पुस्तकों की पूँजी | Treasure of Books
आयुर्वेद हमारे महान भारत की
“राष्ट्रीय चिकित्सा पध्दति” है।
अमृतम पुस्तकालय (लाइब्रेरी) में
उपलब्ध हजारों अनेको ग्रंथो में
आयुर्वेद का अपार ज्ञान भरा पड़ा है।
आयुर्वेद के इन्ही प्राचीन ग्रंथो से
“अमृतम आयुर्वेदिक ओषधियों” का
निर्माण किया जाता है।
इसी कारण अमृतम हर्बल दवाएँ
जड़ से रोग मिटायें तथा बहुत
ही अद्भुत असरकारक हैं और
शरीर को पूर्णतः सुरक्षित,
दुष्प्रभाव से मुक्त रखती हैं एवं
हानि रहित हैं।
पुस्तकों की पूँजी | Treasure of Books
पुस्तकें हीं अमृतम की
पूजा और पूँजी है-
अमृतम लाइब्रेरी में उपलब्ध
12 से 15 हजार प्राचीन पुस्तकों
में से कुछ की हालत
बहुत जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है।
कुछ तो नष्ट होने की कगार पर है।
45 वर्षों के निरतंर प्रयासों द्वारा
एकत्रित की गई ये
“अद्भुत अनुभवी आयुर्वेदिक शास्त्र,
कहीं नष्ट न हो जाए।
इसी चिंता में कुछ किताबों की जानकारी
दिन-रात अथक परिश्रम से स्वयं के
द्वारा कम्पोजिंग (टाइप) गुग्गल पर
सबके ज्ञानार्थ डाला जा रहा है।
मुझे मेरे बच्चों ने ऐसा करने की सलाह दी।
कि एक बार गूगल पर डालने के बाद
आयुर्वेद के ये ग्रन्थ,शब्द और अक्षर
अजर-अमर एवं अकाट्य हो जाएंगे।
“अनुभवों का संग्रह,
“अमृतम की अमूल्य धरोहर” है।
अशान्त मन को शान्ति की अनुभूति
आराम से आनंदपूर्वक जीवन बिताने
से नहीं–अपितु,कर्मठ होकर, कठिन कष्ट से
किये कर्म के अनुभवों से होती है।
क्यों कि अक्ल जैसी चीज ठोकर
खाने के बाद ही आती है।
फिर,ठोकरे खा-खाकर व्यक्ति
“ठाकुरजी” बन जाता है,
तभी वह जगत या जगन्नाथ जी
की नजरों में सम्माननीय बन पाता है।
परम् सिद्ध आयुर्वेदाचार्य
वैद्य महामना श्री रमानाथ द्विवेदी
एम.ए.ए.एम.एस.,
चिकित्सक सर सुंदरलाल आतुरालय,
अध्यापक आयुर्वेद कॉलेज,
हिन्दुविश्वविद्यालय,काशी
प्रस्तावना लेखक-
प्रोफेसर दत्तात्रेय अनन्त कुलकर्णी
डारेक्टर,
मेडिकल एन्ड सर्विसेस,
सयुंक्त प्रान्त सरकार।
की लेखनी से कलम वद्ध
सन 1950 में प्रकाशित “सौश्रुती”
“शल्यतंत्र विषयक”
नामक यह ग्रन्थ आयुर्वेद के सर्जरी शास्त्र में
एक बड़े अभाव की पूर्ति करता है।
यह उस जमाने का सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ था।
सौश्रुती शल्य चिकित्सा (सर्जरी) के क्षेत्र
में अद्वितीय पुस्तक है।
हरिदास-संस्कृत-ग्रंथमाला
की १९६ कृति है।
शेष अभी बांकी है……….
पाठक का साथ
आयुर्वेद के विकास
में सहायक होगा।
आपसे लाइक,शेयर,कमेन्ट
की प्रार्थना करते हैं।
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