स्वस्तिक शुद्ध बनाएं अन्यथा सिद्धि, बुद्धि ओर समृद्धि का हो जाएगा नाश। amrutam

  • ध्यान रखें स्वास्तिक बनाते समय किसी भी लाइन को काटना महाअशुभ होता है। इससे धन की तंगी बनी रहती है।
  • स्वस्तिक का अर्थ है। स्व का आस्तिक अनुभव करना। स्वयम की शक्ति का एहसास करने के लिए श्रीगणेशजी ने स्वस्तिक की रचना की थी।
  • अमृतम पत्रिका 2012 में यह बहुत बड़ा आर्टिकल प्रकाशित हुआ था जिसे हम अति सूक्ष्म रूप से लिख रहे हैं।
  • स्वस्तिक के बारे में और ज्यादा जानकारी चाहें, तो कमेंट्स करें हम पूरा लिख देंगे
  • श्री गणेश तन्त्र के अनुसार स्वस्तिक एक बहुत विशेष यन्त्र है, जिसका पूजा में सर्वप्रथम उपयोग करते हैं।
  • स्वस्तिक बनाने की एक वैदिक ओर वैज्ञानिक विधि है जिसे कम ही लोग जानते हैं।
  • वैदिक विधि से स्वास्तिक से बनाए अन्यथा चली जाती है बरक्कत और महालक्ष्मी।
  • श्रीस्वस्तिकाय नमः
  • कोई भी धार्मिक कृत्य हो- प्रथा कुछ ऐसी चल पड़ी है कि हम स्वस्तिक एक खड़ी पाई फिर समानान्तर रूप से मध्य को काटती हुई (+) दूसरी पाई से बनाना प्रारम्भ करते हैं, यह सही नहीं हैं ।
  • प्रस्तुत स्वस्तिक चित्र में इसको बनाने की प्रक्रिया दी गई है। 4 खड़ी पाई, 4 पड़ी पाई तथा 4 तिरछी, इस प्रकार कुल 12 पाइयों को आपस में जोड़ने से केवल और केवल स्वस्तिक ही बन सकता है, अन्य कोई विकल्प हो ही नहीं सकता। इनमें मध्य के जो 4 बिन्दू हैं, उन्हें लक्ष्य रूप समझना चाहिये। (जिसकी व्याख्या आगे दी गई है।)
  • इन 12 पाइयों की विशेषता इसलिये और भी बढ़ जा रही है कि स्तोत्रोक्त श्रीगणेशजी के जो विशिष्ट 12 नाम हैं, साथ में वाम व दक्षिण भाग में जो दो-दो पाइयाँ हैं, उनमें दो पाई गणेशजी की दो पत्नी ऋद्धि-सिद्धि तथा दो पाई इनके दो पुत्र शुभ-लाभ सूचक हैं ।
  • इस प्रकार चित्र के द्वारा श्रीगणेश परिवार के दर्शन का लाभ भी हमें मिल जा रहा है। कहने का आशय यह है कि जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में पड़ने वाली अनेक बाधाओं का सामना तथा उसका समाधान हम किस प्रकार अपने आचरण व व्यवहार द्वारा करें, ताकि जीवन सुखमय हो सके।
  • गणेश पुराण में महागणपति सहस्त्र नामावली में श्रीगणेश जी के 1000 (एक हजार) नाम हैं, किन्तु उनमें 12 (बारह ) जो विशिष्ट नाम हैं, उन पर विशेष चिन्तन-मनन करने से जो फल मुझे मिला, वैसा ही आपको मिले इस हेतु से स्वस्तिकचक्र के महत्व को जानने-समझने का यहाँ संक्षिप्त विधान दर्शित किया जा रहा है।
  • नियत स्थान पर उत्तराभिमुख बैठ कर लाल चन्दन अथवा रोली से (चित्र) के अनुसार स्वस्तिक बनाना प्रारम्भ करें।
  • सर्वप्रथम उत्तर की ओर खड़ी पाई बनाते समय वक्रतुण्डाय नम: का वाचन करे, दूसरी पड़ी पाई पूर्व की तरफ बनाते समय एकदन्ताय नम: का उच्चारण करे, तिसरी तिरछी पाई ईशानकोण की ओर बनाते समय कृष्णपिंगाक्षाय नमः ऐसा बोलें।

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