लौह भस्म खून बढ़ाने में चमत्कारी है। 54 फायदे जानकर हो जायेंगे हैरान…

लौह भस्म से निर्मित एक आयुर्वेदिक अवलेह अमृतम गोल्ड माल्ट का सेवन करने से अनेकानेक बीमारियां दूर हो जाती हैं। परिवार के सभी सदस्य इसे नियमित लेने से सभी रोग रहित रहते हैं.

लौह भस्म के ५४ फायदे ..

रोगानुसार अनुपान, गुण और उपयोग शरीर पुष्टि के लिए लौह भस्म 2 रत्ती, बड़ी पीपल का चूर्ण 4 रत्ती मधु के साथ देना चाहिए।

कफ रोग नाश के लिए…लौह भस्म 2 रत्ती, प्रवाल भस्म 1 रत्ती, पीपल चूर्ण 2 रत्ती मधु पंचामृत शहद के साथ दें।

रक्त-पित्त में लौह भस्म 1 रत्ती, प्रवाल पिष्टी 1 रत्ती, मिश्री 1 माशा मिला दूर्वा – स्वरस के साथ दें।

बल वृद्धि, शक्ति के लिए -लौह भस्म 2 रत्ती, बंग भस्म 1 रत्ती, असगन्ध का चूर्ण 4 रत्ती मक्खन या मलाई के साथ गरम दूध के साथ दें।

पाण्डु रोग में लौह भस्म 1 रत्ती, अभ्रक भस्म 1 रत्ती में मिला पुनर्नवा रस के साथ दें।

प्रमेह में लौह भस्म 1 रत्ती, नाग भस्म 1 रत्ती, हल्दी चूर्ण 4 रत्ती मधु के साथ दें।

मूत्रकृच्छ्र और मूत्राघात में लौह भस्म 1 रत्ती, शिलाजीत सूर्यतापी 4 रत्ती में मिला धारोष्ण दूध के साथ दें।

वात ज्वर में लौह भस्म 1 रत्ती, अदरक का रस और शहद के साथ मिलाकर दें।

सन्निपात ज्वर में लौह भस्म 2 रत्ती अदरक का रस और काली मिर्च का चूर्ण 3 रत्ती में मिलाकर दें।

पित्त ज्वर में लौह भस्म 1 रत्ती, लौंग का चूर्ण 4 रत्ती, मधु के साथ दें।

वायु रोगों में लौह भस्म 1 रत्ती, सोंठ को चूर्ण 4 रत्ती, निर्गुण्डी रस में मधु मिला कार दें।

पैत्तिक रोगों में लौह भस्म 1 रत्ती, मिश्री 3 माशे घी के साथ दें अथवा दाड़िमावलेह से दें।

कफज रोगों में लौह भस्म 2 रत्ती, पीपल चूर्ण 4 रत्ती मधु के साथ दें।

जोड़ों के दर्द, सन्धि रोगों में लौह भस्म 1 रत्ती, दालचीनी, छोटी इलायची और तेजपात का चूर्ण प्रत्येक 2-2 रत्ती मधु के साथ दें।

नई पुरानी खाँसी में लौह भस्म 2 रत्ती, प्रवाल भस्म 1 रत्ती, वासा- रस में मधु मिलाकर दें।

मन्दाग्नि में लौह भस्म 2 रत्ती, दाख और पीपल चूर्ण के साथ दें।

जीर्ण ज्वर में लौह भस्म 1 रत्ती, यशद भस्म आधी रत्ती, पीपल चूर्ण 4 रत्ती में मिलाकर मधु के साथ दें।

श्वास रोग में लौह भस्म 1 रत्ती को अभ्रक भस्म 1 रत्ती में मिलाकर घी के साथ दें।

कामला रोग पीलिया में लौह भस्म 1 रत्ती, स्वर्णमाक्षिक भस्म 1 रत्ती, प्रवालपिष्टी 1 रत्ती, हर्रे और हल्दी का चूर्ण 3-3 रत्ती मिलाकर मधु पंचामृत शहद के साथ दें।

पक्तिशूल में लौह भस्म 1 रत्ती, त्रिफला चूर्ण 2 माशे में मिला घी के साथ दें।

गुण लाभ, उपयोग लौह भस्म-पाण्डु, रक्त-विकार, उन्माद, धातु-दौर्बल्य, संग्रहणी, मन्दाग्नि, प्रदर, मेदोवृद्धि, कृमि, कुष्ठ, उदर रोग, आमविकार, क्षय, ज्वर, हृदयरोग, बवासीर, रक्तपित्त, अम्लपित्त, शोथ आदि अनेक रोगों में अत्यन्त गुणदायक है।

यह रसायन और वाजीकरण है। लौह भस्म मनुष्य की कमजोरी दूर कर शरीर को हृष्टपुष्ट बना देती है। भारतीय रसायनों में लौह भस्म का प्रयोग सबसे प्रधान है। यह रक्त को बढ़ाने और शुद्ध करने के लिए सर्वप्रसिद्ध औषध है।

हमारे आयुर्वेद के प्राचीन वैद्यक ग्रन्थों में और आधुनिक (आजकल के) अंग्रेजी वैद्यक में प्रायः सब रोगों की औषध योजना में लौह का उपयोग किया जाता है।

अनुपान की भिन्नता से यह सब रोगों का नाश करती है। फिर भी कफयुक्त खाँसी, दमा, जीर्ण-ज्वर और पाचन क्रिया बिगड़ने से उत्पन्न हुई मन्दाग्नि, अरुचि, मलबद्धता, कृमि आदि रोगों में यह विशेष फायदा करती है।

पौष्टिक, शक्तिवर्द्धक, कान्तिदायक और कामोत्तेजक आदि गुण भी इसमें विशेष रूप से हैं।

लौह भस्म किसी भी प्रकार का हो, सेवन करने से पूर्व यदि दस्त साफ आता हो, तो अच्छा है, नहीं तो इस भस्म के सेवन-काल में रात को सोते समय अमृतम त्रिफला चूर्ण में मिश्री मिलाकर दूध के साथ सेवन करें। इससे दस्त साफ होता रहता है और इसकी गर्मी भी नहीं बढ़ने पाती। क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि लौह भस्म के सेवन-काल में दस्त कब्ज हो जाता है, जिससे गर्मी भी बढ़ जाती है। इसी को दूर करने के लिए त्रिफला और दूध का सेवन किया जाता है।

लौह भस्म रक्ताणुवर्द्धक है और पाण्डु रोग (एनीमिया) नाशक है। पाण्डु चाहे किसी भी कारण से उत्पन्न हुआ हो, रक्ताणुओं की कमी होकर श्वेत कणों की वृद्धि हो जाना ही “पाण्डु रोग” कहलाता है।

कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि कुछ रोज तक शरीर के ऊपरी भाग में फीकापन दिखाई पड़ता है और बाद में पुनः लाली छा जाती है, किन्तु यह वास्तविक पाण्डु रोग नहीं है।

वास्तविक पाण्डु रोग तो वही है, जिसमें श्वेत कणों के प्रभाव से शरीर पर बराबर फीकापन बना रहे इत्यादि लक्षण होने पर पाण्डु रोग समझना चाहिए और ऐसे पाण्डु रोग में लौह भस्म से बहुत फायदा होता है।

मरीज की चमड़ी रूक्ष (सूखी) हो जाय, रंजक पित्त (जिसके द्वारा रक्त में लाली बनी रहती है) का लौह भस्म के सेवन से नाश हो जाता है।

पाण्डु रोग में यकृत् (लीवर) की क्रिया बिगड़ने पर रंजक पित्त अच्छी तरह अपना कार्य नहीं कर पाता, वही पित्त रुधिर में मिलकर उसके स्वाभाविक रंग को बदल देता है। इसी को ‘पीलिया’ कहते हैं। ऐसी अवस्था में लौह भस्म 2 रत्ती, अभ्रक भस्म 1 रत्ती, कुटकी चूर्ण 1 माशा अथवा कुटकी का क्वाथ बना मधु के साथ देने से आशातीत लाभ होता है।

कृमिजन्य पाण्डु रोग में लौह भस्म 1 रत्ती, वायविडंग चूर्ण 1 माशा, कबीला 3 रत्ती गुड़ में मिलाकर देने से फायदा होता है।

पित्त विकार में नेत्र लाल हो जाना, अधिक स्वेद आना, बेचैनी होना आदि विकारों में लौह भस्म 2 रत्ती, दालचीनी, इलायची, तेजपात – इन सबका चूर्ण 1-1 माशा मिला घी और मिश्री के साथ देना चाहिए।

उन्माद रोग में लौह भस्म 1 रत्ती, सर्पागन्धा चूर्ण 1 माशा, ब्राह्मी रस और मधु में मिलाकर सेवन करें, ऊपर से सारस्वतारिष्ट 1 |तोला बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दें।

अश्मरी पथरी रोग में लौह भस्म 1 रत्ती, हजरुल्यहूद भस्म 1 रत्ती के साथ मिला मूली के रस से दें।

धातुदौर्बल्य में लौह भस्म 1 रत्ती, प्रवाल भस्म 2 रत्ती, अश्वगंधा चूर्ण 1 माशा में मिला गो-दुग्ध के साथ दें।

संग्रहणी ibs में अन्न का परिपाक ठीक-ठीक न होने से जठराग्नि निर्बल हो जाने के कारण अपचित दस्त होते हों, तो लौह भस्म 1 रत्ती, अभ्रक भस्म 1 रत्ती, भुना हुआ जीरा का चूर्ण 1 माशा, मधु के साथ देने से फायदा होता है।

मन्दाग्नि (भूख कम लगने) में लौह भस्म 2 रत्ती, त्रिकटु (सोंठ, पीपल, मिर्च) का चूर्ण 1 माशा में मिलाकर मधु के साथ देने से मन्दाग्नि दूर हो जाती है।

रक्त प्रदर सोमरोग, पीसीओडी में लौह भस्म 1 रत्ती, त्रिवंग भस्म 1 रत्ती, छोटी इलायची चूर्ण 4 रत्ती, मिश्री 1 माशे में मिला मधु के साथ दें। ऊपर से अशोकारिष्ट या पत्रांगासव 2 तोला बराबर जल मिलाकर पिलावें ।

श्वेत प्रदर में लौह भस्म 1 रत्ती, गोदन्ती भस्म 2 रत्ती, रालचूर्ण 4 रत्ती के साथ पत्राङ्गासव या लोधरासव के साथ दें।

मेदो वृद्धि में लौह भस्म 2 रत्ती, त्रिफला चूर्ण 3 माशे में मिला मधु के साथ देने से मेद (चर्बी) यानि मोटापे की वृद्धि रुक जाती है।

रक्तचाप की कमी (बीपी लो) में लौह भस्म शतपुटी 1 रत्ती को सिद्ध मकरध्वज आधी रत्ती के साथ घोंटकर मधु में मिलाकर देने से उत्तम लाभ होता है।

शूल रोग में लौह भस्म 2 रत्ती, शंखभस्म 2 रत्ती को नारियल जल के साथ दें।

रक्ताल्पता जन्य रजोरोध में लौहभस्म 1 रत्ती, कसीस भस्म 1 रत्ती, शुद्ध टंकण 2 रत्ती, एलुआ चूर्ण 2 रत्ती के साथ पुराने गुड़ में मिलाकर दें ।

मण्डल कुष्ठ, पामा (खुजली) आदि रक्त-विकार में लौह भस्म 1 रत्ती, नीम के पंचांग का चूर्ण 1 माशा, आँवला चूर्ण 1 माशा में मिला अर्क. उशबा के साथ दें। ऊपर से खदिरारिष्ट या सारिवाद्यासव 2 तोला बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद दें।

पेट के दर्द में लौह भस्म 4 रत्ती, गो-मूत्र द्वारा पकाई गयी छोटी हरड़ का चूर्ण 1 माशा और गुड़ मिलाकर गर्म पानी के साथ दें।

कमजोरी, शक्तिहीनता में रोगोन्मुक्त होने के बाद शरीर अत्यन्त निर्बल हो जाता है। साथ ही रस-रक्तादि धातु भी निर्बल रहते हैं। इस शक्तिहीनता को दूर करने के लिए लौह भस्म 2 रत्ती, अमृतम च्यवनप्राश अवलेह 1 तोला में मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से शीघ्र ही लाभ होता है।

पुराने ज्वर, टायफाइड, मोतीझरा, कोरोना संक्रमण, मलेरिया में लौह भस्म 2 रत्ती, अभ्रक भस्म 1 रत्ती, पीपल चूर्ण 4 रत्ती में मिलाकर मधु के साथ देने से लाभ होता है।

हृदय की कमजोरी में लौह भस्म 1 रत्ती, अकीक भस्म 1 रत्ती, मधु में मिलाकर दें। बाद में अर्जुनारिष्ट 211 तोला, बराबर पानी मिलाकर भोजन के एक घण्टा बाद दें।

रक्तार्श (खूनी बवासीर) में अधिक रक्त गिर जाने से शोथ और पाण्डु के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। ऐसी दशा में लौह भस्म 2 रत्ती, नागकेशर चूर्ण 1 माशा, मिश्री मिला मक्खन के साथ देने से तत्काल लाभ होते देखा गया है।

रक्तपित्त में लौह भस्म 1 रत्ती, प्रवाल पिष्टी 1 रत्ती सितोपलादि चूर्ण में मिला वासा-रस और मधु के साथ देने से शीघ्र लाभ होता है। आँवला-मुरब्बा की चाशनी अथवा दाहिमावलेह से देने पर भी उत्तम लाभ होता है।

शोथ रोग में लौह भस्म 2 रत्ती, पुनर्नवा चूर्ण 1 माशे में मिला गो-मूत्र से दें।

यकृत्, प्लीहा-वृद्धि पर लौह भस्म 1 रत्ती, ताम्र भस्म 1 रत्ती मधु के साथ, भोजनोत्तर लौहासव 2 ।। तोला बराबर जल मिलाकर देने से अच्छा फायदा होता है।

नेत्र रोगों में लौह भस्म 1 रत्ती, त्रिफला चूर्ण 6 रत्ती और मुलेठी चूर्ण 2 रत्ती के साथ महात्रिफला घृत में मिलाकर दें।

पुनर्जागरण की और आयुर्वेद….आजकल भारत वासियों आयुर्वेद की तरफ तेजी से रुझान बढ़ रहा है। यह बहुत अच्छी बात है। लौह भस्म के बारे में शायद ही बहुत अल्प लोग जानते हैं

ओल्ड आयुर्वेद अब गोल्ड बनकर उभरा है। दशकों की उपेक्षा के बाद, प्राचीन भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद उपचार प्रणाली स्वास्थ्य सेवा की मुख्यधारा में अपनी जगह लेने के लिए तैयार है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने, तो करीब 152 देशों का खूंखार कोरोना काल के बाद दुनिया के लोगों का रुझान आयुर्वेद की तरफ काफी बढ़ा है।

अमृतम पत्रिका ईमेल पर लगभग 100 से अधिक पूछे गए सवालों में 77 फीसदी सवाल रोगप्रतिरोधक क्षमता यानि इम्यूनिटी एवम खून बढ़ाने और अन्य रोगों के बारे में जानना चाहते हैं।

लौह भस्म आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ ओषधि है, जो विशेषकर रक्त वृद्धि में बहुत कारगार है। इस लेख में लौह भस्म के 53 गुणकारी लाभ प्रस्तुत हैं।

आयुर्वेद – सारसंग्रह शास्त्र के शोधन-मारण-प्रकरण अनुसार लौह भस्म अनेक प्रकार की होती है।

लोहे की कड़ाही अथवा हाँड़ी में त्रिफला क्वाथ और गो-मूत्र में 2-3 महीने रखकर गलाया हुआ लौह चूर्ण लेकर इमामदस्ते में कूटकर बारीक चलनी से छानकर त्रिफला क्वाथ की भावना देकर सराबों में भरकर सन्धि बन्द कर तीव्र अग्नि में पुट दे।

इस प्रकार सात पुट देकर अच्छी घुटाई कराकर पानी के साथ कपड़े से छानकर फिर सुखाकर, कीचड़ जैसा हो जाय इतना घी मिलाकर भट्ठी पर चढ़ाकर आँच लगावें।

कड़ाही में आँच लगने पर नीचे की आँच कम कर दें। शीतल होने पर निकाल, घुटाई करवाकर रखें। इस प्रकार काले जामुन के रंग की भस्म बनेगी। यह सादा लौह भस्म कहलाती है।

साधारण लौह भस्म की निर्माण विधि…त्रिफला के काढ़े को इतना औटावें कि कुछ गाढ़ा हो जाये। उसमें शुद्ध लोहे के चूर्ण को घोंट टिकिया बना धूप में सुखा, सराब-सम्पुट में बन्द कर गजपुट में फूंक दें। इसी तरह 4-5 पुट देने से साधारण लौह भस्म तैयार हो जाती है।

लौह भस्म शतपुटी…सादा लौह भस्म को त्रिफला क्वाथ से भावना देते हुए 100 बार गजपुट में फूँकने से लौह भस्म शतपुटी तैयार हो जाती है।

अभ्रक भस्म में लिखित विधि के अनुसार ही इसमें भी पुटों की संख्या बढ़ती जातीं है, केवल भावना इसमें त्रिफला क्वाथ की ही लगती है। यह साधारण लौह भस्म की अपेक्षा गुणों में श्रेष्ठ तथा शीघ्र प्रभावकारी होती है।

लौह भस्म सहस्त्रपुटी…लौह भस्म को त्रिफला क्वाथ की भावना देते हुए 1000 बार गजपुट में फूंकने से सहस्रपुटी लौह भस्म तैयार हो जाती है। इसमें भी अभ्रक भस्म के समान ही पुटों की संख्या बढ़ती जायेगी। भावना केवल त्रिफला क्वाथ की ही लगेगी। यह सभी प्रकार की लौह भस्मों में सर्वश्रेष्ठ और आशु लाभकारी रसायन और योगवाही है।

वक्तव्य…पुटों के विषय में रसायन शास्त्री श्री श्यामसुन्दराचार्यजी ने अपनी पुस्तक रसायनसार में पूर्वाचायों के मतों का उल्लेख किया है— उसका सारांश यह है कि 110 पुट तक देने हों, तो औषधि स्वरस या क्वाथ की भावना देकर प्रति बार पुट देना चाहिये, किन्तु जिस भस्म में सौ से अधिक अर्थात् सहस्र आदि पुट देने हों, तो औषधि – स्वरस या क्वाथ की प्रति दश भावना. देने के पश्चात् एक बार पुट देना चाहिये, यह दश पुटी समझी जायेगी। इसी क्रम से प्रति दश भावना के बाद एक पुट देते हुए 100 बार पुट देने से वे 10×100 = 1000 पुट हो जाते हैं।

फौलाद लौह भस्म ( तीक्ष्ण लौह भस्म)…शुद्ध किया हुआ असली फौलाद का बुरादा 20 तोला, संखिया सफेद 1 तोला, भीमसेनी कपूर 1।। माशे— सबको एकत्र कर ग्वारपाठे के रस में 12 घंटे तक मर्दन कर छोटी-छोटी टिकिया बना धूप में सुखा मिट्टी के कुल्हड़ में बन्द कर कपड़मिट्टी करके सुखाने के बाद ५ सेर कण्डों की आँच में फूँक दें।

जब आग ठण्डी हो जाय तो कुल्हड़ में से भस्म को निकाल लें, फिर दूसरी बार इस भस्म को हरताल 1 तोला और भीमसेनी कपूर 1 माशे मिलाकर में फूँक में रख गजपुट घीकुमारी के रस के साथ घोंटकर टिकिया बना, सुखा, सराब- सम्पुट दें।

स्वाङ्ग – शीतल होने पर भस्म निकाल लें। इसी तरह तीसरी बार 1 तोला आँवलासार गन्धक और 1।। माशे भीमसेनी कपूर के साथ और चौथी बार 1 तोला पारा और 1।। माशे भीमसेनी कपूर मिला घीकुमारी के रस में मर्दन कर टिकिया बना मिट्टी के कुल्हड़ (कुज्जे) में बन्द कर गजपुट में आँच दें। इस तरह 4 पुट दें।

इसके बाद उपरोक्त दवाओं के साथ पुनः उपरोक्त क्रम से प्रत्येक के 3-3 पुट देने से 16 पुट हो जाएँगे।

फिर भस्म को लोहे की कड़ाही में डाल, समान भाग बीरबहूटी मिलाकर नीचे मन्द आँच दें। जब सब बीरबहूटी जल जाय, तवे भस्म को किसी तवे से ढक कर 3 घंटे तक खूब आँच देकर छोड़ दें। स्वांग – शीतल होने पर भस्म को निकाल सुरक्षित रख लें। तेज – (चिकित्सा चंद्रोदय)

वक्तव्य…उपरोक्त भस्म के सेवन से अतुल बल वीर्य और कान्ति की वृद्धि होती है। अतः हमारे यहाँ अतुल शक्तिदाता योग नाम से भी इसका प्रयोग किया जाता है।

सेवन विधि लौह भस्म की मात्रा 4 चावल के बराबर या 1 रत्ती तक है। एक मात्रा भस्म लेकर मक्खन या मलाई के साथ खाकर ऊपर से मिश्री मिला हुआ गोदुग्ध पीना चाहिये।

पथ्य में अनार, सेब, अंगूर, घी, शक्कर (चीनी), हलुवा, दूध, रबड़ी, मलाई, मक्खन तरावट और पौष्टिक पदार्थ खाना चाहिये ।

परहेज या अपथ्य लाल मिर्च, तेल, खटाई, अरहर की दाल, स्त्री प्रसंगादि इस भस्म के सेवनकाल में त्याग दें।

लौह भस्म के गुण… इस भस्म के सेवन से नया रक्त बनता है । इक्कीस दिन तक खाने से चेहरा लाल-सुर्ख हो जाता है। यह भस्म अत्यन्त कामोद्दीपक है।

लौह भस्म की 6-7 मात्रा खाते ही कामवासना बलवती होने लगती है और 40 दिन में तो बहुत ही लाभ हो जाता है।

मूत्रमेह, पाण्डु और यकृत् रोगियों के लिए भी यह अक्सीर चीज है। अगर कोई भी स्त्री या पुरुष दुबलेपन का शिकार है, तो 6-7 दिन में ही आदमी का वजन 4-5 पौड तक बढ़ जाता है। अंतर पर यह मोटापा, चर्बी नहीं बढ़ाती।

नोट उपरोक्त सेवन-विधि, पथ्य, गुणादि का जो वर्णन किया गया है, वह सिर्फ फौलाद भस्म का समझना चाहिए। इसके आगे जो वर्णन किया जायेगा, वह लौह भस्म के विषय में होगा।

लौह भस्म से निर्मित आयुर्वेदिक दवाएं…अमृतम गोल्ड माल्ट लौह भस्म युक्त एक मात्र अदभुत उत्पाद है, जो खून की कमी (एनीमिया), रक्ताल्पता को दूर कर नवीन श्वेत रक्त कणों का निर्माण कर एक की वृद्धि करता है। इसे सुबह खाली पेट एक ग्लास गर्म पानी में मिलाकर चाय की तरह पीने से मोटापा, चर्बी कम करता है।

यह आँवला मुरब्बा, हरड़ मुरब्बा, गुलकन्द, अंजीर, मुनक्का, गुलाबपुष्प, स्वर्ण पत्री, अमलताश, त्रिफला, मकोय, पुर्ननवा, लौह भस्म, अभ्रक भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म आदि 28 से अधिक जड़ीबूटियों तथा रसादि भस्मों से निर्मित है।

अमृतम गोल्ड माल्ट सात दिन दूध से लेवें, तो चमत्कारिक तरीके से रोग प्रतिरोधक क्षमता में बेतहाशा वृद्धि होने लगती है। यह 7 से 10 दिन में एक ग्राम हीमोग्लोबिन बढ़ाने में सहायक है।

Amrutam Gold Malt- A Powerful Immunity Booster for All Ages.


Amrutam Gold Malt is a 100% natural jam that boosts your immunity and helps you fight various chronic diseases.

Helps in improving hemoglobin levels, balances red blood cells and very helpful in anemia.

Balances all types of doshas — Vata, Pitta and Kapha.

This ancient Ayurvedic recipe contains Anjeer, Bhui Amla and Abhrak Bhasm – ingredients that are good for your health and immunity.

आयुर्वेद ग्रंथानुसार अमृतम् गोल्ड माल्ट के ७ फायदे…

आमाशय बढ़कर उत्पन्न होने वाले अम्लपित्त रोग में यह अपने स्तम्भक और शामक तथा स्वादुगुण के कारण पित्त को अमृतम गोल्ड माल्ट नियमित कर सौम्यता स्थापित करता है।

उदर- पित्तोत्पादक अथवा रसोत्पादक पिण्ड की विकृति होने से उत्पन्न हुई विकृति में लौह अंश और वल्यत्व गुण के कारण आकुंचन (खिंचाव) तथा बल प्राप्ति होकर कार्य होता है।

अमृतम गोल्ड माल्ट लौह भस्म युक्त होने से यह शक्तिवर्द्धक है। नाक से रक्त/खून आता हो, चक्कर आते हों, कमजोरी ज्यादा मालूम पड़े, ऐसे मरीज को लोह भस्म एवम स्वर्ण माक्षिक भस्म मिश्रित यह माल्ट देने से बहुत शीघ्र फायदा होता है।

जीर्णज्वर, डेंगू फीवर, कोरोना, मलेरिया, मोतीझरा या टायफाइड में जब कि दोष धातुगत होकर धातुओं का शोषण कर रोगी को विशेष कमजोर बना देते हों, उठने-बैठने एवं जरा भी चलने-फिरने में रोगी विशेष अशक्तता अनुभव करता हो, तो अमृतम गोल्ड माल्ट देने से उत्तम लाभ होता है।

थकावट और चिन्ता के कारण या ज्वर की प्रारम्भिक अवस्था में अनिद्रा विकार हो जाय, तो इस माल्ट का उपयोग असीम गुणकारी सिद्ध होता है। यह दिमाग को बहुत आराम देकरगहरी नींद लाने में कारगर है।

देह की सम्पूर्ण वेदना तथा दर्द को शमन करता है। मृगी, अपतन्त्रक आदि आक्षेपयुक्त व्याधियों में भी इससे उत्तम उपकार होता है।

अमृतम गोल्ड माल्ट में मिलाया गया हरड़ मुरब्बा मन को प्रसन्न रखने वाला, प्यास को मिटाने वाला, गर्मी अर्थात् दाह को शान्त क वाला, श्रम अर्थात् थकावट को मिटाने वाला, दीपन- पाचन, सुमधुर और रुचिवर्द्धक है।

सेवन विधि सुबह खाली पेट और शाम भोजन पूर्व एक चम्मच माल्ट गुनगुने दूध या जल से 3 से 6 माह तक निमित सेवन करें।

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