नाग/सर्पों के भूषणधारी
कोई न शिव सा परोपकारी
असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे
सुरतरुवरुशाखा लेखनी पत्रमुर्वी।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति॥
अर्थ – हे शिव! यदि आपके अलौकिक गुणों का वर्णन स्वयं शारदा (सरस्वती)- समुद्र को दावात, काले पर्वत की स्याही, सुरतरु (कल्पवृक्ष) की टहनी की लेखनी एवं पृथ्वी को कागज बनाकर सदा लिखती रहें, फिर भी वे कभी भी आपके गुणों का अन्त नहीं पा सकतीं।
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