अधेड़ आयु का प्रेम कितना सही होता है…

कुछ लड़कियां खाने की इतनी शौकीन होती है कि प्रेमी की सभी खुशियां खा जाती हैं।

  • आजकल बड़ी उम्र के लोग भटक रहे हैं और तन्हा महसूस करते हैं। अकेलापन मिटाने के लिए कुछ  अधेड़ पुरुष अपने से आधी उम्र की लड़की से मोहब्ब्त करने लग जाते हैं।
  • दिल को सेनेटाइज करके रखिये जनाब, ये इश्क बड़ी संक्रामक बीमारी है !
  • इस आयु में प्रेम की वायु पीने वाले लोगों को केवल प्रेमिका के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता। कहते है कि-
  • तुम हो तो बसंत… नहीं तो बस…अंत..

भारत में प्रेम करना अपने आप में बहुत बड़ा अपराध है। यहां किसी के पैसे खाने से नहीं लहसुन प्याज खाने से पाप लगता है।

किसी-किसी का एक ही रोना होता है कि-

हर बार निराशा ही मिली है जिंदगी में..

आज आशा दिखी वो भी पति के साथ थी!

    • कम उम्र की लड़की से प्रेम करके आप जल्दी ही फ्रेम में टँग जाओगे।

कम उम्र की लड़की या तेज दिमाग वाली महिला से प्रेम करना आसान नहीं होता। पहले तो यह समझें कि प्रेम आखिर है क्या?

श्रीमद्भागवत के अनुसार प्रेम ही जीवन का आधार है। जिसके जीवन में प्रेम है, तो शांति है। प्रेम में ही शांति निहित है।

षड़यंत्र उस शिवा का देखो तो जरा,
हमे खुश देखकर प्यार में फंसा दिया

ध्यान और प्रेम करीब-करीब एक ही अनुभव के दो नाम हैं। परमात्मा या प्रेमिका का निरन्तर चिंतन ध्यान ही है।

मिट्टी के खिलौनों प्रेम नही होता, उससे खेला जाता है। कलयुग में इसी को प्यार कहते हैं।

    • एक बात यह भी याद रखें–

अल्पमत सरकार हो या अल्पआयु पति,

दोनो की अपनी जगह होती है भारी दुर्गति।

सच्चा प्यार वही है जो आँखों से काजल न बहने दे ओर ओंठो पर लिपिस्टिक रहने न दे।

वैसे तो प शब्द बहुत कुछ समेत हुआ है। प से प्रेम, प से पैसा और अंत में प से पछतावा होता है। इन सभी कर्म को पाप-पुण्य भी कहा गया है।

  • हम सर्वप्रथम आपको प से प्रणाम करते हैं कि इस उम्र में भी आपको प्रेम से सफलता मिलने जा रही है। ज्यादातर मामलों में 40 के बाद आदमी खल्लास होकर प्रेम से मुख मोड़ने लगता है।

इस उम्र में इतनी छोटी लड़की से प्रेम करने का मतलब है, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना।

  • अधेड़ उम्र में एक कपल ताजमहल घूमने गया…ख़ुशनुमा नई जगह देख कर बुड्ढे की जवानी की अरमान जाग गई…

पति ने कहा.. पहले कर ले या लौटकर किया जाए?… पत्नी बोली.. अभी ही कर लो…. ताजमहल तो कल भी खड़ा रहेगा….

    • एक बात स्मरण रखने लायक है कि-बच्चे अंधेरे में हो तो गलती होती है या आदमी अंधेरे में हो तो बच्चे होते है। आप अधेड़ आदमी होकर प्रेम करने चले हो। कुछ तो अनुचित लग रहा है। कहीं ऐसा न हो कि सिगड़ी आप जलाएं और दूसरे लोग हाथ सेंके।

प्रेमिका है, तो विवाह भी करोगे। फिर, बच्चा भी अच्छा हो यही कोशिश रहेगी।

……….एक अधेड़ आदमी अपनी कामायनी (कम उम्र की प्रेमिका) से बोला कि मेरा बच्चा प्यारा होना चाहिए। प्रेमिका बोली प्यारा चाहिए या हमारा चाहिए…

  • ये औरत है साहिब…निभाने पर आ जाये, तो नाली में पड़े शराबी के साथ पूरी जिंदगी गुजार दे और यदि छोड़ने पर आ जाये, तो बिलगेट्स को भी छोड़ दे।
  • नारी की समझदारी, होशियारी, जिम्मेदारी और यारी-अय्यारी, राय-खुमारी से सन्सार और ब्रह्माण्ड टिका है। कहीं-कहीं नारी की गद्दारी के किस्से भी प्रचलित हैं।

जाने-मन की इसलिए इन्हें जानेमन भी कहते हैं.

  • इतना भी बुजुर्गों की बातें याद रखना कि-

अल्हड़ नारी पैनी छुरी तीन ठौर से खाये।

धन छीने, यौवन हरे, मरे नरक ले जाए।

आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र में एक श्लोक बताया है। जो इस तरह है –

अत्यासन्ना विनाशाय दूरस्था न फलप्रदा:।

सेवितव्यं मध्याभागेन राजा बहिर्गुरू: स्त्रियं:।।

इस श्लोक में चाणक्य ने कहा है कि राजा या जो व्यक्ति आर्थिक रुप से बलवान हो, आग और स्त्री, ये तीन ऐसी चीजें हैं न ही तो इनके ज्यादा करीब जाना चाहिए न ही इनसे ज्यादा दूर जाना चाहिए यानि संतुलन बनाकर एक निश्चित दूरी रखनी चाहिए।

चाणक्य कहना है कि स्त्री को कमजोर नहीं समझना चाहिए क्योंकि इस सृष्टि के निर्माण में जितना योगदान पुरुष का है, उतना ही स्त्री का भी है। किसी स्त्री के अत्यधिक करीब जाने से व्यक्ति को ईर्ष्या का और ज्यादा दूरी बनाने से घृणा तथा निरपेक्षता मिलती है।

भारतीय प्रेम संस्था का इतिहास’ के पृष्ठ १२० में कम उम्र स्त्रियों की कामुक मनोदशा का वर्णन करता है कि प्राचीन काल में किसी भी स्त्री को किसी भी पुरुष द्वारा रतिक्रिया के लिए पकड़कर ले जाना, उस काल में धर्म माना जाता था।

यदि किसी स्त्री को, कोई पुरुष ले जाकर सम्भोग नहीं करता, तो वह स्त्री बहुत उदास होकर रोया करती थी कि उसे कोई पकड़कर नहीं ले जाता और रति सुख नहीं देता।

शारीरिक संबंध के बिना सुखी वैवाहिक जीवन नहीं जिया जा सकता।

निम्न श्लोक उसकी सोच को उद्घाटित करते हैं – सुस्निग्ध रोम रहितं पक्वाश्वत्थदलाकृति।/दर्शयिष्यामितद्स्थानम्‌ कामगेहो सुगन्धि च॥

मैं उसको पूर्ण विकसित पीपल के पत्ते की आकार की रोम रहित मृदुल और सुगंधित काम गेह(योनि) को (किसी न किसी तरह से) दिखा दूँगी क्योंकि – बाहूमूल कूचद्वंन्दू योनिस्पर्शन दर्शनात्‌।/कस्य न स्ख़लते चिन्तं रेतः स्कन्नच नो भवेत्‌॥

यह निश्चित है कि ऐसा कोई भी पुरुष नहीं है जिसका वीर्य किसी के बाहु-युगल, स्तन-द्वय और योनि को छूने और देखने से स्खलित न होता हो। ये कुछ दृष्टांत हैं स्त्रियों के काम-सापेक्ष प्रवृत्ति की निर्द्वन्द्व स्वच्छंदता के, जो वर्तमान नारी-विमर्श के परिप्रेक्ष्य में गहन वैचारिक मंथन की मांग करते हैं।

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