कालसर्प के निर्माता राहु ग्रह के इन 4 मंदिरों के बारे में जानकर आप रोमाँचित हो जाएँगे

दुर्भाग्य किसे कहते हैं?
‎दुर्भाग्य का अर्थ है-
जो लोग मेहनत, भाग-दौड़ से दूर भागते हैं,
उनसे भाग्य दूर हो जाता है। इसे ही दुर्भाग्य कहते हैं। आलस्य-प्रमाद,
सुस्ती और दूरदृष्टि की कमी के कारण
जीवन परेशानियों से घिर जाता है।

दुर्भाग्य का कारण
पूर्व जन्म के पाप-पश्चाताप,
‎माँ, बहिन, पत्नी या अन्य
‎दुर्गा स्वरूप स्त्री का दिल दुखाना,
‎दुष्टता, दगाबाजी, दबंगता,
‎दर्द देना,
दीनहीन और दयावान नहीं होना आदि के
‎कारण भाग्य को
‎रहस्यमयी बनाकर
‎राहु हमारा रास्ता रोक देते हैं 
‎   अतः कष्ट-क्लेशों,
‎दुःख-दारिद्र से स्थाई
‎मुक्ति तथा विशेष भाग्योदय
‎के लिये
 ‎  “अघोरी की तिजोरी”
‎से प्राप्त अद्भुत चमत्कारी
‎उपाय अवश्य करके देखें ।
खराब किस्मत के लक्षण- 
दुर्भाग्य अर्थात दूर+भाग्य
यानी भाग्य साथ नहीं देता।
दुर्भाग्य के आते ही
‎सब अपने, पराये दूर
‎भाग्य जाते हैं ।
‎दुर्भाग्य का मूल कारक ग्रह एवं कारण
‎राहू देव ही हैं, इनकी अशुभता से व्यक्ति भगवान से भी दूरी बनवा देता है।
राहु की क्रूरता 
‎ कष्ट-क्लेश, दुःख-दारिद्र
‎रोग-शौक़, हानि-परेशानी,
‎बेकार जवानी, कर्ज-मर्ज
‎इन सबका कारक और दाता
‎राहू ही है, जो भय-भ्रम,
मुकदमे बाजी में बर्बादी,
जेलयोग, पुलिस का भय,
बवासीर, केन्सर और मधुमेह
जैसे असाध्य रोग,
पैदा कर पथभ्रष्ट और पथहीन कर
उन्नति  के रास्ते, सफलता की ‎राह रोककर,
‎बार-बार रोड़े ‎अटकाता है।
स्कन्द पुराण में इसे
ही कालसर्प, पितृदोष, दरिद्र दोष
कहा गया है।

क्या आप जानते हैं?
राहु बनाये मालामाल
राहु के रहम से ही व्यक्ति रहीस बन सकता है
राहु यदि शुभ है, तो जो भाग्य में है, तो वह
भागकर एक दिन
अपने पास जरूर आता है
और यदि राहु अशुभ है, तो
धन-सम्पदा, यश- कीर्ति
सौभाग्य आदि आकर
‎भी भाग जाएगा। नष्ट हो जाता है।
सौभाग्य जगाने के लिए
सौ तरफ भाग-दौड़ करते रहो।
सौ तरह के प्रयास करो,
अतः
‎कर्म करो, कष्ट काटो
‎प्रसन्न-मन
‎अमृतम जीवन
‎का यही उपाय है।

राहु की अशुभता कैसे बनाती है दरिद्र व गरीब जाने 7 वजह

राहु जब हो अशुभ, तो देता है ऐसे संकेत
{१}पल भर में ऐश्वर्य हीन हो जाना,
{२}अचानक धन का नाश,
{३}शेयर-सट्टे से बर्बादी,
{४}किसी अपनों के द्वारा नुकसान पहुंचाना
{५}दुश्मनों द्वारा बर्बाद करने की योजना बनाना,
{६}अकस्मात रोगों से धिर जाना,
{७} बहुत बड़ी मुसीबत आना,
शादी में विलंब भी राहु दोष का ही एक लक्षण है।  वैवाहिक जीवन में तनाव और विवाह के बाद तलाक की स्थिति भी राहु पैदा करता है।
उपरोक्त ये सब राहु का ही दुष्प्रभाव के
कारण होता है।
रहम या दया नहीं करता राहु
【】  ‎रोज-रोज रोजा रखने की मजबूरी
यानि भूखे रहकर दिन गुजारना,
【】  ‎रो-रोकर रहना, अर्थात आर्थिक तंगी,
【】 शारीरिक एवं मानसिक परेशानियां
【】  घुट-घुट कर जीना
【】रिश्तेदारों की रुसवाई
【】   प्यार में वेवफाई,
【】  पेट की बीमारियां
【】  दुश्मन हो जाए भाई,
‎【】किसी की भी मदद नहीं मिलना,
【】  अपने-परायों  का रहम (दया) नहीं करना,
【】   आये दिन एक नई उलझन खड़ी होना यह सब राहु के ही काम है।

रंक से राजा बनाता है राहु-
दुःख-दरिद्रता मिटाकर, गरीब से गरीब को
अमीर बनाना, राजनीति में अपार सफलता           दिलाना राहु का काम है।

राहुकाल में शिव पूजा से प्रसन्न होते हैं राहु
शिव की कठोर साधना एवं शुभ कर्म होने से
राहु के शुभ प्रभाव एक न एक दिन जरूर
दिखने लगते हैं।
राहु गरीब से गरीब आदमी को
ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
अमीर और अरबपति बनाने की क्षमता केवल
राहु के पास ही है। ये अथाह धन-सम्पदा देते है। संसार की सम्पूर्ण भौतिक
सुख-सम्पदा, सुविधायें राहु की शुभता से निश्चित
मिलती हैं। राहु की  कृपा से राजनीति में अपार
सफलता मिलती है। यश-कीर्ति, प्रसिद्धि के राहु
दाता है।
राह दर्शक राहु

ज्योतिषशास्त्र में शनि, मंगल, केतु और राहु को पाप ग्रह के रूप में बताया गया है। कुण्डली में अगर इनकी स्थिति ठीक नहीं हो तो जीवन में बार-बार उलझन और समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

राहु ऐसा पाप ग्रह है जो आपकी बुद्घि को सही से काम नहीं करने देता और गलत निर्णय के कारण बार-बार नुकसान उठाना पड़ता है।
राहु ही सही राह,  दिखाकर जीवन
हरा-भरा बनाते हैं ।
राहु ही ‎सिद्धि-समवृद्धि
‎के सर्वाधिक साधक
‎हैं। राहु ही इसके मालिक भी हैं ।
‎इंसान ओर भगवान के कर्म व धर्म, सबका
‎डाटा राहु के पास सुरक्षित है।

भगवान और सूर्य-चंद्र को भी नहीं छोड़ते राहु
‎भगवान सूर्य एवं चंद्रमा
‎भी गलती करते हैं, तो
‎उन्हें भी राहु नहीं छोड़ते,
‎ग्रहण लगाकर इन्हें भी
‎पीड़ित कर देते हैं।

गलती और दुष्कर्म के दुष्परिणाम
‎प्रकृति के विरूद्ध
‎जो भी जाता है,
‎राहु उसे परेशान कर
‎सही मार्ग पर लाते हैं  ।
‎फिर चाहें ईश्वर हो
‎इंसान।
‎प्राणी हो या परमात्मा ।
‎जब सृष्टि में सूर्य और चंद्रमा
‎पर ग्रहण लगता है, तो
‎10-12 घंटे पूर्व सूतक
‎लग जाता है। इसे दुष्काल
‎भी कहते हैं , इस समय
‎खाना-पीना, सोना निषेध होता है ।
‎सभी मंदिरों के पट-द्वार बन्द हो जाते हैं।
‎पूजा पाठ स्थगित कर रोक दिया जाता है।

राहु के दोषों से बचना है,
तो करें इस शिव मंदिर में पूजा

दुनिया का अद्भुत और दुर्लभ शिवमंदिर, जहां सूर्यग्रहण के समय होती है शिवपूजा-
‎क्या आप दुनिया में एक मात्र राहु के शिवालय
के बारे में जानते है, जहां सूर्यग्रहण के समय भी भगवान भोलेनाथ शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है। दक्षिण भारत में राहु के कुछ शिवालय और मंदिरों में सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण के समय तथा सूतक व दुष्काल के समय विशेष पूजा-प्रार्थना, कालसर्प की शांति, अनुष्ठान आदि किये जाते हैं ।
राहु के ‎इन तीर्थों, शिवमंदिर और शिवालय के नाम इस प्रकार हैं 
5 लाख वर्ष पुराना शिवालय —
【1】 ‎ श्री कालहस्तीश्वर मन्दिर ,
यह तिरुपति बालाजी से लगभग 35 km दूर है। मंदिर में सौ स्तंभों वाला मंडप है,
जो अपने आप में अनोखा है।
अंदर स्वयम्भू सहस्त्र शिवलिंग भी स्थापित है।

श्रीकालहस्ती मन्दिर का उल्लेख शिवपुराण
स्कंध पुराण तथा लिंग पुराण जैसे पुराने पुराणों में भी मिलता है।
यह मंदिर राहुकाल पूजा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
इस मंदिर में श्री गणेश श्रीकृष्ण, श्री राम, लक्ष्मण, सीता, सप्तऋषि, यमराज, नाग, हाथी, शनिदेव, भगवान और कार्तिकेय द्वारा स्थापित शिंवलिंग के दर्शन कर सकते है।

यहां एक पाताल गणपति का मन्दिर भी है, जो जमीन से 100 फुट गहरा है। नीचे जाने के लिए 1 फिट का जीना है।

कैसे पड़ा नाम-
किस्सा है कि इस स्थान का नाम तीन पशुओं
के नाम पर किया गया है।
–  श्री का अर्थ है मकड़ी,
–  काल कहते हैं नाग को और
–   तथा हस्ती को संस्कृत में हाथी

कहा जाता है।
ये तीनों ही पशु यहां शिव की आराधना करके मुक्त हुए थे। पुराणों के अनुसार श्री यानि मकड़ी ने शिवलिंग पर तपस्या करते हुए जाल बनाया था और नाग ने शिवलिंग से लिपटकर शिव आराधना की और हाथी ने शिवलिंग को जल से स्नान करवाया था।

श्लोक शिंवलिंग-
महर्षि व्यास द्वारा इस शिंवलिंग पर 18 पुराण, चारों वेद का उच्चारण करते हुए रुद्राभिषेक किया था।
यह मंदिर लगभग 5 km में फेला हुआ है।
श्री कालहस्ती के आसपास के प्राचीन तीर्थ इस स्थान के आसपास अनेको प्राचीन धार्मिक स्थल हैं। विश्वनाथ मंदिर, भक्त कणप्पा मंदिर, मणिकणिका मंदिर, सूर्यनारायण मंदिर, महर्षि भारद्वाज तीर्थम, कृष्णदेवार्या मंडप, श्री सुकब्रह्माश्रम, वैय्यालिंगाकोण (सहस्त्र लिंगों की घाटी), पीछे के पर्वत पर तिरुमलय स्थितहै। यहां नजदीक में  दुर्गम मंदिर और दक्षिण काली मंदिर प्रमुख हैं।

एक हैरान करती सच्चाई
【2】 ‎त्रिनागेश्वरम– राहु मन्दिर
जो मूल ‎नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है ।
इस मंदिर में चढ़ाया गया दूध, अपना रंग
बदल लेता है।  एक हैरान करती सच्चाई
यह कुंभकोणम (तमिलनाडु) से 8 या 9 km है।
यहां प्रतिदिन राहुकाल में शिवरूपी राहु नाग प्रतिमा का अभिषेक किया जाता है। विशेष बात यह है कि जो दूध अर्पित करते है, तो वह जहरीला यानि नीले रंग का हो जाता है। जब भगवान शिव का दूध से अभिषेक किया जाता है तो दूध नीले रंग में बदल जाता है जो साफ दिखता है।
यहां ईश्वर को नागनाथ स्वामी तथा माता पार्वती को गजअंबिका के नाम से जाना जाता है।
राहु की हैं दो पत्नियाँ
राहु यहां अपनी दो पत्नी नागवली व नागकणि के साथ है। यहां की विशेषता यह है कि यहां राहु मानव चेहरे में है। यहां राहुदेव ने शाप से छुटने हेतु भगवान भोलेनाथ की पूजा की थी
इस मन्दिर परिसर में  12 दुर्लभ पानी के तीर्थ है।
जिनके नाम हैं-
1- सूर्य पुष्पकरिणी, 2- गौतमतीर्थ,
३- पराशर तीर्थ,
4- इन्द्रतीर्थ, 5- भृगुतीर्थ,
6-  कन्व्यतीर्थ, 7-  वशिष्ठ आदि।
समय पर शादी कराता है राहु-
कहते है कि राहु काल में प्रतिदिन डेढ़ घंटा दूध द्वारा राहु का अभिषेक करने से शादी समय पर हो जाती है। जिन्हें बच्चे नहीं होते उनको सन्तति
मिलती है। वैवाहिक जीवन की तकलीफ दूर होती है।

तीसरा है शेषनाग शिवालय —
यहां राहुकाल में जलाए जाते हैं, हजारों दीपक
‎【3】केरल के हरिपद में
‎मन्नारशाला नागमन्दिर है
यह केरल में नाग की पूजा करनेवाले सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है।
‎यहां करीब 50 हजार नाग प्रतिमाएँ हैं।
यह मंदिर नागराज और नागयक्षि को समर्पित है साथ ही भारत के 7 आश्चर्यों में एक है। इस मंदिर में यहां तक नजर जाती है, वहां तक केवल और
केवल नाग ही दिखाई देते हैं।
‎इन सभी राहु शिवालयों में यहां प्रतिदिन राहुकाल
‎में तथा ग्रहण काल में राहुकी तेल के हजारों
‎दीप जलाकर दीपम पूजा, दीपदान पूजा विधान
‎किये जाते हैं।
सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के अलावा यहां
प्रतिदिन कालसर्प, पितृदोष शान्ति हेतु राहुकाल
में  ‎इसकी शांति हेतु
‎विशेष पूजा-अर्चना की जाती है
जिससे बड़े से बड़े दुःख-दुर्भाग्य का नाश होता है।

【4】राहु का मन्दिर-
राहु का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था।
उत्तराखंड के कोटद्वार से लगभग 150 किलोमीटर दूर  पैठाणी गांव में स्थित इस राहु मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान राहू ने देवताओं का रूप रखकर छल से अमृतपान किया था, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया, ताकि वह अमर न हो जाए।
ऐसी मान्यता है कि राहू की कैसी भी दशा हो यहां आकर पूजा करने से महादशा दूर हो जाती है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण की माने, तो राहु का देश राठपुर था जिस कारण यह क्षेत्र राठ तथा राहु के गोत्र पैठीनसि से इस गांव का नाम पैठाणी पड़ा होगा।

पश्चिममुखी इस प्राचीन मंदिर के बारे में यहां के लोगों का मानना है कि राहू की दशा की शान्ति और भगवान शिव की आराधना के लिए यह मंदिर पूरी दुनिया में सबसे उपयुक्त स्थान है।

नवग्रहों की नम्रता-
जीवन में नवग्रहों (देवता) का प्रभाव अति महत्वपूर्ण है। ये नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु है। सूर्य सभी ग्रहों का प्रधान है तथा बाकी ग्रह सूर्य से ही ऊर्जा पाते हैं।
ज्योतिष ग्रन्थ जातक-परिजातक के अनुसार
सूर्य केंद्र में स्थित रहते हैं। चन्द्रमा सूर्य के दक्षिण पूर्व में यानि आग्नेय कोण में रहते हैं।  मंगलग्रह सूर्य के दक्षिण में, बुधग्रह सूर्य के उत्तर पूर्व यानि
ईशान कोण में, बृहस्पति अर्थात गुरु ग्रह सूर्य के उत्तर दिशा में, शुक्रदेव सूर्य के पूर्व दिशा में, शनि सूर्य के पश्चिम दिशा में, राहु सूर्य के दक्षिण-पश्चिम में यानि नैऋत्य कोण और केतु सूर्य के के उत्तर-पश्चिम में (वायव्य कोण) में स्थित होते हैं। इनमें किसी भी देवता का मुख एक दूसरे की तरफ नहीं होता।
लेकिन दुनिया का एक मात्र मन्दिर है, जहां सभी नवग्रह एक ही सीध यानी एक लाइन में स्थापित हैं।
इस ज्योतिर्लिंग के बारे में अगले ब्लॉग में पढ़े।
राहु को जल्दी प्रसन्न करना है, तो करें
इस मन्त्र का जाप
!! ॐ शम्भूतेजसे नमः !!
!! ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं !!

राहु का रत्न-गोमेद, तत्व-छाया, रंग-धुम्र, धातु-शीशा होते हैं।

पूरे विश्व में “केतु का एक मात्र मन्दिर” के
बारे में जानने के लिए
www.amrutampatrika.com
गूगल पर सर्च करें
दुःख-दारिद्र मिटाने और  राहु-केतु की पीड़ा से पीछा छुड़ाने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय:
कैसे मिले सुख और सफलता —

जीवन में सफलता के लिए पंचतत्व की कृपा बहुत आवश्यक है, क्यों कि इन पर राहु का अधिकार है।
पंचमहाभूतों की दया पाने के लिए
रोज राहुकाल में “राहुकी तेल”
का दीपदान कर, बड़े से बड़े दुर्भाग्य
को दूर किया जा सकता है।

कैसे बनता है राहुकी तेल
अमृतम फार्मास्युटिकल्स ने राहु की शान्ति
के लिए राहुदोष नाशक जड़ीबूटियों
जैसे नागबल्ली, चिड़चिड़ा, वंग, नागदमणि,
काले तिल सर्पपुंखा, गरुण छाल, वरुण छाल,
सर्पगंधा, अश्वगंधा आदि का काढ़ा निकालकर कर राहु के
आद्रा नक्षत्र” में काढ़ें से भगवान शिवकल्यानेश्वर का राहुकाल के दरम्यान वेद ध्वनि से रुद्राभिषेक कराकर काढ़े को तिल, सरसों, बादाम, के तेल में 18 दिन तक पकाया जाता है।
राहुकी तेल में राहु के दुष्ट और दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए बहुत सी वस्तुओं को मिलाया गया है। “राहुकी तेल” के रोज 5 दीपक 56 दिन तक नियमित जलाना सौभाग्य में सहायक होता है।

अतिशीघ्र गरीबी मिटाने का विशेष उपाय —

हर महीने की दोनों पंचमी, अष्टमी, एवं चतुदर्शी
तिथियों में अपने घर या शिवमंदिर में “राहुकी तेल” के अपनी उम्र के अनुसार दीपक जलावें।

‎अभी और भी “राहु के रहस्य” बाकी हैं
“दुःख और दुर्भाग्य के कारण”
तथा अधिक दुर्लभ जानकारी हेतु

अशोक गुप्ता “अमृतम”
www.amrutam.co.in

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