रोटी का रोचक इतिहास…

छप्पन तरह के पकवान खाते-खाते मन भर सकता है, लेकिन रोटी खाते-खाते आज तक कोई बोर नहीं हुआ, क्योंकि पेट तो रोटी से ही भरता है और दुनियाभर में सारे झगड़े की जड़ भी रोटी ही है।
एक एक रोटी के लिए मोहताज एक गरीब आदमी ने रोटी का एक विशाल संग्रहालय ही स्थापित कर दिया, जिसे देखने दुनिया 70 से 80 हजार लोग ही साल देखने जाते हैं।
रोटी की इस विकास-यात्रा को दर्शन के लिए पश्चिमी जरमनी के पुराने शहर ‘फ्री सिटी ऑव उल्प‘ में चालीस साल पहले डैन्यूब नदी के किनारे एक पहाड़ी पर बसी आवासीय कॉलोनी में एक जरमनी ने अपने मकान में, दुनिया का सबसे पहला ‘रोटी संग्रहालय’ स्थापित किया है।
 विश्व में अपनी तरह के अनूठे इस संग्रहालय में विविध प्रकार एवं विभिन्न आकार की रोटियां और उनके निर्माण के प्रारंभिक तौर-तरीकों से लेकर आधुनिकतम विधियां रोचक प्रदर्शनों के माध्यम से दर्शायी गयी हैं।
संग्रहालय यूरोप के सैलानियों में दिन-प्रतिदिन और भी लोकप्रिय होता जा रहा है।
रोटी की यात्रा..
सृष्टि के विकास क्रम में मानव की सबसे महत्त्वपूर्ण खोजों में से एक है—’रोटी’।
आग के गुणों से परिचित होने के बाद आदिम-मानव ने भूख मिटाने की खातिर जो ने विविध प्रयोग किये, उनका परिणाम है-रोटी, जो पकाने में सरल, खाने में सुपाच्य और स्वादिष्ट भी होती है। पेट केवल रोटी से भरता है। चिकित्सक भी -रोटी के चमत्कार के आगे नतमस्तक हैं।
मनुष्य को अनाज के दानों से गोल-मटोल रोटी तक पहुंचने में हजारों वर्ष लगे हैं...
रोटियां तरह-तरह की दुनिया में रोटियां कई प्रकार के अनाजों की बनती हैं किंतु, सबसे ज्यादा प्रचलित रोटी गेहूं की ही है।
गेहूं के आटे में कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन अधिक मात्रा में तथा लौह-तत्व, वसा और नियासिन कम मात्रा में होता है। इसमें कैल्शियम, रिबोफ्लेबिन तथा वामामीन भी अति अल्प मात्रा में होता है।
गेहूं की रोटी बनाने के लिए सबसे पहले गेहूं को अच्छी तरह साफ करके उसमें से कंकड़-पत्थर आदि चुन लिये जाते हैं।
साफ गेहूं को अच्छी तरह कई बार साफ पानी से धोकर सुखा लिया जाता है, जिससे गेहूं में लगी विविध कीटनाशी रासायनिक दवाएं तथा धूल कण आदि दूर हो जाते हैं। कीटनाशी दवाओं युक्त गेहूं का आटा स्वास्थ्य के लिए काफी घातक होता है।
गेहूं की पारंपरिक ढंग से घर में ही चक्की अथवा जाँते में हाथ से की गयी पिसाई सर्वोत्तम होती है।
घर के पिसे आटे के पौष्टिक तत्व सुरक्षित रहते हैं।
 बिजली से चलनेवाली आटा-चक्कियों में चक्की के अत्यंत तीव्र गति से घूमते पाटो के बीच आटा इतना गरम हो जाता है कि गेहूं के छिलकों में मौजूद अनेक महत्त्वपूर्ण खनिज और वसा-तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं।
ध्यान रहे चक्की से ताजा पिसे आटे से तुरंत रोटी नहीं बनाना चाहिए। गरम आटे में पानी मिलाने से
रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप आटा कुपाच्य हो जाता है।
 चक्की से तुरंत पिसकर आये गरम आटे को एक-दो दिन तक रखा रहने देना चाहिए। रोटी बनाते समय आटे का चोकर कभी नहीं निकालना चाहिए।
 चोकरयुक्त आटे की रोटी को आयुर्वेद में स्वास्थ्य के लिए एक उत्तम आहार माना जाता है। आटा मिलों में तैयार आटे में चोकर की मात्रा न्यूनतम होती है, फलतः इस आटे की रोटियां कम पौष्टिक, गरिष्ठ तथा खाने में चिमड़ी व कठोर होती हैं।
आटे को धीरे-धीरे तथा देर तक गूंथना अच्छा माना जाता है। गूंथे आटे को एकाध घंटे तक गीले कपड़े से ढककर रखने से रोटी मुलायम बनती है तथा खूब फूलती है।
तुरंत गुंथे आटे से बनी रोटी के किनारे कट-फट जाते है और सेंकते समय रोटी में उत्पत्र भाप इन किनारों से होकर बाहर निकलती रहती है, जिससे वह अच्छी तरह फूल नहीं पाती और देर से सिकती है।
अधिक सेंकने पर पापड़-जैसी कड़ी हो जाती है । फूली रोटी के अंदर की भाप उसके जल्दी सिंकने में सहायक होती है।
हाथ से बनी रोटी कहीं मोटी तो कहीं ज्यादा पतली हो जाती है, जबकि चकला-बेलन की सहायता से रोटी समान मोटाई की तथा ज्यादा गोल बनती है।
 हाथ की बनी रोटियों में पलेथन के रूप में आटे की बजाय पानी का प्रयोग किया जाता है, जिससे वे ज्यादा फूलती हैं।
चकला-बेलन से रोटी बनाते वक्त पलेथन के रूप में आटे का प्रयोग अधिक करना पड़ता है।
रोटी पर पलेथन के रूप में लगा सूखा आटा सेंकते समय जल जाता है, जो कार्बन होने के कारण पूर्णतः अपौष्टिक होता है।
रातभर गूंथकर रखे गये आटे अथवा साने गये आटे के गोले को पानी में उबालकर बनायी गयी रोटियां अत्यंत सुपाच्य होती हैं, जो लंबी बीमारी से उठे अथवा अजीर्ण के रोगी को पथ्य के रूप में खिलायी जाती हैं।
आटे को गूंथकर देर तक रखने अथवा साने आटे को गरम पानी में उबालने पर आटे और पानी के अणुओं में अधिकतम रासायनिक क्रियाएं होती हैं और आटा पॉलीसेकेराइड (स्टार्च) से डाईसेकेराइड में परिवर्तित हो जाता है, जिससे रोटी मीठी लगने लगती है और जल्दी पचती है।
चीनी और दुग्ध-शर्करा भी डाईसेकेराइड ही होती हैं।
मानव-शरीर आटे तथा अन्य खाद्य पदार्थों में उपस्थित पॉलीसेकेराइड या डाईसेकेराइड को – सिर्फ मोनोसेकेराइड के रूप में ही ग्रहण कर पाता है।
 पॉलीसेकेराइड को मोनोसेकेराइड में बदलने के पहले डाईसेकेराइड में बदलना पड़ता है।
ग्लूकोज, फ्रक्टोज तथा लैक्टोज मोनोसेकेराइड होते हैं। मोनोसेकेराइड कार्बोहाइड्रेट वे सरल शक्कर होती हैं, जिनके अणु में नौ परमाणु होते हैं।
 इनको छोटे अणुओं में जल-अपघटित नहीं किया जा सकता।
 डाईसेकेराइड जल-अपघटन के बाद दो मोनोसेकेराइड अणुओं में टूटती है तथा पॉलीसेकेराइड अनेक मोनोसेकेराइड अणुओं में टूटती है।
 रोटी बनाते समय उपयुक्त रासायनिक क्रियाएं स्वयं होती चलती हैं।
तंदूरी रोटियों में पलेथन की बजाय पानी का प्रयोग किया जाता है, जिस कारण वे अधिक सुपाच्य तथा स्वादिष्ट होती हैं।
मिस्सी रोटी अपने देश में खालिस गेहूं की रोटियों के अतिरिक्त गेहूं के आटे में चना, मक्का, बाजरा आदि अनाजों के आटों को मिलाकर भी रोटियां बनायी जाती हैं, जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पुष्टिदायक भी होती हैं।
मिस्सी रोटी बनाने के लिए गेहूं के आटे में थोड़ा बेसन मिला लिया जाता है या गेहूं में चना मिलाकर उसे पिसवा लिया जाता है।
ये रोटियां कुरकुरी, खस्ता एवं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक एवं सुपाच्य भी होती हैं।
मिस्सी रोटियों से दुबलापन दूर होता है तथा शरीर सुडौल और पुष्ट बनता है।
खून की कमी दूर करती है पालक की रोटी
गेहूं या छिलके सहित चने का ऐसा आटा, जिससे चोकर नहीं निकाला गया हो, पालक रोटी बनाने के काम में आता है।
ऐसा आटा गूंथते समय पालक के पत्ते धोकर, साफ करके, बारीक-बारीक काटकर आटे में मिला लिया जाता है । यह रोटी रक्ताल्पता को दूर भगाकर शरीर को बल-पुष्टि प्रदान करती है।
 बढ़नेवाले किशोरों तथा गर्भवती महिलाओं के लिए यह रोटी अत्यंत गुणकारी होती है।
इसी प्रकार सलाद चपाती बनाने के लिए जूसर या मिक्सर की सहायता से लाल टमाटर, गाजर, पालक, ककड़ी, खीरा, पत्तागोभी, मूली, हरा धनिया या हरा पुदीना और हरी मिर्च, इनमें से जो कोई उपलब्ध हो, उसे स्वादानुसार मात्रा में लेकर रस निकाल लिया जाता है और आटा गूंथते वक्त पानी की जगह उसको मिला दिया जाता है।
 यदि जूसर या मिक्सर उपलब्ध न हो तो कद्दूकस की सहायता से इन्हें बारीक काटकर आटे में मिलाकर भी इसे बनाया जा सकता है। यह रोटी भी अत्यंत स्वादिष्ट तथा बल-वीर्यवर्द्धक होती है।
बड़े-बड़े होटलों तथा दावतों में कई विशिष्ट प्रकार की रोटियां भी बनायी जाती हैं।
रोटी ऐसा सदाबहार खाद्य पदार्थ है, जिससे कोई बोर नहीं हुआ। आदमी छप्पन तरह के पकवान भले ही खा ले, पर पेट रोटी से ही भरता है।
आज के इस उपग्रह युग में जमाना भले ही फास्ट फूड, पेप्सी कोला या केंटकी फ्रायड चिकन का आ गया हो, पर ताजी गरमागरम रोटियों का स्वाद ही नहीं, अपितु पौष्टिकता भी आज भी बेमिसाल है।
रोटियां घी चुपड़ी अथवा मक्खन डली हो फिर तो कहने ही क्या ?

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