पिथौरागढ़ का थलकेदार स्वयं प्रकट शिंवलिंग, जो ज्योतिष से सम्बंधित है-
उत्तराखंड का पिथौरागढ़ प्राचीन तीर्थपीठ है। वहाँ बहुत से अनोखे और अदभुत शिवमंदिर हैं। हम आज आपको एक दुर्लभ शिंवलिंग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं।
शायद अभी तक थलकेदार शिवालय के बारे में कम ही सुना होगा।
गुमनाम है कोई
एक अत्यंत प्राचीन शिवमंदिर, जो हजारों वर्षों से गुमनाम है। यह शिवालय थलकेदार पहाड़ी के किनारे, पिथौरागढ़ से मात्र 17-18 km दूर स्थित हैं।
10 हजार वर्ष पुराना है यह शिंवलिंग-
अत्यंत अनोखा और आदिकालीन
थलकेदार शिवमंदिर का उल्लेख स्कन्द पुराण के चौथे खण्ड में 84000 स्वयम्भू शिवलिंगों में से एक है।
10000 साल प्राचीन यह महादेव
मंदिर समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ।
आदिकालीन धर्मपीठ के अलावा, यह शिवालय पूरे शहर का शानदार दृश्य भी प्रदान करता है।
थलकेदार मन्दिर से जुड़े सत्य-
ऐसा कहा जाता है कि परम् शिव भक्त पेशवा नाना साहब ने अंग्रेजों से बचने के लिए पंचेश्वर रास्ते से थलकेदार तक पहुंचे थे ।
उत्तराखंड के रहस्यमयी तीर्थ के मुताबिक
यहां की कहानी-किस्से अनेक हैं, जैसे-
■ यहां सप्तऋषियों ने तप किया था।
■ दशानन रावण ने “मन्त्रमहोदधि” एव रावण सहिंता नामक ग्रथ के कुछ हिस्सो की रचना यहीं की थी।
■ ऐसा भी कहा जाता है कि रावण से, भगवान शिव अमूल्य ग्रन्थ स्वयं लिखवाए थे।
■ ज्योतिष का सबसे चमत्कारी ग्रन्थ भृगु सहिंता का कुछ भाग महर्षि भृगु ने यहीं लिखा था।
■ कुछ जानकार ज्योतिष की सिद्धि के लिए यह स्थान विशेष पवित्र मानते हैं।
■ ऐसा भी कहते हैं की सिख धर्म के प्रवर्तक श्री गुरुनानक देव जी इस स्थान को खोजा था।
■ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भजन ऋषभ देव जी ने यहां भगवान शिव के दर्शन पाए थे और इन्हीं के निर्देश पर कैलाश धाम को प्रस्थान किया था।
उपरोक्त सब जानकारी स्कन्द पुराण के अलावा थलकेदार के नजदीक रहने वाले सिद्ध सन्तों, पण्डों-पुजारियों द्वारा बताई गई है।
यहाँ पहुंचना कुछ कठिन है। परिवार सहित जाना उचित नहीं है।
कैसे जाएं थलकेदार-
घने एकांत, वन-जंगलों से होते हुए पिथौरागढ़ से बराम्बे रास्ते होते हुए कथपटिया नामक गांव से होते हुए लगभग 7 किलोमीटर पदयात्रा करके बहुत ही प्राकृतिक स्वयम्भू तीर्थ “थलकेदार शिव मंदिर” में जा सकते है।
थलकेदार शिवालय से करीब 1 km किमी की दुरी तक बेहतरीन हिम प्रपातों पर्वतों को देख सकते हैं।
तीर्थ यात्रियों से विशेष निवेदन–
पिथौरागढ़ जिले में लगभग 108 से अधिक सिद्ध तीर्थ और शिवालय हैं, इनकी यात्रा के लिए कभी अकेले 12 से 15 दिन का समय निकालें।
तीर्थयात्रियों द्वारा बहुत समय से यह गलती की जा रही है कि वे एक बार में ही 7 से 10 दिन के अंदर छोटे चारो धाम की यात्रा करते हैं, जो अनुचित है। एक धाम के आसपास इतने सिद्ध स्थल हैं कि उनके दर्शन में कम से कम 10 या 12 दिन का समय लग सकता है।
हर प्रश्न, भय-भ्रम का उत्तर उत्तराखंड में है यदि आप शान्तिपूर्ण तरीके से इस क्षेत्र की यात्रा करें।
प्रयास और प्रवास से पाएं सफलता
उत्तराखंड को परखने, देखने, समझने में एक जीवन भी कम प्रतीत होगा, यदि आराम से यात्रा करें। एक बात ओर याद रखे की यहां भ्रमण का आनन्द कम उम्र में ही है। अधिक उम्र वालों को जल्दी थकावट हो सकती है। क्यों की यहां के बहुत से दुर्लभ मन्दिर बहुत चढ़ाई पर हैं, जहां परम आनंद की अनुभूति होती है।
शिवभक्ति में उतरने वाले को यहां हर प्रश्न का उत्तर अपने आप मिल जाता है।
पाताल भुवनेश्वर भी है अनोखा धाम
पिथौरागढ़ जिले में पाताल भुवनेश्वर गुफा के अंदर स्थित ऐसा शिवालय है, जिसे देखकर दांतों तले उंगली दवा लेंगे। यहाँ दुनिया के वैज्ञानिक आकर अचम्भित हो जाते है।
इसके अलावा
मोस्तामाणु मंदिर, माँ कामख्या देवी का देवालय, मां काली हट कालिका मंदिर, कपिलेश्वर शिंवलिंग, नकुलेश्वर शिवमंदिर तथा गुरना माता मंदिर, आदि के भी दर्शन भी कर सकते है।
अमरनाथ, केदारनाथ आदि तीर्थो की जानकारी के लिये
Amrutampatrika.com देखें
Leave a Reply