वच बूटी जाने क्या हैं! 16 चमत्कारी लाभ.

  1. वच के गुण और प्रयोग और १६ फायदे–वच वामक, कफनि:सारक, हल्लासकर, उद्वेष्ठन निरोधि, वातानुलोमक, दीपन, पाचन, मेध्य, वृष्य, कृमिघ्न एवं सुगन्धित है।
  2. वच का अधिक मात्रा में देने से यह वामक है। इसका उपयोग उन्माद, अपस्मार, अपतंत्रक, श्वास, कास, कण्ठरोग, जीर्ण अतिसार, संग्रहणी, आध्मान, शूल, मन्दज्वर, विषमज्वर, कर्णमूल प्रन्थिशोध एवं अश्मरी आदि रोगों में किया जाता है।
  3. अपस्मार, अपतन्त्रक एवं अंगघात आदि रोगों के लिये यह बहुत अच्छी औषधि है। इसके सेवन से धारणाशक्ति (मेघा) बढ़ती है। इसके लिये यच को मधु अथवा दूध के साथ अधिक दिन तक सेवन करना चाहिये।
  4. ब्राह्मी, शंखपुष्पी तथा वच तीनों समान मात्रा में लेकर इसके चूर्ण को ब्राह्मी के रस की ३ भावनाएँ देनी चाहिये। इसको अथवा सारस्थत चूर्ण को ५ से १ प्रा. मधु एवं घृत के साथ कुछ दिन लेने से उन्माद, स्मरणशक्ति का ह्रास एवं वाणी की जड़ता आदि दूर होकर बुद्धि का विकास होता है।
  5. बेहोशी दूर करने के लिये अन्य औषधियों के साथ इसका अच्छा उपयोग होता है।
  6. यह अधिक मात्रा (१ से २ प्रा.) में वामक है तथा खाँसी और वास में वमन कराने के लिये इसको नमक और गरम जल से पिलाना चाहिये। इससे बिना किसी कष्ट के कफ निकल जाता है।
  7. यह इपिकाक की अपेक्षा अधिक अच्छी औषधि है। सर्दी, गले की सूजन, खाँसी तथा बच्चों के सूक्ष्म वसनिका शोध में इसका क्वाथ बहुत उपयोगी होता है। सूखी खाँसी में इसका टुकड़ा मुख में रखने से लाभ होता है।
  8. वच में रहने वाले टॅनिन के कारण इसका उपयोग जीर्ण अतिसार एवं संग्रहणी आदि में किया जाता है। इसके सेवन से आध्मान एवं शूल दूर होता है तथा पाचन सुधरकर भूख बढ़ती है।
  9. बच्चों के लिए इसको भूनकर देना चाहिए। यह कृमि तथा पवरी में भी लाभदायक है। दंतोद्भेद के समय बच्चों को इसको चबाने को देते हैं।
  10. मलेरिया आदि विषमज्वरों में अन्य औषधियों के साथ इसके उपयोग से अधिक लाभ होता है।
  11. जयपाल के विष को दूर करने के लिए इसको भूनकर जल के साथ पिलाना चाहिये।
  12. अर्श में भांग और अजवाइन के साथ इसकी धूनी देने से दर्द दूर होता है। (७) इसका बाह्य प्रयोग अंगघात, आमवात, संधिपौड़ा, आध्मान, शूल तथा खाँसी और श्वास में उपयोगी है।
  13. मक्खी एवं दीमक आदि कीटों का नाश करने के लिए इसका उपयोग होता है। मात्रा – यामक १ से २ प्रा. अन्य गुणों के लिए २५०-५०० मि.प्रा. अधिक मात्रा में शिरःशूल होता है। दर्पनाशक– सौंफ
  14. अथ पारसीक (खुरासानी) वचाया नामानि गुणाश्चाह पारसीकवचा शुक्ला प्रोक्ता हैमवतीति सा हैमवत्युदिता तद्वद्वातं हन्ति विशेषतः ॥१०४॥
  15. खुरासानी वच के नाम तथा गुण- पारसीकवचा, शुक्लवचा और हैमवती ये नाम खुरासानी वच के हैं।
  16. खुरासानी वच-शुक्लवर्ण की (सफेद) होती है तथा गुणों में पूर्वोक्त वच के समान हो होती है किन्तु विशेष करके यह वायु को दूर करने वाली होती है १०४॥

Amrutam अमृतम पत्रिका, ग्वालियर

  • वच या वचा के बारे में आयुर्वेद के शास्त्रों में संस्कृत का एक श्लोक में लिखा है कि-
  • वक्ति, वक्तुं प्रेरयतीति, वाकुशक्ति वर्धयतीत्यर्थः।
  • अर्थात-वच से वाक्शक्ति की वृद्धि होती है। वाणी धुँधही के लिए यह सर्वश्रेष्ठ ओषधि है।

वच के अनेकों नामों से पुकारा जाता है-

  • हि०-वच, घोरवच, घोड़बच ब०-वच म०-वेखण्ड | ते०-वासा, वस ग०-वज, घोड़ावज । क० बजे । ता०-वशाम्बु । मला०-व्वयम्पु । गोमा० देखण्ड। पं०-बरि बोज फा०-सोसन जर्द, अगरि तुर्की। अ०-उदल बुज, अकरुन, बज, विज। यू० अकुरुन् । अॅ०-Sweet Flag (स्वीट फ्लॅग)। (ले० – Acorus calamus Linn (एकोरस् कॅलॅमस्) Fam. Araceae ( एरेसी)।
  • वच का उत्पत्ति स्थान….एशिया खण्ड का मध्य भाग तथा पूर्वी यूरोप वच का उत्पत्ति स्थान माना जाता है। मणीपुर, नाना पहाड़, काश्मीर, सिरमूर और उत्तर प्रदेश के कितने ही देशों के दलदल और सजल स्थान में यह उत्पन्न होती है।
  • यह गुल्म जाति की वनौषधि ५-१ मी. ऊँची होती है। इसकी जड़-अन्य पौधों को जड़ की तरह सीधी नहीं रहती बल्कि बहुत सी जटा के सदृश जड़ की शाखायें चारों ओर फैली हुई रहती हैं और इसको मुटाई मध्यमा उँगली के समान होती है।
  • प्रत्येक गाँठ के चारों ओर सघन रोयें से होते हैं। इसके पत्ते-लम्बे, पतले और तलवार के समान रहते हैं। मंजरियाँ-सघन, विदण्डिक, ५-१० से.मी.. लम्बी लम्ब गोल और १५-४५ से.मी. लम्बे पत्रकोशों से ढकी रहती है। वच के पौधों के सर्वाङ्ग में गन्ध आती है और इसकी जड़ में यह अत्यधिक होती है।
  • मूलस्तम्भ तथा राइजोम (Rhizome) को टुकड़े-टुकड़े कर बाजार में बेचते हैं। ये भूरे रङ्ग के और सुगन्धित होते हैं जिनके निचले हिस्से पर मूल के गोल निशान रहते हैं तथा ऊपर के भाग में टूटे हुये पत्र के तिकोन निशान होते हैं जो राइजोम को घेरे रहते हैं।
  • बाजार में वच के नाम से प्रायः कुलिजन (Alpinia galanga) की जड़ बेची जाती है। इसीलिये जहाँ वचा (Acorus calamus) की आवश्यकता हो वहाँ पोरवच नाम से हो औषधि खरीदनी चाहिये। वच के स्थान पर आंतरिक प्रयोग में बालवच का प्रयोग भी शास्त्रोक्त नहीं है न उचित ही है।
    • रसायनिक संगठन—इसमें एक सुगन्धित उड़नशील पीले रङ्ग का तैल १.५-३.५%, एकोरिन (Acorin) नामक मधु के समान पतला तिक्त सुगन्धित ग्लुकोसाइड, एकोरेटिन् (Acoretin) नामक राल सदृश पदार्थ, कॅलामेन (Calamene) नामक रवेदार क्षाराम तथा स्टार्च, गोंद, टॅनिन् एवं कॅल्शियम् ऑक्सॅलेट (Calcium oxalate) आदि पदार्थ रहते हैं। इसके उड़नशील तैल में अंसारिल् ऑल्डिहाइड् (Asaryl-aldehyde), अॅल्फापिनिन (a-pinene) एवं कैफीन् (Camphene) आदि पदार्थ रहते हैं।

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