!!मन चंगा तो कठौती में गंगा!!
यह सूक्ति भक्त शिरोमणी रैदास की है।
अर्थात- जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में भी आ जाती हैं।
अपनी निर्मल भक्ति के कारण आज ये अमर हैं। बहुत छोटी जाति में जन्म लेकर भी सभी धर्म में पूज्यनीय हैं। यह हमारे प्रेरणास्रोत हैं। सन्त रैदास ने कहा है-
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास।।
अर्थात- नीच कुल में जन्मे, जिस रविदास के रहन-सहन को देखने से लोगो को घृणा होती थी, जिनका निवास नर्क कुंड के समान था। ऐसे रैदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना सच में फिर से उनकी मनुष्य के रूप में उत्पत्ति हो गयी है।
भगवान पर अटूट भरोसा
एक अद्भुत ज्ञानवर्द्धक कहानी–
परम सन्त शिरोमणि भक्त रैदास या रविदास का नाम, तो आपने सुना ही होगा।
उनकी यह कहावत विश्व प्रसिद्ध है-
“मन चंगा, तो कठौती में गंगा”
इसका सीधा सा अर्थ यही है कि-
अगर मन शुद्ध है अथवा यदि शरीर
स्वस्थ्य-तन तंदरुस्त है, तो घर में ही गंगा है।
एक बेहतरीन किस्सा जाने पहली बार-
कहते हैं कि एक बार सन्त रैदास ने कुछ
यात्रियों को गंगास्नान के लिए जाते देख,
उन्हें कुछ कौंडियां देकर कहा… कि-
इन्हें माँ गंगा को भेंट कर देना, परन्तु देना, तभी जब गंगा जी साक्षात प्रकट होकर कोढ़ियाँ ग्रहण करें।
तीर्थ यात्रियों ने गंगा तट पर जाकर,
स्नान के समय स्मरण करते हुए, कहा
कि- ये कुछ कोढ़ियाँ सन्त रैदास ने
आपके लिए भेजी हैं,आप इन्हें स्वीकार कीजिये।
माँ गंगा ने हाथ बढ़ाकर कोढ़ियाँ ले लीं
औऱ उनके बदले में सोने (गोल्ड) का
एक कंगन “सन्त रैदास” को देने के लिए दे दिया।
यात्रा से लौटकर यात्री गणों ने-वह
कंगन सन्त शिरोमणी भक्त रैदास के पास न ले जाकर राजा के पास ले गए औऱ उन्हें भेंट कर दिया।
रानी उस कंगन को देखकर इतनी
विमुग्ध हुई की उसकी जोड़ का दूसरा
कंगन मंगाने का हठ कर बैठी, पर जब
बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उस तरह
का दूसरा कंगन नहीं बन सका, तो राजा
हारकर रैदास के पास गए औऱ उन्हें
सब वृतांत सुनाया।
‘भक्त रैदास जी’ ने गंगा का ध्यान करके
अपनी कठौती में से,उस कड़े की जोड़ी
निकाल कर राजा को दे दी।
कठौती किसे कहते हैं-
जिसमें चमार (जाटव) चमड़ा
भिगोने के लिए पानी भर कर रखते हैं।
ज्ञात हो कि सन्त रैदास चर्मकार
(चमार) जाति के थे।
मन ही पूजा मन ही धूप।
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।
रविदास जी के मुताबिक- ईश्वर सदैव एक स्वच्छ और निर्मल मन में निवास करते हैं। यदि आपके मन में किसी प्रकार की द्वेष-दुर्भावना, जलन, बैर, लालच नहीं है, तो आपका मन भगवान का मंदिर, दीपक और धूप के समान है। अच्छी पवित्र सोच वाले लोगों में ही भगवान हमेशा निवास होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।
मन के हारे, हार है-यही सही है….
कैसे भी मन की अशांति हो अलविदा।
रहस्योपनिषद के अनुसार-
मन की अशान्ति, तनाव अनेक मानसिक विकारों को आमंत्रित करती है।
मन को शान्त रखने का प्रयास करें।
प्रयास से ही प्राणी वेद व्यास, भक्त रविदास
जैसा ज्ञानी बन पाता है।
दुःख,तो दूर हो सकता है किन्तु
भय से भरे व्यक्ति की रक्षा कोई
कर ही नहीं सकता।
खुशियों का दौलत से क्या वास्ता,
ढूढ़ने वाले इसे धूल में भी तलाश लेते हैं।
जीवन का सार-जीवन के पार-
अध्यात्म और सनातन धर्म का नजरिया.…
बीज की यात्रा वृक्ष तक है,
नदी की यात्रा सागर तक है
और…
मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक..
संसार में जो कुछ भी हो रहा है
वह सब ईश्वरीय विधान है,….
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं।
दिनों-दिन गिर रहा है, इंसानियत का स्तर,
और दुनिया का दावा है कि- हम तरक्की पर हैं।
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