साइकिल चलाओ और तन्दरुस्त बनो!

कल, कलदार और क्लेश से दुनिया परेशान है। भविष्य में क्या होगा?…

इसी चिंता में विश्व की एक चौथाई जनसँख्या बीमार है।

सायकल चलाने वाले अंकल को……. कल की कोई फिक्र नहीं रहती।

क्योंकि सायकल चलाकर वह तन्दरुस्त रह सकता है।

बचपन में साइकिल चलाने के मजे,

जवानी में ना जाने कहाँ खो जाते हैं।

गिरना, घिसटना, रगड़ना सब बन्द,

क्या सच में हम इतने बड़े हो जाते हैं।।

सायकल चलाने से शरीर रहता है-तन्दरुस्त और होते हैं

70 से ज्यादा फायदे जानकर कभी बिस्तर पर नहीं पड़ेंगे

…यह हमारा दावा है

सायकल चलाने से कलदार बचेंगे, स्वास्थ्य ठीक रहेगा और खर्च कम, तो कल की चिंता से मुक्ति मिलेगी।

सायकल चलकर आप पल-पल…प्रसन्न रह सकते हैं यह अटल सत्य है।

आपका नल भी रोगरहित रहेगा।

मधुमेह जैसी बीमारियां कभी आप पर आक्रमण नहीं करेंगी।

असल में सायकल चलाने से जो मेहनत होती है, उससे तनाव मिटता है।

एक जमाना था, जब सारे सन्सार में सायकिल सम्मान का सूचक थी।

वो वक्त याद करो, जब सायकिल पर चलने वाला व्यक्ति अपने आप को “माइकल जैक्सन” समझता था।

कभी सायकल भी रोजी-रोटी थी…देश में सायकल रोजगार का बहुत बड़ा सहारा हुआ करती थी।

लोग कम-धंधे पर निकलने के पूर्व रोज सुबह सायकिल धोना, साफ करना, तान कसना, रिम चमकाना तथा ब्रेकों में ऑयल आदि डालना आदि ..

हर सायकल रखने वाले का एक नियम था। एक प्रकार से सायकिल आदमी का जीवन हुआ करती थी।

दूध की बंधी बाटने से लेकर, कबाड़े का काम, अखबार पहुंचाना, अन्य सामानों का विक्रय सायकल के बूते होता था।

सायकल का भी कभी कार से क्रेज था…कभी सायकिल की दम पर 100-50

किलोमीटर चलना बहुत छोटी बात रही।

सायकिल चलाने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ्य

तन्दरुस्त भी रहता था।

गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले, गांव-गाँव

सायकिल के बारे में बात हुआ करती थी।

सायकिल दौड़ की प्रतिस्पर्धा ग्रामवासियों

के लिए खेल, कसरत के साथ साथ मनोरंजन का साधन भी था।

वह सायकिल का भारत कहलाता था।

हर घर में सायकिल होना गर्व

की बात हुआ करती थी।

भारत आत्मनिर्भर बना सायकल ने.…

भारत में सायकल आने से पहले आम आदमी के पास आवागमन का कोई खास साधन नहीं था।

ज्यादातर लोग बैलगाड़ी, ऊंट, पालकी, हाथी, घोड़ा आदि से परिवहन किया करते थे।

भारत में भी साइकिल के पहियों ने आर्थिक

उन्नति में अहम भूमिका निभाई है।

1947 में आजादी के बाद अगले कई दशक तक देश में साइकिल यातायात व्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा रही।

भारत के अनेकों आंदोलन सायकल आधारित थे।

खासतौर पर 1960 से लेकर 1990 तक भारत में ज्यादातर परिवारों के पास साइकिल थी।

यह व्यक्तिगत यातायात का सबसे ताकतवर और किफायती साधन था।

गांवों में किसान साप्ताहिक मंडियों तक सब्जी और दूसरी फसलों को साइकिल से ही ले जाते थे।

दूध की सप्लाई गांवों से पास से कस्बाई बाजारों तक साइकिल के जरिये ही होती थी। आज भी हो रही है।

युवाओं में बढ़ा सायकल का क्रेज… आजकल सायकिल का फैशन पुनः युवा पीढ़ी को रास आ रहा है।

सायकिल ग्रुप बन गए हैं।

प्रतिदिन एक टॉस्क के तहत 50 से 100 किलोमीटर तक युवा सायकिल चला लेते हैं।

यह स्वस्थ्य रहने के लिए अत्यन्त लाभकारी है।

जीवन में सायकल का महत्व

साइकिल आवागमन एवं परिवहन का सबसे किफायती, सस्ता और स्वच्छ माध्यम है।

सायकल से कभी किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं होता।

प्रकृति का पर्यावरण पवित्र रहता है।

सायकल चलाने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।

सायकल चलाने से शरीर स्वस्थ्य रहता है।

किसी ने लिखा है…

साइकिल की सवारी, लगती है बड़ी प्यारी। इम्युनिटी को बढायें, न होती कोई बीमारी।।

88 तरह के वातरोग दूर रहते हैं।

थायराइड की समस्या नहीं होती।

यह फिटनेस की दृष्टि से भी उपयोगी है।

सायकल चलाने से कमर में स्लिप डिस्क की प्रॉब्लम नहीं होती।

देशों को कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में सहायता मिलेगी।

जाने कार्बन फुटप्रिंट क्या होता है…

वैज्ञानिकों के अनुसार इंसान की करीब सभी आदतें,

जिनमें खानपान से लेकर पहनने के कपड़े तक शामिल हैं,

कार्बन फुटप्रिंट का कारण बनते हैं।

देशी शब्दों में हर काम के लिए ऊर्जा की

जरूरत पड़ती है और इससे कार्बन डाइआॅक्साइड गैस निकलती है,

जो धरती को गर्म करने वाली सबसे

अहम गैस है।

हम दिन, महीने या साल में जितनी कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करते हैं,

वह हमारा कार्बन फुटप्रिंट है।

इसे कम-से-कम रख करके ही पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन एवं एयर पॉल्युशन के प्रकोप से बचाया जा सकता है।

सायकल का देश नीदरलैंड…सुनहरे कल के लिए सायकल जरूरी है…

यूरोप की ऐतिहासिक नगरी नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम का हर आदमी स्वस्थ्य

रहने हेतु सायकल अत्यन्त आवश्यक मानता है।

यहां के औसतन 40% लोग काम पर जाने के लिए साइकिल का उपयोग करते हैं,

यह संख्या विश्व में सर्वाधिक है।

सायकल का अविष्कार…..

सायकल के प्रथम खोजकर्ता के रूप में बहुत फ्रांस के पियरे लैलमेंट का नाम आता है।

यह बात लगभग 1763 के आसपास की है।

कैसे चली सायकल….

यूरोपीय देशों में 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध

के मध्य सायकल के प्रयोग का विचार लोगों के दिमाग में में ही आ चुका था,

लेकिन इसे मूर्तरूप सर्वप्रथम सन् 1816 में पेरिस के एक कारीगर ने दिया।

उस यंत्र को हॉबी हॉर्स, अर्थात काठ का घोड़ा, कहते थे।

कल-पुर्जों से बनी कल की सायकल

ऐसा माना जाता है कि सायकल का अल्प प्रयोग 1830 से 1842 के बीच हुआ था।

आज की साइकिल का निर्माण होने से पहले यह अस्तित्व में तो थी,

लेकिन सायकिल पर बैठकर जमीन पर पांव रखकर पैर से पीछे की तरफ..

धकेलकर आगे की तरफ़ बढ़ा जाता था।

लकड़ी की सायकल…..

सर्वप्रथम सन 1817 में जर्मनी के बैरन फ़ॉन ड्रेविस ने ड्रेसियेन नाम से

लकड़ी की साइकिल बनाई जिसकी गति

15 किलो मीटर प्रति घंटा थी यह रूपरेखा

तैयार की।

सन 1839 में स्कॉटलैंड के एक लुहार

किर्कपैट्रिक मैकमिलन ने इसमें पहिये को पैरों से चलाने का अविष्कार कर दुनिया को विस्मृत कर दिया था।

इसके बाद मैकमिलन ने बिना पैरों से घसीटे चलाये जा सकने वाले यंत्र की खोज की जिसे उन्होंने वेलोसिपीड का नाम दिया था।

चल मेरी सायकल टुक-टुक, टुक….

सायकल में पैर से घुमाए जानेवाले क्रैंकों (पैडल) युक्त पहिए का आविष्कार सन् 1865 ई. में पैरिस निवासी लालेमें (Lallement) ने किया।

इस यंत्र को वेलॉसिपीड (velociped) कहते थे। इसपर चढ़नेवाले को बेहद थकावट हो जाती थी।

अत: इसे हाड़तोड (bone shaker) भी कहने लगे।

क्यों प्रत्येक वर्ष 3 जून को विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है?…..

भारी यातायात एवं वायु प्रदूषण से निजात पाने तथा आवागमन का सस्ता, सरल, सुगम तरीका सायकल के महत्व को यूनाइटेड नेशन से समझ,

परखा और परिवहन के एक सरल, किफायती, भरोसेमंद, स्वच्छ और पर्यावरणीय रूप से फिट टिकाऊ साधनों को प्रोत्साहित करने के लिए

3 जून 2018 को पहले आधिकारिक विश्व सायकल दिवस मनाने की घोषणा की।

संयुक्त राष्ट्र के इस फैसले को बहुत सराहा और दुनिया ने इसे अपनाया।

दुनिया रहे दुरुस्त…

यूएन द्वारा सायकल को लोकप्रिय बनाने

के पीछे पवित्र भाव व इसका उद्देश्य दैनिक जीवन में साइकिल के उपयोगी बनाकर स्वस्थ्य रखने की दिशा में यह पहला पग है।

विश्व साइकिल दिवस मनाये जाने के लिए अमेरिका के मोंटगोमेरी कॉलेज के प्रोफेसर लेस्ज़ेक सिबिल्सकी और उनकी समाज शास्त्री (सोशियोलॉजी)

ने सोशल मीडिया के द्वारा इसका काफी प्रचार किया और 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के रूप में मनाये जाने का निर्णय लिया।

इस अभियान को तुर्कमेनिस्तान समेत 56 देशों का सहयोग प्राप्त हुआ।

साइकिल का क्रमिक विकास….
इसकी सवारी, लोकप्रिय हो जाने के कारण, इसकी बढ़ती माँग को

देखकर इंग्लैंड, फ्रांस और अमेरिका के यंत्र-कल निर्माताओं ने इसमें अनेक महत्वपूर्ण सुधार कर सन् 1872 में एक सुंदर रूप दे दिया,

जिसमें लोहे की पतली पट्टी के तानयुक्त पहिए लगाए गए थे।

इसमें आगे का पहिया 30 इंच से लेकर 64 इंच व्यास तक और पीछे का पहिया लगभग 12 इंच व्यास का होता था।

इसमें क्रैंकों के अतिरिक्त गोली के वेयरिंग और ब्रेक भी लगाए गए थे।

एक वो युग था जब डाकिया की सायकल को देखते ही गांव के बच्चे चिल्ला उठते थे-डाकिया डाक लाया….

भारत में डाक विभाग का तो पूरा तंत्र ही साइकिल के भरोसे चलता था।

आज भी कुछ देहातों में पोस्टमैन साइकिल से चिट्ठियां बांटते हैं।

आधुनिक युग बदल रहा है।

अब कूरियर का जमाना है।

आजकल कोरियर सेवाएं ज्यादा भरोसेमंद बन गईं है।

सन 1988 के बाद नये युग की नई पीढ़ी ने अपनी सोच बदली।

देश में उदारीकरण की शुरुआत के साथ ही तेज आर्थिक बदलाव का सिलसिला शुरू हुआ।

युवाओं का जोश…

देश की युवा पीढ़ी को मोटरसाइकिल की सवारी ज्यादा भा रही थी।

लाइसेंस परमिट राज में स्कूटर के लिए सालों इंतजार करने वालों का धैर्य चुक गया था।

उदारीकरण के कुछ साल बाद शहरी मध्यवर्ग को अपने शौक पूरे करने के लिए पैसा खर्च करने में हिचक नहीं थी।

शहरों में मोटरसाइकिल का शौक बढ़ रहा था।

गांवों में भी इस मामले में बदलाव की शुरुआत हो चुकी थी।

राजदूत, बुलेट और बजाज समूह के स्कूटर नए भारत में पीछे छूट रहे थे।

हीरो होंडा की मोटर सायकल देश की नई धड़कन बन रही थी।

यह बदलाव आने वाले सालों में और तेज हुआ।

देश में बदलाव के दोनों पहिये बदल गए थे।

इसके बावजूद भारत में साइकिल की अहमियत खत्म नहीं हुई है।

शायद यही वजह है कि चीन के बाद दुनिया में आज भी सबसे ज्यादा साइकिल भारत में बनती हैं।

अब मोटरसाइकिल का जमाना है…

सन 2002 से 2003 के बीच में सभी स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोपेड,

बिजली से चलने वाले दोपहिया गाडि़यों की बिक्री जहां 48.12 लाख थी।

अब 2008 आते-आते इनकी बिक्री बढ़कर 74.37 लाख हो गई थी।

इसका मतलब यह है कि पिछले कारोबारी वर्ष में देश में साइकिल की तुलना में की भी रही।

नब्बे के दशक के बाद से साइकिलों की बिक्री के आकड़ो में अहम बदलाव आया है।

साइकिलों की कुल बिक्री में बढ़ोतरी आई है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसकी बिक्री में गिरावट आई है।

आसान आर्थिक प्रायोजन की बदौलत लोग मोटरसाइकिल को इन इलाकों में ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।

सायकिल के पुनः आगमन के लिए हम उस दो पहिये वाली से बस इतनी प्रार्थना करेंगे

कि- लौट के आज मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं

दोस्तों की साइकिल उधार माँगना,

आज भी याद आता है वो जमाना।

हर साल 3 जून को अंतरराष्ट्रीय सायकिल दिवस होता है।

आप साइकिल जरूर चलाएं, तो आपका तन-मन-अन्तर्मन हमेशा स्वस्त है
रहेगा और डिप्रेशन कोसों दूर।
विश्व के सभी सायकल के शौकीन प्रेमियों को अमृतम परिवार की हार्दिक शुभकामनाएं….

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