आयुर्वेद के चरक सहिंता के अनुसार बोलने का कार्य उदान वायु करती है। शरीर को बलवर्ण प्रदान करने का कार्य भी उदान वायु का ही होता है।
ज्यादा बोलने के कारण इस वायु में क्षीणता आने से व्यक्ति के बल और वर्ण यानी रंग-रूप बिगड़ने लगता है।
अधिक बोलने से उत्तरोत्तर शारीरिक एवं मानसिक दौर्बल्य की उत्पत्ति होने लगती है। हमारेई शक्ति का दिनों दिन ह्रास होने की वजह अधिक बोलना ही है।
मौन व्रत के प्रति उपेक्षा भाव का ही दुष्परिणाम है कि- आज जगत चिन्ता, शोक, भय, क्रोध, हिंसात्मक वृत्ति, नशे की आदत जैसे दुर्गणों की भीषण चपेट में हैं।
अष्टाङ्ग ह्रदय ग्रन्थ के अनुसार चिन्तया, शोक, भय-भ्रम होने की दिशा में लिया गया पथ्य आहार भी मानव शरीर में नहीं पचता।
मात्रयाsप्यभवहृतँ पथ्यंचान्न न जीर्यति।
चिंता शोक भय क्रोध दुख-शय्या प्रजागरै:!!
इन सबका समाधान है “मौन”!
अगर आप घबराए हुए हैं। चिंतित है। तरह तरह के डर आपको परेशान कर रहे हैं, तो तुरन्त एक सप्ताह के लिए मौन धारण करें
दुनिया की हर समस्या का हल और बड़े बड़े काम शांत और मौन रहकर ही होते हैं।
मौन व्रत से नचाने वाली अनेक प्रकार की महत्वकांक्षाओं से आपको मुक्ति मिलेगी।
मौन आत्मिक शांति का अजस्त्र स्त्रोत है।
अवसाद हो, डिप्रेशन हो, मानसिक क्लेश हो, तो केवल आप मौन साधें।
अपनी शांति तभी भंग करें, जबापके पास शांति से ज्यादा मूल्यवान विचार हों।
मौन के समय केवल जबान बन्द हो और अंदर दुकान खुली हो यह अनुचित है।
भारतीय मनीषियों ने शब्द को शक्ति के रूप में स्वीकार है। शव्द कभी व्यर्थ नहीं जाते। यह ब्रह्माण्ड में विचरित होते रहते हैं। जिन्हें सावधानी पूर्वक बोलना उचित है।
मिथ्या प्रयोगों एवं झूठ बोलने से वाक्शक्ति की सूत्रधार देह की प्राणशक्ति अर्थात जीवनीय शक्ति या रोगप्रतिरोधक क्षमता क्षीण होती रहती है।
आयुर्वेदाचार्यों ने आत्मा, इन्द्रिय, मन की प्रसन्नता को स्वास्थ्य का आधार बताया है।
सुश्रुत सहिंता के एक श्लोक में लिखा है कि-
!!प्रसन्नात्मेंद्रिय मन: स्वस्थ इति अभिधीयते!!
मौन रहने से फायदे…
मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है। मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते है। वाणी का अपब्यय रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम् मौन को उपलब्ध होना है।
कबीरदासजी ने कहा है….
कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए।
जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय।
अधर मतलब होंठ। होंठ वास्तव में तभी ठहरेंगें, तभी शान्त होंगे, जब मन की खटपट मिट जायेगी। हमारे होंठ भी ज्यादा इसीलिए चलते हैं क्योंकि मन अशान्त है,
ईर्ष्या, निर्लज्जता, राग, द्वेष, मोह, लोभ, लालच, दुर्भावना, दुर्भाग्य इत्यादि मनोविकारों का परित्याग करने के साथ ही विशेषकर भोजन के समय मौन रहने का निवेदन किया है।
अतः कभी टोन में न रहें।
बुढ़ापे में 5 चीजों से बचें….
【1】कौन घर में आते जाते बच्चों के दोस्तों से कभी न पूछें !आप कौन?
【2】Loan यानि कर्जे से बचें
【3】फोन पर किसी से ज्यादा बात न करें। क्योंकि बुढ़ापे में कान कमजोर होने से सुनाई कम पड़ेगा और वाणी भी दूषित हो जाती है।
【4】नोन अर्थात ज्यादा नमक का सेवन करें अन्यथा बीपी हाई रहेगा, फिर क्रोध आएगा
【5】टोन यानी तीखे वचन न बोले, नहीं तो बेइज्जती हो जाएगी।
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