आयुर्वेद की भाषा में रोगों के संस्कृत नाम…

संस्कृत में बीमारियों के नाम अत्यंत विचित्र हैं। जिसे समझने में बहुत दिक्कत होती है।

ज्यादातर लोगों ने देखा होगा कि दवाओं के लेबल पीआर फल विरेचन, मंदाग्नि, अशमरी आदि लिखा रहता था।
आज भी अनेक आयुर्वेदिक कंपनियों के उत्पादों पर संस्कृत नामों का उल्लेख रहता है। इन्हीं नामों का हिंदी अर्थ, उपयोग तथा अंग्रेजी नाम सरल भाषा में दिए जा रहे हैं, जो प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों को पढ़ने, समझने में सहायक होंगे।
गुणवाचक पारिभाषिक शब्दों की परिभाषा
 गुण–आयुर्वेदीय परिभाषा में शरीर के विशेष अवयवों अथवा उनकी यतिपर या शरीर में स्थित आगन्तुक सेन्द्रिय अथवा निरिन्द्रिय पदार्थों पर असर करने वाली द्रव्य शक्ति को गुण कहते हैं।
¶ अवृष्य– Anaphrodisiacs ) प्रजोत्पादन सम्बन्धी वासना को कम करने वाला।
¶ अशमरीघ्न  -( Antilithics ) शरीर में जमे हुए क्षार, पथरी आदि को जलाने वाला।
¶ आवीप्रद–(Ecbolics ) गर्भाशय के पर्देको संकुचित करके उसमें रहने वाली वस्तु (गर्भ) को बाहर निकलने में सहायता देने वाला।
¶ उपसर्गघ्न-Disinfectants ) छूत वाले रोगों के जन्तुओं अथवा उनके विष को नाश करने वाला।
¶ ऋतुप्रद- Emmenagogues ) ऋतु स्राव की अव्यवस्था को दूर करके स्वस्थावस्था में लाने वाला।
¶ कनीनिकाविकासक-आँख की पुतली को फैलानेवाला।
¶ कनीनिकासंकोचक-आँख की पुतली को संकुचित करने वाला।
¶ कनीनिकाविकासक-आँख की पुतली को फैलानेवाला।
¶ कफघ्न-( Expectorants ) छाती ( कण्ठ नाड़ी के नीचे के दो भाग) में से कफको बाहर निकालने वाला।
¶ कृमिघ्न-( Anthelmintics ) पेटमें से कृमियों को बाहर निकालने अथवा पेट ही में मार डालने वाला ।
¶ ग्राही–( Astringents ) तन्तुओं को संकुचित और रक्त वाहिनियों के आकार को छोटा करनेवाला। पाचन शक्ति सुधारने, रक्तस्राव बन्द करने और आभ्यन्तरिक स्रावों को नियमित करने के लिये दिया जाता है।
¶ जन्तुन–(Antiseptics ) सूक्ष्म जन्तुओं की वृद्धि को रोक कर सड़ांधो को रोकने वाला।
¶ ज्वरघ्न- Febrifuge) ज्वर में गर्मी को कम करने तथा नियमित रखने वाला।
¶ दीपन-(Stimulants ) शरीर के एक भाग या अवयव का कार्य बढ़ाने वाला।
¶ दुर्गन्धनाशक-(Deodorants ) खराब हवा को चूसने और दुर्गन्ध को नष्ट करने वाला।
¶ दोषन–(Alterative) शरीर के किसी भाग में जाहिरा फेरफार किये बिना पुनः स्वास्थ्य को ठीक कर देने वाला ।
¶ निंद्राप्रद्र-( Hypnotics ) नींद लाने वाला अथवा उसके द्वारा मस्तिष्क की अनुभव शक्ति को कम करके पीड़ा शान्त करने वाला।
¶ पाचन (Stomachics) जठर के कार्य को बढ़ाकर पाचन शक्ति तथा भूख बढाने वाला।
¶ पित्तहर-(Cholagogues ) पित्त को बाहर निकालने वाला । (प्रायः विरेचन के भेदरूप में व्यवहृत होता है।
¶प्रतियोगि-( Antagonist ) किसी एक द्रव्य से विरुद्ध गुण करने वाले व्यको उसका प्रतियोगी कहते हैं ।
¶ बल्य-( Tonics) शरीर अथवा उसके एक अवयव को बल देने वाला। जठरवल्य–जठर की शक्ति को बढ़ाने वाला।
¶ रुधिरबल्य–खून को बल देने वाला।
¶ हृदयबल्य- हृदय को बल देनेवाला ।
¶ बृहर्णाय–( Nutritive) शरीर के पोषण को सहायता देने और तन्तुओं की स्थिति को सुधारने वाला।
¶मूत्रल-(Diuretic ) पेशाब को बढ़ाने वाला।
¶ लालोत्पादक-(Sialagogue) भूक बढाने वाला ।
वमनोपग-(Emetic) वमन (उलटी) कराने वाला वातहर–(Carminative) जठर अथवा आँतों में से वायु को बाहर निकलने में सहायता देने वाला।
विदाही-( Caustics ) शरीर के जिस भागपर लगाया जाय उस के जीवन को नष्ट करने वाला।
¶ विरेचन–(Cathartics ) आँतों को खाली करने वाला। अर्थात् अन्दर के मलको बाहर निकालने वाला।
¶ तीक्ष्ण विरेचन-(Drastic purgative ) ( सख्त जुलाब ) मल को पानी के रूप में बाहर निकालने वाला।
¶ मृदु विरेचन-( Laxative ) मलको फिसला कर नर्म करके बाहर निकालने वाला।
¶ विषन्न-( Antidote) किसी प्रकार के विष के असर को कम उरने वाला।
¶ विषमन्न–( Antiperiodics ) नियत समय पर चढ़ने उतरने वाले ज्वर वाला।
¶ वृष्य–( Aphrodisiac ) प्रजोत्पादनसम्बन्धी वासना को बढ़ाने वाला।
वेदनास्थापन-( Anodynes ) मस्तिष्क पर प्रभाव डालकर पीड़ा को शान्त करने वाला।
¶ व्रणशोधन–( Desicants) घावों में से बहने वाले प्रवाही को कम ) करने वाला।
¶ शामक–(Sedative) दुख कम कर के शान्ति उत्पन्न करने वाला साधारण शरीर या उस के किसी एक भाग की उत्तेजित स्थिति को कम करने वाला।
¶ शिरोविरेचन–(Sternutatories ) छींक लाने और नासिका से पानी को बहाने वाला।
¶ शीत-Refrigerants) शरीर की गर्मी., कम करके ठण्डक पैदा करने वाला।
¶ प्रतिशोथकर–( Counter Irritants) जिस जगह लगाया जाय। उस जगह लाली, सूजन अथवा छाला पैदा करने वाला।
¶ शोणितवर्द्धन–( Haematics ) खून के रक्त कणों को पुनः स्थापित कर के रुधिर को बढ़ाने वाला, अर्थात् शरीर की रचना में स्थित तत्व कम हो जाने पर वही तत्त्व दिये जाते है और इसी प्रकार की औषधे इस वर्ग में गिनी जाती है
¶ शोणितास्थापन–( Styptics ) रक्तस्राव को बन्द करने वाला।
¶ संकोचहर–(Antispasmodics ) आकस्मिक संकोच को शिथिल करने या पुनः होने से रोकने वाला।
¶ संज्ञाहर–( Anaesthetics ) मस्तिष्क और पृष्टवंशपर प्रभाव डालकर बेभान करने वाला।
¶ स्तन्यजनन–स्तनों में दूध बढ़ाने वाला। स्नेहन–(Emollients) बाहर लगाने से तन्तुओं को कोमल करने वाला।
अगर उपरोक्त नाम कहीं पढ़ने में सेवन, तो थ लेख आपकी मदद करेगा।

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *