सुहागिनों का महान पर्व– करवाचौथ
जाने इस लेख में…
● करवाचौथ व्रत के १३ फायदे
● करवाचौथ की कहानी और महत्व
● किसकी पूजा से होता है चमत्कार
● किस विधि-विधान से करें पूजा
“उत्सव प्रियः मानवा:’।
(महाकवि कालिदास)
अर्थात- स्वभाव से ही मनुष्य उत्सव-प्रिय है,
पर्व हमारे जीवन में उत्साह, उल्लास व उमंग की पूर्ति करते हैं।
भरोसे का कारवां है -करवा चौथ
करवा चौथ का व्रत केवल सुहागिन महिलाएं ही रखती है। प्रातःकाल से रात्रि में चन्द्र दर्शन तक पतिव्रता स्त्रियां बिना अन्न और निर्जल रहकर इस व्रत का पारण करती हैं।
इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं।
सरगी किसे कहते हैं इसका महत्व….
सरगी में उपवास का कुछ खाने-पीने, फलाहार का सामान जैसे-मिठाई, फल एवं सेवइयां आदि होती है। यह सब पति की माँ यानि सास अपनी बहु को देती है। इसका सेवन सुहागिन स्त्री करवाचौथ के दिन सूर्योदय अर्थात सूर्य निकलने से पहले उपयोग करती हैं।
व्रत के दिन संकल्प जरूर लेवें-
व्रतराज एवं कथा समुच्चय नामक
पुस्तकों के अनुसार
करवा चौथ व्रत रखने वाली सुहागिन को प्रात:काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर इस व्रत का आरम्भ करना चाहिए।
सङ्कल्प मन्त्र: इस प्रकार है
मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये कर्क चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
इस मन्त्र का अर्थ-
हे भोलेनाथ! मुझे-मेरे परिवार को सुख-सौभाग्य, समृद्धि देकर कृतार्थ करें। मेरे पुत्र-पौत्रादि स्वस्थ्य रहें। स्थिर श्री अर्थात लक्ष्मी, बुद्धि-विवेक की दिनोदिन वृद्धि हो! इसी कामना के साथ कर्क यानि चंद्रोदय व्यापिनी व्रत का सङ्कल्प ले रही हूँ। हे चंद्रशेखर महादेव मेरे व्रत को सफल करें।
हाथ में जल, पुष्प, अक्षत और सुपारी लेकर उपरोक्त मन्त्र पढ़कर जल जमीन में छोड़ देवें।
करवा चौथ से होते हैं – १३ फायदे….
【१】करवा चौथ का व्रत पति की लंबी आयु तथा स्वथ्य जीवन के लिए रखा जाता है।
【२】इस व्रत के रखने से स्त्रियों के सौन्दर्य में वृद्धि होती है।
【३】सुंदरता बढ़ती है।
【४】नकारात्मक विचार और विकार दूर होते हैं।
【५】भाग्य-सौभाग्य साथ देता है।
【६】पूर्वकृत पापों का शमन होता है।
【७】परिवार का भटकाव दूर होता है।
【८】मन की चंचलता कम हो जाती है।
【९】क्रोध-तनाव, भय-भ्रम मिट जाता है।
【१०】महालक्षमी की कृपा बरसने लगती है।
【११】संतान को कष्ट या दुःख नहीं होता।
【१२】आत्मविश्वास में वृद्धि होने लगती है।
【१३】गरीबी या दुर्भाग्य भूलकर भी दरवाजे पर कदम नहीं रखता।
क्या अर्थ है करवा चौथ का....
करवाचौथ‘ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानी ‘मिट्टी का बरतन’ और ‘चौथ’ यानि कृष्ण पक्ष की ‘चतुर्थी तिथि’। इस त्योहार पर डबुले जैसा मिट्टी के बरतन, जिसमें आगे की तरफ़ छेद युक्त टोटी लगी होती है इसे ही करवा कहते हैं। सुहागिन महिलाओं के लिए करवे का विशेष महत्व माना गया है।
वामन पुराण की एक कथा के अनुसार
सबसे पहले इस व्रत का अनुसरण माँ
पार्वती ने किया था। इसके अलावा बहुत
से किस्से ओर भी हैं।
करवाचौथ को करें शिव परिवार की पूजा,
तो हो जाएंगे मालामाल……
इस व्रत में भगवान शिव के चंद्रशेखर रूप की, माँ गौरी, भगवान कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान शास्त्रों में है।
प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक
करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित
महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है।
कालसर्प-पितृदोष मुक्ति का शर्तिया उपाय नीचे लिखे मन्त्रों का 1-1 माला जाप अमृतम “राहुकी तेल” के 5 दीपक जलाकर जरूर करें…
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■ श्री गणेश काटो क्लेश गणपति मन्त्र-
!!ह्रीं ॐ नमःशिवाय ह्रीं!!
■ देवी माँ के लिए-
या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता!
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः!!
अथवा
■ !!माँ शिवाय नमः शिवाय!!
■ चंद्रशेखर शिव के लिए-
!!नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय!!
■ भगवान कार्तिकेय के लिए-
कार्तिकेया महातेजा आदित्य वर दर्पिता !
शांति करोतु मे नित्यं बलं-सोख्यं च तेजसा !!
■ ॐ सोमाय नमः से चंद्रमा का पूजन कर
इस मन्त्र को एक माला अवश्य जपें….
चंद्रशेखर चंद्रशेखर चंद्रशेखर पाहिमाम्!
चंद्रशेखर चंद्रशेखर चंद्रशेखर रक्षमाम्!!
करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर चन्द्रमा को अर्पित कर दीप जलाकर एक सफेद वस्त्र पर कुछ सफेद पुष्प एवं अक्षत रखकर करवाचौथ पूजन का समापन करें।
विशेष निवेदन-
करवाचौथ की यह पूजन विधि शास्त्रमत है।और सभी सुहागन स्त्री को अवश्य करना चाहिए।
करवाचौथ का यह दुर्लभ लेख अनेक वैदिक ग्रन्थों के अनुसार तैयार किया गया है। यदि उपरोक्त विधि से करवाचौथ की पूजा एवं मन्त्र जाप करेंगे, तो
निश्चित ही यह वर्ष विशेष उन्नतिकारक होगा।
धन-धान्य, सम्पदा में वृद्धि होगी।
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चांद को अर्घ्य
करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान है।
स्त्रियां चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर ही जल-भोजन ग्रहण करती हैं।
पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे- कंघी, शीशा, सिन्दूर, चूड़ियां, रिबन व रुपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए।
जब चांद निकलता है तो सभी विवाहित स्त्रियां चांद को देखती हैं और सारी रस्में पूरी करती हैं। पूजा करने बाद वे अपना व्रत खोलती हैं और जीवन के हर मोड़ पर अपने पति का साथ देने वादा करती हैं। चंद्रदेव के साथ-साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अगर इन सभी की पूजा की जाए तो माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं।
चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए।
आधुनिक काल में करवा चौथ को पति दिवस (Husband’s Day) का भी नाम दिया गया है तथा उस रूप में भी उसे मनाया जाता है[2]
भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कही मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया। चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी
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