भूमिहीन, भवन रहित या जिनके मकान, घर न हो उनके लिए विशेष दुर्लभ जानकारी.

दुनिया में जो भी व्यक्ति या परिवार अपना स्वयं का घर या मकान बनाना चाहता हो, इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति के मकान में कानूनी उलझने हों, जिनका मकान न हो वह व्यक्ति मंगल दायिनी मां के इस स्तोत्र का रोज एक से ९ माला जाप करके अपनी पितृमत्रुकाओं को अर्पित करें।
मंत्र जप करने से पूर्व एक देशी घी का दीपक जलाकर अग्नि के समक्ष तीन सफेद फूल तथा देशी मक्खन वी मिश्री अर्पित कर पाठ प्रारंभ करें…
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सार्वार्थसाधिके।
 त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।
शब्दार्थ – सर्वमंगला मंगलभाव से भरी, मंगलों का भी मंगल, मंगलों में मंगलशीला हे शिवे! कल्याणकारिणि, सर्वाथसाधिके, सभी प्रयोजनों का साधन करने वाली शरण्ये-शरणाहै, जिसकी शरण की सबको कामना है।
 हे मंगल कारक मां भगवती देवी, हे गौरि, हे नारायणि हे महामंगलदायिनी, महालक्ष्मी! आप मंगलकर्ता अंगारक (भगवान कार्तिकेय) जो बलवृद्धिकारक है तथा श्री गणेश जो सिद्धि बुद्धि प्रदाता हैं) की माँ हो।
आप अपने बच्चों की तरह मेरा भी मंगल करें। मुझे भी एक खुद का घर प्रदान करें।
 आप सबका शुभ, कल्याण, सर्वाथ का साधन कर, अभीष्ट सिद्धि देकर, शरणागत की रक्षा करने वाली हो, भय-भ्रम भ्रान्ति और भटकाव से पीड़ित जीव आपकी शरण में आकर कृतार्थ हो जाता है।
आप तीन नेत्रों वाली हैं, सोम, सूर्य और अग्नि ये ही आपके तीन नेत्र हैं।
 अम्ब का अर्थ वर्ण माने तो आप ही प्रणव ॐ में अकार, उकार और मकार रूप से है।
भगवान शिव का सत्यम्-शिवम सुन्दरम् स्वरूप आप ही हैं, गौरी, दुर्गा आप ही हैं,
हे भूमिदायिनी नारायणि आपको नमस्कार है। मेरी प्रार्थना अप तक पहुंचा रहा हूं।

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