पूजा शिंवलिंग की करें या मूर्ति की। क्या कहते हैं वेद-पुराण

 क्या मूर्ति पूजा धर्म है-
न तस्य प्रतिमा अस्ति 
यस्य नाम महाद्यश:। 
हिरण्यगर्भस इत्येष मा 
मा हिंसीदित्येषा यस्मान 
जात: इत्येष:।।
 यजुर्वेद 32वां अध्याय।
अर्थात जिस परमात्मा की हिरण्यगर्भ
मा मा और यस्मान जात आदि 
मंत्रों से महिमा की गई है उस
परमात्मा (आत्मा) का कोई
प्रतिमान नहीं।
वेद कहते हैं सृष्टि में सब कुछ रूद्र
ही है।
विष्णुपुराण में श्रीविष्णु जी ने 
नारद मुनि को बताया है कि-
शिव ही अग्नि है,
शिव ही वायु है।
शिव ही आदित्य है
भगवान शिव ही सूर्य-चन्द्र, जल,
प्रजापति और सर्वत्र भी वही है।
भोलेनाथ को प्रत्यक्ष नहीं देखा
जा सकता। शिव की कोई मूर्ति या
प्रतिमा नहीं है। वही सब दिशाओं
का मालिक होकर घट-घट में व्याप्त है।
शिव का अर्थ है कल्याण इसलिए
उसका नाम ही अत्‍यं‍त महान है।
ब्रह्माण्ड का प्रतिरूप एक
मात्र शिंवलिंग है, जिन्हें रुद्राभिषेक
द्वारा प्रसन्न किया जा सकता है।
शिंवलिंग ही मानव पिंड एवं ब्रह्माण्ड
का प्रतीक है-
यत पिंडे-तत ब्रह्माण्डे
 –यजुर्वेद
केनोपनिषद में कहा गया है कि-
हम जिस भी मूर्त या मृत रूप की
 पूजा, आरती, प्रार्थना या ध्यान
कर रहे हैं वह ईश्‍वर नहीं है,
ईश्वर का स्वरूप भी नहीं है।
 जो भी हम देख रहे हैं-
जैसे मनुष्‍य, पशु, पक्षी, वृक्ष,
नदी, पहाड़, आकाश आदि।
फिर जो भी हम श्रवण कर रहे
 हैं- जैसे कोई संगीत, गर्जना
आदि। फिर जो हम अन्य इंद्रियों
से अनुभव कर रहे हैं, समझ रहे
हैं उपरोक्त सब कुछ ‘ईश्वर’ नहीं है,
लेकिन ईश्वर के द्वारा हमें देखने,
सुनने और सांस लेने की शक्ति
प्राप्त होती है।
इस तरह से ही जानने वाले ही
 ‘निराकार सत्य‘ को मानते हैं।
यही सनातन सत्य है।
स्‍पष्‍ट है कि‍ वेद और रहस्योपनिषद
के अनुसार
शिंवलिंग के अतिरिक्त किसी भी
ईश्‍वर की न तो कोई प्रति‍मा या मूर्ति‍ है
और न ही किसी भी देवता को
 प्रत्‍यक्ष रूप में देखा जा सकता है।
शिंवलिंग की पूजा
अभिषेक से होते हैं हजारों फायदे-
जो लोग अन्य किसी भी देवता की
मूर्ति पूजा करते हैं, वह पाप या
पुण्य जैसा कुछ भी नहीं हैं।
ऋग्वेद के मुताबिक इस तरह
की पूजा-अर्चना से कोई लाभ-हानि,
तो नहीं होती लेकिन भाग्योदय
में सहायक नहीं है।
वेद-उपनिषद आदि आदिकालीन 
ग्रंथो में केवल एक मात्र शिंवलिंग
पूजन का उल्लेख मिलता है,
जो सभी तरह के क्रूर ग्रहों की शांति,
कालसर्प-पितृदोषों से मुक्ति का 
अचूक उपाय है।
शिंवलिंग के रुद्राभिषेक 
धन वृद्धि के साथ-साथ 
मन-मस्तिष्क को भी शांति देने 
में श्रेष्ठ है। 
वायुपुराण के मुताबिक-

मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना 

कुंडे कुंडे नवं पयः!
जातौ जातौ नवाचाराः 

नवा वाणी मुखे मुखे!!

यह श्लोक विभिन्न मति-विचार, 

सोच वालों के लिए कहा गया है

संसार में जितने भी मनुष्य हैं,

उतने ही विचार हैं। उदाहरण के लिए एक ही गाँव में विभिन्न

कूप या कुऐं के जल का स्वाद

अलग-अलग होता है।

जन्म से मृत्यु तक के सभी

संस्कार के लिए

विभिन्न सम्प्रदाय या जातियों में

अलग-अलग रिवाज होता है

जैसे एक ही घटना की खबर

हरेक न्यूज़ चैनल, समाचारपत्र

तथा व्यक्ति अपने-अपने तरीके

से खबरों को बताता है।

इस तरह की बाठों का बुरा मानने

या में आश्चर्य करने की आवश्यकता

नहीं है।

मूर्ति पूजा का धर्म सीधा-

सरल मार्ग है-

आदिकाल से सीधे-सच्चे, सरल भक्तों के लिए मूर्तिपूजा भक्ति-साधना का

एक सहज रास्ता है। मूर्तिपूजा के समय बजने वाले घण्टे, शंख, घड़ियाल, हारमोनियम, जयकारा, नमः शिवाय की धुन, धूप-कपूर, दीप, आचमन, प्रार्थना, हर्ती, तुलसी, चन्दन लेप आदि विधान से तन-मन को अपरम्पार शांति मिलती है। एक प्रकार से शास्त्रों में इसे मानसिक ताप नाशक उपाय बताया है।

पॉजिटिव यानि सकारात्मक विचारों का निर्माण होता है।

इस तरह की पूजा से मस्तिष्क की सुप्त नाडियां जागृत होने लगती हैं।

हिंसा का भाव दूर होने लगता है।

लेकिन ये सब पूर्व जन्म के पापों को नहीं कगत पाते। सर्वोच्च सत्ता पाने और उन्नति के लिए शिंवलिंग का दूध, दही, घी, शहद, बूरा आदि पदार्थों से रुद्राभिषेक करना अति आवश्यक

बताया गया है।

मानव का मूल धर्म क्या है-

ईश्वर और प्रकृति के इस महत्व
को हमारे ऋषि-महर्षियों ने बहुत गहराई से समझा। त्रिकालदर्शी मुनि-महात्माओं
ने सम्पूर्ण जीव-जगत के कल्याण हेतु
प्रकृति बचाने एवं सुख-शांति पर जोर
 दिया, जिनके
सहारे हमारा जीवन गतिमान है।
सन्सार में रहने-जीने के लिए जल
 जरूरी है। जल के लिए वृक्ष आवश्यक
थे, तो सबसे पहले उन्होंने वृक्षारोपण
पर जोर दिया।
वृक्ष बचाना सबसे बड़ा धर्म है-
 विभिन्न ओषधियों के पेड़, नीम,
पीपल, बरगद, आम, अमरूद, बादाम
वृक्षों के अस्तित्व को सुरक्षित रखने
हेतुधर्म को प्रकृति की आराधना से
जोड़ दिया।
वेदों में भी है वृक्षों की बात-
विभिन्न वेद-पुराण में भी प्रकृति का
गुणगान गाय है। वृक्ष शिंवलिंग का
प्रतीक और प्रतिरूप बताया है।
प्रथ्वी हमारी जीवनदायिनी है।
पर्यावरण की सुरक्षा हमारी पहली
प्रार्थना होना चाहिए।
प्रकृति का सम्मान हमारे घर में सब
समान ला सकता है। सारी भौतिकता
हमें प्रकृति देती है। संसार के सभी धर्म
प्रकृति आधारित हैं।
अमृतम के अगले ब्लॉग में
देना शेष है

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