खुद से प्रेम करो, तो खुदा हो जाओगे

जिसने खुद को पहचाना वह खुदा हो गया
 

अपनी पहचान, अपना आत्मविश्वास

हो या फिर

आत्मबल “आत्मप्रेम” से ही उपजता है।
आप जब तक खुद से प्रेम नहीं करोगे,
तब तक दुनिया तुम्हे धकायेगी,
ठुकरायेगी।
स्वयं की पहचान खो दोगे, तो फिर
क्या रखा है जीवन में।
आत्मप्रेम
सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए।
अपने को पहचानने के बाद ही दूसरे
की पहचान की जा सकती है।
अपनी पहचान से अपरिचित व्यक्ति
मनुष्य-धर्म को लज्जित करता है
■ अपनी पहचान सुरक्षा कवच है।
■ स्वार्थों के जंगल में विस्फोटकों के
बीच न शेर सुरक्षित हैं और न गौरेया
या खंजन नयन का उपादेय पक्षी।
■ आत्मप्रेम मनुष्य को अपनी आत्मा
की पहचान कराता है।
■ जीवन की चेतना
आत्मप्रेम से ही प्रस्फुटित हो सकती है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामय।
का यह पवित्र भाव आत्मप्रेम से
ही उमड़ सकता है।
■ जीवन के मूल्य आत्मप्रेम से ही उभरते हैं।
■ जो लोग खुद से प्रेम नहीं करते, वे
हताशा ओर निराशा का शिकार बनते हैं।
■ यदि आत्मप्रेमी नहीं हैं, तो हम दोषी हैं-
प्रकृति के, परमात्मा के।
■ हमारी विलुप्त चेतना,
■ हमारा समय
■ हमारी बुद्धि
■ हमारा विवेक
सब कुछ धीरे-धीरे नष्ट हो रहा है,
आत्मप्रेम के बिना।
■ रखता है, जो विश्वास,
जीता है उसके साथ,
वह आस्तिक है।
■ सच्चा आस्तिक वही है,
जो आत्मप्रेमी है।
■ अपने आप से विश्वास जिनका उठ जाता है
वह नास्तिक हैं।
■ आस्था किसी शिवालय, देवालय
या विक्रयालय में नहीं मिलती।
■ आपकी सोच ही आस्था है,
आत्महीनता से भरे विचार
आपकी अनास्था है।
■ प्रतिफल यह हुआ कि
आत्मप्रेम ही आपकी पहचान है।
■ आत्मप्रेम धर्म है: मनुष्य का,
आत्मा का, आत्मा के अभिषेक का
ओर समस्त सार्थक एवं निर्रथक
क्रिया-कलापों का।
इसी सार्थक अभिव्यक्ति के लिए
ही, तो प्रणाम करते हैं-
हम प्रकृति के इन जीवों-उपजीवों
को जी शेष ओर निःशेष के बीज
अपनी पहचान छोड़ने में कायरता का
परिचय नहीं देते।
मनुष्य को छोड़कर सभी वृक्ष हों
या पशु-पक्षी वे आत्मप्रेम की
प्रतिष्ठा के सत्य को स्वीकारते हैं।
वे मूक-बधिर होजर भी अपने
स्वामित्व की सत्ता को पहचानते हैं।
आत्मप्रेम की मौन प्रार्थना आत्मा को
झकझोर देती है।
आत्मप्रेम की शक्ति से परमात्मा भी
द्रवित हो जाता है।
बस अंतिम निवेदन
कुछ अपने बारे में सोचो।
खुद से प्यार बेशुमार करो।
प्रकृति से, परमात्मा से,
सबसे प्रेम होने लग जायेगा,
जिस दिन आप आत्मप्रेमी बन जाओगे।
आत्मप्रेम के प्रताप से,
अभ्यास से देख लेना
एक दिन अश्रुधारा झर-झर
बहने लगेगी ओर आपके
अंदर का महासागर शान्त,
पवित्र हो जाएगा।
आत्मप्रेमी बनने के बाद आपको
एहसास होगा कि
मेरा साईं मुझमें है।
साधु-संत सदा स्वयं से प्रेम
करना सीखते हैं तभी उच्च कोटि
के साधक बन पाते हैं।
कहते भी हैं कि
जिसने खुद से आरएम करना सीख
लिया, उसका तन-मन शिवालय हो गया
 
सन्त शिवानंद जी कहा करते थे
 
शिव ही बाहर,
शिव ही अंदर
शिव की रचना
सात समंदर

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