शिव के इस सन्सार में सभी सुखी कैसे रहें

संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो हमें सदा सुखी और स्वस्थ्य रख सके…….

जब शरीर ही हमें सुख नही देता है,
तो अन्य वस्तुओं से, विषयों और भोगों से सुख कैसे पा
सकते है। जब हम पूर्णतः स्वास्थ्य नहीं रह सकते तो
जीवन का सुख कैसा?
दुःख की 84 लाख योनियां हैं……
हमें इंद्रिय भोगों के संस्पर्श से, संबंध से जो भी
सुख का आभास होता है ये सब दुख की योनियां है।
क्योंकि ये सब दुख देकर ही जाते हैं। हम सभी केवल
सुख का बाहरी स्वरूप बनाते है या दिखावा करते हैं।
अपने चेहरे पर हर कोई
सुख का मुखौटा लगाकर घूम रहे हैं। लेकिन अंदर से
हर कोई किसी न किसी रूप में दुखी अवश्य है।
सदगुरू नानकदेवजी के अनुसार…
कोई तन दुखी
कोई मन दुखी, तो
कोई धन बिन रहे उदास
सृष्टि और सन्सार में सदगुरू एवं
भगवान शिव की इस सृष्टि में स्थायी कुछ है ही नहीं,
न धन स्थायी हैं, न तन स्थायी है और न ही मन स्थायी है।
दुख-सुख भी स्थायी नहीं है।
महादेव शिव के अलावा संपूर्ण ब्रम्हाडों के देवी-देवता भी स्थायी नहीं है। सिध्दि-समृध्दि भी अस्थायी है।
जब सभी प्रकार के द्वंद, अंतर्कलह समाप्त हो जाते है
तभी हम स्थायी हो पाते है।
सुखी और स्वस्थ्य रहने का फंडा….
समस्त प्रकार से समृध्द सिध्दिकारक तथा स्वस्थ्य  होने का एकमात्र उपाय है शिव की साधना। यदि हमारे साथ
शिव है, तो संसार का सारा ऐश्वर्य सदा साथ है, सब कुछ है।
शिव सन्त कहते हैं-जहां ईश्वर है, वहीं ऐश्वर्य है। आनंद है।
परम शांति है।
मनुष्य का मस्तिष्क शिंवलिंग स्वरूप है….
जो मानव मस्तिष्क शिव रहित है वह शव समान है। शिव
शब्द से छोटी “इ” की मात्रा हटते ही व्यक्ति शव हो जाता है।
जिसका भी मस्तिष्क रूपी शिवलिंग ऊर्जावान है
उसे दुनिया में सब हरा भरा दिखता है उसकी इज्जत भी होती है। उसका मान-सम्मान भी होता है।
स्वामी विशुद्धयानंद, रामकृष्ण परमहँस, सन्त कीनाराम,
बाबा निमकरोली, शिर्डी के साईं बाबा, गजानन महाराज
आदि अनेक सन्त महापुरुष शिव भक्त रहकर प्रसिद्ध हुए।
 
मन चंगा, तो कठौती में गंगा….
जिसका मन चंगा रहता है उसकी कठौती में भी गंगा का आगमन हो जाता है। भक्त रैदास जाती से चमार थे
लेकिन कर्म में रत रहकर ईश्वर तुल्य हुए। आज इनकी स्मृति सभी के दिल-दिमाग में अंकित है।
महामंडलेश्वर काशी के प्राचीन प्रसिद्ध शिवसाधक श्री श्री बालकृष्ण जी यति कहते थे….
यदि पाप करके ज्यादा धर्म करोगे तो ईश्वर से मांगना ही पड़ेगा और कर्म करोगे तो ईश्वर को देना ही पड़ेगा
शिव के इस संसार में
जिसका मन मस्तिष्क खंडित है उसकी कोई कीमत नहीं।
हम जन्म लेते है, पलते है, खेलते है, भोग में लिप्त
होकर अन्त में चल बसते है। सृष्टि का सबसे बड़ा
भोग अंतरिम असीम आनंद हैं।
योगियों की योगमाया….
योगी सबसे बड़े भोगी कहे जाते है जो सदा
 शिव-शिव-शिव महादेव नाम का अमृत रस ग्रहण
करते रहते है। स्वयं स्थिर होकर सभी को स्थिरता हेतू प्रेरित करते है।
जीने का गणित…
माना हम सौ वर्ष जीते है, जिसमें 50 वर्ष सोने में, 25
वर्ष दुख, व्यक्ति क्लेश आदि में और 10 वर्ष खेलकूद में
बीत जाते है। बचते है मात्र 15 वर्ष इनमें भी हम सदा
प्रसन्न नहीं रह सकते है, तो आप कहा सुखी हैं।
यह जितनी भी भोग्य वस्तुएं हैं, ये सब दुख कारक ही है।
यदि आप इनकों ये समझकर अपनाओं की इनसे तो
सदा दुख होना ही है, तब आपको दुख नहीं होगा।
सन्त कहते हैं
यदि परिणाम को कर्म के साथ पहले ही देख लेंगे,
तो दुख होगा ही नहीं। जैसे हम प्रवास के दौरान
बड़े-बड़े हॉटलों में रूकते है। हमारा पूर्व में निश्चय रहता है कि प्रातः हमको यहां से जाना हैं, तो जाते समय हॉटल छोड़ने का बिलकुल दुख नहीं होता है।
पीताम्बर पीठ के स्वामी जी का कहना था…
 यह तो नश्वर संसारा, भजन तू करले शिव का प्यारा
 
विशेष आग्रह…
 
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One response to “शिव के इस सन्सार में सभी सुखी कैसे रहें”

  1. अंजेश मित्तल avatar
    अंजेश मित्तल

    बहुत बहुत सार्थक प्रयास भटके राही को राह दिखाने के लिए बधाई आपको

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