जाने – प्राचीन आयुर्वेद के बारे में पार्ट – 9
पिछले आर्टिकल पार्ट 8 में बताया था- अपतानक (धनुर्वात) Tetanus मांसपेशियों की तकलीफ और
सूजन,क्या है?
इस लेख पार्ट 9 में जाने –
यक्ष्मा रोग ट्यूबरक्लोसिस यानि टी बी के लक्षण ओर उपचार
यक्ष्मा क्या है ––
क्षय रोग (टी.बी) एक संक्रामक बीमारी है जो प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की वजह से होता है
एक गंभीर, संक्रामक और बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है और जानलेवा हो सकती है
यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग या एमटीबी
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है टीबी रोग।यक्ष्मा एक आम और कई मामलों में घातक वायरस या किसी संक्रमण से होने वाला रोग है। क्षय रोग से शरीर सूखने लगता है। सप्तधातु क्षीण हो जाती हैं। इम्युनिटी पॉवर कमजोर होने की वजह से यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर देता है। यह संक्रमण वायु के द्वारा फैलने वाला रोग है। टीबी संक्रमण से ग्रसित मरीज जब खांसी, छींक, या किसी अन्य प्रकार से प्रदूषित हवा के द्वारा अपना लार संचारित कर देते हैं।
यक्ष्मा या तपेदिक का फैलाव –
इस रोग से ग्रस्त मरीज द्वारा लिये जानेवाले श्वास-प्रश्वास (सांस के दौरान छोड़ी गई हवा) के कारण होता है। यक्ष्मा का केवल एक मात्र मरीज एक साल में 10 से भी अधिक लोगों को संक्रमित कर सकता है।
लक्षण
यक्ष्मा रोग या टी.बी. के साधारण लक्षण हैं:
20 से 25 दिन या इससे अधिक समय से खांसी, कभी-कभी थूक में खून आना
विशेषत: रात के समय बार-बार बुखार , फीवर या ज्वर होना, वजन कम होना भूख न लगना
क्षय रोग कितनी तरह का होता है।
क्षयरोग के जोखिम क्या हैं।
इसकी कई अवस्थाएं होती हैं।
ज्यादातर संक्रमण स्पर्शोन्मुख और भीतरी होते हैं, लेकिन दस में से एक भीतरी संक्रमण, अंततः सक्रिय रोग में बदल जाते हैं, जिनको अगर बिना इलाज किये छोड़ दिया जाये, तो ऐसे संक्रमित लोगों में से 50% से अधिक की मृत्यु हो जाती है।
आमतौर पर तपेदिक तीन तरह का होता है। जो कि पूरे शरीर को संक्रमित करता है।
क्षयरोग (टी.बी)के तीन प्रकार हैं-
【1】फुफ्सीय क्षय रोग टी.बी,
फुफ्सीय टी.बी रोग- यह अंदरूनी रूप सबढ़ता है, जब स्थिति रोग बहुत जटिल हो जाती है तभी फुफ्सीय क्षय रोग के लक्षण पता लगते हैं।
यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। इसके लक्षण हैं – जैसे सांस तेज चलना, सिरदर्द होना या नाड़ी तेज चलना इत्यादि तकलीफें होने लगती हैं।
【2】 पेट का क्षय रोग- उदर में गांठ होना इस रोग का पहला लक्षण है।पेट में होने वाली टीबी को जान पाना और भी मुश्किल होता है, क्योंकि जब तक पेट के टी.बी के बारे में पता चलता है, तब, तक उदर में गांठें पड़ चुकी होती हैं।
पेट में हल्की सी सूजन होना। वास्तव में पेट के टी.बी के दौरान मरीज को सामान्य रूप से होने वाली पेट की समस्याएं ही होती हैं जैसे 【●】बार-बार दस्त लगना,
【●】पेट साफ न होना,
【●】खाने की इच्छा न होना,
【●】उबकाई से मन रहना,
【●】पेट में दर्द होना, इत्यादि।
【3】हड्डियों की टीबी
हड्डी क्षय रोग- हड्डियों को कमजोर कर लचीलापन खत्म कर देता है। हड्डी का क्षय रोग होने पर इसकी पहचान आसानी से की जा सकती हैं क्योंकि हड्डी में होने वाले क्षय रोग के कारण हडि्डयों में घाव होने लगते हैं जो कि इलाज के बाद भी आराम से ठीक नहीं होता। शरीर में जगह-जगह फोड़े-फुंसियां होना भी हड्डी क्षय रोग का लक्षण हैं। इसके अलावा हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं और मांसपेशियों में भी बहुत अवरोध होने लगता है।
तीनों ही क्षयरोग ट्यूबरक्लोसिस के प्रकारों के कारण, पहचान और लक्षण अलग-अलग होते हैं। इसके साथ ही इन तीनों का उपचार भी अलग-अलग तरह से किया जाता है।
क्षयरोग का आयुर्वेद में स्थाई इलाज —
【1】फुफ्सीय टी.बी की चिकित्सा —
अमृतम गोल्ड माल्ट 1 से 2 चम्मच
3 माह तक दूध या पानी से लेवें
【2】पेट के टी.बी का इलाज —
जिओ माल्ट 1 से 2 चम्मच 3 माह तक दूध या पानी से लेवें
【3】हड्डी का टी.बी. का उपचार ––
ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल दिन में 2 बार गुनगुने दूध से 3 माह तक लेवे। साथ में
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट सेवन करें।
अगले आर्टिकल पार्ट 10 में
संधिशूल (जॉइन्ट पैन) औऱ हड्डियों में दर्द (अस्थिशूल) आदि रोग के बारे में लक्षण व उपचार जाने
अमृतम द्वारा निर्मित 3 तरह की क्षय रोग नाशक ओषधियों की सम्पूर्ण जानकारी
भोजन पचाने में मददगार
पेट की तकलीफों का
100% आयुर्वेदिक इलाज
खाना, खाने का मतलब केवल पेट भरने से नहीं होता। भोजन अच्छी तरह से हजम हो जाए। किसी तरह का कोई अपचन न हो, पेट में कोई तकलीफ न हो यह बहुत जरूरी है। अन्यथा
पेट की टीबी हो सकती है। पाचनतंत्र (मेटाबोलिज्म)
की कमजोरी से उदर में गांठें पड़ जाती हैं।
https://www.amrutam.co.in/naturalayurvedictreatmentforstomachissues/
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