नवरात्रि पर दिलचस्प दुर्लभ जानकारी

शिव हो या शिवा खोजने से नहीं,
खो-जाने से मिलते हैं।
सन्सार में केवल पूर्ण है, तो केवल मां ही है। मां में जगत बसता है।

माँ सदा से ही पूर्ण है। भारतीय संस्कृति के अनुसार हर महीने पूर्णिमा तिथि आती है।

शास्त्रों में देवी दुर्गा शक्ति न स्त्रीलिंग है न पुरुष है और नाहीं नपुंसक है।
मां भगवती को हम

एनर्जी अथवा विद्युत को हम भले ही
व्याकरण की दृष्टि से स्त्रीलिंग कह लें पर उसमें ऐसा कोई तात्विक भेद कर सकना कठिन है। इसलिये कहा गया…
परमात्मा शिवः प्रोक्त: 
शिवा सैव प्रकीर्तिता।
अर्थात- जिसे परमात्मा शिव कहा जाता है,
उसी को शिवा भी कहा गया है।
“मार्केंडेय पुराण”  में महर्षि ने प्रार्थना की है
न त्वमम्ब पुरुषों न चांगना
चित्स्वरूपिणी न शंढतापि ते।
नापि भर्तुरपि ते त्रिलिंगता
त्वां विना न तदपि स्फुरेदयम।।
अर्थात…हे माँ तू न पुरुष है और न स्त्री, न नपुंसक। तुम्हारे पति यानी महादेव में भी तीनो लिंग नहीं है, हे शक्ति-भगवती, जगत्जननी तुम्हारे बिना शिव में भी स्फुरण नहीं होता।
शिवलिंग जैसा है-मानव मस्तिष्क….
हम सभी मनुष्य शिव का ही स्वरूप हैं। मानव मस्तिष्क शिंवलिंग जैसा होता है। हम दोनों हाथ जब आगे की तरफ सीधे कर देते हैं, तो वह जलहरी बन जाती है। अर्थात हमारे हाथ शक्ति का रूप हैं।
शारदा तिलक-पदार्थादर्श टीका,
श्रीविद्यार्णव तन्त्र, शिवसूत्र आदि रहस्योउपनिषद में लिखा है-
शिव” में जो छोटी ‘इ’   ि, इ  की मात्रा है, इकार शक्ति है वही शिव की शक्ति है इसके हटते ही शिव भी “शिव से शव” हो जाता है। हम सब भी शिव का अंश हैं और इस शरीर में जो इकार शक्ति है वही दुर्गा स्वरूपणी माँ है। माँ एक ऐसा शब्द है, जो दोनो ओंठ मिलाए नहीं बोल सकते हैं।
शिव की आधार शक्ति शिवा है जब शिव में शक्ति का आभास होता है, तो वही शिवा बन जाते हैं।
 
शक्ति जब शक्त बन जाती है घर 
बर्बाद हो जाता है....
अघोरी साधुगण कहते हैं कि…
जब शिव – शव बन जाता है, तो सन्सार का प्रलय यानी नष्ट हो जाता है और जब शक्ति
शक्त बन जाती है यानि विनम्रता, दया भाव त्याग देती है, तो परिवार बर्बाद हो जाता है।
शिव ही सत्य है….
दुर्गा शप्तशती रहस्य में परमात्मा शिव का एक नाम सच्चिदानंद है। यह तीन-सत, चित्त और आनंद से मिलकर बना है। परमात्मा
सत है, चेतन है, सदैव रहने वाला है-चैतन्यमय है। चेतन्य स्वरूप है और आनंदमय है।
चेतना हर क्रिया का कारण है। अतः जिस मनुष्य की चेतना शक्ति जितनी अधिक जागृत होगी, उसी अनुपात में वह जीवन में सर्व आनंद पाता है। इसे ही ग्रंथों में सच्चिदानंद कहते हैं।
देवी भागवत में कहा गया है..
या देवी सर्वभूतेषु चितिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थात…जो शक्ति सब जीवों में चेतन्य के रूप में प्रकाशमान है जो सबमें क्रीड़ा करती है, जो सबकी शक्ति, ऊर्जा, पॉवर है, जो आलोक रूपा है-उस जगत्जननी को बारम्बार नमस्कार है।
शास्त्रों के गहन अध्ययन से मालूम पड़ता है कि शिव और शक्ति दो न होकर एक ही हैं-
जहाँ शक्ति है, वहीं शिव है और जहां शिव हैं वहां कल्याण है। परोपकार है। मङ्गल है।
दोनों के लिये कहा गया है…
       !!शक्तिशक्तिमतोरभेदात!!
अर्थात शिव और शक्ति में भेद हो ही नहीं सकता।
                  !!अमृतम!!
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