जाती है।

एक असरकारक 

थायराइड एवं

दर्दनाशक हर्बल योग

A Powerful Pain Reliever

थायराइड का स्थाई हल एवं सुरक्षित इलाज

आयुर्वेद चिकित्सा द्वारा संभव है।
यह ओषधियाँ रोग प्रतिरोधक क्षमता में
वृद्धि करके थायराइड जैसे हठी वात-  विकारों का जड़ मूल से नाश कर देती हैं।

ऑर्थोकी बास्केट”   जिसमें उपलब्ध है–

ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल

ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट

●ऑर्थोकी पैन ऑयल

●ऑर्थोकी चूर्ण (पावडर)

का 3 माह तक सेवन करें

आयुर्वेद के जिन ग्रंथों से यह जानकारी जुटाई गई उनके नाम इस प्रकार हैं —

जैसे

वृहत्त्रयी :अर्थात बड़े ग्रन्थ

चरकसंहिता — महर्षि चरक

चरक सहिंता — भारतीय चिकित्साविज्ञान के तीन बड़े नाम हैं –

 चरक  संहिता, सुश्रुतसंहिता तथा वाग्भट का अष्टांगसंग्रह आज भी भारतीय चिकित्सा विज्ञान (आयुर्वेद) के मानक , प्रतिष्ठित और
विश्वसनीय ग्रन्थ
हैं।

लघुत्रयी : लघु ग्रन्थ

माधव निदान — माधवकर
माधवनिदानम् आयुर्वेद का प्रसिद्ध प्राचीन ग्रन्थ है। इसका मूल नाम ‘रोगविनिश्चय’ है। यह माधवकर द्वारा प्रणीत है जो आचार्य इन्दुकर के पुत्र थे और ७वीं शताब्दी में पैदा हुए थे। माधव ने वाग्भट के वचनों का उल्लेख किया है। विद्धानों ने माधवकर को बंगाली होना प्रतिपादित किया है।

भावप्रकाश — भाव मिश्र

भावप्रकाश आयुर्वेद का यह एक मूल ग्रन्थ है। इसके रचयिता “आचार्य भाव मिश्र” थे। भावप्रकाश में
आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयुक्त वनस्पतियों एवं देशी जड़ी-बूटियों तथा मेवा-मसालों का
विस्तार से वर्णन है। इसमें ओषधि गुण , उपयोग ,नामभेद , कार्य , प्रयोग , लाभ-हानि एवं परहेज के बारे में बताया गया है। प्रत्येक घर में यदि इस ग्रन्थ को पढ़कर इसके अनुसार उपाय किये जावें , तो
बीमारी बीस कोस दूर हो सकती हैं।
सदा स्वस्थ्य और तन्दरूस्ती के लिए यह बहुत ज्ञानवर्धक ग्रन्थ है।

भावप्रकाशनिघण्टु भावप्रकाश का एक खण्ड है जिसमें सभी प्रकार के औद्भिज या उद्भिज
(जीवविज्ञान , जीव और उद्भिज शरीर की विद्या) प्राणिज व पार्थिव पदार्थों के गुणकर्मों का विस्तृत विवेचन मूल संस्कृत श्लोकों , उनके हिन्दी अर्थ, समानार्थक अन्य भाषाओं के शब्दों व सम्पूर्ण व्याख्या सहित दिया गया है।
भावप्रकाश, माधवनिदान तथा शार्ङ्गधरसंहिता को संयुक्त रूप से ‘लघुत्रयी’ कहा जाता है।

शार्ङ्गधरसंहिता — शार्ङ्गधर (१३०० ई)
इस संहिता में आयुर्वेद की विषयवस्तु चरक एवं सुश्रुत सहिंता से ली गयी है।
अन्य अति प्राचीन  ग्रन्थ :
अष्टांगसंग्रह (४०० ई)

भेलसंहिता — भेलाचार्य
काश्यपसंहिता
में बताया गया है कि

पुरानी कोशिकाओं और उत्तको की टूटफूट की मरम्मत के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी आहार है।
जो  हर्बल ओषधियों में पर्याप्त पाया जाता है।
क्यों कि प्रोटीन के अभाव से शरीर कमजोर हो जाता है और कईं रोगों से ग्रसित होने की संभावना बढ़ जाती है। प्रोटीन शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करता है।

क्यों बढ़ रहीं हैं बीमारियां —

प्राचीन प्राकृतिक चिकित्साओं से विमुख होना भी रोगों का प्रमुख कारण है।
आँवला , हरड़ , बेल , पपीता , करौंदा , मुरब्बा ,
आदि आयुर्वेद के अनेक योग हैं, जो शरीर में
प्रोटीन ,विटामिन्स , केल्शियम की पूर्ति करते हैं।
लम्बी आयु और स्वस्थ्य जीवन के लिए आयुर्वेद को अपनाना जरूरी है। यह इम्युनिटी पॉवर बढ़ाने में अत्यन्त सहायक हैं।

इसके अलावा 100 से अधिक ग्रंथों की जानकारी पुराने ब्लॉग/लेखों में दी जा चुकी है)
जानें आयुर्वेद है क्या —

आयुर्वेदयति बोधयति इति आयुर्वेदः”।

1- अर्थात जो शास्त्र स्वस्थ्य जीवन का ज्ञान कराता है उसे आयुर्वेद कहते हैं।
2 –  स्वस्थ व्यक्ति एवं आतुर (रोगी) के लिए उत्तम मार्ग बताने वाला विज्ञान को आयुर्वेद कहते

3 – जिस शास्त्र में आयु शाखा (उम्र का विभाजन), आयु विद्या, आयुसूत्र, आयु ज्ञान, आयु लक्षण (प्राण होने के चिन्ह), आयु तंत्र (शारीरिक रचना शारीरिक क्रियाएं) – इन सम्पूर्ण विषयों की जानकारी मिलती है वह आयुर्वेद है।

आयुर्वेद शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं।

सावधान हो जाएं – थायराइड से

पूरी दुनिया विशेषकर भारत में

थॉयराईड (ग्रंथिशोथ) से जुड़ी

बीमारियां तेज गति से बढ़ रही हैं।

आयुर्वेद में इन्हें असाध्य रोगों

की श्रेणी में रखा गया है।

अमृतम हर्बल ओषधियों

द्वारा थायराइड पर नियन्त्रण रखा

जा सकता है।

थायराइड होने का कारण-

आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों में “ऑयोडीन” की कमी को थॉयराईड (ग्रंथिशोथ) का कारण माना है।

जो मानसिक विकृतियों,मनोरोग, ब्रेन डैमेज जैसे रोगों को उत्पन्न कर सकता है।हालांकि आयुर्वेदिक वैज्ञानिक थॉयराइड पर रोज नई-नई खोजें अनुसंधान (रिसर्च) कर रहे हैं।

अभी तक जो परिणाम प्राप्त हुए हैं, उसमें पाया की यह आनुवंशिक रोग है। पूर्वज इसके लिए जिम्मेदार हैं। जो लोग थॉयराईड की बीमारी से ज्यादा पीड़ित हैं,उन्हें ये पूर्वजों की देंन है। उनमें इस बीमारी की संभावना अधिक होती है।

रोगों का कारण-

【】प्रदूषित वातावरण

【】मानसिक अशांति

【】हमेशा चिंतातुर रहना

【】पर्यावरणीय और आनुवंशिक कारक भी थायराइड का कारण हो सकते हैं।

इसके इलाज के लिए सर्जरी,

¶ हॉर्मोन थेरेपी,

¶ रेडियोएक्टिव आयोडीन,

¶ रेडिएशन और कुछ मामलों

में कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया

जा रहा है,जो आयुर्वेद के विपरीत है।

इन कृत्रिम चिकित्सा से गुर्दा (किडनी)

{} यकृत (लिवर), खराब हो सकते हैं।

{} आंतों में सूजन आ सजती है।

{} उदर रोग में अल्सर,केन्सर जैसे रोग तन को बर्बाद कर सकते हैं।

एक चिकित्सकीय शोध के अनुसार

हिंदुस्तान में प्रत्येक दस में से एक प्राणी हाइपोथॉयराइडिज्म रोग से परेशान है, इसमें थॉयराइड ग्लैंड थॉयराइड हॉर्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बना पाता।

लक्षण

[] माँसपेशियों और जोड़ों में दर्द,

[]  शरीर में बहुत ज्यादा थकान

[] वजन बढ़ना,

[] शरीर का एक दम फूल जाना,

[] अचानक सूजन आने लगना,

[]  त्वचा सूखना,

[] आवाज में घरघराहट और

[] नवयुवतियों व महिलाओं का

[] मासिक धर्म अनियमित होना है।

हाइपोथॉयराइडिज्म का इलाज

ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल द्वारा

आसानी से किया जा सकता है।

बिना दवा के यह “गॉयटर

का रूप ले सकता है।

इससे गर्दन में सूजन आ जाती है।

 इसके अलावा आथरोस्क्लेरोसिस,

 स्ट्रोक,

 कॉलेस्ट्रॉल बढ़ना,

 बांझपन,

 शारीरिक क्षीणता

 कमजोरी जैसे गंभीर

 लक्षण भी हो सकते हैं.

“हाइपरथॉयराइडिज्म” में जब

ग्रंथिशोथ (थॉयराईड) ज्यादा सक्रिय

होता है तो ग्लैंड से हॉर्मोन ज्यादा

बनता है, जो ग्रेव्स डिसीज़ या

ट्यूमर तक का कारण बन सकता है।

ग्रेव्स डीजीज में मरीज में

“एंटीबॉडी” (antibody) अर्थात

रोग उत्पन्न करने वाले प्रतिरक्षी,

रोगप्रतिकारक

बनने लगते हैं जिससे

थॉयराइड ग्लैंड ज्यादा हॉर्मोन

बनाने लगती है।

आयोडीन जरूरी तो है,पर आयोडीन के ज्यादा सेवन, हॉर्मोन से युक्त दवाओं के सेवन से यह हाइपरथॉयराइडिज्म हो सकता है.

इसके और भी लक्षण हैं

लेकिन ऐसे मामले कम पाए जाते हैं

 जैसे-

ज्यादा पसीना आना,

थॉयराईड ग्लैंड का आकार बढ़ जाना,

हार्ट रेट बढ़ना,

आंखों के आसपास सूजन,

त्वचा मुलायम होना,

बालों का तेजी से झड़ना ,पतला होना

टूटना,झड़ना आदि

(बालों की रक्षा के लिए

  कुन्तल केयर” हर्बल हेयर स्पा

∆ कुन्तल केयर” हर्बल हेयर माल्ट

सम्पूर्ण हर्बल चिकित्सा है।)

लापरवाही से बचें-

अगर इसका इलाज नहीं किया

जाए तो व्यक्ति को अचानक

कार्डियक अरेस्ट, एरिथमिया (हार्टबीट असामान्य होना), ऑस्टियोपोरोसिस, कार्डियक डायलेशन जैसी समस्याएं

हो सकती हैं. इसके अलावा गर्भावस्था में ऐसा होने पर गर्भपात,समयपूर्व प्रसव,प्रीक्लैम्पिसिया (गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर बढ़ना),

गर्भ का विकास ठीक से न होना

जैसे लक्षण हो सकते हैं.

इसके अलावा हाशिमोटो थॉयरॉइडिटिस बीमारी, जिसमें थॉयराईड में सूजन के कारण ग्लैंड से हॉर्मोन का रिसाव होने लगता है और मरीज हाइपरथॉयराइडिज्म का शिकार हो जाता है, गॉयटर में थॉयराइड ग्लैंड का आकार बढ़ जाता है, ऐसा आमतौर पर आयोडीन की कमी के कारण होता है. इसके लक्षण हैं गर्दन में सूजन, खांसी, गले में अकड़न,सूजन,घबराहट,बैचेनी,

अनिद्रा और सांस लेने में परेशानी

होती है।

थॉयराइड और कैंसर जैसे विकार

आमतौर पर 30 वर्ष की उम्र के

आसपास होना आरम्भ होता है।

नई खोजों से पता लगा है कि

यह कर्कट रोग (कैंसर)

 थॉयराइड ग्लैंड के टिश्यूज में

 पाया जाता है।

 रोगी में या तो कोई लक्षण नहीं

 दिखाई देते या गर्दन में गांठ महसूस होती है। रेडिएशन और कुछ मामलों में कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है।

आयुर्वेद की अमृतम सलाह-

आयुर्वेदिक डॉक्टर इन रोगों से बचाव

के लिए जीवनशैली में परिवर्तन

की सलाह देते हैं।

विशेषतौर पर उन व्यक्तियों को

जिनके परिवार में यह बीमारी

पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

या परिवार में थायराइड से

जुड़े रोगों का इतिहास है।

विकारों से बचने हेतु उपाय-

नियमित जांच करावें

खूब पानी पीवें,

संतुलित आहार लें,

रात्रि में दही व अरहर की दाल न खाएं

नियमित रूप से व्यायाम करें,

धूम्रपान या शराब का सेवन कम करें

हर्बल मेडिसिन का उपयोग करें।

ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल

का 3 माह तक नियमित

सुबह खाली पेट दूध के साथ सेवन करें।

यदि समय रहते ध्यान न दिया जाए , तो थायराइड के कारण निम्नलिखित मनोरोग उत्पन्न होने लगते हैं —-

★मानसिक तनाव,

★स्नायु-विकार,

★मेमोरी लॉस,

★स्मरण शक्ति की कमी,

★ब्रेन की कमी या कमजोरी

★दिमाग की शिथिलता

★स्मृति हीनता,

★ब्रेन डैमेज,

★ब्रेन हेमरेज का खतरा,

★व्यक्ति भयभीत रहता है,

★चिन्ता सताने लगती है,

इस कारण “चतुराई” घटकर

याददास्त कमजोर होने लगती है।

बार-बार भूलने की आदत से

क्रोध उत्पन्न हो जाता है।

ब्रेन की गोल्ड माल्ट

दिन में 3 से 4 बार गर्म

दूध या पानी के साथ लेवें।

ब्रेड,रोटी,परांठा में

जैम की तरह लगाकर

रोल बनाकर भी खा सकते हैं।

आयुर्वेद की एक अति प्राचीन

बुक “मस्तिष्क संरचना”में

“ब्रेन को बॉडी का किंग”

 कहा गया है।

लिखा है राजा ही पूरी

प्रजा (शरीर) को चलाता है।

ब्रेन की  गोल्ड माल्ट

घबराहट,(एंजाइटी)

बेचेनी से बचाता है ।

सदैव ध्यान रखें कि

सारे रोग ब्रेन से पैदा होते हैं।

[best_selling_products]

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *