जरा-रोग नाशक आयुर्वेद की अमरता

कायाकल्प की चिकित्सा है-आयुर्वेद

प्रथ्वी पर प्राणियों के अवतरण के साथ

ही मनुष्य को व्याधियों का अभिशाप
मिला। इस क्रम में सबसे बड़ी व्याधि
है मृत्यु। देवी-देवताओं, दानवों यहां
तक कि मनुष्य ने भी स्वयं को अमर
बनाने की चेष्टा की और यह चेष्टा
आज भी इतनी ही जागरूक है,
जितनी पहले थी।
रोगों से युद्ध करने के अनेकों उपाय
किये गए एवं उन बीमारियों को
समझने व उन्हें दूर करने का
प्रयत्न किया गया।
दुनिया की कोई भी चिकित्सा पद्धति
या आयुर्वेद यह, तो नहीं कह सकता
कि इस प्रयास से रोग लुप्त हो गये
या रोगों की भयंकरता कम हो गयी।
आयुर्वेद के वैज्ञानिक
हजारों वर्षों तक हमारे वैद्यों ने
अनेक अविष्कार ओर प्रयोग किये
तथा आयुर्वेदाचार्यों ने प्राकृतिक
पदार्थों का निरीक्षण प्रारंभ किया।
दूरस्थ और दुर्गम स्थानों में उपलब्ध
खनिजों, जंतुओं एवं वनस्पतियों का
अवलोकन व विश्लेषण किया गया।
आयुर्वेद के ऋषियों ने पारम्परिक
समिश्रण से अनेक योग यौगिक
तथा मिश्रण तैयार किये गये, जिनके
आधार पर सभी तरह के असाध्य रोगों
को दूर कर पाना सम्भव हो सका।
आयुर्वेद का ईश्वर और ऐश्वर्य
आयुर्वेद का मानना है कि स्वस्थ्य
शरीर ईश्वर का प्रतिरूप है, इसी ईश्वर
रूपी तन में जब मन प्रसन्न रहने लगे,
तो सबसे बड़ा ऐश्वर्य है। ऐश्वर्य का
अर्थ है परम आनंद की अनुभूति।
समाज में जैसे-जैसे ऐश्वर्य की अभिवृद्धि
हुई, उसका घाट-प्रतिघात मनुष्य
के शरीर के साथ भी हुआ।
किसी के रोग दूर हुए, तो किसी में
अन्य बीमारियों का प्रादुर्भाव हुआ।
अमर बनने की अभिलाषा
जरा ओर मृत्यु से मुक्त होकर अमर
बनने की मानव की सुप्त आशा
के फलस्वरूप ही आयुर्वेद की उत्पत्ति
एवं विकास हुआ। 
आयुर्वेद के आदि देवता वैद्यनाथ
वेदों में एक मन्त्र भी है-
हे भोलेनाथ, हे वैद्यनाथ जब आप
प्रेरणा देते हैं, तो आथर्वणी,
आंगिरसी, दैवी ओर मानवी
ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं।
बाबा वैद्यनाथ से जिन ऋषियों ने
आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया
उनके नाम इस प्रकार हैं-
भगवान धन्वंतरि
भगवान विष्णु
भगवान भास्कर
ऋषि अङ्गिरा
ऋषि वशिष्ठ
महर्षि जमदग्नि (परशुराम के पिता)
महर्षि कश्यप
महर्षि भृगु
महर्षि गौतम
महर्षि पुलस्त्य (रावण के बाबा)
महर्षि नारद
महर्षि भारद्वाज (कुबेर के स्वसुर)
महर्षि विश्वामित्र
महर्षि च्यवन (च्यवनप्राश के प्रथम निर्माता)
महर्षि अगस्त्य (ये समुद्र पी गए थे)
महर्षि मारीच
महर्षि धौम्य
महर्षि पुनर्वसु
आयुर्वेदाचार्य अग्निवेश
भेल
पराशर
जतुकर्ण
हारीत
क्षारपाणि आदि
अथर्ववेद चिकित्सा शास्त्र का जन्मदाता है।
पशु-पक्षीओं से सीखा आयुर्वेद
परम् वैद्य आत्रेय पुनर्वसु ने चरक सहिंता
के एक अध्याय में बताया है कि आयुर्वेद की
बहुत सी जड़ीबूटियों का ज्ञान हमें
पशु-पक्षियों से हुआ।

आयुर्वेद की दुर्लभ ग्रन्थ और संस्कृत टीकाएँ—

1- महर्षि पतञ्जलि द्वारा रचित ग्रन्थ
पतञ्जलि“? –ई. सन 200 अप्राप्त।
अर्थात यह महत्पूर्ण शास्त्र आज से
करीब १८00 वर्ष पूर्व ही लुप्त या
नष्ट हो चुका है।
2- चक्रपाणिदत्त— हस्तलिखित ग्रन्थ-
चरक तात्पर्य टीका अथवा आयुर्वेद दीपिका
ई. सन 1060 में हाथ से लिखी गई।
इसमें  वात,पित्त,कफ त्रिदोष से उत्पन्न
■  कैंसर
■  हृदय रोग
■ वात विकार, थायराइड
■ मधुमेह रोग (डाइबिटिज)
■ अवसाद (डिप्रेशन) मानसिक विकार
नाशक जड़ीबूटियों एवं ओषधियों के बारे में विस्तार से वर्णन है।

अमृतम दवाएँ—

अमृतम ने इन्हीं गुणकारी विलक्षण
जड़ीबूटियों,
रस-रसायनों,
मुरब्बों, मेवा मासालों का मिश्रण कर
विभिन्न रोगों के लिए 90 तरह की
ओषधियों का निर्माण किया।
जिसमें अति प्रभावी दवाएँ
ऑनलाइन उपलब्ध हैं —
【1】अमृतम गोलग माल्ट
रोगप्रतिरोधक क्षमता इम्मयून पॉवर वृद्धिकारक 100 फीसदी आयुर्वेदिक दवा
【2】ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
【3】ऑर्थोकी गोल्ड केप्सूल
【4】ऑर्थोकी पैन आयल
88 प्रकार के पुराने एवं नये
वात रोगों में उपयोगी है।
अवसादग्रस्त (डिप्रेशन) लोगों हेतु
【5】ब्रेन की गोल्ड माल्ट व टेबलेट
तनावरहित करने वाली दिमागी
शक्ति-शांति दाता हर्बल मेडिसिन है।
【6】जिओ माल्ट
एसिडिटी की सिट्टी-पिट्टी गुम करने
में बेहद प्रभावी है
【7】पाइल्स की गोल्ड माल्ट
बवासीर की पुरानी से पुरानी तासीर
ठीक करने में चमत्कारी अवलेहा है।
【8】कुन्तल केयर हर्बल हेयर स्पा
9】कुन्तल केयर हर्बल हेयर ऑयल
【10】कुन्तल केयर हर्बल हेयर शेम्पू
【11】कुन्तल केयर हर्बल हेयर अवलेह
उपरोक्त चारों ओषधियाँ
बालों को बढ़ाने में अत्यंत सहायक हैं
【12】फेस क्लीनअप
एक प्राकृतिक कम्प्लीट उबटन
【13】लोोजेन्ज माल्ट
!!कफ-खाँसी जुकाम का काम खत्म!!
आयुर्वेद के पुराने जानकार
3- हरिश्चन्द्र—ई. सन ११११ इन्हीं का
दूसरा नाम महावेद्य भट्टार हरिश्चन्द्र था।
इनकी टीका (ग्रन्थ) का नाम “चरकन्यास
जो अब पूरी उपलब्ध नहीं है। इन्होंने
12 तरह के  केश-विकारों,गंजापन
आदि पर चमत्कारी योगों को लिखा है।
4- जेन्जटाचार्य
निरन्तर पद व्याख्या नाम की टीका
(अति प्राचीन पुस्तक)
चिकित्सा स्थान से सिद्धि स्थान तक।
बीच-बीच में त्रुटितांश युक्त है।
यह ग्रन्थ आदि अर्थात शुरू से सूत्रस्थान
के तीसरे अध्याय पर्यंत तक प्राप्त है।
यह दोनो महत्वपूर्ण दुर्लभ शास्त्र
 भारत में केवल मद्रास,अब-चेन्नई
के राजकीय प्राच्य राजकोष पुस्तकागार
(गवर्नमेंट लाइब्रेरी) में ही मिलती है।
शिवदास—-तत्व चन्द्रिका या
चरकतत्व प्रदीपिका।
यह टीका (ग्रन्थ) भी अपूर्ण है।
अथ से सूत्र स्थान के सत्ताइसवें अध्याय
पर्यन्त मिली है।
बम्बई लेकिन अब मुम्बई है।
 
“रायल एशियाटिक सोसायटी”
के पुस्तकालय में सुरक्षित है।

केन्सर का शर्तिया इलाज

वैद्य श्री गंगाधर कविराज—
द्वारा रचित “जल्पकल्पतरु
टीका सन १८७९ से लापता है।
इस ग्रन्थ में केन्सर रोग की
अकाट्य चिकित्सा बताई गई थी।
एक विशेष प्रकार की सर्जरी चिकित्सा द्वारा
रक्त नाडियों पर चीरा या कट लगाकर
काला दूषित रक्त निकाल देते थे,
जिससे केन्सर का घाव 7 से 10 
दिन में सुख जाता था।

वेद्यरत्न कविराज योगेन्द्रनाथ सेन

चरकोपस्कार व्याख्या,
केश रोगों पर लिखा गया यह
दुर्लभ ग्रन्थ का कुछ भाग
मेघालय राज्य की लाइब्रेरी में
प्रारम्भ से चिकित्सा स्थान के
तेरहवें अध्याय पर्यन्त तक
उपलब्ध है।
कुन्तल केयर हेयर हर्बल बॉस्केट
इन्हीं नियमों से निर्मित है।

आयुर्वेद का अथाह भण्डार-

आयुर्वेद के १००० से अधिक प्राचीन,
दुर्लभ ग्रन्थ की  अभी जानकारी देना
शेष है
विशेष निवेदन-
अमृतम द्वारा सभी हर्बल दवाओं के
फार्मूले प्राचीन,पुराने ग्रंथों से लिए गए हैं।
अमृतम फार्मास्युटिकल्स 
की स्थापना करने में
पिछले 35 वर्षों का सतत परिश्रम है।
इस आयुर्वेद कम्पनी की स्थापना
सन 2013 में हुई, इसके पूर्व
 हर्बल प्रोडक्ट की मार्केटिंग
हेतु पूरे भारत का भ्रमण किया।
 
हजारों आयुर्वेद चिकित्सकों,
आयुर्वेदाचार्यों से मिलकर
★असरकारक चमत्कारी फार्मूले,
★शुद्ध जड़ीबूटियों की जानकारी
★दवा निर्माण की प्रक्रिया,
★उनके अनुभूत अनुभवों
को ग्रहण व प्राप्त किया।

अमृतम का मंथन- 

अमृतम का आरम्भ 2013 में हुआ।
देशकाल,परिस्थियों के अनुरूप
ओषधीय  घटक-द्रव्यों में
परिवर्तन आवश्यक है।
अमृतम द्वारा वर्तमान दौर
के अनुसार रोग निवारक
शुद्ध हर्बल दवाओं का निर्माण
किया जा रहा है।
अमृतम दवाएँ 55 से अधिक
प्राचीन हर्बल ग्रंथो के हिसाब से 
 निर्मित की जा रही हैं।
इन सभी ग्रंथों की जानकारी
हेतु हमारे ब्लॉग/लेखों का
नियमित-निरन्तर पठन-पाठन
करते रहें।
अमृतम परिवार” पुनः
आयुर्वेद के अविष्कारक
वैद्यनाथ भगवान शिव
 आयुर्वेद प्रवर्तक वैद्य धन्वन्तरि
के साथ-साथ आयुर्वेद के सभी
पूर्वज-पितृगण,
महर्षि-महामुनियों, वैद्यों, चिकित्सकों
और हकीमों का हृदय के अंतर्मन
से सहज स्मरण करते हुए
वर्तमान के उन वैद्य-चिकित्सकों,
डॉक्टर्स को सरलतापूर्वक
सादर नमन,प्रणाम करते हैं,
जिनकी चिकित्सा (प्रैक्टिस)

मानवीय हितों पर आधारित है।

आदिकालीन, अतिप्राचीन जानकारियां

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