कहते हैं। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ
भावप्रकाश के गुडुच्यादी वर्ग की यह प्रसिद्ध
बूटी है।
बंगाली में- भुइ आम्ला
कन्नड़ में- किरूनिल्ले
तमिल में- नेल वुसरि
गुजराती में- भोयँ आंवली
मराठी में- भुई आमलकी
लेटिन भाषा में- फाइलैंथस निरूरी
कहते हैं।
प्रायः बरसात के समय सभी जगह आसानी
से मिल जाती है।
इसका पौधा 1 से 2 फिट ऊंचा, पत्ते इमली जैसे
होते हैं और प्रत्येक पत्ते के नीचे राई के दाने जैसे
फल होते हैं। यह फल आंवला की आकृति के
होने कारण इसे भूमि आँवला कहा जाता है।
भूमिआवला के पत्तो में एक कडुआ द्रव्य
फाइलेंथिन पाया जाता है।
भूमिआवला के बारे में संस्कृत का एक श्लोक
में कहा गया है कि-
भूम्यामलकिका प्रोक्ता शिवा तामल कीति च।
बहुपत्रा बहुफला बहुवीर्याsजटाsपि च।।
अर्थात-
यह बूटी बहुफल, बहुत से पत्तों से युक्त होने
के कारण भगवान शिव को अतिप्रिय है।
इसलिए इसका एक नाम जटा भी है।
इसके सेवन से वीर्य बढ़ता है। अतः जिस
किसी लिवर टॉनिक में भूमिआवला हो,
उसे नियमित या जीवन भर लेते रहने चाहिए।
कीलिव स्ट्रांग सिरप में इसे पर्याप्त मात्रा में
मिश्रित किया गया है।
गुण व उपयोग…
भूमिआवला कासहर, श्वांसहर, मूत्रजनन,
दाहशामक, शोथहर, होता है।
उदर रोगों की यह अतिउत्तम ओषधि है।
यकृत का कर्कट रोग अर्थात लिवर के कैंसर
को ठीक कर देता है।
कामला, पाण्डु, खून की कमी, रक्त न बनना,
प्लीहा, यकृतवृद्धि आदि विकारों में इसका
उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है।
कीलिव कैप्सूल आदि लिवर टॉनिक
यह चमत्कारी रूप से लाभकारी है।
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मधुमेह, मूत्र विकारों में इसे लेने से पेशाब
खुलकर लाता है।
इसके पंचांग के स्वरस भी लाभदायक रहता है।
सभी तरह के त्वचा रोग इसके पत्तों को चबाने
और पीसकर बंधने से दूर होते हैं।
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