एक दुर्लभ शिवालय के बारे में जाने- आदिदेव-महादेव को वैद्यनाथ क्यों कहते हैं?

क्या आपको मालूम है-
मूल ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ धाम दक्षिण भारत में स्थित है
वैद्यनाथ महादेव
इनके नाम का एक ज्योतिर्लिंग भी है।
स्कन्ध पुराण के चतुर्थ खण्ड में
ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख है। भारत में
झारखंड के देवघर में स्थित ज्योतिर्लिंग सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध है।
कहाँ-कहां पर हैं वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
 
शिवपुराण की कोटिरुद्र सहिंता में कोटि-कोटि शिवलिंगों, स्वयम्भू शिवालय और ज्योतिर्लिंगों
का उल्लेख है। इसमें वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
को चिताभूमि बताया गया है, जहां जटायु
का अंतिम संस्कार हुआ था।
महाराष्ट्र के परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
 

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने

सदा वसंतम गिरिजासमेतम. 

सुरासुराराधितपाद्पदमम 

श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि.
(अध्याय २८, द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रमकोटिरुद्रसंहिताशिवमहापुराण) 

अमृत युक्त होने के कारण ही इसे वैद्यनाथ यानि

स्वास्थ्य का रक्षक और देवता भी कहा जाता है।

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में बीड़ जिले में स्थित

यह गाँव मेरु पर्वत अथवा नागनारायण

पहाड़ की एक ढलान पर बसा है।

ब्रम्हा, वेणु और सरस्वती नदियों

के आसपास बसा परली एक प्राचीन गाँव है।

यहीं से सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर

औंढा नागनाथ गुफा के अंदर एक स्वयम्भू

शिवालय भी है, इसे भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

की मान्यता प्राप्त है। यहां पर भोलेनाथ

हरिहर स्वरूप शिव और भगवान विष्णु

दोनों रूप में पूजित हैं। इस ओढ़ा नागनाथ

शिंवलिंग पर हाथ फेरने से बजरी जैसे कण

निकलते हैं। यह बहुत चमत्कारी शिंवलिंग है।

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मूल वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग दक्षिण में है

वैदीश्वरम कोइल तमिल में कोइल को मन्दिर
को बोला जाता है। वेदेहीश्वरं मंदिर कुम्भ कोणम 
से लगभग 45 या 50 KM,
चिदम्बरम से 20 KM, पांडिचेरी 
एवं तंजावुर या तंजौर से करीब 100 KM
की दूरी पर सरकाली या शिरकांजी के पास
स्वयम्भू रूप में स्थापित हैं।
बताया जाता है कि भोलेनाथ के ज्येष्ठ पुत्र
भगवान कार्तिकेय ने अपना कुष्ठ व त्वचारोग
मिटाने के लिए शिव की तपस्या की थी, तब महादेव इस स्थान पर वैद्य बनकर आये थे और
श्री मङ्गल कार्तिकेय के रोगों की चिकित्सा की
थी। आज भी इस ज्योतिर्लिंग परिसर में 
स्वयम्भू पुष्पकरिणी यानि तालाब में
कालीमिर्च, नमक तथा गुड़ को मरीज
के ऊपर सात बार ऊसर कर इस जल में 
विसर्जित कर स्नान करने से असाध्य
तवाचरोगों से मुक्ति मिलती है।
यह शिवालय बहुत बड़ा है।
इहनां स्थित स्वयम्भू शिंवलिंग को
कोई भी हाथ नहीं लगा सकता।
पुजारी गन भी दूर से ही पूजा-अभिषेक
करते हैं।
 वेदेहीश्वरं कोइल मन्दिर में भगवान कार्तिकेय
की पूजा का विशेष महत्व है। यहां मङ्गल दोष
की शांति के लिए प्रत्येक मंगलवार को अंगारक
देवता की पूजा का विधान है।
कार्तिकेय ही मङ्गल और अंगारक हैं-
 मंगल को अंगारक भी कहते हैं।
इनका वाहन भेड़ है।
ये चतुर्भुज है तथा त्रिशूल, मुगदर,
कमल और भाला धारण करते हैं।
 इन्हें पृथ्वी यानि भूमि
 की संतान माना जाता है तथा ये ब्रह्मचरी है।
पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जगत के
मार्गदर्शक,  गुरु व शिक्षक है।
हरेक प्राणी के आत्मबल,आत्मविश्वास,
तेज, सुख एवं अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मनोबल, सुख दायक कार्तिकेय
दुनिया या सम्पूर्ण ब्रह्मांड में अवसादग्रस्त अर्थात
डिप्रेशन, मिर्गी, पागलपन, मानसिक विकार
या मनोरोगों को दूर करने या मिटाने वाले इस पृथ्वी पर एक मात्र देवता मङ्गल कारक
मङ्गल रूप भगवान कार्तिकेय हीं हैं। 
कैसे कम करें मंगल दोष
जो जातक मंगल दोष से ग्रसित हैं,
 वे पीड़ित इस वेदेहीश्वरं शिवालय में
अंगारक देवता की पूजा करके दोषमुक्त हो जाते हैं। एक किस्सा यह भी है कि इस मंदिर परिसर
क्षेत्र में  सूरपदम और उसके अन्य सहयोगी असुरों-राक्षसों का वध करने
के उपरांत लहूलुहान, घायल भगवान सुब्रमण्यम (कार्तिकेय) और उनकी सेना के  अन्य सहायकों के जख्मों-घावों की चिकित्सा हेतु जब संसार के
सभी जाने-माने वेद्याचार्य, चिकित्सक
नहीं कर सके, तब भोलेनाथ ने वैद्यनाथ बनकर सबको इसी जगह स्वस्थ्य किया था।
यहां स्थित करोड़ों वर्ष पुराने के नीम के पेड़ में वैद्यकीय गुण है।
यहाँ वैद्यनाथ रूप में प्रकट हुए थे भोलेनाथ
यहां शिव भगवान को वैद्यनाथ स्वामी तथा पार्वती माता को तय्यल नायकी या बालाभ्बाल कहते हैं। यहां महादेव वैद्यनाथ स्वामी का स्वयंभु लिंग है।
सूर्य की किरणों वाला शिंवलिंग
वेदेहीश्वरं कोइल वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग
 शिवालय का दक्षिण गोपुर यानि दरवाजा
 ऐसे बनाया गया है कि सूर्य की किरणें
सीधे शिवलिंग पर पड़ती हैं।
दिव्य शूल पाया था कार्तिकेय ने
कार्तिकेयन स्वामी को मुत्तुकुमार
के नाम से जाने जाते हैं।
 कहा जाता है कि भगवान सुब्रमण्यम (कार्तिकेय) को दिव्य शूल यहीं प्राप्त हुआ था जिससे उन्होंने असुरों का संहार किया।
यहां पर नटराज, मंगल (अंगारक), जटायू, सोमस्कन्दर, सिंगारवेलर और भिक्षाटनर की भी कांसे की प्रतिमा है।
दक्षिण में जटायु
इसे पिल्लूरुककुवेलूर 【Pullirukkuvelur】 भी कहते हैं जिसका अर्थ
Pul= जटायु,
lirukku= ऋंगवेद, 
vel= स्कंद तथा 
ur = सूर्य से लिया गया है।
कहते हैं कि इन्होंने यहां भगवान शिव की पूजा की थी। उज्जैन, मध्यप्रदेश में भी मंगलनाथ का प्रसिद्ध मंदिर हैं।
मङ्गल की लीला
ज्योतिष ग्रंथों में
 मंगल का रत्न-मूंगा
तत्व-अग्रि, 
रंग-लाल, 
धातु-पीतल होते हैं
 यह मंगलवार व
वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है।
जटायु का दाह संस्कार
जटायु का दाह संस्कार इसी
ज्योतिर्लिंग शिवमंदिर में होने के कारण
इस स्थान को चिताभूमि भी कहा जाता है।
यही मूल यानि ओरिजनल वैद्यनाथ
ज्योतिर्लिंग है। 
इसे ज्योतिर्लिंग मानने के 9 कारण
 【】वेदेहीश्वरं कोइल इसलिए भी प्रसिद्ध है कि
नवग्रहों में एक मङ्गल की शांति इस स्थान
पर आदिकाल से की जा रही है।
【】इस मंदिर में हजारों-लाखों ऋषि-महर्षियों
ने मङ्गल दोष की शांति कराकर
मोक्ष प्राप्त किया।
【】स्कंद पुराण के एक खण्ड की रचना
भगवान कार्तिकेय ने इसी जगह की थी।
【】दुर्गा सप्तशती का नवम अध्याय ऋषि
मार्केंडेय जी ने यही लिखा था।
【】 रामायण के अनुसार जटायु ने माता सीता को बचाने केलिए रावण से युद्ध किया था तथा उनके दोनों पंख कटकर यहीं गिरे।
【】जब भगवान राम यहां पहुंचे तो जटायु अपने जीवन की अंतिम घडिय़ां गिन रहा था। जटायु ने भगवान राम को सभी बाते बताई और प्रार्थना की कि वे उनका दाह संस्कार करें।
【】भगवान राम द्वारा जटायु का यहीं पर दाह संस्कार किया गया। जिस स्थान पर दाह संस्कार किया गया उसे जटायु कुंड के नाम से जाना जाता है।
【】इस वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का
जीर्णोद्धार कुलतुगा चोला-1 के समय 1070-1120 ई. में कराया था।
वैद्यनाथ महादेव क्यों कहलाते हैं-
भोलेनाथ ने ही इस धरा पर आकर
जड़ीबूटियों को समझा और दुखियों
का इलाज किया। इन्हें आयुर्वेद का प्रवर्तक
यानी अविष्कारक खोजकर्ता कहा जाता है।
आयुर्वेदिक शास्त्रों में ओषधियों के जो मन्त्र
हैं, उनमें अधिकांश शिवजी का नाम उल्लेखित
हैं।
आदिदेव महादेव
सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन
के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें ‘आदिदेव’ भी कहा जाता है। ‘आदि’ का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम ‘आदिश’ भी है।

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