कवियों की क्लेश-रोग नाशक कविताएं
चैते गुड़, वैशाखे तेल।
महुआ ज्येठ, आषाढ़ में बेल।।
सावन साग, न भादों मही।
कुँवार करेला, कार्तिक दही।।
अगहन जीरा, फुष धना।
माघ में मिश्री, फाल्गुन चना।।
इन नियमों को माने नहीं।
नर नहीं ,तो परे सही।।
इसका अर्थ बहुत सीधा है, फिर भी
यदि समझ न आये, तो बताये
इसका पूरा हिंदी अनुवाद दिया जाएगा।
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