ज्वर (Fever) में परहेज की देखभाल केसे करें!

 पथ्य-मूंग का पानी, दलिया और नारंगी, सेव, सन्तरा आदि फल, छेना, पनीर, कुष्मांड यानि पेठा देना हितदायक रहता है।
आयुर्वेदिक ओषधि….फ्लूकी Flukey malt तीन महीने टीके सेवन करें।
माधव निदान के अनुसार लोग नये ज्वर में पहिले सात दिन तक दूध नहीं देते, क्यों कि दूध पछता नहीं ही बल्कि मल को सड़ान  लगता है।परन्तु आजकल डॉक्टर लोग शुरू से ही दूध देते है।
रोगी प्राणिजन्य खूराक न खाता हो उसे फिर दूध पिलाना चाहिए।
 दोपहर के समय द्राक्षारस यानि मुनक्का के रस के साथ पूरा भोजन देना चाहिये और इसके डेढ घण्टा पश्चात पुनः दूध, अण्डा या मांस देना चाहिये।
 सायंकाल को दूध के साथ बाटी या पूड़ी खिलानी चाहिये और रात को  ८ बजे पूरा भोजन कराना चाहिये और रात को सोने के वक्त दूध तथा हो सके तो अण्डे देने चाहिए।
रोगी को सारे दिन सूर्य की रोशनी और शुद्ध हवावाले मकान अथवा खुले मैदान में विताना चाहिए।
 रोगी के रहने घूमने की जगह भी प्रकाश और शुद्ध वायुवाली होनी चाहिए।
 कपड़े ढीले और हल्के रखने चाहिये और दिन हो या रात गर्मी हो जाड़ा सदा ऊन के ही कपड़े पहिरने चाहिए।
जूता, मोटा और अच्छा होना चाहिये कि जिससे पैर सूखे और गर्म रहें ।
रोजाना रात को सारे शरीर को गर्म पानी से स्पन्ज
(मुरदा बादल) द्वारा धोना और खुरदरे तौलिये से रगड़कर पोंछ डालना चाहिये। परन्तु यह क्रिया गर्म कमरे में करनी चाहिये कि जिससे सर्दी न लग जाय। यदि रात को पसीना आता हो, तो चमड़ी को रगड़ने से पहिले साबुन और पानी से धो डालना चाहिए।
पृथक् २ रोगीयों को उनकी स्थिति के अनुसार पृथक् २ कसरते करानी चाहिए। परन्तु थकान न आने देना चाहिये। तथा नियमित समय पर शौच के लिए जाने को कहना चाहिए।
साधारणतः क्षय के रोगी को जुलाब न देना और -ब्रह्मचर्य पालन कराना चाहिए।

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