Amrutam Om

ॐ का हर अक्षर अमॄतम। अ-उ-म [ॐ] का वेद-सम्मत वैज्ञानिक उच्चारण••••

!!ॐ!! के उच्चारण से होते हैं-उच्च स्तर के  सात से अधिक फायदे...

कभी ध्यान से सुनेंगे, तो मन्दिर के घण्टों की गूंज में  स्वर का नाद सुनाई देता है।

【1】प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करता है!

【2】ह्रदय रोग नहीं होते!

【3】उदररोग, पेट की तकलीफ, लिवर,   गुर्दा (किडनी) की परेशानी मिट जाती हैं!

【4】मानसिक शान्ति मिलती है।

【5】घबराहट, बेचैनीनींद न आनाभय-भ्रम, चिन्ता आदि आधि नहीं रहती।

【6】धन-सम्पदा, ऐश्वर्य वृद्धिदाता है!

【7】सिद्धि-सम्राट बन सकते हैं।

।।ॐ।। के उच्चारण का रहस्य….

  के बिना कोई भी मन्त्र अपूर्ण है। यह आत्मा का संगीत है। यह प्रणव मन्त्र संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। ॐ वह अनाहत ध्वनि है, जो निरन्तर ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। कभी गहन शान्ति के समय यह शरीर के भीतर भी और बाहर भी सुनाई देती रहती है।

सृष्टि के सभी स्वर महाकाल ने !!!! में पिरो दिए हैं। ॐ को जानने के बाद ब्रह्माण्ड में कुछ और शेष नहीं रहता।

प्रणव का रहस्य-

स्कंदपुराण में  प्रणव के बारे में विस्तार से समझाया है- प्र=प्रकृति तथा  का अर्थ नाव है। “प्र“मतलब प्रकृति से बने, इस संसार रूपी सागर को पार कराने वाली ‘‘ यानी नाव तथा व: की व्याख्या है-

 !!युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव:!! अर्थात प्रत्येक प्राणी को परमसत्ता से जोड़कर, उसमें ईश्वरीय शक्ति देकर जन्म-मरण के बंधन से मुक्त करने के कारण यह प्रणव: है।

!!अ-उ-म!! का जप त्रिकालदर्शी बना देता है। यह भू: लोक,भुवः तीनों लोक और “ब्रह्मा-विष्णु-महेश” का ही स्वरूप है।

!!ॐ!! है….त्रिदेव-त्रेलोक्य और त्रिनेत्रधारी का प्रतीक

 में तीन शब्द, अक्षर एवं तीन ध्वनियों का समावेश है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है।  का जाप वात-पित्त-कफ यानि त्रिदोष नाशक है। त्रिविध पापों की शांति ॐ के नियमित उच्चारण से हो जाती है।

।।।। को प्रणव भी कहा जाता है। इसमें “अ-उ-म” तीन अक्षर होते हैं। इन तीनों अक्षरों को अलग-अलग जपने से तन-मन पवित्र होकर शरीर में सिद्धियों का साम्राज्य स्थापित होने लगता है।  ( !!अ-उ-म!!) का एक-एक अक्षर अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है।

!!!! का उच्चारण शरीर को सदैव स्वस्थ, सहज और सरल बनाकर मन को अमन  बनाने की प्रक्रिया है। अकेले !!!! अक्षर का उच्चारण करने से 45 प्रकार के मानसिक विकारों का विनाश हो जाता है।

ॐ का दूसरा अक्षर  !!!! के उच्चारण करने से हृदयगत रोग सम्बंधित परेशानियां कम होने लगती हैं और तीसरा अंतिम शब्द !!!! के उच्चारण से असाध्य उदर विकार, पेट के समस्त रोगो से मुक्ति मिलती है।

।।।। के निरन्तर जप के साथ अध्यात्मिक क्रियाओं और शिव की साधना से व्यक्ति भय-भ्रम, शंका-कुशंका, डर से मुक्त होने लगता है। मनुष्य जैसे-जैसे निर्भय होता जाता है, उतना ही वह अपनी नाभि के  निकट पहुँचने लगता है।

 नटराज के नश्वर सन्सार में…..

में हर नर-नारी की नाभि में सर्वाधिक ऊर्जा होती है। यह तन-मन, अन्तर्मन का मुख्य केंद्र है और एक प्रकार से यह शरीर का स्टोर रूम है। अधिकांश अघोरी-अवधूत अपनी सारी साधना, तपस्या, मन्त्र जाप नाभि केंद्र में एकत्रित करते रहते है। ध्यान-साधना, मन्त्रो का जप करते समय सदैव अपनी नाभि पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह ■शिव रहस्य, ■लिंगपुराण एवं ■तन्त्र-मन्त्र विज्ञान में बताई है।

।।।। का यदि नाभि पर सम्पूर्ण ध्यान स्थापित कर शान्त भाव से उच्चारण किया जाए, तो 27 दिनों में शरीर के प्रत्येक रोम-रोम में कम्पन होकर, चारो ओर तंरगो का निर्माण होने लगता है। सभी को ज्ञात है कि-  ।।।। मे तीन अक्षर होते हैं

 !!अ-उ-म!! यदि ध्यान सहित मुँह बन्द करके जोर से अन्दर ही अन्दर “” कहें तो महसूस करेंगे कि- ‘‘ की ध्वनि मस्तिष्क में गूँजती हुई प्रतीत होती है। ‘अ‘ शब्द मास्तिष्क के केन्द्र का सूचक है। ‘अ‘ अक्षर में अग्नि तत्व की अधिकता होती है।

हिन्दी वर्णमाला का प्रथम अक्षर होने से इसका विशेष महत्व है। !!अ!! अक्षर वाले लोग अत्यधिक जिद्दी, महत्वाकांक्षी और स्वाभिमानी होते है। एक बार, जो ठान इन, उसे जान लगाकर  केेरन का प्रयत्न करते हैं।

यदि आप मुँह बन्द कर भीतर ही भीतर ।।।। शब्द का उच्चारण करें तो ‘‘ की ध्वनि हृदय में गूँजती हुई मालूम होती है। ‘उ‘ अक्षर हृदय का सूचक है।

दिशाओं में उत्तर का विशेष महत्व है क्योकि हिमालय, मानसरोवर के साथ- साथ अधिकांश पवित्र प्राचीन तीर्थ स्थान उत्तर की तरफ ही हैं। उत्तर दिशा पूरे विश्व की आत्मा है, हृदय है।

जब हम ।।।। के तीसरे अक्षर ‘‘ का उच्चारण करते हैं, तो वह नाभि के पास गूँजता हुआ प्रतीत होगा। अ- उ– और  क्रमशः मस्तिष्क, हृदय और नाभि के तीन सूचक शब्द है। अभ्यास करते-करते कभी आप केवल ‘‘ शब्द का उच्चारण करेंगे, तो यह नाभि में प्रतीत होगा। यदि ‘‘ कहें, तो शोर हृदय तक होगा  का उच्चारण मस्तिष्क में ही गूँजकर विलीन हो जाएगा। ये तीन सूत्र है- ‘अ‘ से उ की तरफ और ‘उ‘ से ‘म‘ की तरफ धीमे- धीमे जाना है। केवल ॐ-ॐ दोहराने से शरीर में कोई स्पंदन नही होता। जितनी गहरी श्वास लेकर मुँह बन्द कर लयबद्ध होकर अ-उ-म का उच्चारण करेगें उतना ही तन-मन में हल्कापन महसूस करते जायेगें। आपकी नाभि में अनुभव होगा कि कोई नकारात्मक ऊर्जा बाहर की ओर जा रही है आप ईश्वर या किसी अदृश्य परमसत्ता से साक्षात्कार कर रहे है। कुछ बात कर रहे है। गहरी धीमी श्वास लेने से अपने-आप ही प्राकृतिक प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है।

ह्र्दयरोगों का शर्तिया इलाज...

जिन लोगो को सदैव हृदयघात का भय सताता हो, वे प्रातः काल मुँह बन्द कर केवल !!!! का उच्चारण करें। इसके अलावा जब भी दिन में फुर्सत मिले यह प्रयोग नित्य दोहराना चाहिए।

 का उच्चारण ह्र्दय रोगियो एवं शल्य  चिकित्सका करा चुके रोगियो के लिए भी विशेष लाभकारी है। इससे हर प्रकार के शारीरिक, मानसिक भय का नाश होता है। जीवन चिन्ता मुक्त हो जाता है।

वेद-उपनिषद में लिखा है कि-

नकारात्मक सोच-विचारों से एवं कटु वचन या अप्रिय वाणी तथा शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मन-मस्तिष्क में अशान्ति का आभास होने लगता है। निगेटिव माइंड रखने से उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से हृदय की धड़कन तेज होकर रक्त में जहरीले रसायन  (टॉक्सिक) पदार्थ पैदा होने लगते हैं।

अन्त में सारतत्व यही है कि-ॐकार दिव्य नाद है। यह ॐ प्रणव परमात्मा का परम संगीत है। सृष्टि के सभी सातों स्वर इसमें संग्रहित हैं।

जीवन का सार-जीवन के पार…..सब कुछ ही ॐकार में है..

●सन्सार का हर आकार ॐकार है।

●उच्च हिम शिखरों पर छायी शान्ति ॐ है!●पर्वतों की पवित्रता, पहाड़ों से उतरते जल-झरनों की झरझर, मर्मर में ॐ के नाद की अनाहत है।

●वृक्षों पर बैठे पशु-पक्षी, पखेरुओं का कलरव,  वृक्षों से गुजरती हवाओं की सरसर, सप्त महासागरों में लहरों का तर्जन, आकाश में बादलों का गर्जन ॐकार के अर्चन में है।

●हम यदि गर्दन सीधी कर ॐकार का ध्यान लगाएं, तो जीवन बेकार नहीं जाएगा। दिनोदिन सत्कार में वृद्धि होकर जय-जयकार होने लगेगी। यह शिवकल्यानेश्वर का वचन है।

●पाताल में योगियों की करताल में और बम-बम करने वाले गाल में ॐ का ही मायाजाल है।

●नदियों में नवीनता, धरती में जलजला, भूकम्प, कम्पन्न सर्वकला सम्पन्न ॐ ही है।

●गलियों की गूंज, कुएं पर रस्सी की मूँज, आदि से अन्त और अंत से अनन्त एवं सभी सन्त-पन्थ का सार यह ओंकार है।

चिन्ता, घबराहट, बेचैनी से मुक्ति और दिमागी राहत के लिए 3 महीने तक सेवन करें-

मानसिक शान्ति और समझदारी बढ़ाने के लिए ख़रीदे ब्रेन की गोल्ड अपने स्वस्थ्य और रोग प्रतिरोधक शक्ति वृद्धि हेतु यह जरूरी है। बिना किसी शिपिंग चार्जेज के।

मनमर्जी वाले महाकाल से अर्जी है कि-

!!सर्वेभवन्तु सुखिनः!! सभी पाठकों को अमृतम रीडर बनने के लिए अन्तर्मन से धन्यवाद। !हर हर हर महादेव!

हमें ईमेल करे  [email protected] पर अपने सवालो के साथ

    || अमृतम ||
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5 responses to “ॐ का हर अक्षर अमॄतम। अ-उ-म [ॐ] का वेद-सम्मत वैज्ञानिक उच्चारण••••”

  1. Nitin avatar
    Nitin

    VERY nice article
    Har har mahadev

  2. Dhanesh Bengani avatar
    Dhanesh Bengani

    प्रणाम
    बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है। हृदय के अन्तःकरण से धन्यवाद। ऊं जाप का सही तरीका क्या है। सांस भरने के बाद सांस छोड़ते हुए मन ही मन ऊँ का उच्चारण करना होता है क्या। कृपया मार्गदर्शन करें
    धन्यवाद
    धनेश

    1. RACHNA AGARWAL avatar
      RACHNA AGARWAL

      Bahut hi achhi jankaari aur itne saral bhasa me shabdo ka chunav karte hue jaan kari di aap ne ..dhanyawad

  3. […] रहें। ॐ महाशक्ति है। जाने क्लिक करके https://amrutampatrika.com/omamrutam/    निम्न 28 स्वास्थ्य सूत्र भी कारगर […]

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