Maala

सन्त-महात्मा क्यों लिखते हैं-श्री श्री १०८, श्री श्री १००८ या अनंत श्री आदि! जाने धर्म की दुर्लभ बातें

माला जपने का गणित है- यह उपाधि
क्या जाप के समय माला जरूरी है-
कबीर दास जी ने लिखा है कि-
माला फेरत जुग गया,
गया न मन का फेर….
मन का फेर कभी मिटता नहीं है।
चाहें कर लो लाख उपाय।
इसलिए
भजले मनवा नमः शिवाय।
व्यर्थ सुनहरा जीवन जाए।।
 
हथियाराम मठ,बनारस के परम शिव उपासक श्री श्री विश्वनाथ जी  यति 
जी कहा करते थे…..
भोले भजन बिना नहीं मिलता
चाहें कर लो,  लाख उपाय।
शम्भू त्याग बिना नहीं मिलता
चाहें कर लो लाख उपाय।।
 
सबका अपना मत एवं माला का महत्व
शिवपुराण में लिखा है कि-
प्रारम्भ में माला से जाप करने से
साधक में स्थिरता आने लगती है। वह विचलित नहीं होता। उसका मन नहीं भटकता। इसलिए भगवान शिव ने यह नियम बनाया कि बिना माला के जाप निष्फल हो जाता है।
शिवपुराण के श्लोकानुसार…
विना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फल भवेत्।।
अर्थात बिना कुश के अनुष्ठान,
बिना माला के संख्याहीन
जप निष्फल होता है।
श्री श्री 108, 1008, अनंत श्री आदि का
गणित क्या है?
पहले पुनश्चरण की परम्परा को पढ़े….
(एक दम नवीन जानकारी)
पुनश्चरण के लिए माला से जाप जरूरी है..
रहस्योपनिषद के अनुसार
पुनश्चरण का मतलब है जिस मन्त्र
में जितने अक्षर हैं..
उतने लाख जप से एक पुनश्चरण
पूर्ण होता है। जैसे
 !!ॐ नमःशिवाय!!
मन्त्र में 5 अक्षर हैं, इसके 5 लाख जाप करने से एक पुनश्चरण हो जाता है।
वैदिक परम्परा है कि-
एक पुनश्चरण होने के बाद ही कोई भी
 सन्त-महात्मा या कोई भी साधक
एक श्री की उपाधि लायक हो जाता
है। यदि किसी महात्मा का गुरु मन्त्र गायत्री है, जिसमें 24 अक्षर होते हैं। अतः गायत्री के 24 लाख जाप करने के बाद वह
सन्त-महात्मा एक श्री लगाने का अधिकारी हो जाता है। 
अतः श्री श्री 108
का उपयोग करने वाले महात्मा को
108×5 लाख = 5 करोड़ 40 लाख बार
!!ॐ नमःशिवाय!!
जप करना आवश्यक है, तभी वह श्री श्री
१०८ लगाने का अधिकारी है और
अगर किसी सन्त का गायत्री  गुरु मन्त्र है, तो
108×24 लाख= 25 करोड़ 92 लाख
अर्थात 24 लाख माला का जाप 100 साल में पूरा हो पायेगा, तब वे सन्त श्री श्री 108
की उपाधि से विभूषित हो सकते हैं।
मान लो- एक महात्मा
की उम्र 110 वर्ष भी हुई औऱ 10 वर्ष की
उम्र से जपना शुरू किया, तो भी एक साल में 24 हजार माला
गायत्रीमंत्र का जप करना पड़ेगा।
श्री श्री १००८ की उपाधि पाना, तो
इस जन्म में  असम्भव है।
करवद्ध विनम्र निवेदन-
तेरा साईं तुझमें है,
ज्यादा धर्म के चक्कर में अपने कर्म
खराब न करें। खुद ही सिद्ध पुरुष बने।
 एक माला लेकर बैठ जाये और पूरी एकाग्रता से जाप करें। आज नहीं, तो
कल यह मन अचल हो ही जायेगा।
एक दिन मन इतना लग जायेगा कि-
माला छूट जाएगी और
अजपा जप शुरू हो जाएगा।
बिल्कुल परमहंस मलूकदास जी तरह-
मेरा भजन, अब तू कर
मैं पाया विश्राम।।
अर्थात आप ईश्वर को भी अपना
भजन करने का आदेश दे पाएंगे।
मत भटको, न अटको और ना हीं
किसी से लटको। बस,अपने आप
को भोलेनाथ के चरणों में पटको
खुद ही खुदा बनने
का अभ्यास आपको एक दिन निश्चित
ही ईश्वर का एहसास करा देगा।
हिन्दू धर्म का दुर्भाग्य यही है कि-
ज्यादातर धर्म धारण करने वाले
शातिरों संतों ने
धर्म को धन्धा बनाकर इंसान को
भगवान या किसी लायक नहीं छोड़ा।
लोगों को भ्रमित कर पथ भ्रष्ट कर दिया।
इससे ज्यादा कुछ लिखना अनावश्यक विवाद का कारण बन जायेगा।
अभी और भी रहस्य शेष हैं जिसे आगे
बताया जाएगा।
यदि हमारे लेख से सहमत हों,
 तो इसे अधिक से अधिक
लाइक, शेयर, कमेंट्स करने में
कंजूसी न करें। दुर्लभ ज्ञान के लिए
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 क्या आप जानते हैं कि माला में 108 मनके क्यों होते हैं? इसके पीछे ज्योतिष, धर्म और विज्ञान के अपने वेज्ञानिक सिद्धांत हैं।
अगले लेख में जाने यह वैज्ञानिक सत्य

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