पुराने समय में जब छींकना भी-अपशकुन मानते थे, क्योंकि बुजुर्ग मानते थे कि- छींक के संक्रमण से फैलती हैं…कोरोना जैसी बहुत सी बीमारियां…….

स्वस्थ्य रहने के लिए हमें प्राचीन पध्दतियों, परम्पराओं को पकड़ना होगा।जाने क्या हैं वे 40 मान्यताएं!!!!

स्वस्थ्य तन से ही मन में अमन रहता है
और वतन भी स्वच्छ रह पाता है। 
 
आयुर्वेद की प्रबल मान्यता है कि मन श्रद्धा से भरपूर हो, तब पहाड़ भी आपका रास्ता छोड़ देते हैं। 
सदैव स्वस्थ्य रहने के लिए अपनाएं ये-नियम
 याद होगा! बहुत पुरानी बात नहीं है। 
लगभग 40 से 50 वर्ष पहले तक परिवार 
के किसी भी सदस्य को प्रातः बिना स्नान किये
तथा कभी भी शरीर को शुद्ध कर ही रसोई 
में प्रवेश का अधिकार था।
 हमारी दादी-नानी, ।मौसी-बुआ, ताई-चाची 
अनपढ़ होने के बाद भी शरीर के विज्ञान 
को समझती थी। 
 प्राचीन काल में बिना नहाए घर का कोई 
भी बन्दा अन्न ग्रहण नहीं कर सकता था।
 मासिक धर्म के समय महिलाएं भोजनशाला 
से बहुत दूर रहती थी। 
 छुआछूत, निपोच एवं साफ-सफाई का घर में विशेष ध्यान रखा जाता था। 
 उस समय घर की बुजुर्ग महिलाएँ-माँ आदि 
झूठ-मिठारे से हर चीज को बचती थी।
 कुछ समान जल या गंगाजल छिड़ककर पहले पवित्र कर उपयोग करते थे।
 गलती से भी किसी ने कोई  खाद्य-पदार्थों, 
वस्तु को बिना हाथ-पैर धोए छूना अपशकुन 
माना जाता था
 घर के बड़े-बूढ़े कहते थे कि-इससे बरक्कत 
चली जाती है। लक्ष्मी रूठ जाती है। 
 बाहर से घर आने पर जल का छीटा दिया 
जाता था। 
 हाथ-मुहँ धोकर ही घर में 
प्रवेश की अनुमति मिलती थी।
 चप्पल-जूते मुख्य द्वार से बाहर रखते थे। 
 पूर्व समय में जब दरवाजे से किसी की 
अर्थी निकलने के बाद एक लोटा पानी सड़क 
पर डालते थे, ताकि मृतात्मा का संक्रमण/ 
वायरस घर को दुषिता न कर सके। 
 घर में पानी रखने के स्थान को घिनोची
कहते थे। यहां गलती से भी किसी ने इसे 
छू लिया, तो घिनोची का पूरा पानी माताएं 
फेलाकर, पुनः कुए-तालाब से वर्तन मांजकर 
भरके लाती थी। 
■ हर व्यक्ति भोजन करने के पश्चात अपने खाने के झूठे वर्तन स्वयं ही मांजता था। 
■ सुबह ब्रह्म महूर्त में जागने की परम्परा थी।
■ दिन में सोने की मनाही थी।
■ घर के प्रत्येक सदस्य को एक गंगासागर 
जल भरकर शिंवलिंग पर अर्पित करना अनिवार्य था।
■ शाम को सूर्यास्त के समय दिया-बत्ती कर, 
एक दीपक घर में ऊर्जा वृद्धि हेतु जलाते थे।
■ रात्रि में शाम 7 बजे तक हरेक सदस्य 
बियारू यानि रात का भोजन कर 9 बजे तक
 हर हाल में सो जाता था। 
■ सुबह शौच-स्नान के लिए बाहर निकल जाते थे। 
■ मरघट या शमसान से लौटने के बाद, घर 
के बाहर नहाकर ही आते थे। 
■ साल में 2 से 3 बार दस्त और जुकाम आदि 
होने पर केवल विश्राम कर उसे ठीक कर लिया जाता था। कभी-कभा दादी-नानी के नुस्खे 
का उपयोग कर हर रोज की चिकित्सा घर 
में ही कर ली जाती थी। 
■ प्राचीनकाल में लोग दवा से ज्यादा 
दुआ और आशीर्वाद पर भरोसा करते थे।
 
यदि हम सब भारत वासी इन पुरानी 
परम्पराओं को अपनाएं, तो हम कभी 
बीमार हो ही महीन सकते।
 
जिज्ञासा हेतु गीता ग्रन्थ पढ़िए पूरा ग्रंथ ही मनोविज्ञान पर आधारित स्वास्थ्य प्रदाता है।  
आयुर्वेद में भी छींक पर भी हुई थी…खोज
अमृतम आयुर्वेद ग्रंथों के मुताबिक
छींक आना अपशगुन नहीं है, उसका आपके स्वास्थ्य से गहरा नाता है। क्यों कि किसी के भी मुंह से निकलने वाली वायु अशुद्ध होती है, जिसे हमारे आयुर्वेदिक ऋषियों और शरीर विज्ञान का ज्ञान रखने वाले त्रिकालदर्शी वैज्ञानिकों ने बहुत पहले ही जान-समझ लिया था।
क्या था? प्रणाम का प्राचीन प्रकार…
हमारे बुजुर्ग रोगों से बचने-बचाने का 
फार्मूला जानते थे, इसलिए वे 100 साल 
से अधिक स्वस्थ्य रहकर ऊर्जावान बने रहते थे..
प्राचीनकाल में अभिवादन भी बहुत दूर से किया जाता था और आज भी दुनिया के अनेक देशों
में दूर से ही नमस्कार, अभिवादन करने का चलन है। प्राचीनकाल में शारीरिक सम्पर्क न के बराबर किया जाता था ताकि दूसरे व्यक्ति की अशुद्ध वायु, पसीना, या नकारात्मक तरंगे हमारे शरीर को अपने प्रभाव में लेकर हमारा स्वास्थ्य खराब न 
कर देवें।
आयुर्वेद में 13 तरीके के दुषित वेगों/वायु
का उल्लेख है
आदिकाल से आज तक अमृतम आयुर्वेद में जितना अनुसंधान, अध्ययन और प्रयास तन तथा मन पर हुआ उतना शायद ही कहीं और हुआ हो…
 शरीर के 13 प्रकार के वेगों में छींक भी एक वेग होता है जिसके द्वारा मनुष्य के अंदर की दूषित वायु, पानी और कफ बाहर आता है जिससे बचने के लिए ऋषियों ने कहा कि- ठहर जाओ…
आगे न बढ़ो अर्थात मैं भी रुक जाऊं और
तुम भी रुक जाओ !
मुझे इसलिए रुक जाना चाहिए।
छींक के वेग का गणित...
 छींक मारने के कारण झटका लगता है।
छींक आते ही शरीर कुछ पल के लिए पूरा हिल जाता है और रक्त में बुलबुले बन जाते हैं जो कि
न रुकने के कारण हृदय तक पहुंचकर हृदयशूल, सीने में दर्द या हार्टअटैक का कारण बन सकते हैं।
छींक आने के बाद क्यों रुकना चाहिए...
छींक आने के बाद कम से कम 3 से 5 मिनिट तक वहीं इस वजह से रूक जाना चाहिए कि- मेरे शरीर का आभामंडल जो कि सवा 21 फुट का होता है वह फिलहाल पूरी तरह दूषित एवं संक्रमित हो चुका है और आपके संक्रमित होने की भरपूर संभावना है।
अपशगुन नहीं है छींक आना.…
आयुर्वेद के विज्ञान को अज्ञानता बस कुछ अज्ञानियों ने पहले के कुछ दुर्घटनाओं एवं संयोगों के साथ इसे जोड़कर इसे अपशगुन और टोटके से जोड़ दिया।
 बस यही परम्परा चलते-चलते आज भी छींक आते ही सब कहते हैं- कुछ देर ठहर जाओ।
 क्यों कि छींक के समय आपका मन आपके नियंत्रण में नहीं रहता और कुछ गलत घटना का सामना हुआ जिसका ठीकरा सबने छींक पर फोड़ दिया।

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