भगवान श्री गणेशजी के वे अदभुत रहस्य ओर वो बातें, जो लोग नहीं जानते…

गणेश जयंती औऱ गणेश चतुर्थी दोनों एक हैं।

इस दिन भगवान शिव के लघु पुत्र श्री गणेश जी जन्म हुआ था।

गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर अमृतम परिवार की तरफ से देश-दुनिया के सभी श्री गणपति साधकों-उपासकों तथा भक्तों को

हृदय से शुभकामनाएं प्रेषित हैं।

इस लेख में गिलोय से निर्मित मोदक बनाने की विधि प्रस्तुत है।

यह गिलोय मोदक रोगप्रतिरोधक क्षमता एवं इम्युनिटी पॉवर बढ़कर कोरोना और संक्रमण नाशक है।

जाने-श्री गणेश चतुर्थी के बारे में अनेक दुर्लभ जानकारी

¶~ कैसे करें गणेश चतुर्थी की पूजा-प्रार्थना?

¶~ मोदक का क्या महत्व है?

¶~ ओषधि युक्त लड्डू कैसे बनाएं?

¶~ मोदक से क्यों मोहित हो जाते है-गणपति बब्बा?

¶~ गणेश जी को पान के पत्ते की माला क्यों पहनाते हैं?

¶~ लम्बोदर को दुर्बा एवं कुशा क्यों अर्पित करते हैं?

¶~ अष्टविनायक का वैदिक मन्त्र कौनसा है?

गजब के गणेश, काटो क्लेश—

परम् माँ भक्त, माँ के दुलारे, परमात्मा शिव के पुत्र,

मङ्गलनाथ भगवान कार्तिकेय स्वामी के छोटे भाई,

मणिधारी,इच्छाधारी सिद्ध नागों के अधिपति,

श्री विश्वकर्मा जी के दामाद,

रिद्धि-सिद्धि के पति,
शुभ-लाभ के पिता हैं।
नंदीनाथ के नारायण
लड्डू गोपाल के सखा।।

सकल जगत के रचयिता, सबका पालनहारा,
निसदिन न्यारा बुद्धि-बलदायक,अखण्ड जीव-जगत का नायक “विनायक” धन्य है!

बहुत लम्बे हाथ वाले,
लम्बोदर को। तभी कहा गया कि

“गण लम्बोदर की लीला,
नहीं जाने गुरु और चेला“

गणपति जी की पूजा और प्रार्थना–की परंपरा

बहुत ही सरल,सहज,भावुक पूजा विधि जाने-

प्राचीन पुस्तकों को प्रणाम-

गणेश रहस्य, स्कन्दः पुराण, शिवपुराण आदि 50 से ज्यादा 50000 (पांच हजार) साल से भी अधिक पुराने ग्रंथों तथा कालसर्प विशेषांक,
अमृतम मासिक पत्रिका

इत्यादि पुस्तकों से एकत्रित कर वर्षों के अध्ययन, अनुसंधान एवं कड़ी मेहनत के

बाद श्री गणपति बब्बा के बारे में यह अद्भुत जानकारी प्रस्तुत है।

इस लेख में श्री गणेश चतुर्थी का पूजा,विधान बहुत ही सरल विधि से संस्कृत सूत्रों, श्लोकों का हिंदी में अनुवाद करके दिया जा रहा हैै।

इस बार कुछ नये विधान से पूजा करके देखें, यह वर्ष

बहुत ही शुभकारी, लाभकारी और विशेष सुख-संपन्नता दायक होगा।

राहु-केतु का संयुक्त रुप है- विनायक…

गणपति हों या राहु-केतु को शास्त्रों में सिद्धि और मंगलकारी शक्तियों का स्वरूप बताया गया है

दुनिया में बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि

श्री गणपति जी राहु-केतु का संयुक्त रूप है।

नीचे का हिस्सा गण यानि केतु है और ऊपर का हिस्सा पति अर्थात राहु है।

सृष्टि के जितने भी सिर कटे देवता हैं, वे सब गणपति का ही प्रतिरूप माने जाते हैं।

चाहें, वे बाबा खाटू श्याम हों, या फिर भैरोनाथ। फिलहाल ये संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है।

ज्योतिष के ग्रंथों में राहु को मस्तिष्क का कारक माना है।

और विस्तार से यह जानकारी 700 पृष्ठ में प्रकाशित होने वाला विशेषांक श्री गणेश अंक में दी जावेगी।

पुस्तक का नाम अभी निर्धारित नहीं है।

दुर्बा अर्पित करने का कारण क्या है?…

मान्यता है कि एक बार श्रीलम्बोदर जी के उदर में भयंकर जलन होने लगी, तो महान आयुर्वेदाचार्य महर्षि कश्यप ने उन्हें दूर्वा घास काढ़ा बनाकर सेवन कराया,

तो दुर्बा के औषधिय गुणों से गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई। तभी से गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं।

केतु की शांति लिए भी दुर्बा अर्पित की जाती है। श्री गणेश जी को दुर्बा की माला अर्पित करने से जलने-कुढ़ने वाले लोग शांत हो जाते हैं।

श्री गणेशजी को कुशा या पवित्री घांस का आसन सबसे प्रिय है।

गणपति के उपासक यदि कुशा के आसन पर बैठकर गणेश मन्त्र !! ॐ गं नमः !! का जाप करें।

राहुदेव को प्रसन्न करने हेतु कुशा के शिवलिंग बनाकर पूजा करना चाहिए।

गणेशजी का वैदिक मन्त्र, जो बहुत खास है…

हरिॐ गणानां त्वा गणपति(गुँ) हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति(गुँ) हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति(गुँ) हवामहे व्वसो मम।

गणेश गायत्री मंत्र….ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुद्धि प्रचोदयात।।

इस गणेश गायत्री के जाप से तन-मन प्रफुल्लित होता है।

सिद्धि के दाता भगवान गणेशजी को प्रसन्न करने वाला, धन बरसाने वाला यह गणेश रहस्य नामक आदि ग्रन्थों में भी उपलब्ध है।

इसका पाठन, मनन, चिंतन से जीवन के अनंत उपद्रव्य शांत होकर सम्पदा में अथाह वृद्धि होने लगती है। देखे चमत्कारी दुर्लभ मन्त्र युक्त चित्र…

अर्थात- हे शिव-पार्वती पुत्र गणपतिजी!

हम आपका भजन-भक्ति यजन-पूजन

सर्वकार्य हेतु विशेष सिद्धी दायक मंत्र…

!!ॐ गं गणपतये नमः!!

उपरोक्त मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र,

ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र आदि भी विशेष रूप से पढ़े जाते हैं।

भविष्यपुराण के शान्तिकल्प अध्याय में गणेशजी का यह मन्त्र, मन का अपार शांति देता है-

अवधूत की भभूत के रहस्य

नजर-वास्तु का विनाश कैसे करें?

अगर आप बुरी नजर या वास्तुदोष के कारण गृहकलेश से परेशान हैं,

तो हरेक बुधवार को कच्ची 9 हल्दी की माला घर में ही श्री गणेश को पहनाएं।

इस माला को अगले बुधवार तक पहनाए रखें। जब नवीन माला अर्पित करें, तो पुरानी घर के मुख्य द्वार पर लगा देंवें।

यह प्रक्रिया 14 बुधवार करें। अंत में द्वार पर लगी सभी 14 माला की हल्दी पीसकर इसमें 14 गुना आटा,

दो गुना बेसन मिलाकर मोटी रोटी बनाएं और रोटी पर थोड़ा सा देशी घी लगाके, रोटियों पर गुड़ रखकर 3 या 4 नन्दी या साढ़ को खिला देंवें।

चमत्कारी लाभ होगा। घर के सभी कष्ट, रोग, शोक, दुःख, धन का अभाव हमेशा के लिए मिट जाएगा।

मोदक का महत्व इतना क्यों है-श्रीगणेश के लिए…

मोद का मतलब है-परम प्रसन्नता प्रदान करने वाला। मोदक ज्ञान का प्रतीक है।

इसका गहरा अर्थ यह है कि तन का आहार तथा मन के विचार को सात्विक और शुद्ध रखना जरुरी है।

तभी आप जीवन का वास्तविक आनंद पा सकते हैं। मोदक नारियल और घी के मिश्रण से बनने वाला घरेलू मिठाई है।

मोदक मुलायम भी होता है। गणेशजी का एक दांत टूटा होने से इसे आसानी से खा सकते हैं।

उन्हें यह अत्यंत प्रिय है। माँ अनुसुइया ने मोदक नाम दिया था। मोदक अनेक प्रकार से बनते हैं।

बूंदी के मोदक की महानता…

बूंदी के एक लड्डू में हजारों दाने ऊर्जा शक्ति का प्रतीक है।

अतः व्यक्ति को अपनी ऊर्जा-उमंग को बूंदी के लड्डू की तरह बांधकर रखें।

कानीपाकम में स्वयंभू गणेश मन्दिर–

यह दुनिया का एक मात्र स्वयम प्रकट गणेशजी का मन्दिर दक्षिण भारत के चित्तूर जिले में पड़ता है।

यह तिरुपति बालाजी से 60 किलोमीटर दूर है।

कानी पाकम का मतलब…. कानी का अर्थ है-

सफेद अकौआ तथा पाकम का मतलब पवित्र पेड़।

सफ़ेद आक के पेड़ से प्रकट यह प्रतिमा प्रतिवर्ष 2 से 3 इंच अपने आप बढ़ रही है।

दक्षिण भारत के अधिकांश फ़िल्म स्टार इनके परम् भक्त हैं।

श्री राहु के मन्दिर में गणपति–

पंचतत्वों में प्रमुख वायु तत्व का यह मन्दिर राहु

व कालसर्प, पितृदोष की शान्ति हेतु चमत्कारी है।

श्रीकालहस्ती के नाम से प्रसिद्ध इस मन्दिर में

पचास लाख वर्ष पुरानी

पाताल गणेश, बाल गणेश

मुक्ति गणेश, लक्ष्मी गणेश, शिव गणेश आदि

करीब 25 अलग-अलग प्राचीन प्रतिमाएं कलहस्तिश्वर मन्दिर परिसर में विराजमान हैं।

देश-दुनिया के अनेकों चमत्कारी व दुर्लभ

गणपति मंदिरों की जानकारी कभी भविष्य में अमृतमपत्रिका के श्री गणेश विशेषांक में प्रकाशित की जावेगी

चारों वेदों में प्रथम प्रमथनाथ (भगवान शिव

के प्रथम मुख्य गण) श्री गणपति की स्तुति में

ऐसी प्रार्थना की गई है-

असतो माँ सद्गमय,
तमसो मां ज्योतिर्गमय
मृत्युर्मा अमृतम गमय
ॐ शाँति:!शान्ति!!शांति:!!!

अर्थात-हे परमात्मा स्वरूप गणेश,हमें अंधेरे से उजाले की ओर ले चलें। बार-बार के जन्म एवं

जरा,पीड़ा,मृत्यु से मुक्त करें। हमें अमृत रस

का आनंद देकर अमृतम बना देवें।

कालसर्प-पितृदोष नाशक उपाय–

घर के मुखिया अपनी उम्र के अनुसार यदि किसी की उम्र 55 वर्ष है,तो 55 मिट्टी के दीपक अमृतम

राहुकी तेल के पान,गिलोय,या जामुन के पत्ते पर रखकर 90 मिनिट तक जलावें।

सम्भव हो,तो दियों से स्वास्तिक बना लें।

फिर पूजा-प्रार्थना आरम्भ करें।

श्रीगणेश जी से गुहार- बहुत विनय भाव से,भावुक होकर अंतर्मन से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें!

■■ गणेश चतुर्थी का यह उत्सव,ऊर्जा,उमंग से सभी को उत्साहित करे।

■■ हम उर्ध्वगामी हों। हमारा जीवन,तन-मन उत्साहवर्द्धक हो।

■■ श्री गणेश चतुर्थी पर सभी को चतुर्थ पुरुषार्थ अर्थात धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की प्राप्ति हो।

■■ चारों दिशाओं में यश, कीर्ति, ऐश्वर्य और आनंद फैलता जाए।

■■ सबका मन चमन हो।

■■ वतन में अमन हो।

■■ यह रत्न रूपी तन तंदरुस्त तथा स्वस्थ्य हो।

■■ सबकी सकारात्मक सोच हो।

■■परमात्मा एवं पितरों-पूर्वजों की कृपा हो।

■■ सद्गुरुओं का आशीर्वाद हो।

■■ मातृ-पितृ मातृकाएँ माँ की तरह लाड़-दुलार करें।

■■ ग्राम देवता,स्थान देवता,इष्ट देवता, पितृदेवता,कुल के देवी-देवता हमारे परिवार की रक्षा करे।

■■ सप्त ऋषिगण, सप्त नाग, शेषनाग, भीमा देव, कुंअर बाबा,खाती बाबा,बाबा हीरा भूमिया सबका कल्याण करें।

■■ भैरवनाथ हमारे भय-भ्रम का नाश करें।

■■ महाकाल और माँ महाकाली हमारे बीते कल (प्रारब्ध) के क्रूर पापों व कालसर्प,पितृदोष
को दूर करें।

■■ आने वाला कल (भविष्य) स्वस्थ्य,सुख-समृद्धि और प्रसन्नता दायक हो।

■■ वर्तमान (समय) की परेशानियाँ, रोग-दुःख दूर हों।

■■ कभी-कभी,कठिन,कष्ट-क्लेश कारक काल

(समय) में परम् शान्ति प्रदान करें।

■■ हे श्री गणेश,हे माँ,हे महाकाल हमें काल (मृत्यु) के कपाल से मुक्त करो।

■■ आकाश,अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी ये पंचमहाभूत (पंचतत्व) पञ्च परमेश्वर की तरह न्याय करें।

■■ पवित्र नदियां,ताल-सरोवर,जलाशय,जलप्रपात,

कूप जल (कुओं का जल), बावड़ी, वर्षाजल,

मेघ जल,पुष्कर,सप्त सागर तथा समुद्रों का जल इस जीव-जगत के अंतर्मन व तन को पवित्र-पावन करे।

■■ संसार में सुख-संपन्नता का साम्राज्य हो।

■■ दुःख-दारिद्र का दहन हो।

■■ कष्ट-क्लेश काल-कवलित हों।

■■ नकारात्मकता का नाश हो।

■■ विकार व बीमारियों का विनाश हो।

■■ देश के दुश्मनों का सर्वनाश हो।

इन्हीं भावपूर्ण भावनाओं के साथ शिवपुत्र,

गौरीनंदन सिद्धि-बुद्धि के दाता श्री गणेश को

कोटि-कोटि वंदन,शत-शत नमन और

साष्टांग प्रणाम करते हैं।

सनातन धर्मानुसार भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारम्भ होकर ढोल ग्यारस तक चलने

वाला यह अष्ट दिवसीय (आठ दिनों) का पर्व सम्पूर्ण जीव-जगत के प्राणी-पशुओं तथा सभी मनुष्यों के

अष्ट-दरिद्र,अष्ट-विकार, का विनाश करे।

इन्हीं प्रार्थनाओं,कामनाओं,भावनाओं सहित

बड़ी विनयपूर्वक “विध्न नाशक श्री विनायक” से विनती व विनम्र निवेदन करते हैं।

“गणेश जी के चमत्कार”

कभी मिल जाएं,तो गणपति बब्बा से पूछना–

कैसे सूरज गर्म बनाया,

शीतल चाँद उजारा।

जुदा-जुदा नित नभ के माहीं,

कैसे चमकत तारा।।

ऊँचे-ऊँचें पर्वत कीन्हें,

सरिता निर्मल धारा।

कैसे भूमि अचल निरन्तर,

क्यों सागर जल खारा।।

किस विध बीज बने बिरछन के,

नाना भाँति हजारा।

‘ब्रह्मानन्द’ अंत नहीं पावे,

सुर-नर-मुनिगण हारा।।

इस अद्भुत टेक्नोलॉजी पर सबको चिन्तन-मंथन करना चाहिए।

इस ‘काफी तीनताल’ दोहे का अर्थ

समझ नहीं आये,तो ईमेल करें।

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मोदक का महत्व…

गणेश चतुर्थी को बनाएं-गिलोय युक्त गुड़ के मोदक/लड्डू…

35 तरह के रोगों का विनाशकारी मोदक।

सँक्रमण रोगों को मिटाने वाला आयुर्वेदिक गुडुची मोदक (लड्डू) जिसे खुद भी खाएं औऱ गणपति जी को भी अर्पित करें।

बेहतरीन इम्युनिटी बूस्टर होते हैं– गुड़-मेवा के लड्डू उत्सव के समय घर-घर में बहुत ही उत्साह के साथ एवं उत्तर भारत में

गुड़-मेवा के लड्डू ज्यादा प्रचलित हैं। ये लड्डू जन्माष्टमी के समय सोंठ – मेवा, गणेश चतुर्थी को गुड़ के मोदक

तथा मकर संक्रांति के दिन तिल और मूंगफली डालकर बनाए जाते हैं।

एक विशेष स्वास्थ्यवर्धक जानकारी-पहलीबार जिससे आप भी स्वस्थ्य रहेंगे और बरसेगी श्री गणेशजी की अटूट कृपा——-

निम्नलिखित सामग्री एकत्रित करें….

गुड़ के लड्डू बनाने की विधि-

कटोरी नारियल बुरादा 50 ग्राम

कटोरी बादाम टुकड़ा 50 ग्राम

छुहारे बारीक़ कटे हुए 100 ग्राम

मखाने टुकड़े 50 ग्राम

काजू टुकड़े 100 ग्राम

किसमिस 100 ग्राम

चिरौंजी 25 ग्राम

मगज तरबूज बीज 100 ग्राम

खसखस दाना 50 ग्राम

गोंद टुकड़ा 35 ग्राम

देशी घी 300 से 500 ग्राम

उपरोक्त सभी मेवा देशी घी में पाककर

गुड़ कुटा हुआ 1किलो

गुड़ की चाशनी में मिलाये।

बचा हुआ देशी घी लड्डू के समान में ही मिला लें। गुनगुना रहने पर

इलायची पाउडर 10 ग्राम

केशर एक ग्राम,

अमृतम मुलेठी चूर्ण 20 ग्राम

अमृतम त्रिकटु चूर्ण 50 ग्राम

अमृतम आंवला चूर्ण 50 ग्राम

तेजपत्र, मुलेठी, 10 – 10 ग्राम

मिलाकर अपने घर पर ही लड्डू बनाएं।

सेवन विधि-

एक लड्डू रोज दूध के साथ सुबह लेवें।

इसे भोजन के साथ भी लिया जा सकता है।

वातरोगों एवं थायराइड में यह विशेष लाभप्रद है।

मोदक में गुड़ क्यों मिलना जरूरी है।

गुड़ तेरे नाम अनेक-आयुर्वेद में गुड़ को अमृतम कहा गया है।

संस्कृत : गुड (शाब्दिक अर्थ : ‘गेंद’)

बंगाली, असमिया, ओडिया, भोजपुरी, मैथिली,

नेपाली : भेली

राजस्थानी : गोल गूल

मराठी : गुळ

उर्दू, पंजाबी : गुड़

सिन्धी : गुढ़ (ڳُڙ)

कोंकनी : गोड

मलयालम : शर्क्करा या चक्कर

गुजराती : गोल (ગોળ)

कन्नड : बेल्ल (ಬೆಲ್ಲ)

तेलुगु : बेल्लम् (బెల్లం)

तमिल : वेल्लम् (வெல்லம்)

सिंहल : हकुरु (හකුරු)

पढ़े अमृतमपत्रिका

गुड़ और गुड़ के लड्डू खाने के क्या फायदे हैं?

गुड़ के 35 से अधिक फायदे होते हैं-

गुड़ एक अमृतम् औषधि है। गुड़ गुणों की खान है। यह उदर के गुड़ रहस्यों-रोगो का नाशक है।

कैसे बनाएं- इम्युनिटी बूस्टर गुड़-मेवा के लड्डू—

गुड़ गन्ने के अतिरिक्त खजूर से भी बनाया जाता है।

खजूर का गुड़ भारत में मुख्यतः पश्चिम बंगाल और इसके आस पास के क्षेत्रों में प्रचलित है।

इसे ताल गुड़ भी कहते हैं।

आयुर्वेद ग्रन्थ वनस्पति कोष, आयुर्वेदिक चिकित्सा, सुश्रुत संहिता,

भावप्रकाश, आयुर्वेद निघण्ठ़ आदि में गुड़ की विशेषताओं का विस्तार से वर्णन है।

【१】गुड़ गन्ने (ईख) के रस से निर्मित होता है। ईख तन के कई दोशो का दहन करता है।

【२】प्राकृतिक पेट पीड़ाहर दवा है।

【३】 गुड़ में मौजूद तत्व तन के अम्ल (एसिड) को दूर करता है

【४】 जब चीनी के सेवन से एसिड की मात्रा बढ़ जाती है जिससे शरीर में हमारी व्याधियों से घिर जाता है।

【५】गुड़ के मुकाबले चीनी को पचाने में पाँच गुना ज्यादा ऊर्जा व्यय होती है।

【६】गुड़ पाचनतन्त्र के पचड़ो को पछाड़ भोजन पचाकर पाचनक्रिया को ठीक करता है।

【७】पुरानी कठोर कब्ज के कब्ज़े से मुक्ति हेतु रोज रात्रि में 15-20 ग्राम गुड़ 200 मि.ली जल में उबालकर 40-50 मि.ली रहने के उपरान्त चाय की तरह पीना हितकारी है।

साथ में अमृतम टेबलेट का सेवन करें 10 दिन के लगातार प्रयोग से कब्जियत पूरी तरह मिट जाती है। भूख खुलकर लगती है।

【८】महिलाये खाने के साथ या बाद गुड़ खाये, तो शरीर के विशैल तत्व दूर होते है।

【९】गुड़ से त्वचा मे निखार आने लगता है।

सुन्दर स्वस्थ त्वचा तथा झुरियाँ मिटाने के लिए 3 महीने लगातार नारी सौंदर्य माल्ट दूध या जल से सेवन करें।

【१०】सुंदरता बढ़ाने के लिए नारी सौन्दर्य तेल की प्रत्येक बुधवार शुक्रवार और शनिवार पूरे शरीर की मालिश करें, तो भंयकर खूबसूरती में वृद्धि होती है।

【११】 गन्ना मूत्र वर्धक होने से गुड़ मे भी यही विशेषता पाई जाती है।

【१२】 गुड़ पेशाब समय पर लाने में काफी सहायक है। जिन्हें रूक-रूक कर पेषाब आती हो, वे चीनी की जगह केवल गुड़ का इस्तेमाल करें।

【१३】मूत्र सम्बधी समस्या और मूत्राशय की सूजन मिटाने हेतु दुध के साथ लेवें।

【१४】गुड़ निर्बल कमजोर शरीर वालो के लिए विशेष हितकारी है।

【१५】10 ग्राम गुड़़ में 5 ग्राम अमृतम् सहज चूर्ण, नीबू का रस, काला नमक मिलाकर लेवें

साथ ही अमृतम् माल्ट का एक माह सेवन करें तों रस-रक्त, बल -वीर्य की वृद्धि होती है।

【१६】 हिचकी मिटाने हेतु 5 ग्राम गुड़ में चुटकी भर सोंठ पाउडर या अदरक के रस की 2-3 बूदें एवं एक चम्मच अमृतम गुलकन्द मिलाकर लेवें।

【१७】 माइग्रेन मिटाने हेतु गुड़ का घी के साथ सेवन करें या अकेला ब्रेनकी गोल्ड माल्ट और ब्रेनकी गोल्ड टेबलेट लेवें।

【१८】गाजर मे गुड़ मिलाकर हलुआ खाने से तेज दिमाग होता है।

【】 एसिडिटी नाशक गुड़ – 10 ग्राम गुड 5 ग्राम अमृतम त्रिकटु चूर्ण चूर्ण ठण्डे जल में घोलकर आधा नीबू निचोडे इसे थोड़ा- थोड़ा पीते रहें।

【१९】बवासीर नाशक गुड़ – बवासीर तन की तासीर और तकदीर खराब कर देता है।

इससे मुक्ति हेतु 200 ग्राम पानी में 10 ग्राम गुलाब के फूल, एक चम्मच अमृतम हरड़ चूर्ण, जीरा, अजवायन,

सोंफ, सौठ़ ये सभी 2-2 ग्राम डालकर उबालें 100 ग्राम जल रहने पर इसमे 20 ग्राम गुड़ मिलाकर पुनः उबालें 40-50 ग्राम काढा रहने

पर रात में गर्म-गर्म पीने से बवासीर/अर्श/पाइल्स रोग नष्ट होते है। 7 दिन में मस्से सूखने लगते है।

【२०】तत्काल लाभ हेतु पाइल्सकी माल्ट सुबह-शाम 1-1 चम्मच लेवें।

【२१】पुरानी से पुरानी खाँसी-जुकाम से राहत हेतु गुड़, अदरक, लोंग, जीरा, कालीमिर्च, मुनक्के, हल्दी का काढा बनाकर सुबह खाली पेट लेवें

【२२】गुड़ लोहतत्व का एक प्रमुख स्रोत है और रक्ताल्पता (एनीमिया) के शिकार व्यक्ति को चीनी के स्थान पर इसके सेवन की सलाह दी जाती है।

【२३】गुड़ रक्त की कमी को दूर कर रक्तचाप को सामान्य करता है। दिल की बीमारी होने से रोकता है।

【२४】गुड़ में चीनी से ज्यादा खनिज-लवण होते हैं।

【२५】भोजन के पश्चात हाजमा दुरुस्त करने के लिए गुड़ जरूर खाना चाहिए।

【२६】गुड़ आँखो के लिए अमृत है।

【२७】गुड़ लड़कियों को मासिकधर्म की परेशानियों भी राहतकारी है।

गुड़ के प्रयोग से प्रदूषण, कोयले और सिलिका धूल से होने वाली फेफड़ों की क्षति को रोका जा सकता है।

【२८】कान का दर्द, थकान मिटाने हेतु यह अद्भुत है। ध्यान देवें गर्मियों में गुड़ का सेवन पूरे दिन में 15-20 ग्राम से अधिक न करें।

【२९】शुगर के मरीज़ चीनी की जगह गुड़ का सेवन करें तो किडनी सुरक्षित रहती है।

【३०】भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का उपभोग गले और फेफड़ों के संक्रमण के उपचार में लाभदायक होता है।

गुड़ के ज्योतिषीय उपाय…

【३१】 मंगल की पीडा से पीडित प्राणी को गुड़ का दान अति शुभ लाभकारी है।

【३२】हडिड्यों को बलशाली बनायें गुड़…

इसमे केल्शियम के साथ फॉस्फोरस भी होता है, जो हडिड्यो को मजबूत बनाने में चमत्कारी है। अमृतम आर्थोकी गोल्ड माल्ट गुड़ युक्त ओषधि है।

【३३】आँवला मुरब्बा, सेब मुरब्बा, और अनेक जडी-बुटियों के काढे़ में गुड मिलाकर निर्मित होता है।

यह भंयकर वातविकारो का विनाषक है। आर्थोकी गोल्ड माल्ट के निरंतर सेवन से बहुत से वातविकार हाहाकार कर तन की पीड़ा का पलायन हो जाता है।

【३४】सभी तरह की मेवा को देशी घी में पकाकर, मसाले युक्त गुड़ के लड्डू बनाकर खाने से इम्युनिटी मजबूत होती है।

【३५】गुड़, गिलोय मेवा युक्त लड्डू/मोदक के एक महीने सेवन से उदर के अनेक विकार दूर हो जाते हैं।

यह रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में विशेष कारगर हैं।

भावप्रकाश, व्रतराज एवं आयुर्वेद चिकित्सा आदि ग्रन्थों में लिखा है कि-जब सूर्य गोचर में सिंह तथा कन्या राशिगत हों,

तब सूर्य संक्रमित हो जाता है। इस दरम्यान संस्सआर में बीमारी, महामारी का भय रहता है।

रोग अधिक फैलते हैं। अतः इस आयुर्वेदिक मोदक या लड्डू का सेवन जीवनीय शक्ति में भारी वृद्धि करता है।

मोदक कब तक खराब नहीं होते–

5 से 7 दिन तक इन लड्डुओं का कुछ नहीं बिगड़ता। इसलिए इसे इतना ही बनाये,जितना उपयोग कर सकें।

ओषधि मोदक कौन-कौन खा सकता है–

इस मोदक को स्त्री-पुरुष, बच्चे,बुजुर्ग कोई भी

खा सकता है। इसे बिना बीमारी के भी लिया जा सकता है। यह आयुर्वेद की संक्रमण नाशक अमृतम ओषधि है।

इसे स्वास्थ्य रक्षक ओषधि के रूप में जीवन भर लिया जा सकता है। यह मोदक स्वास्थ्यवर्द्धक,तो है ही-साथ ही अनेक रोगों का नाशकर्ता,विध्नहर्ता भी है।

आयुर्वेद के खजाने से-

“व्रतराज” एवं “आयुर्वेद और पर्व“

सर्वहितकारी ओषधियाँ,

“आयुर्वेद में मोदक का महत्व“

आदि नामक पुस्तकों में हर्बल ओषधियों के मिश्रण से करीब 100 से अधिक मोदक(लड्डू) बनाने की विधियों का उल्लेख है।

यह अमृतम आयुर्वेदिक मोदक 22 तरह की ज्वर से जुड़ी पुरानी बीमारियों का शर्तिया इलाज है।

गिलोय मोदक इन बीमारियों को मिटाता है–

◆ कोरोना संक्रमण, फेफड़ों के रोग,

◆◆ स्वाइन फ्लू, डेंगू फीवर,

◆◆◆ चिकिनगुनिया,

◆◆◆◆ वायरल फीवर,

◆◆◆◆◆ पुराना जिद्दी मलेरिया,बुखार,

◆◆◆◆◆◆ संधिशोथ, जोड़ों में दर्द

◆◆◆◆◆◆◆ ग्रन्थिशोथ यानि थायराइड,

◆◆◆◆◆◆◆◆ शिथिलता,सुस्ती,आलस्य, नपुंसकता,

◆◆◆◆◆◆◆◆◆अकारण चिन्ता,

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆मानसिक अवसाद

आदि अनेक रोगों से यह अमृतम औषधि मोदक रक्षा करता है।

इस मोदक का नियमित सेवन किसी भी सीजन या

मौसम में कर सकते हैं। यह योगवाही ओषधि है।

योगवाही क्या होता है ? इसकी जानकारी पिछले लेखों में पढ़ सकते हैं।

क्यों लाभकारी है गुडुची मोदक-

■ पाचन तन्त्र मजबूत होता है।

■■ मेटाबोलिज्म सुधरता है।

■■■ जीवनीय शक्ति जागृत करने में सहायक है।

■■■■ रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धिकारक है।

पुस्तकों को प्रणाम-

धन्वन्तरि कृत-आयुर्वेदिक निघण्टु

लेखक-आयुर्वेदाचार्य प्रेम कुमार शर्मा

(प्रसिद्ध साहित्य आयुर्वेद आचार्य एवं भारतीय

जड़ीबूटियों तथा ओषधियों के शोधकर्ता)

ने इस ग्रन्थ में मोदक को स्वास्थ्य तथा तन की तंदरुस्ती के लिए बहुत ही ज्यादा हितकारी बताया है।

रोगाधिकार–

● गुडुची मोदक के सेवन से कोई रोग नहीं होता।

●● जीवनीय शक्ति जाग्रत करता है।

●●● रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि कारक है।

●●●● बुढ़ापा बहुत देर से आता है।

●●●●●जल्दी बाल सफेद नहीं होते।

●●●●●●बाल कभी झड़ते नहीं है।

●●●●●●●पतले या दोमुहें नहीं होते।

●●●●●●●●विषम ज्वर,मलेरिया,बुखार के लिए यह रामबाण हर्बल मोदक (लड्डू) है।

इसके नियमित सेवन से 22 प्रकार के विषम ज्वर नष्ट हो जाते हैं।

★ यह वातरक्त,रक्तदोष संधि दोष नाशक है।

★★ नेत्र ज्योति तीव्र होती है।

★★★ यह मोदक सर्वोत्तम रसायन है।

★★★★ चमत्कारी त्रिदोष नाशक है।

स्वस्थ्य रहकर 100 वर्ष तक जीवित रह सकते हैं।

अनेक अज्ञात संक्रमित रोगों को उत्पन्न नहीं होने देता।

22 तरह ज्वर का अन्त करने के कारण इस मोदक को ज्वरान्तक मोदक भी कहा गया है।

क्या आपको पता है?

प्राचीन काल में हर्बल लड्डुओं (मोदक)का बहुुुत चलन

था। तन को तंदरुस्त बनाने के लिए इसका निर्माण अनेक आधि-व्याधि नाशक जड़ीबूटियों,ओषधियों के योग से होता था।

“क्या है गुडुची,गिलोई या गिलोय-

अमृतम ओषधि,गुडुची के अन्य नाम गिलोय,अमृता,अमरबल्ली आदि हैं ।

गुडुची के उपयोग,सेवन-विधि,परहेज

आदि की सम्पूर्ण जानकारी पिछले लेखों में दी जा चुकी है।

अमृतम की वेवसाइट पर गुडुची या गिलोय के बारे में विस्तार से जान सकते हैं।

क्या सावधानी बरतें-

रात्रि में दही,जूस,रायता,अरहर की दाल,सलाद आदि का सेवन न करें।

आपकी सुविधा के लिए-

यदि उपरोक्त हर्बल मोदक बनाने में असमर्थ हैं,तो गिलोई या गुडुची,गिलोय चिरायता,कालमे

घ,सुदर्शन,काढ़ा,सेव,आँवला मुरब्बा,गुलकन्द,त्रिकटु, त्रिफला आदि

50 से अधिकओषधियों के मिश्रण

से निर्मित

अमृतम फ्लूकी माल्ट का सुबह खाली पेट

गुनगुने दूध से 2 से 3 चम्मच तक एवं रात्रि में खाने से पहले लेवें।

यह 22 प्रकार के विषम ज्वर,संक्रामक रोग-बीमारियों को मिटाने में सहायक है।

फ्लूकी की माल्ट – शिथिलता,सुस्ती,

आलस्य एवं हठ धर्मी विकार मिटाने में सक्षम है।

http://amrutam.co.in

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