Astrology & Corona Virus

ज्योतिष के नजरिये से “स्वच्छ विश्व अभियान” है- कोरोना वायरस। शनि, राहु-केतु कारक हैं इस विनाश के….

अमॄतम पत्रिका का यह पूरा लेख ज्ञानवर्द्धक है,
जिसे पढ़कर ईश्वर के गणित और ग्रहों के खेल
को समझने में सुविधा होगी….. 
सदैव स्वस्थ्य-तन्दरुस्त रहने हेतु
इस लेख में लिखी, लेखनी का 
अनुसरण कर, नित्य सूर्य को नमन करें।
 
पूर्व में लिखे गए अमॄतम पत्रिका के 
2000 से ज्यादा लेख रोग-शोक, 
दुःख-दारिद्र, मिटाने में सहायक हैं। 
 
सूर्यग्रहण जैसा चित्र है-कोरोना का….
कोरोना वायरस का जो चित्र दिखाया जा रहा है,
वह सूर्य के कोने पर कीड़े जैसा दिखता है।
सूर्यग्रहण के समय भी सूर्य के चारो तरफ
कोरोना वायरस की तरह ही कृमि चक्कर लगाते
दिखते हैं।

जल्दी ही मिलेगी कोरोना वायरस से राहत...

सूर्य जब अपनी उच्च राशि में आते हैं, तो सृष्टि-सन्सार
और पृथ्वी के दोषों का हरण कर विश्व को निरोगी
बना देते हैं।
14 अप्रैल 2020 को सूर्य का मेष राशि में प्रवेश होने से
विश्व के वैज्ञानिकों को कोरोना वायरस का कोई ना
कोई विषहर औषध या मारक
उपाय अवश्य मिल जाएगा।

अब बिल्कुल भी डरो-ना••••

29 मार्च के बाद से कोरोना वायरस के आक्रमण
से कुछ हद तक राहत मिलना शुरू हो जाएगी….
ज्योतिष-ग्रह के अनुसार आंकलन करें, तो आने
वाले 29 मार्च 2020 को कुछ हद तक इस
कोरोना संक्रमण से राहत मिलने की उम्मीद की
जा सकती है। 28/3/2020 को जब गुरुदेव
कुछ काल के लिए मकर राशि में प्रवेश करेंगे,
जिससे पिछले चार महीनो से चल रहा
चांडाल योग (बृहस्पति-केतु युति) खत्‍म होने से
कोरोना के संक्रमण का दुष्प्रभाव कम होना
शुरू हो जाएगा।

जाने-ज्योतिष शास्त्रों में कौन से ग्रह हैं 

संक्रामक बीमारियों के कारक…

बृहस्पति-केतु का चांडाल योग अग्नि तत्व राशि धनु में 
बना है जिस कारण कोरोना वायरस आग की गति से 
दुनिया भर में फैलता जा रहा है।

केतु अंतरात्मा के क्लेश-विकार जलाकर 

व्यक्ति को पवित्र बनाने में मदद करता है।

संसार जानता है कि राहु और केतु दोनों बहुत ही
रहस्यमयी ग्रह हैं। इनकी ख़ासियस यह है कि-ये
सदैव वक्री गति से विचरण करते हैं। ये कभी
अस्त-उदय या मार्गी भी नहीं होते। सूर्य और चंद्रमा
कभी वक्री नहीं होते।
 
 ज्योतिष ग्रंथो में राहु-केतु दोनो को बैक्टीरिया, 
वायरस या संक्रमण दायक या कारक ग्रह माना
 जाता है। राहु को रोगों का रायता फैलाने वाला
 क्रूर ग्रह  बताया गया है। 
संक्रमण/इंफेक्शन से उत्पन्न रोग और छिपी/दबी
हुई सभी बीमारियों का ग्रह माना गया है। 
 राहु के द्वारा होने वाली बीमारियों का समाधान, 
तो सहज मिल भी सकता है, किंतु केतु एक गूढ़
रहस्यमयी भ्रमित करने वाला ग्रह है। केतु के कारण
होने वाली बीमारियों का उपाय आसानी से मिल
पाना असंभव प्रतीत होता है।

 गुरु-केतु की युति…बनाती है-चंडाल योग

गुरु अर्थात बृहस्पति जीव और जीवन का कारक 
ग्रह है जो सन्सार के सभी व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व 
करता है इसलिए जब भी गोचर में  
 गुरु-केतु की युति होती है, तब ऐसे काल में 
अत्यंत खतरनाक और जानलेवा संक्रमण
दुनिया भर में क्षण भर में फैलते हैं, जिन्हें खोज 
पाना अथवा चिन्हित करना एवं उसका इलाज ढूढ़ 
पाना संदिग्ध होता है।
इसमें भी खास बात ये है कि इसलिए जब भी
ब्रह्माण्ड में यह योग होता है, तो गुरु-केतु की
चांडाल युति में बहुत ही विचित्र तरह की रहस्मयी
बीमारियां या संक्रमण अचानक पनप जाते हैं, जिनका वैज्ञानिकों के पास कोई तोड़ या समाधान नहीं होता।
इस प्रकार के इन्फेक्शन का इलाज आसानी से नहीं
मिल पाता इस समय कोरोना वायरस के साथ
कुछ-कुछ ऐसा ही हो रहा है ।

कोरोना वायरस का ज्योतिष से सम्बन्ध

मार्च 2019 से ही गोचर में  केतु वक्री होकर धनु राशि में विचरण कर रहे हैं। धनु राशि के स्वामी
बृहस्पति हैं। 4 या 5 नवम्बर 2019 को  अपनी स्वराशि 
धनु में गुरु ग्रह का प्रवेश हो गया था।
अब धनु राशि में बृहस्पति और केतु एक साथ होने से 
चांडाल योग निर्मित हुआ, जो कि- रहस्मयी संक्रामक 
रोगों को उत्पन्न करता है।
 गुरु-केतु की युति होने के पश्चात चीन के बुहान शहर
 में कोरोना वायरस का पहला रोगी 17 नवम्बर को
 पकड़ में आया। अर्थात चांडाल योग में ही कोरोना
सक्रिय हुआ।

केतु की कलाकारी….

सन 1918 में स्पेन से शुरू होने वाली बीमारी
स्पैनिश फ्लू नाम से एक महामारी फैली थी।
 इससे दुनिया में करोड़ों लोग संक्रमित हुए थे। 
उस समय भी बृहस्पति-केतु का योग बना हुआ था।

कोरोना का क्लेश कब पता चला.....

17 नवम्बर 2019 को सूर्य-शुक्र की
युति में कोरोना का पहला मरीज चीन के बुहान
शहर में सर्वप्रथम प्रकट हुआ।
डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार
8 दिसम्बर 2019 के दिन कोरोनावायरस/
CORONA VIRUS की प्रथम पुष्टि चीन में हुई।
 इस समय सूर्य-बुध एक ही राशि में स्थित थे।
 सूर्य-बुध की युति में जब सूर्य ज्येष्ठा नक्षत्र में
वृश्चिक राशि के थे। बुध के ज्येष्ठा को गण्डमूल
या संक्रमित नक्षत्र मानते है।
सूर्य के साथ बुध होने
पर यह सूर्य जैसा फलकारक है।
बुध का अनुराधा यानि शनि के नक्षत्र
में होने से सूर्य  संक्रमित होकर
रोगदाता हो जाते हैं।

सूर्य ग्रहण का का दुष्प्रभाव-

तत्पश्चात 26 दिसम्बर के सूर्य ग्रहण ने कोरोना 
वायरस को महामारी में बदल दिया।
छःग्रहों के (सूर्य, चन्द्रमा,बुध बृहस्पति
 शनि,  केतु) एक साथ होने से षष्ठग्रही योग से निर्मित 
यह सूर्यग्रहण सामान्य नहीं था। षष्ठग्रही योग में सूर्यग्रहण
का प्रभाव बहुत नकारात्मक हो गया था।
सारांश यही है कि-2019 नवम्बर महीने में ही गुरु-केतु
का योग बनने पर कोरोना वायरस सामने आया और 26 दिसंबर को सूर्य ग्रहण के बाद इसने एक बड़ी महामारी
का रूप धारण कर लिया।
 
नवम्बर 2019 में श्रीगणेश हुए गुरु-केतु के 
सयोंग और दिसंबर-19 में हुए सूर्य ग्रहण के कारण 
पूर्वकालिक चार माह से कोरोना वायरस तेजी से पैर 
पसार रहा है और who के वैज्ञानिकों और चिकित्‍सकों 
को भी इसका कोई ठोस उपाय या समाधान नहीं 
सूझ रहा है। 

नवग्रह-नवसिद्धि के दाता.

ग्रहों का इस जीव-जगत में विशेष महत्व है,
जिसमे शनि, राहु-केतु ये तीनों ग्रह
अचानक आपदा, आर्थिक तेजी-मंदी
गरीबी-अमीरी तथा सृष्टि में अप्रत्याशित
परिणामों के जनक माने जाते हैं।
शनि के खेल, काले और निराले-
न्यायधीश शनि जब भी अपनी
स्वराशि या सूर्य के उत्तराषाढा
नक्षत्र में आते हैं, तो
हाहाकार मचा देते हैं। सन्सार को
बैलेंस में रखने की जबाबदारी
शनि, राहु-केतु
इन्हीं तीनों ग्रहों के पास है।
शनि, गरीब को धनी बनाने में
कारक है। लेकिन जब शनि से
हुई तना-तनी, तो उसकी जनी यानि
पत्नी को भी भटका देता है।
नरवर के राजा नल और उसकी
पत्नी दमयन्ती, जो कि-दमोह मप्र
की थी-इनका किस्सा जगत्प्रसिद्ध है।
राहु बनाये राजा••••
राहु, राजनीति, भौतिक सुख देने में
औऱ केतु आध्यात्मिक शक्ति,
सिद्धि द्वारा शून्य से शिखर पर पहुंचाने
में सर्वश्रेष्ठ ग्रह है। ये तीनो कब किसको
राजा से रंक और फकीर से अमीर
बना दे- इस अबूझ पहेली को समझना
बहुत मुश्किल है।
शिव रूप शनि का न्याय-ताण्डव
पहले भी शनिदेव का अपनी स्वराशि
मकर में आना अनेक महामारी का
कारक रहा है।
 
ग्रहों का मायाजाल है- सब
इस समय गोचर में शुक्र उत्तराषाढ़ा यानि
सूर्य के नक्षत्र के अधीन मकर राशि में विचरण
कर रहे थे। शुक्र में जब जब सूर्य के नक्षत्र में आते हैं,
तो नये-नवीन खतरनाक संक्रमण पैदा करते है।
धनु राशि में गुरु केतु की युति चांडाल योग बन
रहा है, जो सन्सार को धर्म की
तरफ उन्मुख या प्रेरित करेगा।
ये तो है नश्वर संसारा-भजन तू करले शिव का प्यारा।
■ यह योग भौतिकता की भाग-दौड़ में भटके
लोगों को ईश्वर से जोड़ेगा।
■ इंसानो में योग-ध्यान की अभिलाषा
जागृत होगी।
■ दिखावा, भौतिकता पर अंकुश
लगेगा।
■ गुरु-केतु योग महाविनाश का कारण
बनाने में सहायक होगा।
■ हो सकता है कि- इस समय अच्छे-अच्छे
धनाढ्य, धनपतियों की सम्पदा-अहंकार
सब स्वाहा हो जाये।
■ शेयर-सट्टा और सत्ता की दम पर
शेर बनने वाले चूहे बनकर बिल (जेल)
में जा सकते हैं।
क्योंकि इस समय पाताल और पृथ्वी
की कमान स्वयं शिव के हाथों में है।
राहु वर्तमान गोचर में मिथुन राशि,
आद्रा में वक्री होकर विचरण कर रहे हैं।
आद्रा नक्षत्र के अधिपति खुद
भोलेनाथ ही हैं, जो दूध का दूध,
पानी का पानी कर व्यक्ति को
कष्ट देकर निखारते हैं।
सदमार्ग दिखाकर यतार्थ में जीने
का मार्गदर्शन देते हैं।
ये वक्त परमपिता परमात्मा महादेव
के न्याय का है। सीधे-सच्चे,
ईमानदार गरीबो के रक्षक हैं और
चराचर जगत के कल्याणकारी देवता है।
भविष्य पुराण के मुताबिक
सादा जीवन-उच्च विचार
के विपरीत चलने से, प्राचीन
पवित्र परम्पराओं को नहीं अपनाने
से, शुद्धिकरण, पवित्रता का ध्यान
न रखने के कारण सूर्यदेव संक्रमित
होकर रोग-विकार,महामारी उत्पन्न
करने लगते हैं

सूर्य का प्रकोप है-कोरोना….

तन-मन, आत्मा और विचारों को
शुद्ध-पवित्र बनाये रखने से
शरीर स्वस्थ्य-तंदुरुस्त बना रहता है।
भगवान भास्कर की कृपा बनी रहती है।
शास्त्रों में सूर्य को इसी वजह से
स्वास्थ्य प्रदाता कहा है। सृष्टि में
सभी चराचर जीव-जगत की आत्मा
सूर्य ही है। कहा भी जाता है  कि-
आत्मा-सो-परमात्मा….
वेद मन्त्र है-
ऋग्वेद(1.112.1), यजुर्वेद(7.42) और
अथर्ववेद(13.2.35) में एक श्लोक है
सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च
जो कि क्रमशः सूर्य को आत्मा की
ऊर्जा मानने की पुष्टि करता है।
इस मंत्र में सूर्य को स्थावर-जंगम
पदार्थों की आत्मा माना गया है।
सूर्य की प्रसन्नता से हम….
जीवेमशरदः शतम्‌ (यजुर्वेद 36/24)
सौ वर्ष तक स्वस्थ्य रहकर,
100 साल जीवित रह सकते हैं।
बोलने-सुनने की प्रार्थना भी ईश्वर
स्वरूप सूर्य से की जाती है।
सूर्य वैज्ञानिक परमहंस
श्री श्री विशुद्धनंद जी महाराज ने
खोजा कि-यदि ऊर्जा-ऊष्मा हमारे अंदर सुरक्षित
रह सके, तो हम चार सौ वर्ष तक निरोगी होकर
जीवित रह सकते हैं।
आयुर्वेद की प्राचीन पुस्तको में मिलता है-
कोरोना वायरस जैसा संक्रमण ●●●
© शालक्य विज्ञान, © आयुर्वेद चिकित्सा,
© परजीवी तन्त्र, © काय चिकित्सा,
© निघण्टु आदर्श, © विषैली वनस्पतियाँ,
© माधव निदान, © योगरत्नाकर,
© रसराज महोदधि, © तन्त्र महोदधि,
© अर्क प्रकाश आदि में अनेक तरह के संक्रमण
के विषय में लिखा है-
आयुर्वेद ग्रन्थ में एक श्लोक का वर्णन है,
जो आज के कोरोना वायरस से मेल
खाता है- कोरोना के लक्षण….
मृत्युश्च तस्मिन् बहु पिच्छिलित्वात्त्।
शीतस्य जन्तो: परित: सरत्वात।। 
स्वेदो ललाटे….गृहं स मृत्य:
अर्थात-रोगी का शरीर ठंडा और
चिपचिपा हो, ललाट पर चिपकना
ठंडा पसीना, (Cold & clemmy) perspiration
आ रहा हो तथा श्वास कंठ में, तो चलती
हो पर वक्ष यानि फेफड़ों तक न पहुंचती
हो। सात दिन से लगातार सूखी खांसी,
जुकाम सर्दी हो।
ऐसा व्यक्ति संक्रमित हो जाता है।
अतः इसे छूने से दूसरे व्यक्ति को भी
संक्रमण हो सकता है। यदि ऊपर के सभी लक्षण मिलते हैं, तो ऐसा संक्रमित 
मनुष्य किसी भी पल “यमालय” को
जाने वाला है-यानि तत्काल मौत के
मुख में जा सकता है।
वह ज्यादा घण्टे भी नहीं जी सकता।
वर्तमान में फैले कोरोना वायरस के
भी यही लक्षण या सिम्टम्स हैं।
आयुर्वेद में भी है-संक्रमण से सुफड़ा-साफ का उल्लेख...
हजारों वर्ष पहले महर्षि चरक ने
लिखा है कि
देहेन्द्रिय मनस्तापी सर्व रोगाग्रजो बली।
देह, इन्द्रिय एवं मन में 
भारी संताप का प्रादुर्भाव होने लगे,
तो समझ लेना पृथ्वी किसी भयंकर
संक्रमण की चपेट में आ जाएगी।
हरिवंश पुराण में संक्रमण का स्वरूप
 नियमानुसार बताया है-
दक्षापमान  संक्रुद्ध: 
रुद्रनि: श्वास सम्भव: 
अर्थात यह रौद्र यानि सूर्य द्वारा प्रकोपित
महाभयानक व्याधि उत्पन्न होगी, जिससे आधा
सन्सार नियति के नियमों
को अपनाने पर मजबूर हो जाएगा।
संक्रमनस्तु पूजनैवार्वाsपि सहसैवोपशाम्यति।।
अर्थात यत: संक्रमण या किसी तरह के
खतरनाक वायरस देव कोपजन्य व्याधि है।
इससे विकार-व्याधि, वायरस से बचाव
हेतु सूर्य की किरणों के सामने बैठे।
सूर्य का ध्यान, सूर्य नमस्कार करें।
अग्नि पुराण में संक्रमण से सुरक्षा तथा
 शांति के लिए सूर्य देवर्चना पूजा
का विधान बताया है। इसलिए किसी भी तरह
के संक्रमण में रुद्र या सूर्य उपासना करने से सहसा
दूर हो जाता है।
धन्वंतरि सहिंता में
संक्रमण के लक्षण बताए हैं-
स्वेदारोध: संताप: सर्वाग्रहणं तथा।
युगपद् यत्र रोगे च स ज्वरो व्यपदिश्यते।
अर्थात- जिस बीमारी में स्वेदवह
(शरीर से पसीना निकलना) स्त्रोतों का
प्रायः अवरोध हो जावे, सारे अंग में
अकड़न महसूस हो और संताप यानि
देहताप (अंदर गर्माहट बाहर जुकाम)
 तथा मनस्ताप (भय-भ्रम, डर)
उत्पन्न हो जाये।
सर्दी-जुकाम, सर्दी-सूखी खांसी
निरंतर बनी रहे, तो मनुष्य संक्रमण
से पीड़ित हो रहा है।
ऐसे लोगों का जीवन क्षण भंगुर होता है।
मनस्ताप अर्थात मन की बीमारी जांचने
का कोई थर्मा मीटर नहीं निर्मित हुआ है।
स्वेदवह क्या है-
दोषवहानि च स्रोतांसि सर्वशरीरचराण्येव।   – च. वि. 5/3 पर आचार्य चक्रपाणि
स्वेदवह, दोषवह, अम्बुवह स्रोतों में अधिष्ठित समानवायु के द्वारा ‘रसरक्त’ को हृदय की ओर लाया जाता है।
ज्योतिषीय गणना के मुताबिक भी 
यह समय संक्रमण काल है-
वेदों में उल्लेख है-कलयुग में ऐसी  भारी व्याधि, वायरस/संक्रमण
उत्पन्न होंगे कि- मनुष्य का पल में प्रलय हो जाएगा। इस संक्रमित काल में एक-दूसरे को छूने मात्र से मनुष्य तत्काल संक्रमित होकर छुआछूत से मर जायेगा। रोगों को ठीक करने का मौका नहीं मिलेगा।
ज्योतिष या एस्ट्रोलॉजी में कोरोना 
वायरस के कारण…
अथर्ववेद सूक्त-२५ के अनुसार-
अधराञ्च प्रहिणोमि नमः कृत्वा तक्मने।
मकम्भरस्य मुष्टि हा पुनरेतु महावृषान्।।
 अर्थात-
कलयुग में कोई-कोई संक्रमण बड़ा
भयानक विकार होगा। यह शक्तिशाली
देश और पुष्ट मनुष्य को भी मुट्ठियों से
मारने वाला सिद्ध होगा।
यह वायरस अति वर्षा या सर्वाधिक
जल भरे देशों में हर साल, बार-बार आएगा।
शनि से जब हो अन्याय की तना-तनी..
5 नवम्बर 2019 को शनि देव 30 साल
बाद पुनः अपनी स्वयं की मकर राशि में विराजमान हुए हैं। मकर पृथ्वी तत्व की राशि है। जब-जब शनि देव पृथ्वीतत्व की राशि में आते हैं, तब-तब पृथ्वी पर भूचाल मचा देते हैं। सूर्य के नक्षत्र में आने पर शनि
यह विकार प्रदाता ग्रह हो जाते हैं।
कब-कब चली शनि की छैनी
सन ५४७ में शनिदेव इसी मकर राशि में
जब आये और राहु मिथुन राशि में थे।
गुरु-केतु की युति ने दुनिया की आधी से ज्यादा
आबादी को परेशान कर दिया था।
मिस्र/इजिप्ट से फैला बुबोनिक नामक वायरस
जिसे “फ्लैग ऑफ जस्टिनयन”
कहा गया। बाद में इसने रोमन साम्राज्य
की नींव हिला दी थी।
इससे पहले भी ऐसे ग्रह योग ने मचाई थी तबाही…
इतिहासकार प्रोसोपियस के अनुसार
यहां एक घण्टे में 10 से 15 हजार
लोगों को इस वायरस ने मौत की नींद
सुला दिया था।
हिस्ट्री ऑफ डेथ नामक किताब के
हिसाब से सन 1312 के आसपास
शनिदेव जब अपनी ही स्वराशि मकर
में आये, सयोंग से राहु तब भी आद्रा
नक्षत्र के मिथुन राशि में
वक्री गति से परिचालन कर रहे थे,
तब 75 लाख लोग फ्लैग वायरस की
वजह से कुछ ही दिन में मर गए थे।
यह बीभत्स दिन आज भी
ब्लेक डेथ के नाम से कलंकित है।
सन 1343 से 1348 के मध्य भी
अपनी खुद की राशि मकर-कुम्भ में
आये, तो फ्लैग वायरस ने 25 से 30 हजार
लोगों को फिर मौत की नींद सुला दिया था।
शनि करते हैं-पिता सूर्य का सम्मान…
दरअसल शनि के पिता सूर्य हैं और सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। जब लोग नियम-धर्म या प्रकृति के विपरीत चलते हैं,
तो सूर्य की शक्ति क्षीण और आत्मा
कमजोर हो जाती है।
शनि, गुरु, केतु यह तीनों भौतिकता या लग्जीरियस के विपरीत ग्रह हैं।
दुनिया जब अपनी मनमानी करने
लगती है, तब शनि कष्ट देकर, निखारकर लोगों को धर्म, ईश्वर, सद्मार्ग, अध्यात्म से जोड़कर धार्मिक बना देते हैं।
शनि उन्हीं को पीड़ित करते हैं,
जो धर्म या ईश्वर को नहीं मानते।
प्रकृति के खिलाफ चलने वालों को
शनिदेव नेस्तनाबूद करके ही दम लेते हैं।
बिना स्नान किये अन्न ग्रहण, बिस्कुट
आदि का सेवन करने से यह बहुत 
ज्यादा परेशान करते हैं।
शनि को सीधा निशाना उन लोगों पर
भी होता है, जो शनिवार के पूरे शरीर
में तेल नहीं लगाकर स्नान करते हैं।
शनिदेव को खुशबूदार इत्र, गुलाब,
चन्दन, अमॄतम कुंकुमादि तेल,
जैतून, बादाम तेल अतिप्रिय हैं।
शनि की मार से मरा, फिर सन्सार
सन 1667 के आरम्भ में शनिदेव जब
मकर राशि में आये, तो एक दिन में
लाखों लोगों को लील गए, जिसे
फ्लैग ऑफ लंदन कहतें हैं।
10 फरवरी 1902 के दिन शनि
पुनः मकर राशि के उत्तराषाढ़ा 
सूर्य के नक्षत्र में आकर दुनिया में
बीमारियों का कहर बरपा दिया था, जब अमेरिका के सनफ्रांसिको में लाखों
लोग पल में प्रलय को प्राप्त हुए।
गुजरात के सूरत शहर में जब एक रहस्यमयी
बीमारी के चलते लाखों लोग संक्रमित हुए थे
 तब भी शनिदेव अपनी ही स्वराशि
मकर में गोचर कर रहे थे।
केतु का करिश्मा...
सन 1991 में ऑस्ट्रेलिया में माइकल एंगल 
नाम का बड़ा कम्प्यूटर वायरस सामने आया था 
जिसने इंटरनेट और कम्यूटर फील्ड में वैश्‍विक स्‍तर 
पर बड़े नुकसान किये थे और उस समय भी गोचर 
में गुरु-केतु का चांडाल योग बना हुआ था।
 
अभी 15 वर्ष पूर्व सन 2005 में एच-5 एन-1
नाम से एक बर्डफ्लू फैला था और
उस समय में भी गोचर में बृहस्पति-केतु चांडाल
का योग बना हुआ था। ऐसे में जब भी
गुरु-केतु एक ही राशि में एक साथ होते हैं, तो
इस तरह की हमारी फैलती है।
 उस समय में बड़े संक्रामक रोग और
महामारियां सामने आती हैं। 2005 में जब 
गुरु चांडाल योग (बृहस्पति-केतु युति) के दौरान 
बर्डफ्लू सामने आया था।
कोरोना वायरस का कारक शनि
सन 2019 नवम्बर में शनि मकर राशि
के उत्तराषाढा नक्षत्र में प्रवेश करते ही
दुनिया धधक उठी।
उत्तराषाढा नक्षत्र के अधिपति भगवान
सूर्य हैं। जब तक शनि इस नक्षत्र में रहेंगे,
तब तक प्रकार से दुनिया त्रस्त और तबाह
हो जाएगी। अभी जनवरी 2021 तक
शनिसूर्य के नक्षत्र रहेंगे।
अभी यह अंगड़ाई है- 
22 मार्च 2020 को शनि के साथ मङ्गल
भी आ जाएंगे। मङ्गल भूमिपति अर्थात
पृथ्वी के स्वामी है। इन दोनों का गठबंधन और भी
नये गुल खिलायेगा।
मकर मङ्गल की उच्च राशि भी है।
अनेकों अग्निकांडों से, जंगल में आग
आदि विस्फोटों से सृष्टि थरथरा जाएगी।
इस समय कोई देश परमाणु हमले भी कर सकता है। शनि-मंगल की युति यह
बुद्धिहीन योग भी कहलाता है।
2020-क्लेश ही क्लेश, नो पीस…
गुरु-केतु की युति से निर्मित चांडाल योग
राजनीति में बम विस्फोट करता रहेगा।
राज्य सरकारों की अदला-बदली का
रहस्मयी खेल चलता रहेगा।
कुछ बड़े राजनेताओं, पुलिस अधिकारीयों,
न्यायधीशों के जेल जाने से देश में अफरा-तफरी
का माहौल बनेगा। दुनिया के कई
देशों में बमबारी हो सकती है।
गृहयुद्ध, कर्फ्यू आदि लग सकता है।
कुछ देश अपने ही नागरिकों को मारने का
भरसक प्रयास करेंगे। मानव संस्कृति
के लिए ये वक्त बहुत भयानक होगा।
शनि के संग मङ्गल की युति किसी अप्रिय घटना
 का इतिहास बनाता है। इस समय
ऐसी घटनाएं उन फर्जी लोगों के साथ
ज्यादा होंगी, जो बाला जी की अर्जी लगाकर, अपनी मनमर्जी से चलते हैं।
यह समय बहुत भय-भ्रम, आकस्मिक
दुर्घटनाओं के वातावरण से भरा होगा।
किसी-किसी देश में इमरजेंसी जैसा
माहौल हो सकता है। कुछ देश टूट
भी सकते हैं। बंटबारे की भी संभावना
सम्भव है।
कोरोना वायरस जैसी महामारी के
साथ-साथ और भी बीमारियां मानव
जाति को खत्म कर सकती हैं,
जो लोग अधार्मिक हैं।
वेद एवं ज्योतिष कालगणना अनुसार
कलयुग में जब सूर्य-शनि एक साथ शनि
की राशि मकर में होंगे। राहु स्वयं के नक्षत्र आद्रा में परिभ्रमण करेंगे और
विकार या विकारी नाम सम्वत्सर होगा।
क्या है विकार नामक सम्वत्सर- 
जैसे साल में बारह महीने होते हैं, वैसे ही सम्वत्सर ६० होते है। यह वर्ष में 2 आते हैं।
तीस साल बार पुनः प्रथम सम्वत्सर
का आगमन होता है।
विकार या विकारी नामक हिन्दू धर्म में
मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में तेतीसवाँ है। इस संवत्सर
के आने पर विश्व में भयंकर विकार या वायरस फैलते हैं। इसीलिए इसे
विकारी नाम सम्वत्सर कहा जाता है।
जल वृष्टि या वर्षा अधिक होती है।
मौसम में ठंडक रहती है। इस समय
पृथ्वी/प्रकृति के स्वभाव को समझना मुश्किल होता है।
विकार नामक सम्वत्सर के लक्षण/फल
माँस-मदिरा सेवन करने वाले दुष्ट व शत्रु कुपित दुःखी या बीमार रहते हैं और श्लेष्मिक यानि कफ, सर्दी-खांसी,
जुकाम का पुरजोर संक्रमण होता है।
पित्त रोगों की अधिकता रहती है।
चंद्रमा को विकारी
संवत्सर का स्वामी कहा गया है।
सन 2019 के अंत के दौरान गुरु-केतु की युति से चांडाल योग निर्मित होगा।
यह बड़े-बड़े चांडाल, फ्रॉड, बेईमान
दयाहीन, अहंकारी लोगों को सड़कों
पर लाकर खड़ा कर देगा। बीमारियों
के इलाज से कई जन हैंड to माउथ
हो जाएंगे। भयानक गरीबी, मारकाट
फैलने का भय हो सकता है।
एक आंख में सूरज थामा, 
दूसरे में चंद्रमा आधा
चारों वेदों में सूर्य को ऊर्जा का विशाल
स्त्रोत और महादेव की आंख माना है।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् 
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।
 
भावार्थ: सूर्य ही एक मात्र ऐसी शक्ति है,
जो देह को रोगरहित बनाकर लंबी उम्र,
बल-बुद्धि एवं वीर्य की वृद्धि कर
सभी व्याधि-विकार, रोग-बीमारी,
शोक-दुःख का विनाश कर देते है।
संक्रमण/वायरस प्रदूषण नाशक सूर्य...
सूर्य एक चलता-फिरता, मोबाइल प्राकृतिक चिकित्सालय है। सूर्य की सप्तरंगी किरणों में अद्भुत रोगनाशक शक्ति होती है।
अथर्ववेद (3.7) में वर्णित है-
 ‘उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन् 
 अदृष्टान् च, सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।’
 अर्थात-
 सूर्य के प्रकाश में, दिखाई देने या न
दिखने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं-कीटाणुओं और रोगाणुओं
को नष्ट करने की क्षमता है।
सूर्य की सप्त किरणों में औषधीय गुणों का अपार भंडार है। प्रातःकाल से सूर्यास्त के मध्य भगवान सूर्य अनेक रोग उत्पादक विषाणुओं-कीटाणुओं तथा संक्रमणों का नाश करते हैं।
वात रोग, त्वचा के विकार और किसी भी तरह के संक्रमण या वायरस मिटाने के लिये सूर्य की किरणें सर्वश्रेष्ठ ओषधि है।
ट्यूबरक्लोसिस यानि टीबी के कीटाणु
सूर्य के तेज प्रकाश से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं, जो उबलते जल से भी शीघ्र नहीं मरते, फिर दूसरे जीवाणुओं के नाश होने में संदेह ही क्या है।
स्वस्थ्य रहो-100 साल रहो••••
◆ स्वस्थ्य रहने के लिए सूर्य का प्रकाश
और हवा सबसे बड़ी दवा है।
◆ प्रातः की वायु, आयु बढ़ाती है।
◆ सूर्य में सात रंग की किरणें
जगत में ऊर्जा व चेतना भरती है।
◆ सूर्य की ऊर्जा व रोशनी में मानव
शरीर के कमजोर अंगों को, हड्डियों
को पुन: सशक्त और सक्रिय बनाने की
अद्भुत क्षमता है।
◆ स्वस्थ्य शरीर हेतु जिस रंग की कमी
हमारे शरीर में होती है, सूर्य के सामने
प्रणाम करने, अर्घ्य देने, सूर्य की उपासना
से वे उपयुक्त किरणें हमारे शरीर को
प्राप्त होती हैं।
◆ वेद ऋषियों ने कहा है….
आदित्यस्य नमस्कारं 
ये कुर्वन्ति दिने दिने।
भाग्योदय हेतु सूर्योदय के समय सूर्यमुखी होकर सूर्य नमस्कार करने से हर दिन यश, स्वास्थ्य, सम्मान, बुद्धि और धन देने वाली है।
ग्रहों की चाल-मौत का भूचाल….
श्रीमद्भागवत गीता के मुताबिक
परिवर्तन सन्सार का नियम है-
अतः जो जन्मा है, उसका मरण
भी निश्चित है। लेकिन मृत्यु कैसी
होगी यह सब हमारे नियम-धर्म,
पाप-पुण्य, कर्म-कुकर्म, आत्मबल
और खानपान से निर्धारित होती है।
शिव की लीला का न पाया कोई पार...
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया
अर्थात:
ईश्वर सम्पूर्ण चराचर प्राणियों के हृदय में रहता है और अपनी माया से शरीर रूपी 
यन्त्र पर आरूढ़ हुए सम्पूर्ण  जीवों को 
उनके स्वभाव-कर्म के अनुसार भ्रमण 
कराता रहता है।
हमारे ब्रह्माण्ड/आकाश मण्डल का प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र और देह का हरेक तत्व अग्नि, जल, वायु आदि ये सब असंतुलित होने पर
विश्व के विनाश का कारण बनता है।
ऐसे समय में बाबा विश्वनाथ पर विश्वास
व्यक्ति बनाये रखे, तो व्याधि-विकार,
वायरस एवं बीमारियों की बोलती
बन्द कर सकता है।
भारत का भगवान पर भरोसा…
बेजुबान जीवों-पशुओं का रोज-रोज 
का रोना ही आज का कोरोना है।
अतः कोरोना से डरो-ना
भारत की आध्यत्मिक शक्ति हमारे
देश का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी।
एक तरह से यह स्वच्छ विश्व अभियान
है।
हर दर्द की दवा है गोविंद की गली में
दुनिया की अर्थ व्यवस्था को चौपट करने वाला कोरोना भारत माता की गोद में आकर विश्राम करने लगेगा। भारत राम की भूमि है। कृष्ण के काम (कर्म) की भूमि है।
यहां के शिवालय का जल गंदी नालियों में पड़े कीड़े-मकोड़े रूपी दूषित-अपवित्र आत्माओं को भी मुक्ति देकर, कल-कल करता हुआ नदी-तालाब और समुद्र में
स्वयं को न्योछावर कर देता है।
अमॄतम पत्रिका का उदघोष है…
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्युर्मा अमॄतम गमय 
अर्थात ये सूर्यदेव-

हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।।

मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
ऐसे उदघोष में पलते-बढ़ते, संस्कार
जिसके रग-रग में रसे हों,
उनका कोई भी रोग आएगा भी,
तो रासलीला करके विदा हो जाएगा।
आज भी यहां वेदमन्त्रों की ऋचाएं
ब्रह्मांड में गूंजकर
सृष्टि को पवित्र-पावन कर देती है।
देशवासियों की दयानिधि, दयालु, दाता
महादेव से दया की याचना..
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम 
देवहितं यदायुः॥
(ऋग्वेद मंडल 1, सूक्त 89, मंत्र 8)
भावार्थ: हे महादेव,
हम अपने कानों से अच्छी बातें अर्थात
कल्याणमय वचन ही सुनें। जो याज्ञिक/वेदपाठी ब्राह्मण अनुष्ठानों के योग्य हैं (यजत्राः) ऐसे हे देवो!  हम अपनी आंखों से मंगलमय चित्र घटित होते देखें ।
आपकी स्तुति करते हुए (तुष्टुवांसः)
हमारे शरीर के सभी अंग और इंद्रियां
स्वस्थ एवं क्रियाशील बने रहें और हम
सौ या उससे अधिक लंबी आयु पावें।
पवित्रता की प्राचीन प्रथा-
भारत की धरा, परम्परा और संस्कार
से सधी है। यहां किसी भी अनुष्ठान
से पूर्व इस मन्त्र का उच्चारण तन-
मन, ह्रदय-आत्मा तक को पुण्य-
पावन बना देता है।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा 
सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स 
बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ 
विशेष आग्रह-निवेदन…
ब्लॉग अच्छा, सुंदर, मनभावन हो, तो
शेयर, लाइक कर कृतार्थ करें और
हमेशा अपने शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली/
रोगप्रतिरोधक क्षमता ऐब इम्युनिटी
सिस्टम को मजबूत बनाकर रखें।
किसी भी आपदा या तकलीफ के
समय अपने मनोबल या आत्मविश्वास
को कमजोर न होने देवें।
शिवः सङ्कल्प मस्तु 
औरमहादेव में मग्न,
मनुष्य का इस धरती पर कोई
कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
बाबा विश्वनाथ पर यह विश्वास
ही विश्व के व्यक्तियों को विकारों
से पर लगा सकता है।

आयुर्वेद में इसका इलाज है ••••

संक्रमण काल में या महामारी के
समय स्वस्थ्य रहते हुए भी अथवा
संक्रमित, ऐसे मरीजों को तुरन्त
निम्नलिखित जड़ीबूटियों-ओषधियों
का सेवन तुरन्त करना चाहिए-
¶अमॄतम तुलसी, ¶अमॄतम गिलोय,
¶अमॄतम चिरायता, ¶घृतकुमारी,
¶अमॄतम महासुदर्शन घन सत्व,
¶स्वर्ण माक्षिक भस्म, ¶मुलेठी,
¶श्वास कुठार रस, ¶संजीवनी वटी,
¶महा लक्ष्मीविलास रस स्वर्णयुक्त,
¶64 पीपल प्रहरी, ¶शुद्ध गुग्गल
आदि ओषधियों को मिलाकर शीघ्र
ही लेना शुरू करें।
उपरोक्त सभी ओषधियों से निर्मित है।
अपने तन-मन को स्वस्थ्य-तन्दरुस्त
बनाये रखने के लिए अमॄतम द्वारा
100% आयुर्वेदिक दवाओं का
नियमित सेवन करें।
यह ऐसी ओषधियाँ है, जिन्हें सभी
उम्र के स्त्री-पुरुष, बच्चे, बुजुर्ग निःसंकोच
ले सकते हैं।
अमॄतम की 100 से ज्यादा कारगर,
चमत्कारी दवाईयों का बारे में जानना
हो, तो सर्च करें-
 
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13 responses to “ज्योतिष के नजरिये से “स्वच्छ विश्व अभियान” है- कोरोना वायरस। शनि, राहु-केतु कारक हैं इस विनाश के….”

  1. Mihirbhai avatar
    Mihirbhai

    Amazing

  2. Ved chauhan avatar
    Ved chauhan

    Good

  3. Preeti avatar
    Preeti

    बहुत ज्ञावर्धक लेख है।पढ़कर बहुत अच्छा लगा।इस जानकारी के लिए बहुत धन्यवाद।

  4. Ajit Kumar avatar
    Ajit Kumar

    Knowledge full article…?

  5. Ritu Sharma avatar
    Ritu Sharma

    Very interesting and informative…thank you for this amazing information

  6. Amit Trivedi avatar
    Amit Trivedi

    बहुत ही साधुवाद के पात्र हैं आप जो इतनी महत्वपूर्ण और संस्कार परक तथ्यों को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया यह सारे तथ्य अकाट्य हैं और मैं उन लोगों से विशेष तौर से कर बंद प्रार्थना करना चाहूंगा जो टेक्नोलॉजी और आधुनिकता की सागर में इतना डूब चुके हैं कि उन्हें हमारे भारतीय संस्कार और ज्ञान पर तनिक भी विश्वास नहीं है कि वह लोग इस पूरी बात को ढंग से पढ़ें समझें और इस आपत्ति की घड़ी में अपने मूलाधार से जुड़े और भगवान शिव से प्रार्थना करें कि वह हम सब विश्व वासियों को जल्द ही इस आपदा से मुक्ति दिलाएं

  7. meera sharma avatar
    meera sharma

    Full of information with valid reasoning .What is the remidy now?

  8. Naresh gupta avatar
    Naresh gupta

    Very nice its true

  9. Mitali avatar
    Mitali

    Bahut Uttam lekh,bahut hi gyan vardhak, dhanyawad ? Aapka

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