सात त्राण – बचाएं प्राण…
पहले समय में युद्ध के समय त्राण का उपयोग सैनिक या योद्धा के प्राणों की रक्षा के लिए किया जाता था। यह सात प्रकार के होते थे।
【१】अंगत्राण…
अंग की रक्षा करने वाला आवरण, बख़्तर, कवच तथा वस्त्र।
【२】अंगुलित्राण….
इसे अंगुश्ताना, दस्ताना भी कहते हैं।
खास चमड़े से बना दस्ताना जो बाण चलाने में रगड़ से बचने के लिए उँगलियों में पहना जाता है
【३】उरस्त्राण….
युद्ध में छाती की रक्षा करने के लिए उस पर बाँधा जाने वाला कवच; बख़्तर।
【४】तनुत्राण…
शरीर की रक्षा करने वाला वस्त्र। इसका सर्वप्रथम उपयोग महाराणा प्रताप ने किया था, जो आज भी उदयपुर, जोधपुर के संग्रहालय में रखा है।
【५】 पदत्राण….
पैरों की रक्षा करने वाला जूता, चप्पल, खडाऊँ।
【६】परित्राण….
शरीर के बाल, रोएँ को कहते हैं। यह तन का रक्षक है। दूसरा अर्थ
विपत्ति या कष्ट आदि से की जाने वाली पूर्ण रक्षा, पूरा बचाव, आत्मरक्षा
【७】परित्रणार्थ….
रक्षा के लिए, परित्राण के लिए
कलयुग में कलदार का ही कायदा है..
बाराही तन्त्र शास्त्र का सिद्धान्त है कि कलियुग में वैदिक जप-मन्त्र एवं यज्ञादि का तुरन्त फल नहीं मिलता। इसलिए कलयुग में किसी भी कार्य की तत्काल सफलता और सिद्धि के लिये तंत्रग्रन्थ में लिखे मंत्रों और उपायों आदि से ही लाभ होगा।
तन्त्रग्रंथ के अनुसार त्राण भी तन्त्र का एक हिस्सा है। एक दम नवीनतम ज्ञान के लिए
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