सप्तधातु किसे कहते हैं –
जिससे शरीर का निर्माण या धारण होता है, इसी कारण से इन्हें ‘धातु’ कहा जाता है धा अर्थात = धारण करना। हैं -सप्त धातुओं का शरीर में बहुत महत्व है।
आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्तों के अनुसार –
【1】रस धातु
यह शरीरकी मूल धातु है। सुन्दरता इसी से आती है। रस धातु का निर्माण मुख्य रूप से उस आहार रस के द्वारा होता है, जो जाठराग्रि के द्वारा परिपक्क हुए आहार का परिणाम होता है।
【2】रक्त धातु
रक्त कोशिकाओं एवं इनके परिसंचरण (circulation) का नाम रक्त धातु है। सुश्रुतसंहिता और चरक सहिंता के मुताबिक रक्त धातु की कमी होने पर शरीर की त्वचा , रंगहीन, खरखरी, मोटी, फटी हुई एवं कांतिहीन हो जाती है।
【3】मांस धातु
शरीर में सबसे ज्यादा हिस्सा मांस धातु का होता है और यह शरीर की स्थिरता, मजबूती, दृढ़ता और स्थिति के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। मांस धातु के द्वारा शरीर के आकार निर्माण में सहायता प्राप्त होती है।
【4】मेद धातु
मेद धातु शरीर में स्त्रेह एवं स्वेद उत्पन्न् करता है, शरीर को दृढ़ता प्रदान करता है तथा शरीर की हड्डियों व अस्थियों को पुष्ट कर ताकत प्रदान करता है।
【5】अस्थि धातु
शरीर में यदि हड्डियां न हों तो सम्पूर्ण शरीर एक लचीला मांस पिण्ड बनकर ही रह जायेगा, शरीर को अस्थियों के द्वारा ही शक्ति, दृढ़ता और आधार प्राप्त होता है। अस्थि पंजर ही शरीर का मजबूत ढाँचा तैयार करता है। जिससे मानव आकृति का निर्माण होता है।
【6】मज्जा धातु
मज्जा शरीर के विभिन्न अवयवों को पोषण प्रदान करती है।यह विशेष रूप से शुक्र धातु (वीर्य) का पोषण, शरीर का स्त्रेहन तथा शरीर में बल सम्पादन का कार्य करता है।
【7】शुक्र धातु
जिस प्रकार दूध में घी और गन्ने में गुड़ व्याप्त रहता है, उसी प्रकार शरीर में शुक्र व्याप्त रहता है।
शुक्र सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रहता है तथा शरीर को बल, पौरुष, वीर्य प्रदान करता है।
इसके लिए कहा गया है,
सप्त धातुयें वात आदि दोषों और रोगों से कुपित होंतीं हैं। शरीर में वात, पित्त, कफ
में से जिस दोष की कमी या अधिकता होती है, उसके अनुसार सप्त धातुयें रोग-बीमारियां अथवा शारीरिक विकृति उत्पन्न करती हैं।
सप्त धातुओं को दोष रहित बनाने के लिए
पूरे परिवार को हमेशा अमृतम गोल्ड माल्ट
का सेवन बहुत लाभकारी है।
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