“पापी पेट“ की निरन्तर भक्षण-प्रक्रिया
की तुष्टि के लिए निरन्तरता के संघर्ष
ही सार्थक हो सकते हैं।
काम बंद, तो काम खत्म…भूख ही हमसे काम करने पर मजबूर करती है
■ भूख की तुष्टि हो जाये अथवा वह शेष
ही न रहे तो श्रम को विराम मिल जाएगा।
और यदि….
■■ श्रम-परिश्रम को विराम मिला तो
सन्सार में प्रगति के सभी सम्भव साध्य
केंद्र बन्द हो जाएंगे।
■■■ उन्नति, विकास की गति रुक जाएगी
और समूचा विश्व मात्र कचड़ा घर
रह जायेगा।
■■■■ भूख ने ही जीने का पहाड़ा लिखा है। बड़े-बड़े पहाड़ लांघना, हाड़-मांस
गलाना, ये सब भूख की देन है।
● भूख के कारण ही इंसान ने विकास
के क्रम खोजे हैं।
●● भूख ने ही मनुष्य को मनुष्येतर
बनाकर ईश्वरत्व तक पहुंचाया है।
●●● भूख ने ही प्रथ्वी से ऊपर उठकर
अंतरिक्ष के महाद्वार तक खोलने की
क्षमता दी है।
हमारा तन-मन आरोग्य मन्दिर है….
मानव शरीर विकासमान अमरबेल है।
विकास की गति, तभी रुकती है,
जब आरोग्य के मंदिर का दीपक
क्षीण होकर…. रोग का धुँआ छोड़ने
लगता है।
जीवन भर शरीर में रोग का धुँआ
नहीं होना चाहिए, आयुर्वेद शास्त्र…
चरक सहिंता
भेषज्यरत्नावली
आरोग्य शास्त्र आदि
ग्रन्थों में इसे ही स्वस्थ्य शरीर की
संज्ञा दी गई है।
स्वस्थ्य शरीर की ऊर्जा अत्यंत
वेगवती होती है…
जीवन में सफलता, सुख, सतत प्रयास
तभी फलीभूत होते हैं…..जब शरीर स्वस्थ्य हो।
अतः इतने भूखे भी न रहें कि…
काम न कर सकें
और
इतना काम भी न करें कि…
भूख मिटाने का समय ही न मिले।
जीने के लिए खाना बहुत जरूरी है, पर
खाने के लिए जीना वेवकूफी है….
आयुर्वेद, धर्म, ज्योतिष,
कालसर्प-पितृदोष, राहु-केतु, शनि
के रहस्यों को जानने के लिये
अमृतमपत्रिका पढ़ते रहें….
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