बंगाल के बगल में बसा दार्जलिंग में
कुदरत का नजारा देखने लायक है।
केसे जाए दार्जलिंग…
दार्जिलिंग, गैंगटोक तथा थिंपू के लिए वायु मार्ग
से जाना हो तो बागडोगरा हवाईअड्डा निकट
पड़ता है। यह दार्जिलिंग से ९० किलोमीटर
पर है। यहां से टैक्सी या बसें ली जा सकती हैं।
रेल मार्ग से जाने पर न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन पर पहुंचिए।यह दार्जिलिंग से मात्र ८० किलोमीटर पर है। मुर्शिदाबाद पहुंचने के लिए वायु मार्ग से मालदा पहुंचना होगा और वहां से टैक्सी या बस के द्वारा दूरी १२४ किलोमीटर है। रेल द्वारा सियालदह से बहरामपुर होते हुए मुर्शिदाबाद पहुंचा जा सकता है।
सुंदरवन की यात्रा जलमार्ग से भी संभव है। रेल मार्ग सियालदह से उपलब्ध है जहां से ५४ किलोमीटर दूर कैनिंग तक जा सकते हैं।
कलकत्ता से १५२ किलोमीटर की दूरी पर
विष्णुपुर स्थित है। विष्णुपुर कभी वास्तुकला,
संगीत तथा मूर्तिकला से संपन्न था । इसके अवशेष अब भी यहां मिलते हैं। बांकुड़ा जिले के एक भाग विष्णुपुर से अनेक पवित्र हिंदू मंदिरों तथा रामकृष्ण
परमहंस और मां शारदा देवी के जन्मस्थान तक
पहुंचने का मार्ग है।
वर्षा की अधिकता के कारण बंगाल के
चप्पे-चप्पे पर हरियाली है। इसकी
शस्य -श्यामला भूमि में हिमित पर्वत
श्रृंखलाएं अत्यंत आकर्षक और मनोहारी हैं,
जिनमें दार्जिलिंग उनका सिरमौर है अपने बर्फीले शिखरों के कारण दार्जिलिंग की सुंदरता के दर्शनार्थ संसार भर से पर्यटक वर्ष पर्यंत आते रहते हैं।
गर्मी की छुट्टियों यानि ग्रीष्मावकाश में तो
भारत के प्रत्येक कोने से पर्यटक दार्जिलिंग
पहुंचते हैं।
कलकत्ता से ६८६ किलोमीटर उत्तर में समुद्र
सतह से ७००० फुट की ऊंचाई पर स्थित इस
पर्वतीय नगरी में आवास की विपुल सुविधाएं
उपलब्ध हैं। फिर भी यदि होटल अथवा लॉज में अग्रिम आरक्षण करा लिया जाए, तो यात्रा अधिक सुखद बन सकती है।
दार्जिलिंग में देखने के लिए अनेक स्थान है।
महाकाल महादेव मंदिर का निर्माण 1782 में
बौद्ध धर्म के सिद्ध पुरुष और परम शिव भक्त
लामा दोरजे रिनजिंग द्वारा किया गया था।
महाकाल मंदिर इसे भूटिया मठ के नाम से
भी जाना जाता है।
दार्जिलिंग में वेधशाला हिल
के ऊपर स्थित है और यह हिंदू और बौद्ध धर्मों
का एक पवित्र पूजा स्थल है।
महाकाल शिवालय में केतु दोष एवम पितरों की
शांति हेतु रंग-बिरंगे प्रार्थना झंडे लगाते हैं।
महाकाल के मुख्य मंदिर के अंदर सोने के तीन चढ़े हुए लिंग हिंदू देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं।
शिवलिंग के साथ में भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ हैं,
जहाँ हिंदू पुजारी और बौद्ध भिक्षु दोनों धार्मिक
अनुष्ठान करते हैं।
मंदिर परसर में देवी काली, देवी दुर्गा,
साक्षात भगवती देवी, भगवान गणेश,
भगवान कृष्ण, भगवान राम,
हनुमान मंदिर,
शिरडी साईं बाबा,
देवी पार्वती, राधा और अन्य
देवी-देवताओं को समर्पित हैं।
धीरधाम मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो नेपाल के
काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर का प्रतिबिंब है।
इस मंदिर की शिवालय शैली की वास्तुकला
नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर से प्रेरित है।
धीर धाम शिवालय की जटिल नक्काशीदार और
रंगीन छत आकर्षक है, और भगवान शिव की मूर्ति आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती है।
इसमें “पंच बकरम त्रि नेत्रम” दर्शाया गया है
जिसका अर्थ है भगवान शिव के पांच अलग-अलग
चेहरे के भाव अलग-अलग मूड में और
तीसरी आंख।
भगवान शिव की मूर्ति को मंदिर के
सामने प्रवेश द्वार के करीब रखा गया है और एक
छोटी ऊंचाई की कंक्रीट की बाड़ से घिरा हुआ है।
माना जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर का
प्रतिनिधित्व करने वाले तीन शिव-लिंग यहां
प्रकट हुए थे।
यहां पहाड़ियों और घाटियों के आश्चर्यजनक
दृश्य भी हैं जिनका आनंद आप मंदिर के पीछे
से ले सकते हैं।
बतासिया लूप,
घूम बौद्ध मठ,
वेधशाला पहाड़ी,
पद्मजा नायडू हिमालयी जंतु पार्क,
प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय,
लायड्ज वानस्पतिक उद्यान,
हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान,
लेवांग रेस कोर्स आदि इनके अतिरिक्त
‘टाइगर हिल’ से सूर्योदय देखिए,
कंचनजंगा के बर्फीले धवल शिखरों का
अवलोकन करते समय, तो पर्यटक उसकी
सुंदरता से अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं।
यदि आपको ट्रेकिंग का शौक है तो संदकफू
ऐसे लोगों के लिए स्वर्ग सदृश है, पूर्णतया शांति
में कुछ समय व्यतीत करने के लिए यदि किसी स्थान की तलाश है, तो कालिंपोंग की सुरम्य घाटी में पहुंच जाइए या नयनाभिराम कुर्सियांग में कुछ दिन विश्राम कीजिए ।
जब पर्यटक दार्जिलिंग तक पहुंच जाते हैं,
तो वहां से भूटान की नयी राजधानी थिंपू तथा सिक्किम की राजधानी गैंगटक देखे बिना नहीं लौटते।
वांगचू नदी के किनारे बसा थिंपू बर्फ से ढकों पहाड़ियों और हरे-भरे क्षेत्र से अत्यधिक सुंदर
बन गया है। इसका नयनाभिराम दृश्य इतना
आकर्षक है कि पर्यटकों का यहां से जल्दी
लौटने का मन नहीं करता।
इसी प्रकार गंगटोक की छटा भी निराली है।
समुद्र की सतह से लगभग १६०० मीटर की
ऊंचाई पर स्थित गैंगटक में एकांत और
शहरी चहल-पहल दोनों की सुविधाएं
उपलब्ध हैं। यहां सबकी पॉकेट के
अनुरूप होटल और लॉज उपलब्ध हैं।
पश्चिम बंगाल के अन्य दर्शनीय स्थल मुर्शिदाबाद, विष्णुपुर और सुंदरवन हैं। बंगाल की राज्यशाह विरासत के दर्शन इसकी सड़कों पत्थरों और
लुचारी साड़ियों में होते हैं।
नवाब सिराजुद्दौला और लार्ड क्लाइव की सेनाओं के बीच १७५७ में प्लासी का युद्धस्थल मुर्शिदाबाद में ही स्थित है । इसने भारतीय इतिहास की
दार्ज लिंग में रेसस बंदर, चीतल, जंगली सुअर
और बिल्लियां भी यहां देखी जा सकती हैं।
सुंदरवन के द्वीपों में रंग-बिरंगे और फूल आकर्षक वनस्पतियां भरी पड़ी हैं। बड़ी संख्या में मधुमक्खियां भी पायी जाती हैं इसलिए यह क्षेत्र शहद से भरपूर है।
कांकरा के लाल पुष्प तथा खलसी की
पीत कलियां इस वन की सुंदरता को
नंदन कानन में परिवर्तित कर देती हैं
धार्मिक तीर्थों की यात्रा के लिए उत्सुक लोग
बंगाल में शक्ति पीठों के दर्शन का लाभ भी
प्राप्त कर सकते हैं।
दिल्ली-हावड़ा लाइन पर वर्द्धमान स्टेशन
उतरकर फुल्लारा देवी के दर्शन किये जा
सकते हैं।
यहां सती का अधरोष्ठ गिरा था।
वर्द्धमान से नंदीपुर भी दूर नहीं है जहां सती का कंठहार गिरने से देवी नंदिनी रूप में प्रतिष्ठित हैं।
हावड़ा-क्यूल लाइन पर नलादेवी के दर्शन संभव हैं। यहां सती की नला (आंत) गिरी थी तथा यहां नलादेवी महाकाल योगेश भैरव के साथ अवस्थित हैं।
वर्द्धमान स्टेशन से महिषमर्दिनी वक्रेश्वरी देवी
के दर्शन के लिए यात्री जाते हैं। यहां भी एक शक्तिपीठ है।
दीघा महासागर पर बसा एक दर्शनीय स्थल के दर्शन भी जरूरी है।
अमृतम पत्रिका, संपादक अशोक गुप्ता, ग्वालियर से साभार!
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