शिव-शिव शम्भू महाकाल भजो, होगा बेड़ापार । !!नमः शिवाय!! का जाप करो, तो शक्ति मिले अपार।। भगवान शिव के बारे में, पुराणों से पार्ट-2

भगवान शिव के परम् शिष्य श्रीहरि हैं।

प्रथ्वी-प्रकृति को हरा-भरा बनाये रखना विष्णुजी
की जिम्मेदारी है, इसलिए इन्हें श्रीहरि कहा जाता है
और भगवान शिव सबके दुःख-दर्द हरते हैं इसी कारण
इनका एक नाम “हर” है। हरिहर का उच्चारण
करने से शिव-विष्णु दोनो की पूजा हो जाती है।
धर्मग्रंथों में लिखा है कि-भगवान विष्णुजी
वैष्णव शिरोमणि हैं –
वैष्णवानाम यथा शम्भो । 
शिवजी को मूल गुरुतत्व बताया है—–
वन्दे बोधमयं नित्यम् गुरुम् शंकर रूपिणम् ।

हरि भक्ति और हरि नाम का आश्रय –
यही शिवजी की शिक्षाएं हैं ।
आदि शकराचार्य का सूत्र भी यही है-
भज गोविन्दम् मूढ़ मते।

श्रीमद्भागवत गीता -8/23 के अनुसार
रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌ ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌ ॥

अर्थात-  मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ

और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर भी में ही हूँ। बिना मेरी आज्ञा के खजांची कुबेर किसी को एक कील भी नहीं दे सकते।
मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ, जो सृष्टि के सभी जीव-जगत में आत्मा, ऊर्जा, शक्ति, विश्वास के रूप में वास करता हूँ तथा शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत भी मैं हूँ।
शास्त्रों, पुराणों के अनुसार “महिलाएं” बिना शल्य चिकित्सा के भी लिंग
परिवर्तन कर सकती हैं। कैसे?
जाने- प्राचीन आध्यात्मिक विज्ञान
प्राचीन पुराणों का यह प्रसंग बहुत कम लोग
जानते हैं कि शिवजी का दक्षिणांग यानि
राइट साइड पुरूष एवं वामांग हिस्सा यानी लेफ्ट साइड नारी का है, इसलिए भगवान शिव को अर्धनारीश्वर कहा जाता है।
सृष्टि उत्पत्ति का रहस्य
ब्रह्मा जी के शरीर के वाम भाग यानि लेफ्ट साइड से शतरूपा नाम की नारी और दाहिने भाग से मनु पुरूष का जन्म हुआ। इससे सूचित होता है कि प्रत्येक पुरूष का वामांग नारी गुणों तथा प्रत्येक स्त्री का दक्षिणांग पुरूषत्व गुणों से युक्त होता है।
पंचाक्षर मन्त्र के जाप द्वारा किया 
जा सकता है लिंग परिवर्तन
अत: शतक 123 के अनुसार पंचाक्षर मन्त्र के जप से यदि स्त्री वैसा चाहती है, तो उसके दक्षिणांग में स्थित पुरूषत्व भाव जाग्रत हो जाता है। जिस प्रकार अम्भृण ऋषि की कन्या वाक् में ज्ञान का एकेश्वरवाद का पुरूषत्व एवं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का हर-हर महादेव के उच्चारण द्वारा इन वीरांगनाओं मे वीरता का पुरूषत्व जाग्रत हो गया था। आज के वैज्ञानिक युग में लिंग परिवर्तन इसी कारण हो पाता है।
शुद्धि दाता पंचाक्षर मन्त्र
स्त्री, पुरूष, बाह्मण या अन्य कोई भी पंचाक्षर मन्त्र का जप करके शुद्ध हो जाता है।
पुराणों उपनिषदों में श्लोक है कि
नमोन्तं वा नम: पूर्व-,
मातुर: सर्वदा जपेत्। 
तत: स्त्रीणां तथैवोह्य, 
गुरूर्निर्दर्शयेत्क्रमात्।।
यदि कोई व्यक्ति आतुर (बीमार या बहुत दु:खी) है, तो वह नम: अन्त में अथवा प्रारंभ में कहीं भी लगाकर मन्त्र जप कर सकता है। जैसे नम: शिवाय अथवा शिवाय नम:।
महिलाओं  और निर्गुरु को किसी भी मन्त्र में ॐ लगाना निषेध कहा गया है
जाने ऐसा क्यों?
स्कन्दः पुराण के मुताबिक
 स्त्री साधक को ऊँ प्रणव के साथ
पंचाक्षर मन्त्र नहीं जपना चाहिए।
शिवपुराण आदि शास्त्रों में तो यह भी उल्लेख है कि जब तक व्यक्ति निर्गुरु यानि बिना गुरु के है, तब तक किसी भी मन्त्र के पहले ऊँ नहीं लगावें।  स्त्रियों को कभी भी ऊँ का उच्चारण नहीं करना चाहिए।
बिना गुरु मुख से प्राप्त ॐ के 
उच्चारण से होने वाले नुकसान 
बिना गुरु मुख से प्राप्त ऊँ का उच्चारण
उपयोग करने से 4 तरह की हानि हो सकती है
【1】अन्धकार,
【2】अनर्थ अनिष्टकारी,
【3】सिद्धि समृद्धि,
【4】सम्पन्नता विनाशक
बताया गया है।
सदगुरु का महत्व- गुरु का जीवन में ईश्वर से भी अधिक महत्व है।
साधक: पञ्चलक्षान्ते, 
शिव प्रीत्यर्थमेवहि। 
महाभिषेक-नैवेद्यं, 
कृत्वा भक्तांश्च पूजयेत्।।
अर्थात- पाँच लाख मन्त्र जप (पंचाक्षर मन्त्र का एक पुरश्चरण पूर्ण होने) के पश्चात् शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिंवलिंग
षोडशोचार पूजन और महाभिषेक करे तथा शिव भक्तों का भी सम्मान करे।
पूजया शिव भक्तस्य, 
शिव: प्रीततरो भवेत्।
शिवस्य शिव भक्तस्य, 
भेदोनास्ति शिवो हि स:।
अर्थात-
शिव भक्त का सम्मान, करने से शिव जी बहुत प्रसन्न होते है, क्योंकि शिव में और शिव भक्त में कोई अन्तर नहीं होता। शिव भक्त सतत् शिव रूप ही होता है।
शिव स्वरूप मन्त्रस्क, 
धारणाच्छिव एव हि।
शिच भक्त शरीरे हि, 
शिवे तत्परो भवेत्।।
शिवपुराण
पंचाक्षर महामन्त्र भगवान् शिव का मन्त्र रूप (मन्त्र विग्रह मूर्ति ) है। अत: पंचाक्षर मन्त्र को धारण करने वाला शिव ही हो जाता है। शरीर में शिव भक्ति होने से वह स्वयं शिव स्वरूप हो जाता है।
निरन्तर साधना करते रहने से
साधक पर वैसा प्रभाव पडऩा एक मनोवैज्ञानिक क्रिया है। ऐसी ही स्थिति में साधक शिवोऽहं शिवोऽहं
अर्थात (मैं स्वयं शिव हूं, मैं स्वयं शिव हूं) का ध्यान और एहसास करने लगता है।
शिव भक्ता: क्रिया: सर्वा, 
वेद सर्वक्रिया बिदु:।
यावद्यावच्छिवं मन्त्रं, 
येन जप्तं भवेत् क्रमात्।।
तावद्वै शिच सानिध्यं, 
तस्मिन्देहे न संशय:।
देवी लिड्गं भवेद्रूप, 
शिव भक्त-स्त्रियास्तथा।।
अर्थात-
जो शिव भक्त सम्पूर्ण वेद क्रियाओं को जानते हैं (और जो वेद-क्रियाओं को न जानने के कारण वेद-क्रियायें जानने वाले ब्राह्मणों से शिव पूजन की क्रियायें कराते हैं) वे जितन-जितने क्रम से शिव पंचाक्षर मन्त्र
ॐ नमः शिवाय जपते हैं, उतना ही उतना उन्हें शिव सानिध्य प्राप्त होता जाता है। साधक के शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है, इसमें किसी संशय की बात नहीं है। शिव भक्त स्त्रियाँ स्वयं देवी का स्वरूप हो जाती हैं।
यावन्मन्त्रं जपेद्देव्यार-, 
तावत्सानिध्य-मस्ति हि।
शिवं सम्पूजयेद्धीमान्-, 
स्वयं वै शब्दरूपभाक्।।
वे जितना मन्त्र जपती जाती हैं, उतनी ही उन्हें देवी की निकटता प्राप्त हो जाती है एवं जो बुद्धिमान लोग पंचाक्षर मन्त्र जपते हुए
भगवान शिव जी का स्वरूप शिंवलिंग का
पूजन करते हैं, पंचाक्षर मन्त्र भगवान् शिव का शब्द रूप होने के कारण साधक स्वयं शब्द रूप का भागी हो जाता है। यह विशुद्ध मनोवैज्ञानिक तथ्य है।
ईश्वरोउपनिषद में लिखा है
शिवलिंग को नाद रूप, शक्ति को बिन्दु रूप और पंचाक्षर मन्त्र के वर्ण स्वरूप को शिव मानकर इस प्रकार से एक दूसरे में आसक्त भाव से शिवलिंग का मन्त्र जप व पूजन करे
पूजयेच्च शिवं शक्तिं, 
स शिवा मूलभावनात्।
शिवभक्ताञ्छिवमन्त्र-,
रूपकाञ्छिवरूपकान्।।
वह साधक अपने ह्रदय की गहराई से शिव और शक्ति की पूजा करे। शिव भक्तों को शिव मन्त्र (नम: शिवाय) को साक्षात् शिव का स्वरूप मानकर पूजा करनी चाहिए।
षोडशैरूपचारैश्च, 
पूजयेदिष्ट-माप्नुयात्।
येन शुश्रूषणाद्यैश्च, 
शिवभक्तस्य लिड्गिंन:।।
यदि साधक की कोई सांसारिक कामना है तो शिव भक्त को चाहिए कि षोडशोपचार विधि से
शिंवलिंग का जल, दूध या दही से रुद्राभिषेक
कराकर विधि-विधान से
पूजा करे और शिव भक्तों की सेवा करे।
जो शिव भक्त इस प्रकार और भावना से शिवजी का पूजन करता है, वह स्वंय शिव शक्ति स्वरूप होकर पृथ्वी पर पुन: जन्म नहीं लेता।
शिव भक्त के शरीर का वर्णन
पंचाक्षर मन्त्र ॐ नमः शिवाय के लगातार जाप से शिव साधक की
 नाभि से लेकर नीचे पैरों तक का भाग ब्रह्मा का, कण्ठ से लेकर नाभि तक विष्णु का भाग और शरीर का शेष रहा मुख, वह शिव लिंग अर्थात् मानव मस्तिष्क शिवलिंग स्वरूप हो जाता है। इस प्रकार शिव भक्त के शरीर के विभाग बताए गए हैं।
इसलिए शिव भक्त की मृत्यु के पश्चात् उसकी दाह क्रिया की गई हो अथवा न की गई हो, उस मृतक की पितृ क्रिया के रूप में पितरों की शान्ति के उद्देश्य से सभी के आदि पितर भगवान् शिव का माह में एक बार मधुपंचामृत से रुद्राभिषेक एवं पूजन करें शिव की पूजा के पश्चात् चराचर की आदि माँ भगवती की पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार पितृ पूर्वज व्यक्ति शिवलोक को प्राप्त होकर कर्म से मुक्त होकर परिवार पीढ़ी को प्रसन्नता, सम्पन्नता प्रदान करता है।
तस्माद्वै शिवभक्तस्य, 
महिमानं वेक्ति को नर:।
शिवशक्यो: पूजनञ्च, 
शिवभक्तस्य पूजनम्।।
विशेषज्ञो मुनीश्वरा:।।
वेद पुराण कहते हैं कि
अत: भगवान शिव और शिव भक्त की महिमा कौन जान सकता है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक शिव शक्ति अर्थात् भगवती शिवा का, शिवजी का और शिव भक्त का पूजन करता है, वह शिव को प्राप्त करता है।
महर्षि मुनिश्वर कहते हैं कि इस अध्याय का अर्थ वेद सम्मत हैं, जो इस अध्याय को पढ़ता है और शिव भक्तों को सुनाता है, वह शिवज्ञानी शिव के साथ रहकर आनन्दित होता है। वह पूर्णत: शिव की कृपा प्राप्त कर लेता है।
संसार का सारा सत्य शिव कृपा से ही सुन्दर दिखता है। बिना शिव साधना के सब कुछ झूठ है असत्य है। शिव में लगन लगने पर हमें अहसास होता है कि –
झूठे जग की प्रीत है झूठी
शिव से प्रेम है सच्चा
जो पल शिव के ध्यान में गुजरे
वह ही तो पल अच्छा
शिव के लिए सारी सृष्टि,
संसार की सभी शक्तियाँ,
सुख-समृद्धि सहज हैं-सरल है।
 शिव का एक इशारा असहाय,
असहारा लोगों को सामथ्र्य प्रदान करता है। हानि-लाभ जीवन मरण, यश अपयश, विधि (शिव) हाथ यह विश्वास सदा साथ रहेगा तो भांवहि मेट सके त्रिपुरारी अर्थात् प्रत्येक अनष्टि दु:ख दर्द दूर करेंगे।

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