सूर्य उपासना से होते हैं- चमत्कारी फायदे.

बहुत कठिन परिश्रम,दिन रात कड़ी मेहनत के बाद भी भाग्योदय नहीं हो पाता। क्योंकि सम्पूर्ण जीव जगत के रक्षक परम पिता स्वरूप भगवान सूर्य की उपासना भूत ही कम लोग करते हैं।
दुःख का दुखड़ा मत रोएं....
संसार मत छोडो, दृष्टि छोडो।
दृष्टि बदलोगे, तो सृष्टि बदल जाएगी।
नजरों को  बदलते ही, नजारे बदलेंगे
मगर दृष्टि बदलने को कोई
भी  राजी नहीं है। संसार SUN सार
अर्थात सूर्य देवता ही संसार का सार है!
वेद वाक्य है-
“सूर्य आत्मा जगत् स्थ”
अर्थात-सूर्य जगत् की आत्मा है !
सब संसार छोड़ने को राजी हैं, लेकिन
जीव जैसी वही आँखें लेकर जहाँ भी
जाएगा, वैसा ही संसार बन जायेगा !
संसार में भी सार है, बहुत कुछ पाने के
आसार हैं। इस आधार को और धारदार बनायें ! इसके लिये सूर्य या शिव प्रार्थना के प्रयास  जरूरी है!
【1】इस सूर्य जैसी महाशक्ति की जो भी मनुष्य उपासना करता है, वह  दिव्य वाणी-स्वभाव वाला हो जाता है।
【2】सूर्य के ध्यान से तेजस्वी होकर मनुष्य की आत्मा स्वत: आनन्द मग्न रहने लगती है।
【3】सूर्य उपासना से जैसे देवता स्वर्ग में सदा आनन्दित रहते हैं। मनुष्य भी भूलोक में उसी प्रकार आनन्दित रह सकता है, उसके कष्टों का निवारण हो जाता है।
【4】सूर्य की पूजा, आराधना, अभिभावना करता है, वह प्रतिक्षण समस्त अज्ञान, अभावों और अशक्तियों के कारण उत्पन्न होने वाले कष्टों से छुटकारा पाकर मनोवाँछित फल प्राप्त करता है।
【5】सूर्य साधक माता के स्तनों के समान आध्यात्मिक दुग्ध धारा का पान करता है,  उसे किसी प्रकार कोई कष्ट नहीं रहता।
【6】ऐश्वर्य, कीर्ति, ,प्रसिद्धि, धन-सम्पदा सूर्य साधना से स्वयं ही आने लगती है।
【7】सूर्य साधक के मन-अन्तःकरण,मस्तिष्क और विचारों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है।
【8】सूर्य की किरणें मन:लोक में चुम्बकत्व (मैग्नेटिक शक्ति) उत्पन्न करती है।
【9】आदित्य संसार की सर्वोपरि समृद्धि और सर्वश्रेष्ठ शक्ति ‘सद्बुद्धि’ दाता है।
【10】सूरज से हमें प्रकाश, ऊष्मा, उमंग, गर्मी और अच्छा स्वास्थ्य मिलता है।
【11】आज सूर्य भगवान नहीं होते, तो धरती बिल्कुल ठंडी और अंधेरी होती।
 【12】वृक्ष, पेड़-पौधों को अपना भोजन बनाने के लिए सूरज की रोशनी की ज़रूरत होती है।
【13】सूर्य बिना पौधे ज़िन्दा नहीं रह सकते और पौधों के बिना जानवर जी नहीं पाते
【14】 सूर्य आराधना से शरीर सुंदर और कांतिमय होता है साथ ही दीर्घायु  होने का फल प्रदान करते हैं।
¶ सूर्य नाड़ी रोगनाशक होती है।
¶ श्वास-प्रश्वास की उचित विधि मनुष्य को न केवल स्वस्थ, सुंदर और दीर्घजीवी बनाती है बल्कि ईश्वरानुभूति तक करा सकती है।
सदा युवा बने रहने और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सांसों पर संयम जरूरी है। श्वास की गति का संबंध मन से जुड़ा है।
मनुष्य के दोनों नासिका छिद्रों से एक साथ श्वास-प्रश्वास कभी नहीं चलती है। कभी वह बाएं तो कभी दाएं नासिका छिद्र से सांस लेता और छोड़ता है।
बाएं नासिका छिद्र में इडा यानी चंद्र नाडी और दाएं नासिका छिद्र में पिंगला यानी सूर्य नाड़ी स्थित है। इनके अलावा एक सुषुम्ना नाड़ी भी होती है जिससे सांस प्राणायाम और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है।
शिवस्वरोदय ज्ञान में स्पष्ट रूप से लिखा है कि प्रत्येक एक घंटे के बाद यह श्वास नासिका छिद्रों में परिवर्तित होता रहता है। एक अन्य ग्रंथ में लिखा भी है:
कबहु ईडा स्वर चलत है कभी पिंगला माही।
सुष्मण इनके बीच बहत है गुर बिन जाने नाही।।
 
योगियों का कहना है कि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने पर वह मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है।
चंद्र नाड़ी से रिणात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है।
जब सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होता है तो शरीर को उष्मा प्राप्त होती है यानी गर्मी पैदा होती है।
 सूर्य नाड़ी से धनात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है।
प्राय: मनुष्य उतनी गहरी सांस नहीं लेता
और छोड़ता है जितनी एक स्वस्थ व्यक्ति
के लिए जरूरी होती है।
प्राणायाम मनुष्य को वह तरीका बताता है जिससे मनुष्य ज्यादा गहरी और लंबी सांस ले और छोड़
सकता है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम की विधि से दोनों नासिका छिद्रों से बारी-बारी से वायु को भरा और छोड़ी जाता है।
अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आ जाता है जब चंद्र और सूर्य नाड़ी से समान रूप से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने लगता है। उस अल्पकाल में सुषुम्ना नाड़ी से श्वास प्रवाहित होने की अवस्था को ही ‘योग’ कहा जाता है।
Cctv कैमरा
सूर्य नाड़ी
चन्द्र नाड़ी
सूर्य चन्द्र स्तन शक्तिशाली पुत्र
सूर्य ही शेषनाग हैं
सूर्य की नाग जैसी जाल की आकृति है।
हमारी मातृभूमि भारत ही एक मात्र विश्व में एक ऐसा अद्भुत देश है, जहां बीते हुए और आने वाले समय को “कल” कहते है । कल से ही काल बना। काल का अर्थ समय और मृत्यु दोनों है।
यही काल (समय) सर्प की भाँति मन्द गति से चलते हुए इतना शिथिल हो जाता है कि हम मृत समान हो जाते हैं । इसको ही समय की मार “कालसर्प” दोष कहते हैं ।
क्या होता है कालसर्प-
 सर्प में ऊर्जा नहीं होती । जब जीवन दिशाहीन होकर समय ऊर्जाहीन हो जाये, कोई रास्ता नजर न आवे, आत्महत्या के विचार आने लगे, रोग-कष्ट
बार बार घेरने लगे, कर्ज, घनघोर आर्थिक संकट हो जाये । अपने धोखे देने लगे।
वाद-विवाद, कानूनी उलझन, शत्रुता बदनामी, सन्तति, सम्पत्ति का नाश,आदि अनेक आकस्मिक दुर्घटना, समस्याओं से व्यक्ति घिर जाता है ।
काल (समय) की गति भाग्य  को सर्प
(अजगर) जैसा शिथिल,आलसी कर
मन-आत्मा छिन्न-भिन्न कर देती है ।
अचानक मुसीबतें आना औऱ लंबे समय
तक बने रहना कालसर्प के लक्षण हैं ।
क्या करें –
तो व्यक्ति को केवल महाकाल और  माँ महाकाली की शरण में तत्काल जाना चाहिए । 54 दिन लगातार रोज  में किसी भी शिव मंदिर,काली मंदिर अथवा घर पर
प्रतिदिन “राहुकाल” में ‘
अमृतम राहुकी तैल’ के  5 दीपक पीपल के पत्ते पर रखकर जलाना चाहिए । राहुकी तैल राहु को प्रसन्न,शांत करने वाली प्राकृतिक जड़ी-बूटियों, नाग,त्रिवंग आदि काढ़े, तेल का राहुकाल में शिवलिंग का रुद्राविषेक कराकर तैयार होता है ।

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