लक्ष्मीजी की वास्तविक और वैज्ञानिक कहानी क्या है

अमृतमपत्रिका
के इस दीपावली श्रृंखला ब्लॉग में
बहुत ही रहस्य देने का प्रयत्न किया है,
जिसे शायद आज तक किसी ने न
पढ़ी हों। यह सब जानकारी पिछले
40 वर्षों के अध्ययन,-अनुसंधान
और प्रवास के संकलन है।
अमृतमपत्रिका के इस लेख को लिखने
में 300 से अधिक प्राचीन पुस्तकों,
ग्रन्थ-पुराण, वेद-भाष्य-उपनिषद, सहिंता, आयुर्वेदिक तथा ब्राह्मण ग्रन्थ आदि का सहारा लिया है….
■  कैसे बने अरबपति और खरबपति 
■ √ मन्त्र जाप करते समय शरीर के किस हिस्से में एकत्रित यानी स्टोर करने से जल्दी सफलता मिलती है।
अगले लेख में यह भी जाने….
महालक्ष्मी के रहस्य…
कहा गया है-
हरि कथा-हरि कथा अनन्ता…
ईश्वर की लीला का पार आज तक कोई 
जान ही नहीं पाया इसलिए थक-हार कर
ऋषियों को भी कहना पड़ा कि-
तेरी लीला का न पाया, कोई पार
कि लीला शिव की, ‘शिव’ ही जाने…
 
अखण्ड वर्षों से तपस्या में तल्लीन तपस्वी
भी परेशान हो, कह उठते हैं—
ये शिव-शम्भू की लीला!
नहीं जाने गुरु और चेला!!
 
वैसे तो शास्त्रों में स्वस्थ्य शरीर को सबसे
बड़ी सम्पदा कहा गया है। जो निरोग है
वही लक्ष्मीपति है। स्वस्थ्य शरीर वाले के 100 साथी होते हैं।
आत्मा सो परमात्मा
वैदिक ग्रंथो के मुताबिक निरोग तन में अच्छे मन और पवित्र आत्मा का वास होता है।
जैसे-जैसे हम नकारात्मक विचारों यानि निगेटिव थिंकिंग से घिरते जाते हैं, वैसे-वैसे हम रोग पीड़ित हो जाते है। शास्त्र कहते हैं- स्वस्थ्य तन-मन एवं आत्मा में परमात्मा
रहता है।
पंचभूत की निर्मल काया
काय को तूने जटिल बनाया…
हमारे शरीर में ईश्वर का वास है, क्योंकि इस काया को पंचतत्व से निर्मित माना है।
‘आत्मा सो परमात्मा’ का मतलब यही है कि हमारी आत्मा, परमात्मा का स्वरूप या अंश है।
जब कभी गलत कर्मो-कुकर्मों या पाप के कारण आत्मा में मलिनता आने लगती है, जिससे पंचतत्व क्षीण होकर मनोबल गिरने लगता है।
प्राणी अवसादग्रस्त होकर अनेक विकारों
से घिर जाता है।
चरक सहिंता के अनुसार सुख-दुःख 
दोनों का भोक्ता स्थान शरीर है। 
 
गरीबों के मसीहा है-शिव…
“त्रिकालदर्शी रहस्य तन्त्र” के अनुसार
गरीब वे नहीं है, जो धन से हीन हैं,
अपितु जिसने शिव की सौगात को नहीं
सम्भाल पाया, वह गरीब हैं।
इसलिए सृष्टि निर्माण से आज तक
हमारे मुनि-महर्षियों ने तन-मन और चित्त-आत्मा को प्रसन्न रखने के लिए
शिव-उपासना हेतु प्रेरित किया है।
एक अघोरी सन्त के गणित से-
एक अंगूंठा, पाँच अंगुलियां,
सब झूठा सत्य नाम है शंकर !
वृक्ष में बीज, बीज में बूटा,
हर कंकर में बसा है शंकर !!
इसलिए हमेशा खुश रहने के लिए
हर-हर-हर शंकर जपते रहो।
◆ श्रीगणेश रहस्योउपनिषद,
◆ श्रीसूक्त तन्त्र एवं राहु रहस्य
के हिसाब से देवताओं-दैत्यों और नाग यानि राहुग्रह के गणित, वैज्ञानिक अनुसंधान तथा
विशेष प्रयास के चलते समुद्र मंथन
से हकीकत में एक स्वर्ण खदान
और हीरे-जवाहरात के मिलने का प्रसंग है।
समुद्र से भगवान श्रीहरि को लक्ष्मी मिली थी, यह एक अलंकारिक कहानी है।
नमस्तुभ्यं भूदेवी नमस्तस्यै..
 
आज भी समुद्र एवं भूदेवी की कोख यानि जमीन में अरबों-खरबों का सोना-चांदी
का खजाना दबा पड़ा है। राहु जैसे महापरिश्रमी वैज्ञानिक इसे खोज कर
जिसे दे देते  हैं वही विष्णुस्वरुप बन जाते हैं।
अघोरविज्ञान के मुताबिक जिसके पास लक्ष्मी है या अथाह धन सम्पदा का स्वामी है, वही विष्णु का दूसरा रूप है।
हिरण्यकश्यप की कहानी….
 
हिरण्य का अर्थ है स्वर्ण और
कश्यप कहते हैं अविष्कारक वैज्ञानिक को। सतयुग या सृष्टि में सर्वप्रथम स्वर्ण-सोने की खोज करने के कारण प्रह्लाद के पिता को
हिरण्यकश्यप कहते थे। ये महादेव के
परम भक्तों में से एक हैं।
शिव-शिष्यों की श्रृंखला
ब्रह्माण्ड में शिवभक्तों की श्रृंखला में
【】हिरण्यकश्यप,
【】भगवान परशुराम,
【】दशानन श्रीरावण,
【】दैत्यगुरू श्री शुक्राचार्य,
【】श्री कुबेरजी,
【】तारकासुर,
【】लोभेश्वर, (तभी शिवध्यान से साधक
का लोभ-मोह छूट पाता है।)
 ये सभी परम गुरु भक्त हुए हैं और इनके गुरु भगवान शिव ही हैं। ये सब वे हस्तियां हैं जिन्होंने भगवान शिव से गुरुमन्त्र की दीक्षा प्राप्त की थी।
ये सभी अटूट सम्पत्ति के मालिक भी बने। आज तक इन्हें कोई भूल नहीं पाया।
कुबेर को छोड़कर इन सबके अहंकार की वजह से श्रीविष्णु ने शिव के आदेश से लक्ष्मी का हनन करने हेतु छल-कपट का भी उपयोग किया।
पुराणोक्त वचन भी है की अहंकार ईश्वर का भोजन है  इससे बचना चाहिए।
 
लक्ष्मी की लालसा…
सृष्टि की उत्पत्ति से आज तक लक्ष्मीजी के लिए हर कोई ललचाये रहता है, क्योंकि लक्ष्मी ही लक्ष्यभेदन में सहायक है।
लक्ष्मी के बिना कोई भी अपने उद्देश्य की पूर्ति या प्राप्ति नहीं कर सकता।
यह वेदोक्त वचन भी है।
लाल यानि बच्चे,
काल यानि समय एवं मृत्यु तथा
कपाल यानि मस्तिष्क की ऊर्जा का
कारण लक्ष्मी है।
सारे षडयंत्र या जाल लक्ष्मी की
वजह से ही बुने जाते हैं।
लक्ष्मी होने पर “ताल से ताल”  मिलने में ज्यादा समय नहीं लगता।
 !!श्री!! सुर से सुर मिलाने में अत्यंत
सहायक होती है।
आकाश हो या पाताल सभी जगह
लक्ष्मी के लिए ही मारा-मारी है।
दुनिया में एक तरह से यह
महामारी की तरह फेल चुकी है।
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लक्ष्मी आये-आपके द्वार।
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