गाना-गुनगुनाना,गीत-संगीत भी रोगनाशक है।

हैरान हो जाएंगे यह जानकर कि- संगीत के राग से रोग मिट जाते हैं। जाने कुछ दिलचस्प गाने…..

इस लेख में 50 से अधिक ऐसे गानों की जानकारी दी जा रही है, जो रोग एवं दर्द दूर करने में सहायक हैं।

संगीत हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है। और यह हमारी दैनिक जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। संगीत केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं सुना जाता है। वरन इसके कई सारे फायदे हैं। अब संगीत का प्रयोग वैज्ञानिक अनेक रोगों के उपचार के अंदर भी कर रहे हैं। अनेक वैज्ञानिक रिसर्च ने इस बात को ‌‌‌प्रमाणित किया है कि संगीत सुनने से कई सारे मानसिक फायदे होते हैं

संगीत की साधना….

संगीत एवं आध्यात्म भारतीय संस्कृति का सुदृढ़ आधार है।
जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते हैं, तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है और इस कला को संगीत, म्यूज़िक या मौसीकी कहते हैं।

भारतीय संगीत का जन्म वेद के उच्चारण में देखा जा सकता है। सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है।

संगीत का सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ भरत मुनिका नाट्‍यशास्त्र है। अन्य मुख्य ग्रन्थ हैं … बृहद्‌देशी, दत्तिलम्‌, संगीतरत्नाकर।

चार वेदों में से एक सामवेद संगीत का मूलभूत ग्रन्थ है।

भारतीय ‘संगीतरत्नाकर’ ग्रन्थ में गायन, वादन और नृत्य के मेल को ही ‘संगीत’ कहा गया है। वस्तुतः ‘गीत’ शब्द में ‘सम्’ जोड़कर ‘संगीत’ शब्द बना, जिसका अर्थ है ‘गान सहित’! नृत्य और वादन के साथ किया गया गान ‘संगीत’ है। शास्त्रों में संगीत को साधना भी माना गया है।
सन्सार में संगीत की सौगात….

संगीत’ शब्द ‘सम्+ग्र’ धातु से बना है। अन्य भाषाओं में ‘सं’ का ‘सिं’ हो गया है और ‘गै’ या ‘गा’ धातु (जिसका भी अर्थ गाना होता है) किसी न किसी रूप में इसी अर्थ में अन्य भाषाओं में भी वर्तमान है।
ऐंग्लोसैक्सन में इसका रूपान्तर है ‘सिंगन’ (singan) जो आधुनिक अंग्रेजी में ‘सिंग’ हो गया है!
किस देश में संगीत का क्या भेद है…

[१] आइसलैंड की भाषा में इसका रूप है ‘सिंगजा’ (singja), (केवल वर्ण विन्यास में अन्तर आ गया है,)
[२] डैनिश भाषा में है ‘सिंग (Synge),
[३] डच में है ‘त्सिंगन’ (tsingen),
[४] जर्मन में है ‘सिंगेन’ (singen)।
[५] अरबी में ‘गना’ शब्द है जो ‘गान’ से पूर्णतः मिलता है।

सबसे प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष, मूर्तियों, मुद्राओं व भित्तिचित्रों से जाहिर होता है कि- हजारों वर्ष पूर्व लोग संगीत से परिचित थे। देवी-देवता को संगीत का आदि प्रेरक केवल भारत देश को ही माना जाता है। संगीत के लिए यूनानी भाषा में

[] ‘मौसिकी’ (musique), लैटिन में
[] ‘मुसिका’ (musica), फ्रांसीसी में
[] ‘मुसीक’ (musique), पोर्तुगी में
[] ‘मुसिका’ (musica), जर्मन में
[] ‘मूसिक’ (musik), अंग्रेजी में ‘म्यूजिक’ (music), इब्रानी, अरबी और फारसी में ‘मोसीकी’। इन सब शब्दों में साम्य है। ये सभी शब्द यूनानी भाषा के ‘म्यूज’(muse) शब्द से बने हैं। ‘म्यूज’ यूनानी परम्परा में काव्य और संगीत की देवी मानी गयी है। कोश में ‘म्यूज’ (muse) शब्द का अर्थ दिया है ‘दि इन्सपायरिंग गॉडेस ऑफ साँग’ अर्थात् ‘गान की प्रेरिका देवी’। यूनान की परम्परा में ‘म्यूज’ ‘ज्यौस’(zeus) की कन्या मानी गयी हैं। ज्यौस’ शब्द संस्कृत के ‘द्यौस्’ का ही रूपान्तर है जिसका अर्थ है ‘स्वर्ग’। ‘ज्यौस’ और ‘म्यूज’ की धारण ब्रह्मा और सरस्वती से बिलकुल मिलती-जुलती है।

दिमाग की नसों को आराम मिलता है

काम की वजह से दिमाग की नसे ज्यादा थक जाती हैं। संगीत सुनने से दिमाग को आराम मिलता है जहां पर कई बार दवाएं काम नहीं करती हैं ।वहां म्यूजिक थैरेपी काम करती है।

तीन योग का संजोग है-संगीत…

 गायन, वादन व नृत्य तीनों के समावेश को संगीत कहते हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना!

बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें कोई संदेह नहीं।

गायन मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया है। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गायन ने व्यवस्थित रूप धारण किया।

संगीत से तनाव कम होता है..

आज कल हर इंसान की जिंदगी दौड़ धूप से भरी रहती है। काम करते करते हम बुरी तरह से थक जाते हैं। जब संगीत सुनते हैं तो हमारा दिमाग रिलेक्स मोड के अंदर आता है। हमारे दिमाग मे नई एनर्जी का संचार होता है। व हम अच्छा फील करते हैं। संगीत हमारे मन और मूड को बदल देता है। ‌‌‌संगीत दिमाग मे कार्टिसोल के स्तर को कम करता है। जिससे दिमाग बेहतर तरीके से काम करता है।

प्रकृति की देन है संगीत…

संगीत का आदिम स्रोत प्राकृतिक ध्वनियाँ मानी जाती है। मनुष्य ने प्रकृति की ध्वनियों और उनकी विशिष्ट लय को समझने की कोशिश की। हर तरह की प्राकृतिक ध्वनियाँ संगीत का आधार नहीं हो सकतीं, अत: भाव पैदा करने वाली ध्वनियों को परखकर संगीत का आधार बनाने के साथ-साथ उन्हें लय में बाँधने का प्रयास किया गया होगा। प्रकृति की वे ध्वनियाँ जिन्होंने मनुष्य के मन-मस्तिष्क को स्पर्श कर आत्मा को झकझोर दिया, वही सभ्यता के विकास के साथ संगीत का साधन बनीं।

वैज्ञानिकों की बातें…

संगीतज्ञों के अलग-अलग विचार हैं। दार्शनिकों ने नाद के चार भागों १-परा, २-पश्यन्ती, ३-मध्यमा और ४-वैखरी में से मध्यमा नाद को संगीत उपयोगी स्वर का आधार माना। प्राचीन समय से मानव संगीत की आध्यात्मिक एवं मोहक शक्ति से प्रभावित होता आया है।

प्राचीन मनीषियों ने सृष्टि की उत्पत्ति नाद से मानी है। ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण जड़-चेतन में नाद व्याप्त है, इसी कारण संगीत को “नादब्रह्म” भी कहते हैं।

अनादिनिधनं ब्रह्म शब्दतवायदक्षरम्!  विवर्तते अर्थभावेन प्रक्रिया जगतोयतः!!

अर्थात् शब्द रूपी ब्रह्म अनादि, विनाश रहित और अक्षर है तथा उसकी विवर्त प्रक्रिया से ही यह जगत भासित होता है। इस प्रकार सम्पूर्ण संसार अप्रत्यक्ष रूप से संगीतमय हैं। संगीत एक ईश्वरीय वाणी है। अतः यह ब्रह्म रूप ही हैं । संगीत आनन्द का अविर्भाव है तथा आनन्द ईश्वर का स्वरूप है। संगीत के माध्यम से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। योग व ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ आचार्य श्री याज्ञवल्क्य जी कहते हैं –

वीणावादनतत्वज्ञः श्रुतिजातिविशारदः।तालश्रह्नाप्रयासेन मोक्षमार्ग च गच्छति।

संगीत एक प्रकार का योग है। इसकी विशेषता है कि इसमें साध्य और साधन दोनों ही सुखरूप हैं। अतः संगीत एक उपासना है, शिव की साधना है। इस कला के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति होती है। यही कारण है कि भारतीय संगीत के सुर और लय की सहायता से मीरा, तुलसी, सूर और कबीर जैसे कवियों ने भक्त शिरोमणि की उपाधि प्राप्त की और अन्त में ब्रह्म के आनन्द में लीन हो गए। इसीलिए संगीत को ईश्वर प्राप्ति का सुगम मार्ग बताया गया है। संगीत में मन को एकाग्र करने की एक अत्यन्त प्रभावशाली शक्ति है, तभी से ऋषि मुनि इस कला का प्रयोग परमेश्वर का आराधना के लिए करने लगे।

उन्नीसवीं शती के उत्तरार्द्ध में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा कि ‘‘संगीत की उत्पत्ति मानवीय संवेदना के साथ हुई।’’ उन्होंने संगीत को गाने, बजाने, बताने (केवल नृत्य मुद्राओं द्वारा) और नाचने का समुच्चय बताया।

स्वामी विवेकानंद ने भाषा उत्पत्ति के बाद मनुष्य द्वारा ध्वनि की एकतारता को स्वर की उत्पत्ति माना।

प्राच्य-पुराने शास्त्रों में संगीत की उत्पत्ति को लेकर अनेक रोचक कथाएँ हैं। देवराज इन्द्र की सभा में गायक, वादक व नर्तक हुआ करते थे। गन्धर्व गाते थे, अप्सराएँ नृत्य करती थीं और किन्नर वाद्य बजाते थे। गान्धर्व-कला में गीत सबसे प्रधान रहा है। सर्वप्रथम में गान था, वाद्य का निर्माण पीछे हुआ। गीत की प्रधानता रही। यही कारण है कि चाहे गीत हो, चाहे वाद्य सबका नाम संगीत पड़ गया। पीछे से नृत्य का भी इसमें अन्तर्भाव हो गया। संसार की जितनी आर्य भाषाएँ हैं उनमें संगीत शब्द अच्छे प्रकार से गाने के अर्थ में मिलता है।

संगीत बनाये स्वस्थ्य क्योंकि-
जिंदगी प्यार का गीत है..

!!अमृतम!! के इस लेख/ब्लॉग में रोगों के उपचार के लिए संगीत/म्यूजिक विषय को आधार बनाकर अनेक बीमारियों का  उपचार करने वाले राग-संगीत के विषय में जानकारी देने का विनम्र प्रयास किया है।
जिसे पढ़कर आप आनंदित हो जाएंगे।

गीत-संगीत स्वास्थ्य के लिए जरूरी है

MUSIC for HEALTH

दुनिया में म्यूजिक थेरेपी के द्वारा बहुत सी असाध्य बीमारियों का इलाज किया जाने लगा है। यह वेद और आयुर्वेद  की प्राचीन चिकित्सा विधि है। सामवेद के अध्ययन से पता चलता है
कि प्रतिदिन २० मिनट तक मन्त्र या अपनी पसंद का संगीत सुनकर बहुत से रोगों को दूरकर स्वस्थ्य एवं प्रसन्न रहा जा सकता है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी यह मानने लगा हैं।

ग्रह और गृहस्थी…

गृहस्थ का जीवन बहुत झंझट भर होने के कारण सभी ग्रह अस्त हो जाते हैं। आदमी दाल-रोटी से ग्रस्त होकर इतना त्रस्त हो जाता है कि उसे अनेक प्रकार की व्याधि-बाधाएं, रोग-राग घेर लेते है। इससे शरीर रोगों से पीड़ित हो जाता है।

जिस प्रकार हर रोग का संबंध किसी ना किसी नवग्रहों में से किसी एक या दो ग्रह विशेष से होता हैं उसी प्रकार संगीत/म्यूजिक के हर सुर व राग का संबंध किसी ना किसी ग्रह से अवश्य होता हैं।

संगीत का कमाल

यदि किसी व्यक्ति को किसी ग्रह विशेष से संबन्धित रोग हो और उसे उस ग्रह से संबन्धित राग, सुर अथवा गीत सुनाये जायें तो जातक शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता हैं।

संगीत का श्रीगणेश कब हुआ –

वैदिक युग में ‘संगीत’ समाज में स्थान बना चुका था। सबसे प्राचीन ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ में आर्यो के आमोद-प्रमोद का मुख्य साधन संगीत को बताया गया है। अनेक वाद्यों का आविष्कार भी ऋग्वेद के समय में बताया जाता है।

 ‘यजुर्वेद’ में संगीत को अनेक लोगों की आजीविका का साधन बताया गया,

फिर गान प्रधान वेद ‘सामवेद’ आया, जिसे संगीत का मूल ग्रन्थ माना गया। ‘सामवेद’ में उच्चारण की दृष्टि से तीन और संगीत की दृष्टि से सात प्रकार के स्वरों का उल्लेख है।

सामवेद’ का गान (सामगान) मेसोपोटामिया, फैल्डिया, अक्कड़, सुमेर, बवेरु, असुर, सुर, यरुशलम, ईरान, अरब, फिनिशिया व मिस्र के धार्मिक संगीत से पर्याप्त मात्रा में मिलता-जुलता था।

संगीत के अविष्कारक -“भोलेनाथ

संगीत के सर्वप्रथम देवता महादेव, रूद्र अथवा भगवान शिव हैं। इनके अनुसार संगीत भी एक पूजा-विधान और ध्यान है। शिव जी की  पूजा पहले संगीत सुनाकर की जाती है।

दक्षिण भारत के अधिकांश शिवालयों में आज भी यह प्रचलन है।  चिदम्बरम का आकाश तत्व शिवमंदिर संगीत का आदिस्थान है। शिव की प्रेरणा से ही वैदिक संगीत की अवस्था का प्रारम्भ हुआ जिसमें संगीत की शैली में भजनों और  मंत्रों  के उच्चारण से भगवान भोलेनाथ की पूजा और अर्चना की जाती थी।

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि चार वेदों में से एक सामवेद में संगीत का खजाना है।

केन्सर रोग का इलाज….
इसे भारतीय “संगीत का आदिग्रंथ” कहा जाता है। मङ्गल ग्रह के दोष/कुपित/,कष्ट देने के कारण ही केन्सर जैसी घातक असाध्य बीमारी का जन्म होता है। कर्कट/केन्सर रोग के इलाज के लिए सामवेद का सुनना/श्रवण या वाचन/पढ़ना बहुत ही ज्यादा लाभकारी होता है।

श्रीमद्भागवतश्रीरामचरितमानस,

की चौपाई, परिणी के ‘अष्टाध्यायी और उर्दू के कुछ काव्यात्मक ग्रन्थ में संगीत की रचना है।

संगीत – पुराणों के प्राण-

■  ‘स्कन्दःपुराण,

■■  शिवपुराण,

■■■  हरिवंश पुराण, एवं

■■■■  भविष्य पुराण तथा

आदिकालीन ग्रन्थ/शास्त्र में भेरी, दुंदभि, वीणा, मृदंग व घड़ा आदि वाद्य यंत्रों व भँवरों के गान का वर्णन मिलता है, तो ‘महाभारत’ में कृष्ण की बाँसुरी के जादुई प्रभाव से सभी प्रभावित थे। अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने उत्तरा को संगीत-नृत्य सिखाने हेतु “बृहन्नला” (हिजड़ा) का रूप धारण किया।

देश की रग-रग में राग-

भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों के रग-रग में राग और सुर बसा था। संगीत उनके हृदय से निकलता था।  जैसे कि ग्वालियर के महान संगीतकार तानसेन, इनके गुरु मथुरा के स्वामी हरिदास, अमीर खुसरो आदि ने भारतीय संगीत की उन्नति में बहुत योगदान किया है जिसकी कीर्ति को °पण्डित रविशंकर“,  भीमसेन, गुरुराज जोशी, पंडित जसराज,  प्रभा अत्रे, सुल्तान खान आदि जैसे संगीत प्रेमियों ने आज के युग में भी कायम रखा हुआ है।
संगीत का अदभुत आनंद कभी लेना/पाना
हो, तो कभी ग्वालियर के वार्षिक
तानसेन समारोह” में सभी संगीत प्रेमी आमंत्रित हैं। जिसके श्रवण/सुनने से अनेकों बीमारियों का नाश हो जाता है। ऐसा अनुभव भी कई श्रोताओं को हुआ है।

प्रथम प्रेरक-

हिंदुस्तानी संगीत में यह माना जाता है कि संगीत के आदि प्रेरक महादेव नटराज/शिव और सबकी आराध्य माँ सरस्वती हैं। इसका तात्पर्य यही जान पड़ता है कि मानव इतनी उच्च कला को बिना किसी दैवी प्रेरणा के, केवल अपने बल पर, विकसित नहीं कर सकता।

संगीत का सबसे प्राचीन और सर्वश्रेष्ठ स्त्रोत
शिवतांडव स्त्रोत्र है, जो परम शिव भक्त दशानन/रावण द्वारा रचित है।

मुसलमानों का संगीतमयी मन –

ग्यारहवीं शताब्दी में मुस्लिम लोग अपने साथ फारस का संगीत लाए। मुसलमानों  और भारतीय  संगीत पद्धतियों के मेल-मिलाप से हिंदुस्तानी संगीत में काफी बदलाव आया।
बादशाह अकबर के दरबार में 36 संगीतज्ञ थे। उसी दौर के तानसेन , बैजूबावरारामदास व तानरंग खाँ के नाम आज भी चर्चित हैं।
जहाँगीर के दरबार में खुर्रमदाद, मक्खू, छत्तर खाँ व विलास खाँ नामक संगीतज्ञ थे। कहा जाता है कि शाहजहाँ तो खुद भी अच्छा गाता था।
मुगलवंश के एक और बादशाह मुहम्मदशाह रंगीले का नाम तो कई पुराने गीतों में आज भी मिलता है। ग्वालियर के राजा मानसिंह भी संगीत प्रेमी थे। उनके समय में ही संगीत की खास शैली ‘ध्रुपद’ का विकास हुआ।

इस  लेख/ब्लॉग में रोगों को मिटाने के लिए
संगीत/म्यूजिक विषय को आधार बनाकर ऐसे बहुत से रोगों पर उपचार करने वाले रागों की जानकारी दी है।

 पुराने ग्रंथो महाराणा कुंभा द्वारा रचित ग्रंथ संगीत राज संगीत का बहुत प्रसिद्ध ग्रन्थ है।

【१】कौन था कुम्भा

उदयपुर/चित्तौड़ राजस्थान के महाराज
कुंभा स्वयं बहुत विद्वान् था और कई संगीतकारों एवं साहित्यकारों का आश्रयदाता था। ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में पारंगत कुम्भा को वेद, स्मृति, मीमांसा का अच्छा ज्ञान था। उसने कई ग्रंथों की रचना की जिसमें ‘संगीतराज, ‘संगीत मीमांसा, सूड प्रबंध’ प्रमुख है। संगीतराज की रचना वि.सं. 1509 में चित्तौड़ में की गई थी, जिसकी पुष्टि कीर्ति-स्तम्भ प्रशस्ति से होती है। यह ग्रन्थ पाँच उल्लास में बंटा है-

1- पथ रत्नकोष,
2 – संगीतराज
3 – गीत रत्नकोष,
4 – वाद्य रत्नकोष,
5 – नृत्य रत्नकोष
में बहुत से शास्त्रीय रागों का उल्लेख किया किया गया है उन रागों मे कोई भी गीत, भजन या वाद्य यंत्र बजा कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

【२】 संगीतरत्नाकर शार्ंगदेव द्वारा रचित ग्रन्थ संगीत शास्त्रीय ग्रंथ है। यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण संगीत शास्त्रीय ग्रंथों में से एक है जो भारतीय संगीत तथा कर्नाटक संगीत दोनो द्वारा समादृत/सम्मानित है। इसे  संगीत का ‘सप्ताध्यायी’ भी कहते हैं क्योंकि इसमें सात अध्याय हैं।

इनके बारे में भी जाने 

शार्ंगदेव यादव राजा ‘सिंहण’ के राजदरबारी थे। सिंहण की राजधानी दौलताबाद (हैदराबाद) के निकट देवगिरि थी। इस ग्रंथ के कई भाष्य हुए हैं जिनमें

सिंहभूपाल (1330 ई) द्वारा रचित
संगीतसुधाकर‘ तथा
कल्लिनाथ (१४३० ई) द्वारा रचित
कलानिधि‘ प्रमुख हैं।

चमत्कारी संगीत ग्रन्थ 

“संगीत रत्नाकर” में शास्त्रीय
संगीत कई सुर-तालों का उल्लेख है। इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपरिक संगीत में अब बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था।
१०००वीं सदी के अंत तक, उस समय प्रचलित संगीत के स्वरूप को ‘प्रबन्ध‘ कहा जाने लगा। प्रबंध दो प्रकार के हुआ करते थे – निबद्ध प्रबन्ध  अनिबद्ध प्रबन्ध

निबद्ध प्रबन्ध को ताल की परिधि में रहकर गाया जाता था जबकि अनिबद्ध प्रबन्ध बिना किसी ताल के बन्धन के, मुक्त रूप में गाया जाता था। प्रबन्ध का एक अच्छा उदाहरण है- जयदेव रचित गीत गोविन्द

वैदिक युग में ‘संगीत’ समाज में स्थान बना चुका था। सबसे प्राचीन ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ में आर्यो के आमोद-प्रमोद का मुख्य साधन संगीत को बताया गया है। अनेक वाद्यों का आविष्कार भी ऋग्वेद के समय में बताया जाता है।

किस रोग में कौन से “राग” रहस्यमयी है-जानिये

■ हृदय रोग को राहतकारी राग–गीत..

इस रोग मे राग दरबारी व राग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक है। इनसे संबन्धित सिनेमा/चलचित्रों के गीत निम्न हैं-
【१】 तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल),
【२】राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे ),
【३】 झनक झनक तोरी बाजे पायलिया
( मेरे हुज़ूर ),
【४】बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन),
【५】 जादूगर सइयां छोड़ मोरी (फाल्गुन),
【६】ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा ),
【७】 मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये
(मुगले आजम )

हृदय के लिए भी संगीत अच्छा है…..

संगीत सुनने से दिमाग के अंदर एंडोर्फिंस हार्मोन का स्त्राव होता है ।वैज्ञानिकों के अनुसार रोजाना 30 मिनट संगीत सुनने से दिल की क्षमता के अंदर बढ़ोतरी होती है। एक्सरसाइज के साथ संगीत सुनने से  दिल की कार्यक्षमता के अंदर इजाफा होता है।

■ डिप्रेशन/अवसाद/चिडचिडापन और अनिद्रा मिटाने के लिए निम्न गाने सुने 

जिन्हें नींद नहीं आती, जो हमेशा चिंतित रहते हैं। मानसिक अशान्ति आदि मनोरोग रोग हमारे जीवन मे होने वाले सबसे साधारण रोगों में से एक है | इस रोग के होने पर राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता है, जिनके प्रमुख गीत इस प्रकार हैं –
[१] रात भर उनकी याद आती रही (गमन),
[२] नाचे मन मोरा (कोहिनूर),
[३]  मीठे बोल बोले बोले पायलिया (सितारा),
[४]  तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा),
[५] ऋतु बसंत आई पवन
(झनक झनक पायल बाजे),
[६] सावरे सावरे (अनुराधा),
[७] चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम),
[८] छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट ),
[९] झूमती चली हवा- संगीत सम्राट तानसेन ,
[१०] कुहू कुहू बोले कोयलिया -सुवर्ण सुंदरी

■अम्लपित्त/एसिडिटी, पाचन तंत्र की खराबी से मुक्ति पाने के लिए…

इस रोग के होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता है | इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार हैं

{1} ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार (संगीत),
{2} आयो कहाँ से घनश्याम (बुड्ढा मिल गया),
{3} छूकर मेरे मन को (याराना),
{4} कैसे बीते दिन कैसे बीती रतिया (अनुराधा),
{5} तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाये (सेहरा),
{6} रहते थे कभी जिनके दिल मे (ममता ),
{7} हमने तुमसे प्यार किया हैं इतना (दूल्हा दुल्हन ),
{8}  तुम कमसिन हो नादां हो (आई मिलन की बेला)

■ दुर्बलता/कमजोरी दूर करें यह गीत..

यह रोग शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित है| इस रोग से पीड़ित व्यक्ति कुछ भी काम कर पाने मे स्वयं को असमर्थ अनुभव करता है। इस रोग के होने पर राग “जयजयवंती” सुनना या गाना लाभदायक होता है। इस राग के प्रमुख गीत निम्न हैं –
■  मनमोहना बड़े झूठे (सीमा),
■  बैरन नींद ना आए (चाचा ज़िंदाबाद),
■  मोहब्बत की राहों मे चलना संभलके
(उड़न खटोला ),
■  साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं (चन्द्रगुप्त ),
■  ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती हैं
(दिल दिया दर्द लिया ),
■  तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना
(बीस साल बाद )

■ याददाश्त की कमजोरी, स्मरणहीनता, बार-बार भूलना शिकायत दूर हो जाती है इन गीतों को सुनकर–

जिन लोगों का स्मरण क्षीण हो रहा हो, उन्हे राग “शिवरंजनी” सुनने से लाभ मिलता है | इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से है –

{1} ना किसी की आँख का नूर हूँ (लालकिला),
{2} मेरे नैना (मेहबूबा),
{3} दिल के झरोखे मे तुझको (ब्रह्मचारी),
{4} ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम (संगम ),
{5} जीता था जिसके (दिलवाले),
{6} जाने कहाँ गए वो दिन (मेरा नाम जोकर )

 ■ रक्त यानि एनिमिया की कमी हो, तो यह गाना सुनकर औऱ गुनगुना कर देखें –

इस रोग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का मुख निस्तेज व सूखा सा रहता है। स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे में “राग पीलू” से संबन्धित गीत सुनें –

@ आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म),

@ नदिया किनारे (अभिमान),
@ खाली हाथ शाम आई है (इजाजत),
@ तेरे बिन सूने नयन हमारे (लता रफी),
@ मैंने रंग ली आज चुनरिया
(दुल्हन एक रात की),
@ मोरे सैयाजी उतरेंगे पार (उड़न खटोला),

■ मिर्गी/ मनोरोग अथवा अवसाद रहितं बना देते हैं यह गाने

इस रोग मे “राग बिहाग” व “राग मधुवंती” सुनना लाभदायक होता है। इन रागों के प्रमुख गीत इस प्रकार से है –
√  तुझे देने को मेरे पास कुछ नही (कुदरत नई),
√  तेरे प्यार मे दिलदार (मेरे महबूब),
√  पिया बावरी (खूबसूरत पुरानी),
√  दिल जो ना कह सका (भीगी रात),
√  तुम तो प्यार हो (सेहरा),
√  मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ),
√  मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये मोहे                        【आम्रपाली】
√  सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा

■ स्मृति ह्रास (मेमोरी लॉस) को कम करता है…..

जिन लोगों की याददाश्त अच्छी नहीं होती है। उनको संगीत सुनना चाहिए । जिससे उनकी यादाश्त अच्छी हो जाती है। और दिमाग काफी बेहतर तरीके से काम करने लग जाता है।

‌‌‌नींद अच्छी आती है…

अच्छे संगीत सुनने से दिमाग के अंदर चल रहे बेकार के विचारों को विराम मिलता है। और रात के समय दिमागपूरा खाली हो जाने से अच्छी नींद आती है। आमतौर पर जिन लोगों को नींद नहीं आती उनको सोने से पहले कुछ देर अच्छे गाने सुनने चाहिए।

■ रक्तचाप/बी पी कंट्रोल करने के लिए सुने–

ऊंचे रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता है। शास्त्रीय रागों मे “राग भूपाली” को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता है।
@  उच्च रक्तचाप यानी बीपी हाई होने पर

* चल उडजा रे पंछी कि अब ये देश (भाभी),
* ज्योति कलश छलके (भाभी की चूड़ियाँ ),
* चलो दिलदार चलो (पाकीजा ),
* नीले गगन के तले (हमराज़)
* जैसे गानों को सुनना बहुत हितकारी है।

@  निम्न रक्तचाप यानि लो बीपी में  

(1)  ओ नींद ना मुझको आए
(पोस्ट बॉक्स न. 909),
(2)  बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना (जिस देश मे गंगा बहती हैं ),
(3) जहां डाल डाल पर ( सिकंदरे आजम ),
(4)  पंख होते तो उड़ आती रे (सेहरा )

■ अस्थमा/श्वांस/सर्दी/खाँसी की तकलीफ –दूर करने के लिए सुने यह गीत
इस रोग मे “धार्मिक-आस्था” तथा “भजन-भक्ति” पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ होता है। राग “मालकँस” व “राग ललित” से संबन्धित गीत इस रोग मे सुने जा सकते हैं।
जिनमें प्रमुख गीत निम्न हैं –

◆  तू छुपी हैं कहाँ (नवरंग),
◆ तू है मेरा प्रेम देवता (कल्पना),
◆ एक शहँशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल        (लीडर),
◆ मन तड़पत हरी दर्शन को आज (बैजू बावरा ),

◆ आधा है चंद्रमा ( नवरंग )

सांस से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए…

अमेरिका वैज्ञानिकों के अनुसार संगीत थेरैपी फेफड़ों के लिए काफी अच्छी रहती है। सांस से संबंधित रोगी को संगीत थैरेपी से ईलाज करने से फायदा मिलता है। लेकिन गम्भीर सांस के रोग इससे सही नहीं हो पाते हैं।

■ शिरोवेदना/सिरदर्द/माइग्रेन/तनाव –
इस रोग के होने पर “राग भैरव” सुनना लाभदायक होता है। इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार हैं –

* मोहे भूल गए सावरियाँ (बैजू बावरा),
* राम तेरी गंगा मैली (शीर्षक),
* पूंछों ना कैसे मैंने रैन बिताई
(तेरी सूरत मेरी आँखें),
* सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
(एक दूजे के लिए )
हमेशा स्वस्थ्य/तंदरुस्त/प्रसन्न/प्रफुल्ल/
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 दर्दे-दिल..दर्दे-कमर भगाए दूर…

कुछ वैज्ञानिक शोध यह बताते हैं कि जब इंसान किसी तरह के दर्द से पीड़ित होता है तो उसे उसका मन पसंद संगीत सुनाया जाना चाहिए। जिससे उसका ध्यान दर्द से हट जाता है। और उसे दर्द का एहसास कम होता है।संगीत सुनने से दिमाग मे डोपामाइन का स्तर अधिक होता है। जो खुशी पैदा ‌‌‌करता है।

बीमारी पर व्यंग…
कभी किसी बीमारी से घिर जाएं औऱ अपनी तकलीफ के बारे में सीधे तौर पर बताने का मन न हो, तो इन गीतों के सहारे अपने रोगों का इजहार कर सकते हैं। हिंदी फ़िल्म के गीत गुनगुनाएँ बीमारियों का पता लगाएँ
बीमारी बुखार की हो तो..
जिया जले, जान जले, रात भर धुआं चले

बीमारी – हार्ट अटैक
तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकलती रही

कब्ज की बीमारी होने पर इस तरह गुनगुनाएं
सुहानी रात ढल चुकी है, न जाने तुम कब आओगे

एसिडिटी की तकलीफ बताने का गीत
बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया, जिगर म बड़ी आग है
बीमारी – मोतियाबिंद की हो
तुझमे रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ

यादाश्त कमज़ोर होने पर ऐसे बताएं
तुझे याद न मेरी आई किसी से अब क्या कहना

चक्कर आते हों, तो यह गाना है-
मन डोले मेरा तन डोले
यूरिन इन्फेक्शन की बीमारी का गीत –
टिप-टिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई

उच्च रक्तचाप का गाना
जिया धड़क-धड़क जाये
अनिद्रा की से पीड़ित होने पर गायें
हाय रे हाय नींद नहीं आये…

बवासीर की बीमारी हो, तो यह गाना गाकर बता सकते हो.
बताना भी नहीं आता, छुपाना भी नहीं आता

और अंत में

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है
इस बीमारी का नाम– दस्त है।

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