श्रीराम भक्त श्री हनुमानजी को यहां मिली थी संजीवनी बूटी-
राम-रावण युद्ध के समय श्रीराम के अनुज लक्ष्मण जब – मेघनाथ के शक्ति बाण से तरह घायल हो गए थे। यह सत्यकथा लगभग हर हिन्दू को मालूम है।
संजीवनी बूटी से किया था इलाज-
उस समय के जाने-माने वैद्यराज श्री सुषुण ने बजरंगबली से उत्तराँचल जिसका एक नाम द्रोणाचल भी है, इस पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था | हनुमान जी को वह बूटी समझ नहीं आयी, तो उन्होंने पूरा पहाड़ ही उठा लिया। पर्वत के उस हिस्से का कुछ भाग इस स्थल पर गिर गया। दुनागिरी तीर्थ आज वही धार्मिक स्थान है। यह त्रेतायुगीन माना जाता है।
कसार देवी मंदिर”
उत्तराखंड राज्य अल्मोड़ा जिले से आठ किलोमीटर की दूरी पर बागेश्वर हाईवे के पास करीब 5000 वर्ष प्राचीन “कसार देवी” नामक एक गाँव है, जो काषय यानी कश्यप पहाड़ पर है। इसकी चोटी पर एक गुफानुमा जगह पर माँ दुर्गा यहां साक्षात प्रकट हुयी थी।
पर्वत के कण-कण में रची-बसी माँ कसार देवी की शक्तियों का एहसास देश-दुनिया के लोग करते हैं।
कसार देवी मंदिर में माँ दुर्गा के आठ रूपों में से एक रूप “ मां कात्यायनी देवी” की पूजा की जाती है
यह द्रोणागिरी वैष्णवी शक्तिपीठ के नाम से जगत प्रसिद्ध है। स्कन्द पुराण के शक्तिपीठ अध्याय में भी इसका वर्णन है।
उत्तराखंड में है एक और वैष्णो मां का मन्दिर
हिमाचल की वैष्णो देवी गुफा के बाद उत्तरांचल के कुमाऊं में द्रोणागिरी या दूनागिरि दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा से द्वाराहाट नामक स्थान पर पंद्रह किलोमीटर आगे माँ दूनागिरी माता का मंदिर बहुत पुराना होने के साथ-साथ स्वयम्भू है, जो भक्तों की अटूट श्रद्धा तथा आस्था का केंद्र है |
बहुत बेहतरीन दुर्लभ शिवालय-
घने वन और पर्वतों के मध्य बसे इस शिवभूमि क दर्शन अपने-आप में सौभाग्य की बात है। इनके दर्शन नसीब वालों को ही हो पाते हैं।
बिनसर महादेव शिवालय
रानीखेत से लगभग 20 किलोमीटर दूर
भगवान शिव का यह स्वयं प्रकट शिंवलिंग श्रद्धालुओं की नजरों में अभी नहीं आया है। यह गुमनाम शिवमंदिर बहुत पुराना है।
गंगा की सहायक कुंज नदी के तट पर करीब साढ़े पांच हजार फीट की ऊंचाई पर हरे-भरे देवदार और चीड़ वृक्षों से घिरा “बिनसर महादेव” का यह स्वयं प्रकट शिवालय को अभी कम ही शिवभक्त जान पाए हैं।
अभी बहुत तीर्थ बाकी हैं बताने के लिए
पढ़ते रहें
Leave a Reply