जाने तन के वह अठ्ठारह अंग जो
बहुत ही महत्वपूर्ण हैं…..
शांडिल्य उपनिषद में शरीर के 18 मर्म
स्थान बताये गये हैं —
【१】पदतल यानि पैरों के तलबे
【२】पादांगुष्ठ यानि पैरों के अंगूठा
【३】गुल्फ यानि पैरों के ऊपर एड़ी के ऊपर की गांठ, गट्टा, इसे टखना भी कहते हैं।
【४】जंघा यानि जांघ घुटने के ऊपर तथा पेट के नीचे बीच का भाग।
【५】जानू यानि गुप्त स्थान या
गुप्तांग के दोनों तरफ का भाग।
【६】पायु यानि शरीर का वह भाग जिससे होकर शरीर के भीतर का मल निकलता है।
मलद्वार। एक त्रिकालदर्शी वैदिक ऋषि का नाम भी पायु है।
【७】मेढ या मेढ़ यानि पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग की सुपारी का चमड़ा, भगवान शिव का एक नाम, विश्लेषण।
【८】नाभि navel सिद्ध अवधूूूत
नाभि में “रं” बीज मन्त्र का जाप करके परमहंस हो जाते हैं। राम नाम वास्तव में नाभि चक्र का बीजमन्त्र है, जो शरीर में अग्नि, ऊर्जा उत्पन्न करता है।
“त्रिपुरा रहस्य” में बताया है कि बीज मंत्र हमेशा कण्ठ से जपना चाहिए। मुख से उच्चारण करने पर यह अंदर की ऊर्जा, शक्ति, आत्मबल कमजोर कर देता है। “शिवरहस्य ग्रन्थ” में लिखा है कि भूलकर भी राम का उच्चारण बोलकर न करें।
इससे साधक का बहुत अनिष्ट होता है। इस अज्ञानता के कारण बहुत से लोग रोग-शोक, दुःख-दर्द, दरिद्रता से पीड़ित हैं। राम नाम का उच्चारण नाभि के अग्नितत्व को क्षीण यानि
खत्म कर देता है।
यह बहुत ही वैज्ञानिक और दिलचस्प जानकारी कभी
“अमृतम अघोर विशेषांक” में प्रकाशित कर ऑनलाइन भी दी जावेगी। पढ़ते रहें-
【९】कण्ठ यानि Gorge
वेदों में रुद्र को नीलकंठ कहा गया है।
कण्ठे यस्य विराजते हि गरलं ,
गंगाजलम् मस्तके।
वामांगे गिरिराज राजतनया
जाया भवानी स्थिता:।।
【११】कण्ठकूप यानि गला Throat
उपवास सिद्धि : कंठ के कूप में संयम करने पर भूख और प्यास की इच्छा नहीं होती। इसे अघोरी सन्त हाड़ी विद्या भी कहते हैं। यह विद्या तन्त्र की प्राचीन दुर्लभ पुस्तकों में मिलती है। इस विद्या को प्राप्त करने पर व्यक्ति को भूख और प्यास की अनुभूति नहीं होती है और वह बिना खाए-पिए बहुत दिनों तक रह सकता है।
क्या होता है कण्ठकूप…..
कंठ की कूर्मनाड़ी में संयम करने पर स्थिरता व अनाहार सिद्धि होती है। कंठ कूप में कच्छप आकृति की एक नाड़ी है। उसको कूर्मनाड़ी कहते हैं। कंठ के छिद्र, जिसके माध्यम से पेट में वायु और आहार आदि जाते हैं, को कंठकूप कहते हैं। कंठ के इस कूप और नाड़ी के कारण ही भूख और प्यास का अहसास होता है।
कैसे प्राप्त करें यह विद्या : इस कंठ के कूप में संयम प्राप्त करने के लिए शुरुआत में प्रतिदिन प्राणायाम, बिना स्नान के अन्न ग्रहण न करें और भौतिक उपवास का अभ्यास करना जरूरी है।
【१२】तालु Palate यानि मुँह के अंदर का ऊपरी अंग या भाग जिसके नीचे जीभ रहती है।
【१३】नासा यह अमेरिका वाला नासा नहीं है। नासिका जिससे हम श्वांस या प्राणवायु ग्रहण करते हैं। अघोरी सिद्ध – श्वांस-प्रश्वांस के सहारे सिद्धियां पाते हैं। यह वैज्ञानिक प्रक्रिया की जानकारी कभी अमृतम अघोर विशेषांक में अलग से दी जावेगी। नासा – घ्राणतंत्र (Olfactory system) का अंग हैं। उसके भीतर की दोनों गुहाएँ नासासुरंग (nasal cauiities) कहलाती हैं।
【१४】अक्षि यानि दो की संख्या या दोनो आंखों को कहते हैं। सम्मोहन सिद्धि में अक्षि का बहुत महत्व है। इसे अक्षीविद्या भी कहते हैं। भविष्य पुराण के अनुुसार दाईं आँख सूर्य है और लेफ्ट आँख चन्द्रमा है। इसीलिए परमहँस स्वामी विशुद्दानन्द जी ने लिखा है-
एक आँख में सूरज थामा
एक में चन्द्रमा आधा
दोनो आँख से रख ली, शिव ने
इस जग की मर्यादा।।
【१५】भूमध्य यानि भृकृटी, भौहें
आंखों की हड्डी के ऊपर के बाल। एक काल्पनिक भूमध्य रेखा भी होती है।
भौहें के लिए किसी कवि ने लिखा है-
सुनि सौंतिनि के गुनि की चरचा!
द्विज जू तिय भौंह मरोरन लागी!!
अर्थात जब पति से सौतन की तारीफ सुनी, तो पत्नी की भौहें फड़कने लगी।
【१६】 ललाट यानि माथा
सिर का ऊपरी और सामने वाला भाग ,
किस्मत में लिखी हुई बात।भाग्य का लेख।
【१७】उरु शरीर के बड़े, मोटे हिस्से जांघ को कहते हैं। इस पर शरीर का भार होता है।
Leave a Reply