हमारी पूजा….
पाठकों हेतु पिछले अंक में धन की मृत्यु,
तन की, तथा मन की मृत्यु का भय के
बारे में संक्षिप्त में बताया था कि ये तीन ही
मानव जीवन की शक्तियां हैं ।
तन को तरुण अवस्था में सम्भालें
मन की मलिनता मेहनत द्वारा मिटाये ।
लेकिन धन विभिन्न प्रयास,
आत्मविश्वास, दूर दृष्टी, कड़े परिश्रम
समय का सदुपयोग से ही आता है ।
यह लेख केवल धन के विषय में है ।
हमने कहीं -कहीं धन का कलयुगी नाम
माल भी लिखा है ।
मथुरा के द्वारिकाधीश मंदिर के प्रागढ़
में एक बुजुर्ग दम्पत्ति जो पहनावे से,
गरीब लगे,लेकिन मुखमंडल का
तेज़ बता रहा था, कि किसी अच्छे
परिवार के हैं । बड़ी तन्मयता
से एक भावपूर्ण भजन गा रहे थे,
जिसकी कुछ शब्द मेरे स्मरण में
बहुत वर्षों से आज भी हैं –
*वृक्ष में बीज, बीज में बूटा,
सब झूठा सत्य नाम है ईश्वर
बीज है हमारी श्रम-संघर्ष रूपी पूजा ।
लगातार प्रयास से बीज से पौधा निकलता है ।
पौधा वृक्ष बनकर बूटा (फल) देने लगता है,
धन के लिए नियमित कर्म करते हुए
धैर्य और धर्म (ईमानदारी) की
विशेष आवश्यकता है ।
गीता का गीत भी यही है-
माया के चक्कर में चक्करगिन्नि करवाने वाले
चक्रधारी श्रीकृष्ण का भी, तो यही
वाक्यसूत्र है यथा- केवल कर्म करो
फल की इच्छा मत करो ।
कर्म से कालसर्प व कुकर्म (दुर्भाग्य) का
नाश हो जाता है ।
सम्पूर्ण सृष्टि में संघर्ष (कर्म) ही सुख-सम्पन्नता में सहायक है । कोई अदृश्य परम् सत्ता
हमारी सदैव सहायता करती है वह
ईश्वर ही है, तो क्यों न हम, ऐश्वर्य(धन)
पाने-परमेश्वर के पीछे लग जाये ।
जो जितना ईश्वर के नजदीक है,
उसके पास उतना ही ऐश्वर्य है ।
ये आता है परम् परिश्रम से,
कड़ी मेहनत से यह हमारी पूजा है ।
वे ही लोग जीवन में सफल हो सकते हैं ।
जिनके पास पूंजी (धन) हो या पूजा
(परेशानीओर संघर्ष भरा जीवन)
अंतिम मार्ग भी वही है ।
संसार मे पूजा पूंजी (धन) वाले की ही हो रही
है चाहें वह परमात्मा अथवा पुजारी
(महात्मा) हो । बाकी सब झूठा भ्रमजाल है ।
कलयुग में धन को छटी इन्द्रिय माना जा रहा है ।
जिसके पास धन है उसकी पाँचों इन्द्रिय
जाग्रत स्वतः ही हो जाती हैं ।और जिस पर
धन नही है, उसके मन में अमन नहीं है ।
धनहीन आदमी की जाग्रत पाँचों इन्द्रिय
शिथिल हो जाती है ।धन
ही इस धरातल में धनजंय,धन-धान्य
से भरपूर कर मलिन मन को मार्मिक,
धार्मिक बनाता है ।
सत्ता के दलाल, हलाल कर हर हाल में
मुश्किल काम चुटकियों में करवाकर
अथाह माल और मॉल के मालिक बन जाते हैं ।
माल से ही खाल
(त्वचा) में चमक आती है । हालचाल पूछने
वाले चपाल (चापलूस) की भरमार होती है ।
जरा सी जरा-पीड़ा
होने पर मलाल (दुःख प्रकट) करने वालों
का अंबार लग जाता है । माल से ही
संसार में जलाल (आस्था) है । माल
सबको निहाल (पार) करता है । सदा खुशहाल
रहने का मूल मंत्र भी माल है । माल से सारा साल
आनंदमय बीतता है । माल-ससुराल में भी सम्मान में सहायक है । माल की आबोहवा
गाल की चमक में वृद्धिकारक है ।
माल वाले बड़े-बड़े जाल (उलझन) काटकर
सुलझने का मार्ग निकाल लेते हैं
ताल से ताल मिला माल से सम्भव है ।
बिन माल सब सून, खून तक साथ नहीं देता ।
धन का अभाव दाल-रोटी के भाव याद दिला देता है । धन का स्वभाव ही है, प्रभाव दिखाना ।
धन वाले कि रूह (आत्मा) के रहस्य जानने
सब सक्रिय रहते हैं । अतः हाथ में माल,
जेब में रुमाल हो ओर क्या चाहिये कलयुग में ।
पर धन आये कैसे –
श्री गुरुग्रन्थ साहिब में कई बार आया है
धन -धन श्री वाहेगुरु जी
शेष जारी है ।
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