रामायण——–

तुलसीकृत रामायण और रामचरितमानस के ग्रंथ को अभी 500 वर्ष पूरे हुए हैं..

इन 500 वर्षों में ही भारत का भाग्य भाग गया अर्थात रूठ गया 500 वर्ष पूर्व भारत सोने की चिड़िया कहलाता था

जैसे रामायण आदि ग्रंथों के प्रभाव और विचारों से प्रेरित कुछ मूर्ख लोगों ने “रं” बीज मंत्र का उच्चारण राम के…

नाम से करने लगे तब से भारत की आध्यात्मिक ऊर्जा का नाश हो गया मुगलों मुसलमानों अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया …

यहां की प्राचीन संस्कृति का नाश कर दिया क्योंकि जब भी बीज मंत्र गुरु मंत्र जैसे ऊर्जा दायक शक्तिशाली मंत्रों का उच्चारण वाणी से होने लगता है

उस क्षेत्र की अदृश्य रहस्यमई शक्ति क्षीण होने लगती है

रामायण की रचना से पूर्व शिव और श्री कृष्ण की भक्ति से ही यह जगत विशेषकर भारत भावमय होकर विभोर सा रहता था..

भागवत कथा का प्रचार प्रसार जोरों पर था केवल भागवत से ही प्रेरणा लेकर लोग जीवन को भाग्यशाली बनाते थे अमरनाथ में मां भगवती को शिव ने जो अमर कथा सुनाई थी ..

वह वास्तव में भागवत कथा ही थी यह पता भगवती को सुनाए जाने के कारण ही इसका नाम भागवत पड़ा एक संत ने बतलाया था ..

कि भाग्य को बताने वाली कथा का नाम भागवत है

वर्तमान में जड़मत आलसी बातुनी आदि लोगों को प्रेरणा देकर जगाने और भगाने की कथा का नाम भागवत है

वर्तमान में भागवत धर्म का विशाल बाजार बन चुका है यह पूरा व्यापार हो चुका है

दिन पूरे नहीं जब विदेशी कंपनियां इसकी मार्केटिंग कर धर्म का व्यवसाय करेंगी इन कथाओं का प्रवेश शुल्क होगा..

सारी सुविधाएं होंगी भारत के लोगों ने धर्म ग्रंथों का केवल श्रवण करने का ही संकल्प लिया है

इस धर्म से कर्म की प्रेरणा कभी नहीं ली धर्म वह होता है जिससे प्रेरणा मिले जिससे उन्नति हो सफलता के सौ पान चढ़ सके

धर्म एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है भारत का धर्म ज्ञान विज्ञान का रहस्यमई पिटारा है

भागवत की जहां से कथा प्रारंभ होती है सृष्टि का आरंभ और परम महा विज्ञान के आविष्कार की प्रक्रिया है

इसमें जिन ऋषियों राजा महाराजाओं के नाम का जो उल्लेख है वे उनके वैज्ञानिक आविष्कार हैं

यदि भागवत का सही प्रकार से अध्ययन श्रवण किया जावे तो लोगों की बुद्धि हिल जाएगी..

हिरण कश्यप भक्त पहलाद सिंहिका होलिका राजा बलि आदि यह सब प्रकृति के रहस्यमई ज्ञान को खोजने वाले महापुरुष थे..

यदि भागवत कथा का विधि विधान से श्रवण अध्ययन करें श्लोकों की व्याख्या करें तो कम से कम इसके पूर्ण होने में 5 वर्ष और अधिक समय सीमा निर्धारित नहीं है ..!

लग जाएगा…!
वर्तमान में केवल भगवान कृष्ण को केंद्र बिंदु बनाकर कथा की जाती है

संगीत गीत गाना बजाना नित्य डोल तमाशा बनाकर समय बर्बाद कर दिया जाता है

कुछ लोगो की रुचि अनुसार किस्से कहानियां और जोड़ दी जाती हैं

भगवान के नाम पर भक्तों को इतना बेवकूफ बनाया जाता है

कि सभी देवता एक हैं शिव पार्वती शंकर महेश्वर जटाशंकर नटराज दुर्गा विष्णु श्री हरि ब्रह्मा इंद्र नवदुर्गा राम कृष्ण आदि अनेकों देवता प्रकृति के खोज करने वाले अविष्कार थे ..!

जिन्होंने जो खोजा उसके अनुरूप एक ही देवता के अनेकों नाम जैसे शिव के 1008 नाम है विष्णु भगवती के भी इतने ही नाम हैं

ब्रह्मा का एक ही नाम है ..!

आदि अर्थात जिस देवता ने जिस विज्ञान की खोज की उसे खोज के आधार पर उस आविष्कार करने वाले के साथ जोड़ दिया..

जैसे शुक्राचार्य की पुत्री ने ब्रह्मांड की खोज की तो उस ब्रह्मांड का नाम निहारिका पड़ गया..

जिस देवता ने सबसे अधिक निर्माण खोज अविष्कार किए उसका नाम सिर्फ पड़ गया पंचमहाभूत का निर्माण करने के कारण..

इन्हें भूतेश्वर अर्थात पंचमहाभूता पंचतत्व की उपाधि से नवाजा गया काल की सूक्ष्म से सूक्ष्म गणना करने के कारण महाकाल कहां गया जब तक व्यक्ति जीवित रहता है ..

उसके हृदय आत्मा से नृत्य चलता रहता है..1

नित्य का निर्माण करने के कारण नटराज कहलाए सबका कल्याण करने के कारण कालेश्वर कहलाए सृष्टि में सभी को संभाल कर बनाए रखने हेतु शंकर नाम पड़ा जटाशंकर इसलिए कहते हैं..

क्योंकि घटाएं टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं..!

इन्हें सम अर्थात एक सी व्यवस्थित करने के कारण जटाशंकर कहलाए भगवान की 1008 नामों का उल्लेख है..

अथवा इन्होंने एक हजार आठ प्रकार के निर्माण आविष्कार किए उसी अनुसार उस विज्ञान का नाम अविष्कार का नामकरण इनके नाम पर किया

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