प्रेम के महाप्रलय की महिमा। यह लेख कुछ दार्शनिक है….

प्रेम करने वाली युवा पीढ़ी 
इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें…..
इसे शान्तिपूर्वक 2 या 3 बार पढ़े,
पिछला लेख भूख के बारे में था
“योगेश्वर की योगमाया” 
ग्रन्थ में लिखा है कि..
भूख या तो पेट की होती है
या फिर वासना की।
महत्व “पैसे की भूख” का भी 
कलयुग में कम नहीं रहेगा…..
 
भूख के बाद फिर क्या?
भूख की सबसे निकटतम 
सहयोगी है..प्यास।
प्यास के भी अनेक मार्ग हैं,
कुछ स्पष्ट है…., कुछ नहीं।
प्यास बुझाने के लिए जल का संसाधन
किया गया और प्यास रूपी तृष्णा को
विराम मिला।
पर्वतों से निकलती हुई सरिता की धारा
का मार्ग कोई अवरुद्ध नहीं कर सका।
अवरोधक लगाएं भी, तो जल का आवेग
दिशा बदलकर अपना रास्ता स्वयं ढूंढ लेगा।
जल को रोकने से ही जलप्रलय होता है।
महाप्रलय एक बार नहीं होता।
जीवन का हर क्षण-हर पल महाप्रलय
 के बीच से संघर्ष करता हुआ आगे बढ़ता है।
अतः जलराशि को कभी रोकना नहीं चाहिए।
मनुष्य की देह में विकसित होती
अदम्य महाशक्ति जलराशि है……
 
इसी जल का नाम प्रेम है।
प्रेम भी प्यास है….
प्रेम वासना नहीं है।
प्रेम को जो वासना कहते हैं,
वह भ्रमित हैं।
नारद जी को कामवासना ने पीड़ित किया,
तो वे महादेव के पास गए-
उन्होंने पूछा :
शांति कब मिलती है……?
महादेव शम्भू बोले:…
जब वासनाएं क्षीण हो जाती हैं।
लेकिन….. क्षीण वासनाओं की शान्ति
किसे चाहिए….?
अर्क प्रकाश,
ब्रह्मवैवर्त पुराण 
आदि में उल्लेख है-
जब जीवन का अवतरण शांति से नहीं हुआ।
अशांति के क्षणों में,
तड़पन के दुःख-दर्द ने प्रवेश किया
और अत्यंत वेदना के साथ प्राणीमात्र
का प्रथ्वी पर अवतरण हुआ।
क्रिया की प्रतिक्रिया
साइंस यानी विज्ञान का एक सीधा-सा
नियम है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया
होती है। इसीलिए जब अवतरण दर्द
और अशांति से होगा, तो शान्ति की
खोज निरर्थक है।
फिर शान्ति की खोज क्यों…?
दुनिया के लोग आज से ही नहीं
के जन्मों से शान्ति-सुकून की
महायात्रा में जो लोग, जितने भटके हैं
उन्होंने अपने दर्द का इतिहास लिखा
है और उसी दर्द के साथ देह छोड़ी है।
दर्द और देह की गति के आभास ने
ही प्रेमरस को जन्म दिया।
किसी कवि की लेखनी है कि…
‘भीजै चुनरिया प्रेमरस बूंदन’
यानि चुनरिया का भींजना सुख की
चरम अनुभूति है।
— उसी चरम अनुभूति की छटपटाहट
के लिए ही तो उदगार प्रकट हुए हैं:
बालम आओ हमारे गेहरे
तुम बिन दुखिया देह रे।
बात यही समाप्त नहीं होती।
वासना की यात्रा में लाज-शर्म
विलोप हो जाते हैं, तब
मोरि चुनरिया में
पर गयो दाग पिया
अगर उसे अपना लिया, तो दाग
छुड़ाने की जरूरत नहीं पड़ती।
प्यार का इजहार जिंदगी में
चमत्कार कर देता है,
यदि वासना रहित हो।
प्रेम का दीपक और प्रेम की बाती,
प्रेमरस में मिलकर ही प्रकाशवती बनती है।
सन्सार में दो ही लोग जल्दी उन्नति
कर पाए…
प्रेम पाकर या प्रेम में पछताकर
विकास और सफलता के अध्याय प्रेम की
अतृप्त आकांक्षाओं के साथ ही लिखे
गए हैं।
ठुकराए तो ठाकुर बने
 
विश्व के बहुत से लोग प्यार में
ठोकर खाकर ठाकुरजी बन गए।
कालिदास, तुलसीदास, कबीरदास
जैसे महाविद्वान
बादाम खाकर बुद्धिमान नहीं हुए,
इनको ठोकर लगी, इन्हें ठुकराया गया
तो ये ज्ञानी ठाकुरजी बन गए।
प्यार के भार को उठा पाना अब
आज की पीढ़ी के लिए कुछ
मुशिकल होता जा रहा है।
क्यों कि प्यार का सारा.. सार केवल
शरीर और वासना तक रह गया है।
आज के दौर में सब साजना बनने के
लिए, तो तैयार हैं किंतु सजा भुगतने
यानि साथ निभाने को तैयार नहीं है।
किसी को सजना भी है, तो केवल
सजना (प्रेमी) के लिए। पहले सजने-सँवरने का महत्व कम था, सजना का महत्व ज्यादा था।
पहले प्रेम में कसक ज्यादा थी,
अब ठसक अधिक है।
वर्तमान की विवेकशील नई दुनिया इसी
क्रम में विकसित हो रही है, उसके पीछे
प्रेम और पैसे की प्यास है।
प्रतीक्षा के क्षण कितने मायावी होते हैं..
समूचे जीवन को प्रतीक्षा, आस और विश्वास
में जिया जा सकता है।
प्रेम में आतुरता बनाती है स्वस्थ्य…..
किसी के प्रेम-प्यार में अधीर होने तथा
आतुरता के तीव्र होने से रक्तकोष विकसित
होता है और धमनियों से प्रवाहित होने वाला वेग रक्त-शिराओं को बल देता है।
वैज्ञानिकों ने भी माना है कि
प्रतीक्षा से आतुरता और तीव्र होती है।
—- यही प्रेम का आवेग है।
एकांत के दरवाजे खोलने का प्रेम एक
बहुत बड़ी ताकत है। यह मान लें कि
एकांत की चाबी है…प्रेम।
जहाँ आदमी अकेला नहीं रह जाता।
दो प्राणियों का एकांत ही सुख
का चरम क्षण है।
प्रेम साधना का चरम बिन्दु है।
प्रेम की अनुपस्थिति में विश्व की
अवधारणा ही मिथ्या है।
प्रेम को प्यास दीजिए।
प्रेम में त्याग कीजिये
प्रेम बिना आस का प्रयास है।
प्रेम परोपकार है, नहीं मिले तो दीजिए।
प्रेम प्राण का स्पंदन है।
प्रेम में प्रमाण की जरूरत नहीं है।
प्रेम एक त्याग है। एक बार करके देखिए।
प्रेम की शक्ति में लावा हो, ऊर्जा हो..
दिखावा नहीं।
किसी शायर के शब्द….
घर के बाहर भी जला दो कुछ दीये।
यह न सोच कौन गुजरेगा और किसलिए।।
अमृतम के खोजी ब्लॉग आपके
मन-मस्तिष्क को शांत कर ज्ञान वृद्धि करेंगे
पढ़ते रहें….
अमृतमपत्रिका

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