कैसे करे महाकाल को प्रसन्न…….
जाने बहुत आसान उपाय
“शिवो भूत्वा शिवं यजेत्”–
अर्थात-
शिव होकर ही शिव का पूजन कीजिये।
शिव पूजन करते-करते ऐसा महसूस करें या
अनुभव हो कि मैं शिव हो गया हूं।
महादेव की अथवा अन्य देवताओं की पूजा करते
समय उसी जैसे हो जाओ। इस समर्पण से की गई पूजा उपासना की सर्वोच्च अवस्था है।
जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी ने अपने शंकर भाष्य में
शिवोहं-शिवोहम की व्याख्या करते हुए लिखा है कि
साधना के समय ऐसे विचार लाते ही “मैं शिव हो गया“
यानी
“मैं ही शिव हूँ”...यह एहसास होने लगता है।
शिवोsम से यह भाव आ जाता है कि…. मैं जिसकी उपासना पूजा कर रहा हूं…मैं भी वही हूं…। जिस प्रकार दूध में मिश्री मिलाने पर मिश्री भी दूध हो जाती है।
तेरे बिन जाए कहाँ…. दुनिया में आके….
सर्वदोष-दुख, दरिद्र निवारक प्रार्थना,
सम्पूर्ण निश्चल भक्ति से एक बार करके देखें
“ईश्वर की मानस पूजा”
नामक पुस्तक में बिना पूंजी की
पूजा का विधान बताया है।
आदि शंकराचार्य जी ने भी
“शिव मानस पूजा”
में भी इसी तरह लिखा है…….
प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ से अत्यंत शुध्द
पवित्र भाव से भावविव्हल होकर, आंखों में आंसू लिए,
स्वयं को अति निर्बल, मतिहीन, बुध्दिहीन और
दुखी मानकर,…… जहां भी बैठों हो, जिस रूप-रंग में हो,
पवित्र या अपवित्र होकर, अपनी मानस साधना,
मानसिक ध्यान द्वारा यह एहसास कर……..
भोलेनाथ से प्रार्थना करे कि —
हे पशुपतिनाथ, हे भोलेनाथ,
दया के सागर, सृष्टि रचयिता,
सब जीव-जगत में, कण-कण में बसने वाले
संसार की सारी काया और माया के मालिक..
हे शिवशम्भू ,
आप परम गुरू हैं। आप दीन-दुखियों के नाथ-दीनानाथ
मैं अति निर्बल और दीनों का सरदार और
मैं अति दुर्बल..मैं मतिहीना हूं।
पापों का प्रायश्चित
शिव पुराण में संस्कृत के एक श्लोक में
एक दिन-दुःखी ऋषि ने इस प्रकार
प्रार्थना की है–
में अनन्त जन्मों से सदा पाप करता आ रहा हूं।
आज मेरे पुण्यों का क्षीण हो गया है।
आज इस मायारूपी संसार में….
सब मेरा साथ छोड़ गए हैं।
मैं अकेला हो गया हूं।
मैं अकेला हो गया हूं।
मेरे प्रारब्ध एवं पापों के कारण मेरी शीलवती पत्नी और निश्छल… निष्कपट भाव से भरे बच्चे-
मेरे कारण ही कष्ट भोग रहे हैं।
आप जगतपिता है, बंधु हैं-
वर्तमान के इस घोर कष्ट से मुझे बचावें।
अज्ञानता वश हुए मेरे सारे अपराधों को क्षमा कर
इस भवसागर , कष्ट सागर से उबारें।
आप परमपिता हैं,
हे दयासागर… पिता के अलावा बच्चों की रक्षा कौन करेगा। मुझे सही राह दिखाकर, मेरा मार्गदर्शन करें।
मुझे सदमार्ग सुझावें।
अन्यथा आप अपने कर्तव्य से च्युत होंगे
और आपके जगत्पिता, दीनबंधु होने के
नाम पर बट्टा लगेगा।
माँ शारदे….मुझे तार दे–
आपके साथ जो जगत की जननी और
आपके साथ जो जगत की जननी और
संसार की शक्ति तथा मेरी माँ बैठी है,
वह भी मेरे अकर्म-कुकर्म के कारण नाराज है।
मैं मानता हूं कि मैं कपूत-कुपुत्र हूं, लेकिन अब क्या करूँ। आपके अलावा मेरा इस जगत में दूसरा कोई नहीं है।
मेरे अंहकार का, ताकत का सर्वनाश हो गया है,
अब मैं पूर्णतः पवित्र होकर आपकी कृपा,
करूणा की कामना-प्रार्थना करता हूं।
शंकर शरणं गच्छामि –
आज से ही मैं आपको अपना गुरू,
माता-पिता, बंधु, सखा सब कुछ
मानकर सौंपकर आगे का शेष बचा जीवन
व्यवस्थित तरीके से जीना चाहता हूं।
मैं अन्तर्मन से, सहृदय से,
सच्चे मन से संकल्प लेता हूं कि
अब हरपल-हर क्षण मेरे मुख में,
वाणी में, ध्यान में, कर्म में,
केवल शिव-शिव का ही ध्यान रहेगा।
सदा मन ही मन
!!ॐ नमः शिवाय!!
मंत्र का जाप चलता रहेगा।
मेरा मन, मेरा तन, मेरी आत्मा,
मेरा मस्तिष्क आपके ध्यान के अलावा
अब कहीं नहीं भटकेगा यह पूर्ण विश्वास दिलाता हूं।
परमहँस स्वामी विशुद्धानंद के अनुसार –
उपरोक्त विचार अपने मन-मस्तिष्क में लाने और
उपरोक्त विचार अपने मन-मस्तिष्क में लाने और
ध्यान करने में भगवान शिव के प्रति अटूट
आस्था बढ़कर बहुत से भय-भ्रम, शंका मिटने लगती है।
धीरे-धीरे सारे कष्ट कटने लगते है।
इच्छाएं, मनोकामनाएं पूर्ण होने लगती है।
शिव की भक्ति में पवित्र भाव, श्रध्दा और
सबके कल्याण की कामना छुपी है।
कल्याणेश्वर करते हैं कल्याण–
शिव का अर्थ ही है सबका कल्याण करने वाला।
जब आप सबके कल्याण का भाव अपने अन्दर लायेंगे,
तो हृदय में एक स्पंदन होने लगता है,
जिससे जन्म-जन्मान्तर के पापों का नाश हो जाता है
और उन्नति, सिध्दि, समृध्दि का श्री गणेश होकर व्यक्ति शिव स्वरूप हो जाता है….. उसकी आत्मा से बस एक ही आवाज आती है – शिवोडहं मैं शिव हूं –स्वयं शिव हूं।
भगवान शिव के लिए शास्त्रों में लिखा है-
साधू-संतों ने कहा है कि…..
और सारे संसार का सत्य है कि –
वन्दे वन्दनतुष्टमानसमतिप्रेमप्रियं प्रेमदं
पूर्णं पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वरयैर्कवासं शिवम्।
सत्यं सत्यमयं त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियं सत्यदं
विष्णुब्रम्हनुतं स्वकीयकृपयोपात्ताकृतिं शंकरम्।।
अर्थात –
वन्दे वन्दनतुष्टमानसमतिप्रेमप्रियं प्रेमदं
पूर्णं पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वरयैर्कवासं शिवम्।
सत्यं सत्यमयं त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियं सत्यदं
विष्णुब्रम्हनुतं स्वकीयकृपयोपात्ताकृतिं शंकरम्।।
अर्थात –
भगवान भोलेनाथ की वन्दना, पूजा,
रूद्राभिषेक, स्तुति करने वालों का मन सदा प्रसन्न रहता है। भगवान शिव को प्रेम आपस अपनापन,
स्नेह अत्यन्त प्यारा है, जो सदा सबको प्रेम प्रदान करते हैं। पूर्णानन्दमय होकर सबको आनंद, परमआनन्द,
हृदयानन्द देने वाले अपने भक्तों की आशा, अभिलाषा, मनोकामना पूर्ण करने वाले सदा से सदाशिव एक ही हैं।
इनके अलावा सब व्यर्थ है।
सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के एक मात्र प्रदाता सिर्फ शम्भू ही हैं।
सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के एक मात्र प्रदाता सिर्फ शम्भू ही हैं।
इनका न कोई एक वास है और न ही कोई आवास है,
इनका न कोई खास है,
इनका एक रूप है जो कल्याण स्वरूप है।
सत्य जिनका श्री विग्रह है,
सत्य जिनका श्री विग्रह है,
जो सत्यमय है, जो सत्य है वही शिव और सुन्दर है।
शिव सत्य के सदा निकट वास करते है।
सत्य के बराबर संसार में कोई सुन्दर नहीं है।
सत्य स्वरूप शिव का ऐश्वर्य त्रिकाल बाधित है……
अर्थात सत्य तथा शिव साधक की तीनों कालों
तक ऐश्वर्य भोगता है।
जो सत्यप्रिय एवं सत्य प्रदाता है,
वही शिव है, वहीं सबकुछ है, या फिर सत्य है।
ब्रम्हा-विष्णु, भिक्षुक,
ब्रम्हा-विष्णु, भिक्षुक,
योगीगण केवल सत्य की साधना करते है।
सत्य नारायण की उपासना श्री शिव की स्तुति है।
सदा सत्य पर निर्भर रहने वाले, सत्य से न डिगने वाले, स्वेच्छानुसार शरीर धारण करने वाले….
सत्य स्वरूप सुन्दर स्वरूप भगवान
शिव की वन्दना करना चाहिए।
इनकी वन्दना उनेको बन्धनों से मुक्ति प्रदान करती है।
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