क्वारेंटाईन क्या है? इससे जुड़ी कौन सी महत्वपूर्ण बातें हैं, जो लोग नहीं जानते? क्या कभी भारत में क्वारेंटाईन का अपनाते थे?

दरअसल क्वारेंटाईन एक तरह का एकांतवास है।

प्राचीनकाल में इसे सूतक कहा जाता था।

जिसे वर्तमान में लोगों ने भुला दिया है।

यह सब स्वास्थ्य वर्धक योग थे।

2500 वर्ष पूर्व मास्क का अविष्कार

करने वाले जैन धर्म के इन पांच आदर्शों पर

चलने हेतु सम्पूर्ण सन्सार को निर्देशित किया था-

कैसे जिये, कैसे रहें….

(1) मुंह पट्टी (Mask)

(2) अहिंसक आहार / शाकाहार (Veg Food)

(3) संघेटा (Social Distancing)

(4) अलगाव (Quarantine)

(5) सम्यक एकांत (Isolation)

क्वारेंटाईन की उत्पत्ति कैसे हुई और रहस्य....

क्वारेंटाईन वेनशियन भाषा का शब्‍द है और

quarantena) से आया है। यह शब्द इटालियन और फ्रेंच दोनों भाषा से मिलकर बना है। 

यह कम्‍यूनिकेबल डिजीज यानि 

 एक से दूसरे मनुष्य में फैलने वाली बीमारी वाले

 संक्रमित रोगियों पर लगाया जाता है। 

इसे मेडिकल आइसोलेशन या कॉर्डन सेनिटायर भी कहते हैं। कॉर्डन सेनिटायर का अर्थ लोगों को एक ही सीमा के अंदर रहने की नसीयत देना।

सन 1300 के करीब जब फ्लैग महामारी के 

रूप में फैला, तो तीस दिनों की अवधि तक 

लोगों को एकांतवास में रखा गया, उसे ट्रेनटाइन कहा जाता था, जब ये 40 दिनों का हुआ तो इसको क्‍वारंटाइन कहा जाने लगा था। यहां से ही इस शब्‍द की उत्‍पत्ति भी हुई। 

आइसलैंड का शब्द है ‘आइसोलेशन’…..

आइसलैंड का हिंदी में अर्थ है द्वीप। आइसोलेशन शब्द का निर्माण आइसलैंड शब्द से होता है। आइसोलेशन का अर्थ होता है अकेला। यदि कोई संक्रमित व्यक्ति है, जिससे संक्रमण फैल सकता है,  तो उसे आइसोलेट कर दिया जाता है। 1423 ई. में वेनिस (इटली) में एक बड़ा अस्पताल बनाकर प्लेग के रोगियों को इलाज के समय आइसोलेट किया गया था।

भारत के लोगों का भ्रम...

पीड़ित की पन्डताईन, 

ठाकुर की ठाकुर्राईन, 

बनिया की बनियायन, 

चौधरी की चौधराइन, 

नाई की नाइन की तरह कोरोना का 

क्‍वारंटाइन समझते रहे।

पुराने बुजुर्ग भी कहते थे कि

कुत्ता भी बैठने के पहले जगह साफ कर लेता है।

अतः जीवन में साफ सफाई त्ती आवश्यक है।

ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

अन्धकार से रोशनी की तरफ और

मृत्यु से अमृतम की तरफ जाने के लिए

पवित्रता पहला प्रयास है।

यह स्वास्थ्यवर्धक सबक, सन्सार को 

सीखना, समझना और अपनाना चाहिए

क्वारेंटाईन……
एक तरह का यह प्रायश्चित भी है यह..

अशौच, अशुद्धि, सूतक, क्वारेंटाईन की
मान्यताएं हमें अनिश्चितता के बीच नकारात्मक

होने से बचाएंगी।
शरीर की रक्षा करने वाले क्वारेंटाईन अपवित्रता, छुआछूत आदि आदतें संक्रमण से बचाने के लिए बहुत पुरानी है। आज कोरोना काल का क्वारेंटाईन वही विज्ञान है। ऐसा मानकर चलें।

पुराने समय में जब छींकना भी-अपशकुन मानते थे, क्योंकि बुजुर्ग मानते थे कि- छींक के संक्रमण से फैलती हैं…कोरोना जैसी बहुत सी बीमारियां……. – अमृतम पत्रिका

संक्रमण क्या है-जाने वेद-पुराणों से–

नीचे लिंक क्लिक करें….

https://amrutampatrika.com/coronavirus/

जन्म-मृत्यु, माहवारी और चन्द्र-सूर्य ग्रहण के समय क्यों लग जाता है-सूतक-यह वैदिक परम्परा को जाने अमृतम के इस लेख में…

मानव जीवन जन्म से मृत्यु तक जिम्मेदारियों का जमावड़ा है। संसारी जीव का जीवन संयोग और वियोग के ताने-वानों से बना कर्म जाल है।

जब भी घर में कोई बच्चा जन्म लेता है, तो सूतक और परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर पातक लग जाता है। दोनों ही मामलों में रक्त सम्बन्धियों को एक निश्चित समय तक सूतक या क्वारेंटाईन अर्थात एकांतवास में रहने का निर्देश हमारे शास्त्रों में वर्णित है। इसका पालन करने से प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है।

हजारों वर्ष पुराने गरुड़पुराण के अन्तर्गत सारोद्धार में “सपिण्डनादि-सर्वकर्मनिरुपण” नामक तेरहवाँ अध्याय में विस्तार से इसका वैज्ञानिक महत्व समझाया है-
मृत्यु के सूतक या पातक का रहस्य…
मानव शरीर कुछ रसायनिक समन्वय से उत्पन्न पल भर की प्रतिक्रिया है, जो विघटन होते ही समाप्त हो जाता है।
प्रत्येक पुरुष में औरा या तेजोवलय के रूप में एक ऊर्जा का वास होता है। यही उसे जीवित रखता है।

सूतक से मानसिक और शारीरिक
दोनों तरह की अपवित्रता आती है। सूतक द्रव्य और क्षेत्र से तथा मन राग-द्वेष आदि विकारी परिणाम से घर-परिवार का सम्पूर्ण वातावरण भी प्रभावित हो सकता है।
शरीर अशुद्ध हो जाता है। जैसे – एक बूंद नींबू के रस से पुरे दूध को परिवर्तन हो जाता है। इस कारण सूतक काल में शुभ कार्य करना वर्जित है।

हमारे भारत में आदिकाल से हिन्दू रिति-रिवाजों का जो सूतक है, वही आज का क्वारेंटाईन है।
धर्म-शास्त्रों में सूतक अनेक प्रकार के बताए गये है। आयुर्वेद के शालक्य विज्ञान, काय–चिकित्सा, शरीर क्रिया विज्ञान आदि का भी कहना है कि- हमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूतक का पालन करना चाहिये।
यह क्वारेंटाईन वही सूतक है
जिसका भारतीय संस्कृति में इस परम्परा का प्राचीनकाल से पालन होता आ रहा है।
विदेशी संस्कृति के नादान लोग हमारे इसी सूतक (क्वारेंटाईन) अथवा छुआछुत
को समझ नहीं पा रहे थे।
सूतक स्त्री-पुरुष सबके लिए मान्य हैं।
सूतक (क्वारेंटाईन) अनेक प्रकार के होते हैं।
सूतक के प्रकार और समय का आकार…
सूतक के निम्न भेद है।
सौतिक – प्रसूति सम्बन्धी
आर्तज – मरण सम्बन्धी
आर्तव – ऋतुकाल सम्बन्धी
मासिक धर्म सम्बन्धी।
सूर्य-चन्द्र ग्रहण का सूतक कम समय का होता है।
टीका निर्णय सिंधु के कहा है कि-
तत्सन्सर्गज अर्थात सूतक से अशुद्ध व्यक्ति
के स्पर्श से भी दोष लगता है।
जैन धर्म में सूतक का महत्व…

नवमी शताब्दी में जिनसेनाचार्य द्वारा रचित महापुराण, तत्पश्चात आचार्य नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती दशमी तथा ग्यारहवीं शताब्दी में आचार्य जयसेन रचित ग्रंथों में सूतक को समय निषेध रूप में वर्णित किया गया है।
जैन ग्रन्थों में सूतक अवस्था में आहार-दानादि कार्य अपवित्र बताया गया है।

जन्म काल का सूतक…

भारतीय संस्कृति में जब किसी घर में बच्चा जन्म लेता है, तो जन्म सूतक मानकर जच्चा-बच्चा को सामान्य तौर पर 10 से 14 दिन तक अलग कमरे में रखकर एकांतवास मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।

क्यों मानते हैं जन्म को सूतक.…
सूतक का सम्बन्ध जन्म के कारण हुई अशुद्धि से है। जन्म काल में बच्चे का, जो नाल काटा जाता है और बच्चा पैदा होने की प्रक्रिया में कई तरह जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाले दोष या पाप को प्रायश्चित स्वरुप सूतक माना जाता है।

आरोग्य की प्राचीन प्रक्रिया है-क्वारेंटाईन-स्वास्थ्य की दृष्टि से एक वजह यह भी है कि- जब बच्चे का जन्म होता है, तो उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि इम्युनिटी का विकास भी नहीं हुआ होता। बच्चा अतिशीघ्र संक्रमण के दायरे में आ सकता है, इसलिए 10-30 दिनों की समयावधि तक जच्चा-बच्चा दोनों को बाहरी लोगों से दूर एकांतवास अर्थात क्वारेंटाईन रखा जाता है, जिसे सूतक भी कह सकते हैं।

मूल के नक्षत्रों में सूतक….

अश्वनी, अश्लेषा, मघा, मूल, ज्येष्ठा और रेवती ये मूल संज्ञक नक्षत्रों में जन्मे बालको के लिए भी सूतक का विधान है।

मृत्यु का सूतक (क्वारेंटाईन)….

जीवित व्यक्ति में एक विशेष प्रकार की
ऊर्जा-आकर्षण उसका तेजोवलय या औरा ही कारण होता है।
प्राणांत के बाद व्यक्ति के मरण स्थान पर जीव-द्रव्य यानि बायोप्लाज्मा विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा के रूप में विद्यमान रहता है जिसका अपघटन तीन दिन में होता है, तब तक परिवार के सभी सदस्यों के तन का पतन होने से इसे पातक भी कहा गया। ऐसी परिस्थितियों में संक्रमण फैलने की संभावनाएं बहुत हद तक बढ़ जाती हैं।

मृतक शरीर में भी दूषित जीवाणु होते हैं। हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है।
इसलिए ऐसा कहा जाता है कि दाह-संस्कार के पश्चात स्नान आवश्यक है ताकि श्मशान घाट और घर के भीतर मौजूद कीटाणुओं से मुक्ति मिल सके।

सबसे अलग रहते हुए घर-बाहर, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। इस दरम्यान मृतक परिवार के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता।

शवयात्रा में शामिल व्यक्ति को भी 2 प्रहर अर्थात 6 घण्टे का सूतक लगता है, अपने गृहप्रवेश के पूर्व स्नान करके ही घर में घुस सकते हैैं।

दुर्भाग्य दायक और अपमृत्यु सूतक….

जैन महापुराणो में अग्नि, भूकंप, उल्कापात, प्राकृतिक आपदा से जनहानि, बाढ़, , बिजली गिरना, सर्पदंश, सिंहघात, युद्ध एवं दुर्घटना के कारण मरण को अपमृत्यु मरण का सूतक कहते है।
आत्मघात मरण सूतक…
परिवार में किसी स्त्री का सती होना, क्रोध के
वशीभूत कुएँ में गिरना, नदी-तालाब में डूबकर मरना, छत, पहाड़, किला या बहुत ऊंचाई से कून्दकर मरना, जहर खाकर जान देना, फांसी लगाना, आत्म घात, अग्निदाह करना, गर्भपात आदि मरण ही है। इन्ही कारणों से अन्य के प्राणों का हनन करना भी आत्मघात मरण ही है।
इस तरह की मृत्यु में भी सूतक लगता है।

गर्भपात का मृत्यु का पातक सूतक….

किसी महिला का गर्भपात होने पर पूरा परिवार 12 या 13 दिन तक सूतक में रहता है। इसे पातक भी कहा जाता है। यह सूतक पितृदोष का भी कारक है। इसकी शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध कराने का विधान गरुड़पुराण में मिलता है।
गर्भपात सूतक दो तरह का बताया है-
1- स्राव सम्बन्धी…..
गर्भ धारण से तीन-चार माह तक के
गर्भ गिरने को स्राव कहते है।
2- पात सम्बन्धी….किसी गर्भवती महिला के गर्भ धारण से पांच -छ: महीने तक का गर्भ गिरने को गर्भ पात कहते है।

मूक जीव-जानवरों की मृत्यु का सूतक…
घर में पले-रहने वाले प्राणियों यानि परिवार के सदस्य रूपी सेवक और पालतू पशु-पक्षियों जैसे-तोता, गाय, भैंस, श्वान आदि की मृत्यु से हुई अशुद्धि को आर्तज सूतक या पातक कहते है।
इसकी शान्ति के लिए 11 पशु-पक्षियों के अनुरूप 3 दिन तक भरपेट भोजन करवाना चाहिए।

मासिक धर्म का सूतक (क्वारेंटाईन)….
आयुर्वेद शब्दावली में इसे रजो-दर्शन, रजोधर्म भी कहते है। इसे अशुचिता, अशुद्धि का प्रतीक मानते हैं। ऐसी अवस्था में महिलाओं को पूजा-पाठ करना, भोजन निर्माण करने की मनाही रहती है।

ऋतुकाल या मासिक धर्म सामान्यत: बारह वर्ष से पचास वर्ष तक स्त्रियों में प्रत्येक माह में रक्त स्राव से होने वाली अशुद्धि को आर्तव, महीने से होना अथवा बैठना भी
कहते है। यह स्त्री मासिकधर्म 5 से 7 दिन का होता है। इस अवस्था में प्रत्येक महिला राजस्वला कहलाती है।
आर्तव दो प्रकार का होता है.…
“काय-चिकित्सा” में इसके 3 भेद बताए हैं-

© प्राकृतिक आर्तव स्राव..…
नियमित रूप से नियमित तिथियों में होने वाला रक्तस्राव जो तीन दिन तक होता है, प्रकृत स्राव कहलाता है।
© रोगाधिक आर्तव…
बीमारियों की अधिकता के कारण कुछ औरतों को एक निश्चित नियमित काल के पहले अथवा बाद में बार-बार रक्त स्राव होना।

© विकृत आर्तव स्राव….
योवन अवस्था में भी नियमित काल के पहले रक्त स्राव हो सकता है। इस प्रकार अन्य कारणों से असमय होने वाला रक्त स्राव कहलाता है। वर्तमान में यह पीसीओडी डिसीज के नाम से जाना जाता है।

यह एक खतरनाक स्त्रीरोग है, जिससे

कम उम्र में ही बुढ़ापे के लक्षण आने लगते हैं। इस रोग से बचने के लिए

नारी सौन्दर्य माल्ट का 5 से 6 माह तक निरन्तर सेवन करना लाभकारी रहेगा। ज्यादा जानने हेतु क्लिक करें…
https://amrutampatrika.com/narisondaryamaltoilforwomenshealthbeauty/
दूसरा ब्लॉग भी पढ़ें…

नारी सौन्दर्य माल्ट के फायदे | Benefits of Nari Sondarya Malt –

सूर्य-चन्द्र ग्रहण का सूतक.…
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण से 10-12 घण्टे
पहले के कुछ अशुभ समय को सूतक के रूप में जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूतक के दौरान प्रथ्वी और प्रकृति संक्रमित होने लगती है। सृष्टि का वातावरण दूषित होता है और उसके हानिकारक दुष्प्रभाव से बचने के लिए अतिरिक्त सावधानी का पालन करते हुए मंदिरों के कपाट बन्द कर दिए जाते हैं।

ग्रहण काल सूतक क्वारेंटाईन में भोजन करना, पानी पीना निषेध होता है।

अशुद्धि या संक्रमण से बचाव के लिए
घर में खाने-पीने के सामान एवं बचे हुए भोजन तथा पानी में तुलसी पत्र डालकर
खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।

ग्रहणकाल से मुक्ति …

जब ग्रहण काल खत्म होता है और सूर्य या चंद्रमा ग्रहण से मुक्त होने के बाद गंगाजल से पूरे घर को पवित्र कर, 5 दीपक जलाते हैं। इसे ही ग्रहण का मोक्ष कहा जाता है।

छुआछूत भी एक प्रकार का क्वारेंटाईन है…

भारत की संस्कृति में मल विसर्जन के पश्चात कम से कम 3 बार हाथ धोकर, शरीर पर जल छिड़कते है, तब शुद्ध मानते हैं।

शरीर को स्वस्थ्य-सुरक्षित कैसे रखें?

★ पूजा-पाठ की सब विधियां-संक्रमण मिटाती हैं-
★ घी और अन्य पूज्यनीय सामग्री मिलाकर
हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है।

★ हर दिन कपूर जलाने से घर के जीवाणु मर जाते हैं

★ मंदिरों में शंखनाद करने से प्रकृति का
वातावरण को शुद्ध होता है।
★ मंदिरों में घण्टा बजाने से ॐ की ध्वनि का गुंजायमान होता है। घड़ियाल की ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं।
★ भोजन को माँ अन्नपूर्णा का प्रसाद मानते है। इसलिए अन्न देवता की शुद्धता का महत्व है।

★भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ इसलिए धोते हैं, ताकि शरीर में किसी तरह का संक्रमण या विकार उत्पन्न न हो जाए।

★ बाहर से वापस लौटकर हाथ-पैर, मुहँ धोकर घर के अंदर आने से प्रदूषण प्रवेश नहीं कर पाता।
★ हल्दी या नीम युक्त जल द्वारा सुबह स्नान करने से त्वचा रोगों से बचाव होता है।

★ बीमार व्यक्तियों को नीम से इसलिए नहलाते हैं, जिससे घर में संक्रमण, बीमारी न फैल सकें।
★ भारत के सिंहस्थ मेले में कुंभ स्नान से आत्मा पवित्र होती है, क्योंकि इन नदियों के जल में महान आत्माएं, साधु-सन्त स्नान करके जल पवित्र कर देते हैं।
★ सोमन्ती अमावस्या या पूर्णिमा तिथियों पर नदियों में स्नान की परम्परा पितरों की शान्ति के लिए एक अनुष्ठान है, ताकि पूर्व जन्मों कोई भी सूतक हो तो दूर हो जाये।

★ शरीर में इम्युनिटी बढ़ाने के लिए भोजन में जीरा, धनिया, सौंफ, हल्दी, दालचीनी आदि मसालों को को अनिवार्य कर दिया।
★ चन्द्र और सूर्यग्रहण सूतक में भोजन नहीं करते हैैं।
★ भारत की परम्परा दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार, प्रणाम एवं अभिवादन
करने की रही है। इसीलिए पुराने लोग किसी को छूते या हाथ लगाना छुआछूत मानते थे।

★ उत्सव से उत्साह, उमंग ऊर्जा में वृद्धि होती है, जिससे इम्युनिटी पॉवर बढ़ता है। ★ साथ ही तीज-त्योहारों में शिवालय-देवालयों में जाकर, दीपक धूप जलाना से वायुमण्डल शुद्ध करने की परम्परा भी पुरानी है।
★ होली में कण्डे, कपूर, गोबर के उपले और हविष्य-हवनसामग्री तथा पान के पत्ते पर नैवेद्य लोंग-इलायची रखकर श्री गणपति का स्मरण करते हुए…
गजाननं भूतगणादि सेवितं

कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम्‌!
उमासुतं शोक विनाशकारकं

नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्‌!!

आव्हान करते हैं और
ॐ प्राणाय स्‍वाहा
ॐ अपानाय स्‍वाहा
ॐ उदानाय स्‍वाहा
ॐ समानाय स्‍वाहा
ॐ व्‍यानाय स्‍वाहा
का उच्चारण करते हुए भोग अर्पित करते हैं।
★ प्राचीनकाल में वैदिक परम्परा, पुराणों के अनुसार भोजन पूर्व इस प्रक्रिया को हरेक
हिन्दुस्थानी अपनाता था। इससे व्याधि-विकारों से बचाव होता है।

भोजन करते समय पहला ग्रास
। । ॐ अग्नये स्वाहा। ।
हे अग्निदेव! आपको भोजन स्वीकार करें।
ॐ प्राणाय स्वाहा– हे प्राणवायु! आप भी भोजन पचाने में मदद करो।
प्राण वायु के पांच नाम ऊपर लिखे हैं…
वैदिक मान्यता है कि-पाच ग्रास (कौर)
पाचक अग्नि वायु के नाम का लगाने से
पचनेन्द्रीय प्रणाली, मेटाबोलिज्म मजबूत होता है।
जठराग्नि प्रदीप रहेगी और खाना जल्दी पच जाता है। इसे 5 दिन आजमाकर भी देख सकते हैं। पूजा प्रकाश, व्रतराज एवं अनुष्ठान विधि सहिंता में ऐसा बताया है।

★ वातावरण को विशुद्ध करने हेतु
दीपावली पूजन के बहाने घर के कोने-कोने
की साफ-सफाई, गाय के गोबर से द्वार लीपकर जीवाणुओं का नाश करते

आगे आने वाले समय में जो भी व्यक्ति इस अतिसूक्ष्म वैदिक विज्ञान को आत्मसात करेंगे, वे ही लोग कोरोना जैसे संक्रमण या वायरस के भय से बचकर विजय प्राप्त कर सकेंगे। क्योंकि-

सन्सार में अब इतना वातावरण, वायुमण्डल इतना दुषित-प्रदूषित हो चुका है कि एक के बाद एक नई बीमारी महामारी बनकर उभरेगी।

जो जागत है-वो पावत है….
रोगों से बचने के लिए हमें प्राचीन संस्कृति और प्राकृतिक नियमों जैसे-समय पर उठना, घूमना-दौड़ना, नहाकर ही अन्न या अन्य खानपान ग्रहण करना, तनिक सी बीमारियों को घरेलू उपचारों से ठीक करना, आयुर्वेदिक या देशी दवाओं का उपयोग, योगा-प्राणायाम, ध्यान-साधना, सादा-जीवन, उच्च-विचार और 7 दिन में एक बार पूरे दिन का एकांतवास,
क्वारेंटाईन आदि क्रियायों को अपनाना पड़ेगा। तभी हम स्वस्थ्य रह सकेंगे।
हम ऐसी सनातन संस्कृति में जन्में हैं जहाँ सब कुछ पहले से उपलब्ध है, बस हमें उन पर ध्यान देकर अमल करना है। यही हमारी जीवन शैली हैं।

अघोरी साधकों की तपस्या भी एक तरह का क्वारेंटाईन ही है।

तन तन्दरुस्त-मन प्रसन्न कैसे रहे?
28 स्वास्थ्यवर्द्धक सूत्र जानने के लिए नीचे लिंक क्लिक करें…
अमृतम के 28 स्वास्थ्य वर्द्धक सूत्र आपके तन-मन-अन्तर्मन को ताउम्र स्वस्थ्य रखने में सहायक सिद्ध होंगे… – अमृतम पत्रिका

मस्त रहने, ठहाके लगाकर हँसने से, हार्मोन्स – हारने वाले का होंसला-अफ़जाई करते हैं…

बिना दवा के रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने
के लिए रोज 10 मिनिट तक लगाएं ठहाके। हँसने-हँसाने, खुश रहने से ऑक्सीजन का
स्तर बढ़कर प्राणवायु पवित्र होती है।
हंसने से चार हार्मोन्स होते हैं-एक्टिव….
■ एंडोर्फिन हार्मोन्स, यह ग्रन्थिरस या अंत:स्राव दिमाग से रिलीज होकर जीने के लिए प्रेरित कर ऊर्जा-उमंग बढ़ाता है। हृदय की सुरक्षा करता है।
■ सेरोटोनिन हार्मोन
(यह ब्रेन केमिकल मनोबल मजबूत करता है)
■ डोपामाइन हार्मोन
खुशी का एहसास कराता है।
■ ऑक्सीटोसिन एक शक्तिशाली ‘लव हार्मोन’ है, जो पुरुष और महिलाओं दोनों को प्रेम के बंधन में बांधकर आपसी विश्वास बनाये रखता है।

हँसने-हँसाने से रिश्तों में रिसाव नहीं होता…
दूरियां मिटकर लव-लाइफ और वाइफ
खुशहाल रहती है…

ये चारो कुदरती हार्मोन हमारे शरीर में होने
वाले रसायनिक अभिक्रिया अर्थात
केमिकल रिएक्शंस से बनते हैं, जो हमें स्वतः
ही स्वस्थ्य और खुश रखने में सहायता करते हैं।

इम्युनिटी बढ़ाने के लिए करें ये उपाय…
तुलसी, अदरक, हल्दी, दालचीनी, द्राक्षा, जीरा, सौंफ, अजवायन, त्रिकटु, त्रिफला युक्त आयुर्वेदिक काढ़ा नियमित पियें।
आप अमृतम द्वारा निर्मित इन दवाओं
का भी सेवन कर सकते हैं-
【1】अमृतम गोल्ड माल्ट,


अमृतम गोल्ड माल्ट | Amrutam Gold Malt | An Ayurvedic Jam –

【2】फ्लूकी माल्ट,

Flukey Malt

आयुर्वेद बचा सकता है-कोरोना वायरस से……. –

【3】लोजेन्ज माल्ट,


सभी संक्रमणों से बचाता है आयुर्वेद – अमृतम पत्रिका

Amrutam Daily Lifestyle Archives – Page 3 of 64 – अमृतम पत्रिका

【4】चाइल्ड केयर माल्ट,


https://www.amrutam.co.in/childcaremalt/

【5】कीलिव माल्ट लिवर को मजबूत बनाता है…

पीलिया और 72 तरह की बीमारी दूर कर, “पेट को अपडेट” रखता है- keyLiv malt – 40 कारगर आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों से तैयार योग – अमृतम पत्रिका
यदि आप अनियमित मलत्याग यानि गृहिणी रोग आईबीएस (IBS) से पीड़ित से तो इस ब्लॉग को पढ़कर जान सकते हैं…

https://amrutampatrika.com/kabjkishikayat/

रोज रात लें, तो इम्यून सिस्टम स्ट्रांग होगा-

【6】अमृतम च्यवनप्राश


च्यवनप्राश त्रिदोषनाशक होता है।
यह शरीर के सिस्टम को पूरी तरह
ठीक कर “रोगप्रतिरोधक क्षमता”
में वृद्धि करता है। बशर्ते इसे कम
से कम 3 माह तक सेवन करें।

कैसे रोके-रोगों का रायता फैलने से… – अमृतम पत्रिका

उपरोक्त अमृतम ओषधियों में से किसी भी आयुर्वेदिक ओषधियों का सेवन करे। इन्हें अपने भोजन का हिस्सा बना लें। इन इम्युनिटी बूस्टर दवाओं को खाने से पहले 1 से 2 चम्मच दूध या जल से लेकर भोजन ग्रहण करें।
स्त्रियों की सुंदरता, खूबसूरती देने वाली
चमत्कारी आयुर्वेदिक ओषधि

【7】नारी सौन्दर्य माल्ट विशेष कारगर है।

पूरी तरह भक्ति भाव में रहने के लिए आजमाएं-
ॐ का हर अक्षर अमॄतम। अ-उ-म [ॐ] का वेद-सम्मत वैज्ञानिक उच्चारण•••• – अमृतम पत्रिका

यदि आप कालसर्प-पितृदोष, राहु-केतु, शनि से पीड़ित हैं, तो इस लेख का अध्ययन करें-

बहुत कम लोग जानते हैं-ॐ नमःशिवाय पंचाक्षर मन्त्र के चमत्कारी रहस्य और 26 फायदे – अमृतम पत्रिका

और अन्त में कोरोना से भारत जीतेगा ही-
लेकिन कैसे?
भारत में कोविड- 19 पर जीत, तो सुनिश्चित है, चाहें वह दवा से हो, दुआ से हो, समय के साथ हो अथवा प्रकृति या आयुर्वेदिक चिकित्सा से हो – अमृतम पत्रिका

स्वस्थ्य तन-स्वच्छ वतन…..

स्वच्छता पर आधारित जीवन शैली सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सबसे उत्तम-उन्नत हैं। यह
विश्व का कल्याण हेतु प्रार्थना के लिए जानी जाती है कि- सर्वजन सुखाय
तेरा मङ्गल, मेरा मंगल, सबका मङ्गल हो!
सबका भला हो! यही भारतीय संस्कृति है। भला का उल्टा लाभ होने से हमारे वैज्ञानिक महर्षियों ने इसे सबके जीवन में ढाल दिया।

अतः पारब्रह्म परमेश्वर प्राणेश्वर से सबके स्वास्थ्य और आनंद के लिए प्रार्थना हमारा कर्तव्य है। अमृतम परिवार भी इस पुनीत कार्य में सहयोगी है।

यदि यह ब्लॉग प्रेरणादायिनी, ज्ञानवर्धक लगे, तो औरों को भी शेयर कर कृतार्थ करें।

Posted in Amrutam Daily LifestyleTagged स्वास्थ्यवर्द्धक

22 बूटियों से करें बालों का उपचार

कुन्तल केयर हर्बल हेयर स्पा हेम्पयुक्त उपयोग करें

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *